Monday 23 March 2015

बदहाल शिक्षा प्रणाली

देश के विभिन्न राज्यों में चल रही वार्षिक परीक्षाओं में जिस कदर नकल के प्रकरण सामने आ रहे हैं, उसे भारतीय शिक्षा प्रणाली के लिए शुभ संकेत नहीं कहा जा सकता। राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लेकर दिल्ली में हुई बैठक में जिस तरह के विरोधाभासी बयान आए उससे स्पष्ट हो गया कि देश का शिक्षा तंत्र बेपटरी चल रहा है। नकल के बढ़ते चलन के पीछे  कहीं न कहीं आठवीं कक्षा तक स्वत: प्रोन्नत करने की हमारी गलत परम्परा ही है। स्वत: एक कक्षा से दूसरी कक्षा में तरक्की से जहां छात्रों में पढ़ाई के प्रति अरुचि पैदा हुई वहीं उनमें नकल की प्रवृत्ति बढ़ी है। नई शिक्षा नीति के जिन मुद्दों पर विचार-विमर्श हो रहा है, उनमें स्कूल परीक्षा प्रणाली में सुधार भी शामिल है। केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी की अध्यक्षता में हुई इस बैठक के निष्कर्ष क्या होंगे यह तो समय बताएगा पर मौजूदा हालात संतोषजनक नहीं कहे जा सकते। मोदी सरकार से देश की भावी पीढ़ी को बड़ी उम्मीदें हैं, लेकिन मानव संसाधन मंत्रालय शुरू से ही विवादों में है। यह सच है कि शिक्षा का क्षेत्र समझने-सम्हालने के लिए शैक्षणिक योग्यता से महत्वपूर्ण देश, समाज की स्थितियों, परिस्थितियों, आवश्यकताओं को परखने की सामान्य समझ और दूरदृष्टि अधिक जरूरी है। अति प्रतिस्पर्द्धा की इस दुनिया में भारत के किसी शिक्षा संस्थान का सर्वश्रेष्ठ 100 में शुमार न होना शर्म की ही बात है। मोदी सरकार को इस बात का इल्म होना चाहिए कि बिना बेहतर शिक्षा के मुल्क तरक्की की राह नहीं चल सकता। हमारी श्रेष्ठ शैक्षणिक संस्थाओं में स्वायत्तता को दरकिनार कर राजनीतिक मकसद साधने का खेल नुकसान ही पहुंचाएगा। भारत विश्व गुरु है लेकिन हम उससे बेखबर आये दिन नए-नए विवादों को जन्म दे रहे हैं। भारत में एनआईटी, आईआईएम, आईआईटी कुछ ऐसी उच्च शिक्षण संस्थाएं हैं, जिनकी वैश्विक प्रतिष्ठा है। आईआईटी तो दुनिया में उच्च तकनीकी शिक्षा में श्रेष्ठता का पैमाना है। आईआईटी से डिग्रीधारी लोग विश्व की श्रेष्ठतम संस्थाओं, प्रतिष्ठानों में उच्च पदों पर हैं। आईआईटी की प्रतिष्ठा के पीछे एक बड़ी भूमिका इसकी स्वायत्तता ही है, जो यह सुनिश्चित करती है कि संस्थान में पढ़ने-पढ़ाने और शोध करने का माहौल बिना किसी दबाव के अच्छा होना चाहिए। मुल्क में जहां उच्च शिक्षा संस्थानों की कमी है वहीं शोध कार्यों के लिए साधनों-संसाधनों का भी घोर अभाव है। शिक्षा को राजनीतिक मंच बनाने की बजाय मोदी सरकार को प्रारम्भिक शिक्षा में सुधार की ठोस पहल करनी चाहिए। आज हर बच्चे को गलत तरीके से प्रोन्नत करने की बजाय उसे शिक्षा के समान अवसर मिलना जरूरी है।

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