Thursday 2 June 2016

अमित के बुलंद हौसले से हारी विकलांगता


पैरा ओलम्पिक में जीतना चाहता है स्वर्ण
अगर इरादे मजबूत और हौसले बुलंद हों तो फिर शारीरिक विकलांगता भी आदमी के सामने झुक जाती है। सोनीपत जिले के बैंयापुर गांव के एक युवा पैरा खिलाड़ी ने इसे साबित कर दिखाया है। अर्जुन अवार्डी अमित सरोहा ने जिन परिस्थितियों में देश और परदेस की धरती पर नाम कमाया है, अकसर वैसी स्थिति में लोग निराशा और कुंठा से भर जाते हैं, परंतु यह इस युवा का हौसला ही था कि उसने अपनी विकलांगता को अपनी जीत का हथियार बना लिया और एक के बाद एक उपलब्धि हासिल की। वह भी महज सात साल के छोटे से अंतराल में। भीम और अर्जुन अवार्ड से सम्मानित अमित सरोहा आज देश के हजारों विकलांग युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
हाल ही में हुई फ्रेंच ओपन चैम्पियनशिप में अमित ने दो स्वर्ण और एक रजत पदक जीता है। इसके साथ ही उसने रियो ओलम्पिक के लिए अपना टिकट भी पक्का कर लिया। इसी टूर्नामेंट में अमित ने २ नये एशियन रिकार्ड कायम किए हैं। इसी माह पोलैण्ड में देश के लिए एक गोल्ड व एक सिल्वर मैडल जीता। इससे पहले मार्च में शारजहां ओपन में एक गोल्ड और एक सिल्वर देश की झोली में डाला और दुबई में मार्च में हुई एशियन चैम्पियनशिप में एक गोल्ड व एक सिल्वर मैडल जीता था। फिलहाल, अमित रियो ओलम्पिक के लिए तैयारी में जुटा है। उसका सपना है कि वह रियो में देश के लिए सोना जीत कर लाए।
कार दुर्घटना ने तोड़ दी थी रीढ़ 
साधारण परिवार से सम्बन्ध रखने वाले अमित सरोहा के भी दूसरे युवाओं की तरह सपने थे और इन्हें पूरा करने के लिए इच्छाशक्ति भी, लेकिन नियति उससे कुछ और ही कराना चाहती थी। २००७ में एक कार दुर्घटना में अमित की रीढ़ टूट गयी। इसके बाद उसके शरीर का निचला हिस्सा काम करना छोड़ गया। साथ ही दोनों हाथों की उंगली भी जवाब दे गयीं। एक हृष्ट-पुष्ट युवा बेबस और लाचार व्हीलचेयर पर आ गया। बकौल अमित इलाज के दौरान एक विदेशी युवक उसे मिला। वह भी अमित की तरह ही स्पाइनल कोड इंजरी से पीड़ित था। इस युवक की खेल के प्रति ललक देखकर अमित में भी लालसा जगी और २००८ में उसने व्हीलचेयर रग्बी से अपने खेल कॅरिअर की शुरुआत की। आज उसका नाम देश के खास पैरा खिलाड़ियों में गिना जाता है।
ये हैं अमित के नाम उपलब्धियां
व्हीलचेयर रग्बी खेलते हुए अमित ने पहली बार २००९ में राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। ये प्रतियोगिता बेंगलूरू में हुई थी। इसमें उसे कोई पदक तो नहीं मिला, लेकिन जो हौसला यहां से अर्जित हुआ, उसने इस युवा का जीवन ही बदल दिया।  अमित सरोहा ने पहली बार पंचकूला में हुए नेशनल गेम्स में डिस्कस थ्रो व शाटपुट में गोल्ड मेडल जीता था। इसके आधार पर उसका चयन राष्ट्रमंडल खेलों में हुआ। अमित ने पहली बार २०१० के राष्ट्रमंडल खेलों में भाग लिया, लेकिन कोई पदक नहीं जीत सका। इस हार ने भी अमित को निराशा की बजाए हौसला दिया। दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों के एक माह बाद ही चीन के ग्वांगझू में हुए एशियन खेलों में अमित ने रजत पदक जीतकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। इसके बाद अमित ने २०११ में विश्व पैरा गेम्स में डिस्कस थ्रो में सोना जीता। इसके बाद उसका हौसला ऐसा बढ़ा कि एक के बाद एक उपलब्धि उसके कदम चूमने लगी। इसके बाद उसने वर्ष २०१२ में लंदन पैरा ओलम्पिक में भाग लिया। वर्ष २०१३ में फ्रांस में विश्व चैम्पियनशिप में भाग लिया।
ये मिले चुके हैं सम्मान
इस युवा खिलाड़ी की उपलब्धियों को देखते हुए भारत सरकार ने उसे २०१३ में अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया। २०१४ में हरियाणा सरकार ने उसे भीम अवार्ड से नवाजा। पिछले वर्ष २०१४ में पैरा एशियन गेम्स में अमित ने क्लब थ्रो में देश को सोना तथा डिस्कस थ्रो में रजत पदक दिया है। फिलहाल, वह पैरा ओलम्पिक में देश को सोना दिलाने के लिए अभ्यासरत है। अमित सरोहा को प्रदेश सरकार ने बतौर कोच नियुक्त किया है। वह अब दूसरे पैरा खिलाड़ियों के लिए न केवल प्रेरणास्रोत है, बल्कि उनकी राह आसान करने काम करता है। अमित को उसके परिवार ने हमेशा मदद की है। मां की प्रेरणा ने उसे इस मुकाम तक पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभाई है। इधर, अमित की मां दर्शना व बड़े भाई सुमित कहते हैं कि जिस मुकाम पर अमित आज पहुंचा है, यह उसकी लगन और दृढ़-इच्छाशक्ति का ही नतीजा है।  पैरा खिलाड़ी अरुण सोनी को अमित अपना आदर्श मानते हैं। बता दें कि अरुण ने सामान्य एशियन गेम्स में पैरा खिलाड़ी होते हुए पदक अर्जित किया है।

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