Saturday 28 March 2015

औरत साबित करने की चुनौती

सब चुप हैं और तमाशा हो रहा है। भारत की एक होनहार बेटी दुती चंद देश की सरहदों से बहुत दूर खुद को औरत साबित करने की फरियाद लगा रही है, पर उसे न्याय कैसे मिलेगा कहना मुश्किल है। भारत में आधी आबादी की संघर्ष यात्रा इतनी कंटीली और पथरीली है कि उससे गुजर कर मंजिल पाना नामुमकिन ही नहीं असम्भव बात है। कहने को खेलों में सुविधाएं बढ़ी हैं, तो तकनीक में इतना इजाफा हुआ है कि सेकेण्ड का सौवां हिस्सा भी दर्ज होना अब मुश्किल नहीं रहा बावजूद इसके अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक महासंघ के समूचे खेल तंत्र में महिला-पुरुष खिलाड़ियों के बीच विभेद बरकरार है।
जीन विविधिता की वजह से प्रतिभाशाली खिलाड़ी दुती चंद न केवल परेशान है बल्कि उसके सामने खुद को औरत साबित करने की बेहद कठिन चुनौती है। दुती को लेकर न केवल भारत बल्कि अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक संगठन भी दोराहे पर है। एक गरीब प्रतिभाशाली खिलाड़ी लगभग 10 महीने से अपने औरत होने की फरियाद कर रही है लेकिन उसे न्याय मिलता नहीं दिख रहा। तीन फरवरी, 1996 को गोपालपुर जिला जाजपुर (उड़ीसा) में चक्रधर और अखूजी चंद के घर जन्मी दुती चंद ने 10 साल की उम्र से ही नेशनल स्तर पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाना शुरू कर दिया था। दुती चंद के चार बहन हैं जिनमें उसकी बड़ी बहन सरस्वती भी एथलीट रही है। 19 वर्षीय दुती चंद न केवल 100 और 200 मीटर दौड़ की नेशनल चैम्पियन है बल्कि उसने कम उम्र में ही जितनी सफलताएं अर्जित की हैं, देश की कोई अन्य महिला खिलाड़ी नहीं कर सकी है। हाल ही केरल में हुए राष्ट्रीय खेलों में भी उसने स्वर्ण पदक से अपना गला सजाया था। पांच साल की उम्र से ट्रैक पर जलवा दिखा रही गोपालपुर (उड़ीसा) की जांबाज एथलीट दुती चंद नेशनल स्तर पर 100 और 200 मीटर दौड़ के 200 से अधिक तमगे हासिल करने के साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दो स्वर्ण और एक कांस्य पदक जीत चुकी है।
भारत में जहां तक जेण्डर परिवर्तन की बात है अकेले दुती चंद ही नहीं इसका दंश शांति सुंदरराजन और पिंकी प्रमाणिक भी झेल चुकी हैं। काफी संघर्ष के बाद यह दोनों खिलाड़ी निर्दोष तो साबित हुर्इं पर इनका खेल जीवन तबाह हो गया और दुबारा ट्रैक पर फिर नहीं दौड़ीं। देश की उदीयमान खिलाड़ी दुती के मामले की फिलवक्त स्विट्जरलैंड के शहर लुसाने में सुनवाई चल रही है। इसे  जुलाई 2014 में ग्लासगो कॉमनवेल्थ खेलों के कुछ दिन पहले ही ट्रैक से अयोग्य करार दिया गया था। तब उसके शरीर में टेस्टोस्टेरोन की मात्रा सामान्य से ज्यादा पाई गई थी। टेस्टोस्टेरोन वो हार्मोन है जो पुरुषोचित गुणों को नियंत्रित करता है। अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक संघ और अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक समिति की नीतियों के मुताबिक किसी खिलाड़ी के शरीर में टेस्टोस्टेरोन की क्या सीमा हो, यह तय किया गया है। अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक संघ का मानना है कि हाइपरएंड्रोजेनिज्म की वजह से खिलाड़ियों को अनुचित फायदा मिलता है और यह सभी खिलाड़ियों को बराबर का मौका दिए जाने के सिद्धांत का घोर उल्लंघन है। हाइपरएंड्रोजेनिज्म उस स्थिति को कहते हैं जब किसी महिला के शरीर में जीन की विविधिताओं की वजह से सामान्य से अधिक मात्रा में टेस्टोस्टेरोन बनता है। देखा जाए तो जीन की विविधिता से पैदा होने वाली ऐसी बहुत सी स्थितियां हैं, जो अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक संघ के नियंत्रण में नहीं हैं हालांकि उनसे भी खिलाड़ियों को फायदा मिलता है, पर उन्हें प्रतिस्पर्धा के लिए अनुचित नहीं माना जाता। अब सवाल यह उठता है कि हम हाइपरएंड्रोजेनिज्म को अलग कर क्यों देखते हैं? ऐसा इसलिए है कि खेलकूद में महिलाओं को लेकर हमारी सामाजिक सोच अभी भी रूढ़िवादी है। दुती भी रूढ़िवादिता का ही शिकार है। खेलों की जहां तक बात है औरत होने के सामान्य मानकों पर खरा नहीं उतरने वाली महिला एथलीटों को कई तरह के परीक्षणों से गुजरना पड़ता है। महिला एथलीटों पर इसका जबरदस्त दबाव होता है कि वे अपने को औरत साबित करें ताकि उनके लिंग को लेकर किसी तरह का सवाल न उठे। प्राय: खुद को औरत साबित करने का बोझ महिला खिलाड़ियों को ही उठाना पड़ता है। इसी तरह उन पर यह साबित करने का बोझ भी होता है कि अधिक टेस्टोस्टेरोन की वजह से उन्हें कोई फायदा तो नहीं मिल रहा। आईएएफ ने दुती चंद से जो मेडिकल जांच कराने को कहा है, वह गैर जरूरी है। इससे इन खिलाड़ियों पर काफी ज्यादा आर्थिक, मनोवैज्ञानिक और शारीरिक बोझ पड़ता है।
हाइपरएंड्रोजेनिज्म की जहां तक बात है ऐसी कई महिलाएं हैं, जिन पर इसका असर है। उन्हें एंड्रोजेन के प्रभाव को दबाने के लिए किसी तरह की थेरेपी या सर्जरी नहीं करानी होती है। हाइपरएंड्रोजेनिज्म तो पॉलीसिस्टिक ओवेरिक सिंड्रोम की वजह से भी होता है और तकरीबन 10 से 15 फीसदी महिलाएं इसकी चपेट में आ जाती हैं। अफसोस की ही बात है कि खेल के मैदान में वापसी करने के लिए अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक संघ जो इलाज कराने को कहता है, उसका खर्च भी उसी खिलाड़ी को ही उठाना पड़ता है। दुती चंद के मामले में यदि भारतीय खेल मंत्रालय आर्थिक मदद नहीं दे रहा होता तो यह गरीब की बेटी तो अपील भी नहीं कर पाती। अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक संघ के नियमों के मुताबिक यदि दुती चंद एंड्रोजेन के स्तर को कम नहीं कर पाई तो उसे अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में फिर भाग लेने की इजाजत नहीं मिलेगी। एंड्रोजेन के स्तर को कम करने की शर्त के खिलाफ दुती चंद ने अपील की है। बकौल दुती  वह अपने शरीर में बदलाव करने को तैयार नहीं है। इसे हास्यास्पद ही कहेंगे कि खेल की दुनिया में  पुरुषों के लिए टेस्टोस्टेरोन के स्तर की कोई सीमा तय नहीं है जबकि महिला खिलाड़ियों के लिए बेवजह के मानक तय किए गये हैं।  अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक संघ की जहां तक बात है वह टेस्टोस्टेरोन के मामले में अभी तक कोई सीमा तय नहीं कर सका है। खेलों में उत्कृष्टता और खुद को औरत साबित करने जैसे बड़े मुद्दों पर बखेड़ा तो खड़ा किया जाता है लेकिन इसके स्थायी निराकरण के प्रयास नहीं होते। खेलों में ईमानदारी और पारदर्शिता  के अभाव में खिलाड़ी खिलखिलाने की बजाय मायूस हैं। खेलों में प्रतिभा कोई मायने नहीं रखती क्योंकि उसका पैमाना वे लोग तय करते हैं जिनका खेलों से दूर-दूर तक वास्ता नहीं होता। खेलनहारों की जिस पर कृपा हो जाए वह पिद्दी प्रदर्शन के बावजूद किसी भी प्रतिस्पर्धा में खेल सकता है। भारतीय खेलों में खिलाड़ियों से खेलवाड़ गाहे-बगाहे नहीं बल्कि अमूमन हर प्रतियोगिता में होता है। प्रतिभाएं लाख मिन्नतों के बाद भी न्याय नहीं पातीं। खिलाड़ियों के मायूस चेहरों पर खेलनहार तरस नहीं खाते, उनका दिल नहीं पसीजता। आखिर उपेक्षा से तंग खिलाड़ी असमय खेलों से तौबा कर लेता है और उसके अरमान एक झटके में जमींदोज हो जाते हैं। आम खेलप्रेमियों के सामने वह सच कभी सामने नहीं आता जोकि प्रतिभाएं हर पल जीती हैं। प्रतिभाशाली खिलाड़ी किन-किन दिक्कतों से जूझता है उससे प्राय: हम बेखबर होते हैं। खेलों की हर आचार संहिता खिलाड़ी विरोधी और खेल पदाधिकारियों की आरामतलबी का जरिया है। छोटी सी गलती पर खिलाड़ी तो बलि का बकरा बना दिया जाता है लेकिन उनका कुछ नहीं होता जिन पर प्राय: प्रतिभा हनन के लिए उंगली उठती है। मैदान में कभी खिलाड़ी बेईमानी से हराया जाता है तो कभी उस पर स्वयं हार जाने का दबाव डाला जाता है। प्रतिभा हनन का यह शर्मनाक खेल गांव-गली से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक बदस्तूर जारी है। दुती भी षड्यंत्र का शिकार है।

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