Thursday 23 June 2016

भारतीय हाकी बेटियां दूसरी बार खेलेंगी ओलम्पिक

 आओ जानें किसमें है कितना दम
श्रीप्रकाश शुक्ला
भारतीय हाकी बेटियों ने पहली बार 1980 में ओलम्पिक खेला था। उसी साल मास्को में महिला हाकी को ओलम्पिक में शामिल किया गया था। 36 साल बाद फिर भारतीय बेटियां खेलों के महाकुम्भ में शिरकत करने जा रही हैं। प्रदर्शन की जहां तक बात है भारतीय टीम से पदक की उम्मीद करना बेमानी ही होगा क्योंकि यह क्रिकेट नहीं हाकी है जिसमें अजूबा कभी नहीं होता। भारतीय महिला हाकी टीम 1980 मास्को ओलम्पिक खेलों में चौथे स्थान पर रही थी। अब देखना यह होगा कि भारतीय महिला टीम ने 36 साल में अपने खेल में कितनी तरक्की की है। 1980 में जब मास्को में हुए ओलम्पिक में पहली बार महिला हॉकी को शामिल किया गया तो भारत की महिला हॉकी टीम भी पहली बार इतने बड़ी स्पर्धा में भाग लेने गई थी। भारतीय महिला हॉकी टीम के लिए पहली बार कप्तानी का जिम्मा रूपा सैनी ने निभाया था। भारतीय महिला टीम को मास्को ओलम्पिक में चौथा स्थान मिला था। लगभग 36 साल के अंतराल के बाद भारत की महिला हॉकी टीम ने ओलम्पिक में क्वालीफाई किया है। अब देखना यह है कि हमारी किस बेटी में कितना दम है।
रितु रानी (कप्तान)- भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रितु रानी ने महिला हॉकी में कई बार शानदार प्रदर्शन कर दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। भारत के लिए 200 से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने वाली इस खिलाड़ी का भारतीय महिला हॉकी में गजब का योगदान है। 29 दिसंबर, 1991 को हरियाणा में जन्मी रितु रानी ने अपनी पढ़ाई श्री गुरु नानक देव सीनियर हायर सेकेण्ड्री स्कूल से की और 12 साल की उम्र में ही हाकी थाम ली। रितु रानी ने हॉकी की ट्रेनिंग शाहाबाद मारकंडा के शाहाबाद हॉकी अकादमी में ली। प्रशिक्षक बलदेव सिंह ने इसे जुझारू बनाया तो इसने अपनी प्रतिभा के बूते भारतीय महिला हॉकी टीम में जगह बनाई। 14 साल की उम्र में ही हॉकी की यह दिग्गज खिलाड़ी भारतीय सीनियर टीम में शामिल हो गई, साथ ही 2006 मैड्रिड में हुए वर्ल्ड कप में सबसे यंगेस्ट प्लेयर के रूप में टीम का हिस्सा रही। इसके बाद रितु रानी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और 2009 में रूस में आयोजित चैम्पियन चैलेंजर्स (सेकेण्ड) में भारत के लिए सबसे ज्यादा गोल जमाए। रितु रानी के इस बेहतरीन परफॉर्मेंस का ही कारण था कि भारतीय महिला टीम चैम्पियन चैलेंजर्स का खिताब अपने नाम करने में सफल रही। साल 2011 में रितु रानी भारतीय महिला टीम की कप्तान बनी। रितु रानी के नेतृत्व में भारतीय टीम ने अब तक कई सुखद पड़ाव तय किए हैं। रित ने 2013 में क्वालालम्पुर में हुए एशिया कप में जहां भारत को कांस्य दिलाया वहीं 2014 इंचियोन एशियन गेम्स में भी कांसे का तमगा हासिल कर भारतीय हाकी प्रशंसकों के दिल में जगह बनाई। रितु रानी के करियर में सबसे ऐतिहासिक समय अब आया है। उसकी कप्तानी में भारतीय महिला टीम लगभग 36 साल बाद ओलम्पिक में शामिल हुई है। अब देखना यह है कि भारतीय टोली ओलम्पिक में कैसा खेल दिखाती है।
रानी रामपाल (फारवर्ड खिलाड़ी)- भारतीय महिला हॉकी में रानी रामपाल का अहम योगदान है। लगभग 150 इंटरनेशनल मैचों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाली इस खिलाड़ी का प्रदर्शन रियो ओलम्पिक के लिए विशेष होगा। चार दिसंबर 1994 को हरियाणा के शाहाबाद मारकंडा में जन्मी इस फारवर्ड हॉकी खिलाड़ी ने 2009 में केवल 14 साल की उम्र में ही सीनियर महिला हॉकी टीम में प्रवेश किया था। भारतीय सीनियर महिला टीम में प्रवेश के बाद रानी रामपाल ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। रानी रामपाल ने साल 2009 रूस में आयोजित चैम्पियन चैलेंजर्स के फाइनल में चार गोल दागकर भारत को जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी। इस शानदार प्रदर्शन के लिए रानी रामपाल को यंग प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट के खिताब से नवाजा गया। भारत की टीम ने जब 2009 के एशिया कप में सिल्वर मेडल जीता तब भी इस खिलाड़ी का ही परफॉर्मेंस यादगार रहा। इतना ही नहीं 2010 के हॉकी वर्ल्ड कप में रानी रामपाल को यंग प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट का खिताब मिला। हॉकी वर्ल्ड कप में रानी रामपाल ने सात गोल किए थे। रानी के करिश्माई प्रदर्शन का ही कमाल कहेंगे कि भारत को पहली बार वर्ल्ड रैंकिंग में 9वां स्थान मिला जो एक रिकॉर्ड है। वर्तमान में भारतीय महिला हॉकी टीम की रैंकिंग 13 है। 2010 में इंटरनेशनल हॉकी फेडरेशन द्वारा ऑल स्टार टीम ऑफ द ईयर में रानी रामपाल को शामिल किया गया था जो किसी भी हॉकी खिलाड़ी के लिए बड़ी बात होती है। महिला वर्ल्ड कप 2010 में रानी रामपाल को बेस्ट यंग प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट का खिताब दिया गया था। इसके साथ-साथ  इस खिलाड़ी ने जूनियर महिला हॉकी में भी कमाल का खेल दिखाया। रानी रामपाल के शानदार खेल से ही भारतीय टीम को 2013 के जूनियर वर्ल्ड कप में कांस्य पदक मिला और वह प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट बनी। 2014 में रानी रामपाल को फेडरेशन ऑफ इंडियन चैम्बर्स ऑफ इंडस्ट्रीज के तरफ से कमबैक ऑफ द ईयर के पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।
पूनम रानी मलिक (फारवर्ड खिलाड़ी)- भारतीय महिला हॉकी की स्टार फारवर्ड खिलाड़ी पूनम रानी ने अपने बेहतरीन खेल से कई बार हॉकी प्रेमियों का दिल जीता है। आठ फरवरी, 1993 में हरियाणा के हिसार में जन्मी पूनम रानी मलिक ने 2009 में भारतीय महिला हॉकी टीम में प्रवेश किया। इसके साथ-साथ पूनम रानी मलिक 2009 में यूएसए में हुए एफआईएच जूनियर विश्व कप में भारतीय टीम का हिस्सा रही। 2010 में पूनम रानी मलिक ने जापान, चाइना और न्यूजीलैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज में भारतीय महिला हॉकी टीम के लिए अपना शानदार योगदान दिया। अपने शानदार खेल परफॉर्मेंस की बदौलत ही वह कोरिया में आयोजित एफआईएच महिला वर्ल्ड कप में भारतीय टीम में जगह बनाने में सफल हुई। इसके बाद इस हमलावर ने दिल्ली में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स तथा चाइना में हुए एशियन गेम्स में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया। यह खिलाड़ी भारत के लिए अब तक डेढ़ सैकड़ा मुकाबले खेल चुकी है। रियो ओलम्पिक में पूनम रानी का खेल भारतीय टीम में नई जान डाल सकता है। यह खिलाड़ी सीनियर ही नहीं भारतीय जूनियर हाकी टीम का भी हिस्सा रही है। साल 2013 में जर्मनी में हुए जूनियर वर्ल्ड कप में भारत को कांस्य पदक दिलाने में इस खिलाड़ी का अहम योगदान रहा। पूनम ने साल 2013 में जापान में हुई थर्ड महिला एशियन चैम्पियन ट्रॉफी में भारत को चांदी का तमगा दिलाने में अप्रतिम योगदान दिया था। सच कहें तो यह खिलाड़ी फिलवक्त भारतीय महिला हॉकी टीम की मजबूत कड़ी में से एक है।
वंदना कटारिया (फारवर्ड खिलाड़ी)- वंदना कटारिया का नाम महिला हॉकी में बेहतरीन फारवर्ड खिलाड़ी के तौर पर लिया जाता है। 15 अप्रैल, 1992 को उत्तर प्रदेश में जन्मी वंदना कटारिया आज भारतीय महिला हॉकी का अहम हिस्सा है। वंदना कटारिया को 2006 में पहली बार जूनियर महिला हॉकी टीम प्रवेश मिला और इसके ठीक चार साल बाद वह सीनियर टीम का हिस्सा बनी। भारत की हर जीत में इस खिलाड़ी का अहम योगदान रहता है। फिलवक्त वंदना भारत की टाप स्कोरर है। इस खिलाड़ी का भी 2013 के जूनियर वर्ल्ड कप में भारत को कांस्य पदक दिलाने में अहम योगदान रहा। जूनियर विश्व कप में वंदना चार मैचों में पांच गोल कर भारत की टाप स्कोरर रही। 2014 में हुए हॉकी वर्ल्ड लीग सेमीफाइनल राउंड दो में वंदना ने भारत के लिए कुल 11 गोल किए थे। वंदना कटारिया को साल 2014 में बेहतरीन परफॉर्मेंस के लिए हॉकी इंडिया की तरफ से प्लेयर ऑफ द ईयर के खिताब से भी नवाजा जा चुका है। वंदना कटारिया की बड़ी बहन रीता कटारिया भी रेलवे की तरफ से हॉकी खेलती थी।
सविता पूनिया (गोपकीपर)- भारतीय महिला टीम में गोलकीपर के रूप में सविता पूनिया ने जो कमाल किया है वह अपने आपमें शानदार है। हॉकी में गोलकीपर की भूमिका बेहद ही अहम होती है। 70 मिनट के खेल में गोलकीपर पर ही हमेशा सबसे ज्यादा दबाव रहता है। सविता पूनिया ने अपने शानदार खेल से कई बार विपक्षी टीमों के सम्भावित गोलों को बचाकर भारतीय टीम को जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई है। 11 जुलाई, 1990 को हरियाणा के जोधकां में जन्मी सविता ने भारतीय टीम में गोलकीपर के तौर पर शामिल होकर नई शक्ति प्रदान की है। सविता अब तक भारतीय टीम के लिए सवा सौ इंटरनेशनल मैच खेल चुकी है। मलेशिया में आयोजित 8-जी महिला एशिया कप हॉकी टूर्नामेंट 2013 में सविता पूनिया ने जबरदस्त परफॉर्मेंस कर टीम में अपनी पुख्ता की। इस टूर्नामेंट में भारतीय टीम ने कांस्य पदक जीता था। सच कहें तो सविता पूनिया ने ही बेल्जियम में हुए ओलम्पिक क्वालीफाइंग मुकाबले में शानदार खेल दिखाकर भारत को टूर्नामेंट के अंत तक पांचवें नम्बर पर पहुंचाने में खास भूमिका निभाई थी। सविता रियो ओलम्पिक में कैसा जौहर दिखाती है, यह तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन उम्मीद है कि वह सवा अरब देशवासियों को निराश
नहीं करेगी।


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