Monday 23 March 2015

मोदी की बात

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब से देश की सल्तनत सम्हाली है वह कुछ न कुछ लीक से हटकर कर रहे हैं। उनकी बात आम जनता को सुहाती भी है या नहीं, उसकी परवाह नहीं करते।  22 मार्च को उन्होंने धरती पुत्रों को अपनी बात तो सुनाई लेकिन उनकी एक नहीं सुनी। भूमि अधिग्रहण का डर और कुदरत के कहर से आहत किसानों को उम्मीद थी कि मोदी जख्म पर मलहम लगाएंगे पर उन्होंने सिर्फ अपनी मंशा ही जताई। प्रकृति कहर के इन नाजुक क्षणों में मोदी ने विपक्षियों पर तंज कसते हुए यह दर्द प्रकट किया कि गरीब किसान भाइयों को राजनीति के चलते बहकाया और भ्रमित किया जा रहा है। उन्होंने किसानों की चिट्ठियों का हवाला देते हुए खेती-किसानी के अलावा गंदगी और दबंगी का बेसुरा राग भी अलापा। मोदी वाक्पटु ही नहीं गजब का अभिनय भी करते हैं। उनकी मन की बात में जमीन से जुड़े इंसान की झलक तो दिखी पर मदद को हाथ नहीं उठे। यह आश्चर्य और दु:ख की बात है कि मुल्क के मुखिया को ही नहीं पता कि इस देश के किसान की क्या-क्या समस्याएं हैं, किन तकलीफों में वह जीवन गुजारता है। सवाल यह भी है कि सत्ता सम्हालने के इतने महीने बाद मोदी को किसानों की सुध क्यों आई? भारतीय किसान आज विदेशी कम्पनियों के बीज, कीटनाशक, खाद आदि के कारण अपनी उपजाऊ जमीन बंजर बना रहा है। कभी सेज के नाम पर जमीन छीनी गई तो कई मर्तबा मौसम की मार से वह बर्बाद हुआ। सरकारें मुआवजा तो देती हैं लेकिन वह ऊंट के मुंह में जीरा साबित होती है। अफसोस, मोदी पूर्ण बहुमत और मजबूत प्रशासन तंत्र से किसानों की दशा सुधारने के क्रांतिकारी कदम उठाने की बजाय पूर्व हुक्मरानों की करतूतों को लेकर ही बैठे हैं। आजादी के साढ़े छह दशक में किसानों के साथ क्या हुआ, उसका राग अलापने से बेहतर होता मोदी अन्नदाता को उसकी किस्मत बदलने का भरोसा और हौसला देते। अपने मन की बात में मोदी ने भूमि अधिग्रहण विधेयक के नए रूप के समर्थन में किसानों को तर्क दिए कि यही उनके लिए फायदेमंद है। उन्होंने पीपीपी मॉडल की तरफदारी और निजी क्षेत्र का पक्ष रखने के साथ सड़कों के फायदे तो गिना दिए पर यह क्यों नहीं बताया कि सड़क बनाने का खर्च, जनता की जेब से किस तरह सालोंसाल वसूला जाता रहेगा। नहर, सड़क, उद्योग जो भी बनें, इनसे दुनिया के सामने भारत के विकास की तस्वीर तो पेश होगी पर इससे किसानों का कितना अहित होगा, यह दिखाई क्यों नहीं देता। प्रधानमंत्री ने अपने मन की तो कह ली पर वे किसानों के मन की कब सुनेंगे, यह बड़ा सवाल है। किसान मुसीबत में है, बेहतर होगा उनसे बातें करने की बजाय अधिकाधिक मदद दी जाए।  मुल्क का सही विकास निर्जीव अधोसंरचना से नहीं बल्कि लहलहाती सजीव फसलों से ही होगा।

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