भारतीय ओलम्पिक संघ के अड़ियल रवैये से बॉक्सरों का भविष्य अंधकार में
श्रीप्रकाश शुक्ला
आगरा। भारतीय खेल मंत्रालय, भारतीय ओलम्पिक संघ और बॉक्सिंग इण्डिया के बीच चल रही नूरा-कुश्ती के चलते देश के उदीयमान मुक्केबाजों के भविष्य पर सवालिया निशान लग गया है। रसूख की इस लड़ाई में बॉक्सरों के अरमान चूर-चूर हो रहे हैं तो दूसरी तरफ देश के खेलनहारों की करतूतों से मुल्क लजा रहा है।
एक तरफ भारत सरकार भारतीय खेल प्राधिकरण के साथ मिलकर रियो ओलम्पिक में अधिक से अधिक पदक जीतने की सम्भावनाओें को टटोल रहा है तो दूसरी तरफ हमारे बॉक्सर भारतीय ओलम्पिक संघ के अड़ियल रवैये के चलते प्रतियोगिताओं में शिरकत करने से वंचित हो रहे हैं। तीन मई को भारतीय मुक्केबाजी में जो भूचाल आया उससे बॉक्सर सहम गये हैं। बॉक्सिंग इण्डिया के अध्यक्ष संदीप जाजोदिया के खिलाफ विशेष आम सभा में भारी बहुमत से अविश्वास प्रस्ताव पास होने के बाद इस खेल पर ही संकट के बादल मंडराने लगे हैं। बॉक्सिंग इण्डिया के अध्यक्ष जाजोदिया ने जहां इस कदम को गैरकानूनी करार दिया वहीं महासचिव जय कोहली ने किसी पचडेÞ में पड़ने की बजाय अपने पद से ही इस्तीफा दे दिया। बॉक्सिंग इण्डिया के साथ भारतीय खेल मंत्रालय तो है लेकिन भारतीय ओलम्पिक संघ उससे छत्तीस का आंकड़ा रखता है। पदलोलुपता की इस लड़ाई के चलते ही भारतीय बॉक्सर केरल में हुए राष्ट्रीय खेलों में शिरकत करने से वंचित रह गये।
राष्ट्रीय खेलों की जहां तक बात है वे भारतीय ओलम्पिक संघ की रहनुमाई में ही होते हैं। खेलप्रेमियों को यह जानकर ताज्जुब होगा कि भारत सरकार हर साल खेलों के विकास में अरबों रुपया खर्च करने के बाद भी भारतीय ओलम्पिक संघ के सामने असहाय है। भारतीय ओलम्पिक संघ बॉक्सिंग इण्डिया की जगह एआईबीए द्वारा बर्खास्त आईएबीएफ को मान्यता जारी रखकर बॉक्सिंग का सत्यानाश करने पर आमादा है। भारतीय ओलम्पिक संघ के अध्यक्ष एन. रामचंद्रन की आसंदी भी खतरे में है लेकिन वह जाने से पहले भारतीय खेलों पर बट्टा लगाने का कोई मौका जाया नहीं करना चाहते। आईओए के फैसले से अजीब स्थिति पैदा हो गयी है, जिसमें मुक्केबाजी की एक इकाई को अंतरराष्ट्रीय महासंघ स्वीकृति देता है तो दूसरी इकाई को देश का ओलम्पिक संघ मान्यता देता है। देखा जाये तो दिसम्बर 2012 में आईएबीएफ के निलम्बन के बाद से ही भारतीय मुक्केबाजी संकट में है। यह संकट खिलाड़ियों की हसरतों पर ही असर डाल रहा है। बॉक्सिंग इंडिया और भारतीय ओलम्पिक संघ के बीच चल रही लड़ाई से देश के जांबाज बॉक्सर आहत हैं। ओलम्पिक और विश्व चैम्पियनशिप के कांस्य पदक विजेता विजेन्द्र सिंह, ओलम्पिक पदक विजेता मैरी कॉम, कॉमनवेल्थ गेम्स के स्वर्ण पदक विजेता मनोज कुमार, कॉमनवेल्थ गेम्स की कांस्य पदक विजेता महिला मुक्केबाज पिंकी जांगड़ा, अंतरराष्ट्रीय बॉक्सर पूजा बोहरा आदि शीर्ष मुक्केबाजों को राष्ट्रीय खेलों में न खेल पाने का बेहद मलाल है।
हम बॉक्सरों का दोष क्या है: पूजा रानी
भिवानी (हरियाणा) की अंतरराष्ट्रीय बॉक्सर पूजा रानी ने पुष्प सवेरा से बातचीत में कहा कि बॉक्सिंग को लेकर जो भी हो रहा है वह देश के मुक्केबाजों के लिए अच्छा संकेत नहीं है। हम लोग दिन-रात मेहनत करते हैं और राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में शिरकत करने का मौका न मिलने से मनोबल टूट जाता है। झारखण्ड में हुए राष्ट्रीय खेलों की स्वर्ण पदकधारी पूजा को केरल में हुए राष्ट्रीय खेलों में शिरकत न करने का बेहद मलाल है। दुनिया की 11वें नम्बर की इस बॉक्सर का कहना कि संगठनों की इस लड़ाई को जीतने के लिए देश के बॉक्सरों को एकजुट प्रयास करने होंगे। 75 किलोग्राम भारवर्ग में राष्ट्रीय स्तर पर छह स्वर्ण, दो रजत और एक कांस्य पदक जीतने वाली हरियाणा की इस जांबाज बॉक्सर का कहना है कि जब रियो ओलम्पिक में अब अधिक समय नहीं बचा, ऐसे समय संगठन की लड़ाई से खिलाड़ियों के मनोबल पर ही असर पड़ेगा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दो रजत और तीन कांस्य पदक जीतने वाली पूजा का कहना है कि देश के उदीयमान मुक्केबाजों की समझ में ही नहीं आ रहा कि वे आखिर किस पर भरोसा करें। पूजा का मानना है कि संगठन ही नहीं खिलाड़ी भी बंटे हुए हैं। इससे खिलाड़ियों का न केवल नुकसान होगा बल्कि ओलम्पिक में भारतीय मुक्केबाजों की सहभागिता पर भी सवालिया निशान लग रहा है। पूजा का मानना है कि भारत सरकार को बॉक्सिंग रिंग में चल रही कुर्सी की जंग पर तत्काल रोक लगानी चाहिए वरना खिलाड़ी असमय ही ग्लब्स उतारने को मजबूर हो जाएंगे।
श्रीप्रकाश शुक्ला
आगरा। भारतीय खेल मंत्रालय, भारतीय ओलम्पिक संघ और बॉक्सिंग इण्डिया के बीच चल रही नूरा-कुश्ती के चलते देश के उदीयमान मुक्केबाजों के भविष्य पर सवालिया निशान लग गया है। रसूख की इस लड़ाई में बॉक्सरों के अरमान चूर-चूर हो रहे हैं तो दूसरी तरफ देश के खेलनहारों की करतूतों से मुल्क लजा रहा है।
एक तरफ भारत सरकार भारतीय खेल प्राधिकरण के साथ मिलकर रियो ओलम्पिक में अधिक से अधिक पदक जीतने की सम्भावनाओें को टटोल रहा है तो दूसरी तरफ हमारे बॉक्सर भारतीय ओलम्पिक संघ के अड़ियल रवैये के चलते प्रतियोगिताओं में शिरकत करने से वंचित हो रहे हैं। तीन मई को भारतीय मुक्केबाजी में जो भूचाल आया उससे बॉक्सर सहम गये हैं। बॉक्सिंग इण्डिया के अध्यक्ष संदीप जाजोदिया के खिलाफ विशेष आम सभा में भारी बहुमत से अविश्वास प्रस्ताव पास होने के बाद इस खेल पर ही संकट के बादल मंडराने लगे हैं। बॉक्सिंग इण्डिया के अध्यक्ष जाजोदिया ने जहां इस कदम को गैरकानूनी करार दिया वहीं महासचिव जय कोहली ने किसी पचडेÞ में पड़ने की बजाय अपने पद से ही इस्तीफा दे दिया। बॉक्सिंग इण्डिया के साथ भारतीय खेल मंत्रालय तो है लेकिन भारतीय ओलम्पिक संघ उससे छत्तीस का आंकड़ा रखता है। पदलोलुपता की इस लड़ाई के चलते ही भारतीय बॉक्सर केरल में हुए राष्ट्रीय खेलों में शिरकत करने से वंचित रह गये।
राष्ट्रीय खेलों की जहां तक बात है वे भारतीय ओलम्पिक संघ की रहनुमाई में ही होते हैं। खेलप्रेमियों को यह जानकर ताज्जुब होगा कि भारत सरकार हर साल खेलों के विकास में अरबों रुपया खर्च करने के बाद भी भारतीय ओलम्पिक संघ के सामने असहाय है। भारतीय ओलम्पिक संघ बॉक्सिंग इण्डिया की जगह एआईबीए द्वारा बर्खास्त आईएबीएफ को मान्यता जारी रखकर बॉक्सिंग का सत्यानाश करने पर आमादा है। भारतीय ओलम्पिक संघ के अध्यक्ष एन. रामचंद्रन की आसंदी भी खतरे में है लेकिन वह जाने से पहले भारतीय खेलों पर बट्टा लगाने का कोई मौका जाया नहीं करना चाहते। आईओए के फैसले से अजीब स्थिति पैदा हो गयी है, जिसमें मुक्केबाजी की एक इकाई को अंतरराष्ट्रीय महासंघ स्वीकृति देता है तो दूसरी इकाई को देश का ओलम्पिक संघ मान्यता देता है। देखा जाये तो दिसम्बर 2012 में आईएबीएफ के निलम्बन के बाद से ही भारतीय मुक्केबाजी संकट में है। यह संकट खिलाड़ियों की हसरतों पर ही असर डाल रहा है। बॉक्सिंग इंडिया और भारतीय ओलम्पिक संघ के बीच चल रही लड़ाई से देश के जांबाज बॉक्सर आहत हैं। ओलम्पिक और विश्व चैम्पियनशिप के कांस्य पदक विजेता विजेन्द्र सिंह, ओलम्पिक पदक विजेता मैरी कॉम, कॉमनवेल्थ गेम्स के स्वर्ण पदक विजेता मनोज कुमार, कॉमनवेल्थ गेम्स की कांस्य पदक विजेता महिला मुक्केबाज पिंकी जांगड़ा, अंतरराष्ट्रीय बॉक्सर पूजा बोहरा आदि शीर्ष मुक्केबाजों को राष्ट्रीय खेलों में न खेल पाने का बेहद मलाल है।
हम बॉक्सरों का दोष क्या है: पूजा रानी
भिवानी (हरियाणा) की अंतरराष्ट्रीय बॉक्सर पूजा रानी ने पुष्प सवेरा से बातचीत में कहा कि बॉक्सिंग को लेकर जो भी हो रहा है वह देश के मुक्केबाजों के लिए अच्छा संकेत नहीं है। हम लोग दिन-रात मेहनत करते हैं और राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में शिरकत करने का मौका न मिलने से मनोबल टूट जाता है। झारखण्ड में हुए राष्ट्रीय खेलों की स्वर्ण पदकधारी पूजा को केरल में हुए राष्ट्रीय खेलों में शिरकत न करने का बेहद मलाल है। दुनिया की 11वें नम्बर की इस बॉक्सर का कहना कि संगठनों की इस लड़ाई को जीतने के लिए देश के बॉक्सरों को एकजुट प्रयास करने होंगे। 75 किलोग्राम भारवर्ग में राष्ट्रीय स्तर पर छह स्वर्ण, दो रजत और एक कांस्य पदक जीतने वाली हरियाणा की इस जांबाज बॉक्सर का कहना है कि जब रियो ओलम्पिक में अब अधिक समय नहीं बचा, ऐसे समय संगठन की लड़ाई से खिलाड़ियों के मनोबल पर ही असर पड़ेगा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दो रजत और तीन कांस्य पदक जीतने वाली पूजा का कहना है कि देश के उदीयमान मुक्केबाजों की समझ में ही नहीं आ रहा कि वे आखिर किस पर भरोसा करें। पूजा का मानना है कि संगठन ही नहीं खिलाड़ी भी बंटे हुए हैं। इससे खिलाड़ियों का न केवल नुकसान होगा बल्कि ओलम्पिक में भारतीय मुक्केबाजों की सहभागिता पर भी सवालिया निशान लग रहा है। पूजा का मानना है कि भारत सरकार को बॉक्सिंग रिंग में चल रही कुर्सी की जंग पर तत्काल रोक लगानी चाहिए वरना खिलाड़ी असमय ही ग्लब्स उतारने को मजबूर हो जाएंगे।
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