इन दिनों बिहार की राजनीतिक सरगर्मियां उफान पर हैं। पांच माह बाद होने जा रहे विधान सभा चुनाव को देखते हुए पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी इस कदर खास हो गये हैं कि हर दल और राजनीतिज्ञ उन पर डोरे डाल रहा है। मांझी भी राजनीतिक भाव मिलने से पैंतरे बदल रहे हैं। बिहार के आगामी विधान सभा चुनाव कमल दल की नाक का सवाल बन चुके हैं, इसी को देखते हुए गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और जीतनराम मांझी की मुलाकात हुई। भारतीय जनता पार्टी को पता है कि मांझी उसके लिए कितने महत्वपूर्ण हैं। मांझी की जहां तक बात है वह जिसकी भी तरफ होंगे उसका पलड़ा भारी हो जाएगा। फिलवक्त वह तुरुप का इक्का हैं। बिहार में सितम्बर-अक्टूबर में चुनाव होने हैं। नाजुक जातिगत वोट समीकरणों को देखते हुए ही सभी दलों में महादलित नेता जीतनराम मांझी को अपने साथ करने की होड़ तेज हो गई है। 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में जनता दल यूनाइटेड (जदयू) को 25 फीसदी महादलित वोट का साथ मिला था। जदयू के इस वोट के पीछे मांझी भी एक कारण रहे। मांझी मुसहर जाति से आते हैं और यह जाति गया, जहानाबाद, खगड़िया, सुपौल, अररिया की करीब 30 सीटों पर निर्णायक भूमिका अदा करती है। इसके अलावा शाहाबाद और चम्पारण की दर्जन भर सीटों पर भी इस जाति का असर है। मांझी अगर भाजपा के साथ जाते हैं या अलग भी चुनाव लड़ते हैं, ऐसी दोनों स्थितियों में लाभ भाजपा गठबंधन को ही होगा। भाजपा चाहती है कि लालू प्रसाद यादव मांझी को किसी प्रलोभन में फांस लें उससे पहले ही उन्हें भगवा रंग में रंग दिया जाये। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पहले ही कह चुके हैं कि मांझी के लिए भाजपा के दरवाजे खुले हैं। मांझी लम्बे समय से भाजपा के सकारात्मक रुख की बाट जोह रहे हैं। हिन्दुस्तान आवाम मोर्चा के प्रमुख श्री मांझी आज की प्रधानमंत्री से मुलाकात को बेशक बिहार में किसानों की समस्याओं और उनकी आत्महत्या की घटनाओं से जोड़ रहे हों लेकिन इस मुलाकात से जनता परिवार की पेशानियों में जरूर बल पड़ गया है। मांझी दिल्ली में हैं पर उनकी हर गतिविधि पर जनता परिवार की नजर है। राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू प्रसाद यादव मांझी को अपनी पार्टी में शामिल करना चाहते हैं तो भाजपा भी डोरे डाल रही है। जो भी हो मांझी फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं और अपने पत्ते नहीं खोलना चाहते। मांझी के दिल में लालू प्रसाद यादव के प्रति तो निष्ठा है लेकिव वह जनता दल यूनाइटेड से छत्तीस का आंकड़ा रखते हैं। दरअसल मांझी ही वह शख्स हैं जोकि जनता परिवार के विलय में भी सबसे बड़ी अड़चन हैं। बिहार विधान सभा चुनाव में कौन किसके साथ होगा यह तो भविष्य तय करेगा पर मुख्यमंत्री कौन होगा, यह सबसे बड़ा सवाल है। लालू प्रसाद हालांकि मुख्यमंत्री पद की दौड़ से अपने को अलग मानते हैं पर उनकी बात पर यकीन करना आसान नहीं है।
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