इन दिनों देश की अधिकांश आवाम जहां आधी रात तक इण्डियन प्रीमियर लीग के बहाने देश-दुनिया के जांबाज खिलाड़ियों का नायाब प्रदर्शन देख रही है वहीं दूसरी तरफ हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान क्रिकेट की पिच पर भारत से दोस्ती की मनुहार कर रहा है। भारत-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट की जहां तक बात है राजनीतिक कारणों से इन दोनों मुल्कों के बीच 2008 के मुम्बई आतंकी हमलों के बाद कोई भी पूर्ण द्विपक्षीय सीरीज नहीं खेली गई। अपवाद स्वरूप दिसम्बर 2012 में भारत में तीन एकदिनी और दो टी-20 मैचों से इतर दोनों मुल्क केवल आईसीसी की प्रतियोगिताओं या एशिया कप में ही एक-दूसरे से दो-दो हाथ कर सके हैं। हाल ही भारत आये पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष शहरयार खान की मिन्नतों के बाद मोदी सरकार ने इस बात के संकेत दिए हैं कि भारत क्रिकेट तो खेलेगा लेकिन अपनी शर्तोें पर। क्रिकेट में इसे भारत की कूटनीतिक फतह माना जा रहा है।
देश-दुनिया में कुछ बातें, कुछ यादें और कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं जो न केवल रोमांच की इन्तिहा पार करती हैं बल्कि खेलप्रेमी उन्हें बार-बार देखना और सुनना पसंद करते हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच खेली जाने वाली क्रिकेट भी उन्हीं में से एक है। क्रिकेट ही क्यों इन दोनों देशों के बीच खेलों का हर फलसफा खास होता है। जो जोश और जुनून भारत-पाकिस्तान के बीच मुकाबलों में देखने को मिलता है, उसकी दूसरी मिसाल कहीं और देखने को नहीं मिलती। क्रिकेट में तो भारत और पाकिस्तान का एक-दूसरे को हरा देना ही दुनिया फतह करने के बराबर माना जाता है। जीत की खुशी और हार का गम सरहदों के भीतर ही नहीं उसके बाहर भी दुनिया ने एक नहीं अनेकों बार महसूस किया है। कुछ इस तरह मानो जीते तो सब कुछ पा लिया और हारे तो सब कुछ गंवा दिया। क्रिकेट में भारत-पाकिस्तान के बीच खेलभावना की जगह उन्माद हावी हो जाता है। यह उन्माद मैदान ही नहीं मैदान के बाहर भी कई बार महसूस किया गया। इस उन्माद में भी आनंद का अतिरेक हिलोरें मारता दिखता है।
आजादी के बाद से ही भारत-पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक सम्बन्ध बनते-बिगड़ते रहे। युद्ध हुए, सरहदों पर गोली चली लेकिन इन कड़वाहटों के बावजूद क्रिकेट खेली जाती रही। सच कहें तो दोनों मुल्कों के बीच क्रिकेट ही हमेशा दोस्ती का पैगाम साबित हुई है। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड आज दुनिया की सबसे मालदार खेल संस्था है। टीम इण्डिया का प्रदर्शन कैसा भी रहे, इस खेल तंत्र पर भारत का ही सिक्का चलता है। भारत और पाकिस्तान के बीच राजनीतिक रिश्तों से हमारी क्रिकेट पर बेशक कोई असर न पड़ा हो पर पाकिस्तान तबाह हो चुका है। इसी तबाही की भरपाई की खातिर शहरयार खान भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के आलाधिकारियों और मोदी सरकार से मान-मनुहार करने भारत आये। बीते आठ साल पाकिस्तानी क्रिकेट के लिए न बिसरने वाला लम्हा बन गये। भारत ही नहीं पाकिस्तान की खराब आंतरिक स्थिति को देखते हुए दुनिया के दीगर देशों ने भी उससे न खेलने की कसम खाकर खासा सदमा पहुंचाया है।
चार दिन की भारत यात्रा पर आये पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष शहरयार खान ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष जगमोहन डालमिया से कोलकाता में न केवल मुलाकात की बल्कि भारत की हर शर्त मानने का भरोसा भी दिया। शहरयार ने यहां तक कहा कि पाकिस्तान खुद की सरजमीं में नहीं बल्कि संयुक्तअरब अमीरात में भारत की मेजबानी को तैयार है। उन्होंने दिसम्बर में दोनों देशों के बीच क्रिकेट सीरीज आयोजित करने की बात कही जबकि जगमोहन डालमिया चाहते हैं कि पाकिस्तानी टीम भारत आकर दो-दो हाथ करे। डालमिया की इस सोच के पीछे भारतीय क्रिकेट को आर्थिक मजबूती देना है। भारत-पाकिस्तान के बीच सम्भावित क्रिकेट सीरीज को लेकर क्रिकेट मुरीद तो खुश हैं लेकिन कमल दल के कुछ लोग नहीं चाहते कि विश्वासघाती पाकिस्तान को क्रिकेट के बहाने ऐसी मोहलत दी जाये जिससे कि आतंकी भारत में पुन: प्रवेश करें। वर्तमान हालातों के देखते हुए यह चिन्ता जायज भी है। पाकिस्तान की आंतरिक स्थिति असंतोषजनक है तो अतीत में जिन विषधरों को उसने भारत के लिए पनाह दिया था वही आज उसे डंस रहे हैं।
पूर्व केन्द्रीय गृह सचिव और भाजपा सांसद आरके सिंह ने लोकसभा में शून्यकाल में यह मामला उठाते हुए कहा कि ऐसे समय जब आतंकवादी सरगना हाफिज सईद पाकिस्तान में आजाद घूम रहा है और एक अन्य आतंकवादी जकी उर रहमान लखवी को फिर से जमानत दे दी गयी है, सरकार को क्रिकेट आयोजन सम्बन्धी फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। आरके सिंह ने साफ-साफ कहा कि जो बार-बार धोखा देने का आदी हो, उससे क्रिकेट खेलने का क्या मतलब। भारत-पाकिस्तान क्रिकेट को सत्तापक्ष के कुछ सांसद ही नहीं विपक्षी सांसद भी संदेह की नजर से देख रहे हैं। सच्चाई तो यह है कि क्रिकेट और आतंकवाद के समाधान को एक चश्मे से देखने वाले नेता हर दल में हैं। सांसदों की नाराजगी जायज भी है, आखिर पाकिस्तान में उन लोगों को पनाह क्यों दी गई जिन्होंने भारत में खून की होली खेली है। यह भी सच है कि भारत में हुई आतंकवादी वारदातें पाकिस्तानी राजनीति, सैन्य तानाशाही और कट्टरपंथियों की कुत्सित चालों का नतीजा है, इसके लिए वहां की आम जनता जिम्मेदार नहीं है।
मौजूदा हालातों में यदि पाकिस्तानी आवाम की राय ली जाए तो वह भी आतंकवाद का समूल खात्मा ही चाहेगी। आखिर वह भी तो आतंकवाद से कम पीड़ित नहीं है। पिछले छह माह में पाकिस्तान में आतंकवादियों की करतूतों से तो इसी बात के संकेत मिलते हैं कि वहां की आम जनता भी आतंकवाद का दंश भुगत रही है। भारत की जहां तक बात है उसने पाकिस्तान से पूरी तरह से सम्बन्ध कभी खत्म नहीं किए, चाहे जितनी ही कड़वाहट क्यों न रही हो। कला, संस्कृति, मनोरंजन, खेल, व्यापार और सामाजिक कल्याण के कार्यों से आपसी सम्बन्धों में प्रगाढ़ता आती है। हो सकता है कि भारत-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट से दोनों देशों की आवाम एक-दूसरे के और नजदीक आ जाये पर दोनों मुल्कों के राजनीतिक पूर्वाग्रह टूटेंंगे, इसकी बहुत कम सम्भावना है।
देश-दुनिया में कुछ बातें, कुछ यादें और कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं जो न केवल रोमांच की इन्तिहा पार करती हैं बल्कि खेलप्रेमी उन्हें बार-बार देखना और सुनना पसंद करते हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच खेली जाने वाली क्रिकेट भी उन्हीं में से एक है। क्रिकेट ही क्यों इन दोनों देशों के बीच खेलों का हर फलसफा खास होता है। जो जोश और जुनून भारत-पाकिस्तान के बीच मुकाबलों में देखने को मिलता है, उसकी दूसरी मिसाल कहीं और देखने को नहीं मिलती। क्रिकेट में तो भारत और पाकिस्तान का एक-दूसरे को हरा देना ही दुनिया फतह करने के बराबर माना जाता है। जीत की खुशी और हार का गम सरहदों के भीतर ही नहीं उसके बाहर भी दुनिया ने एक नहीं अनेकों बार महसूस किया है। कुछ इस तरह मानो जीते तो सब कुछ पा लिया और हारे तो सब कुछ गंवा दिया। क्रिकेट में भारत-पाकिस्तान के बीच खेलभावना की जगह उन्माद हावी हो जाता है। यह उन्माद मैदान ही नहीं मैदान के बाहर भी कई बार महसूस किया गया। इस उन्माद में भी आनंद का अतिरेक हिलोरें मारता दिखता है।
आजादी के बाद से ही भारत-पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक सम्बन्ध बनते-बिगड़ते रहे। युद्ध हुए, सरहदों पर गोली चली लेकिन इन कड़वाहटों के बावजूद क्रिकेट खेली जाती रही। सच कहें तो दोनों मुल्कों के बीच क्रिकेट ही हमेशा दोस्ती का पैगाम साबित हुई है। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड आज दुनिया की सबसे मालदार खेल संस्था है। टीम इण्डिया का प्रदर्शन कैसा भी रहे, इस खेल तंत्र पर भारत का ही सिक्का चलता है। भारत और पाकिस्तान के बीच राजनीतिक रिश्तों से हमारी क्रिकेट पर बेशक कोई असर न पड़ा हो पर पाकिस्तान तबाह हो चुका है। इसी तबाही की भरपाई की खातिर शहरयार खान भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के आलाधिकारियों और मोदी सरकार से मान-मनुहार करने भारत आये। बीते आठ साल पाकिस्तानी क्रिकेट के लिए न बिसरने वाला लम्हा बन गये। भारत ही नहीं पाकिस्तान की खराब आंतरिक स्थिति को देखते हुए दुनिया के दीगर देशों ने भी उससे न खेलने की कसम खाकर खासा सदमा पहुंचाया है।
चार दिन की भारत यात्रा पर आये पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष शहरयार खान ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष जगमोहन डालमिया से कोलकाता में न केवल मुलाकात की बल्कि भारत की हर शर्त मानने का भरोसा भी दिया। शहरयार ने यहां तक कहा कि पाकिस्तान खुद की सरजमीं में नहीं बल्कि संयुक्तअरब अमीरात में भारत की मेजबानी को तैयार है। उन्होंने दिसम्बर में दोनों देशों के बीच क्रिकेट सीरीज आयोजित करने की बात कही जबकि जगमोहन डालमिया चाहते हैं कि पाकिस्तानी टीम भारत आकर दो-दो हाथ करे। डालमिया की इस सोच के पीछे भारतीय क्रिकेट को आर्थिक मजबूती देना है। भारत-पाकिस्तान के बीच सम्भावित क्रिकेट सीरीज को लेकर क्रिकेट मुरीद तो खुश हैं लेकिन कमल दल के कुछ लोग नहीं चाहते कि विश्वासघाती पाकिस्तान को क्रिकेट के बहाने ऐसी मोहलत दी जाये जिससे कि आतंकी भारत में पुन: प्रवेश करें। वर्तमान हालातों के देखते हुए यह चिन्ता जायज भी है। पाकिस्तान की आंतरिक स्थिति असंतोषजनक है तो अतीत में जिन विषधरों को उसने भारत के लिए पनाह दिया था वही आज उसे डंस रहे हैं।
पूर्व केन्द्रीय गृह सचिव और भाजपा सांसद आरके सिंह ने लोकसभा में शून्यकाल में यह मामला उठाते हुए कहा कि ऐसे समय जब आतंकवादी सरगना हाफिज सईद पाकिस्तान में आजाद घूम रहा है और एक अन्य आतंकवादी जकी उर रहमान लखवी को फिर से जमानत दे दी गयी है, सरकार को क्रिकेट आयोजन सम्बन्धी फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। आरके सिंह ने साफ-साफ कहा कि जो बार-बार धोखा देने का आदी हो, उससे क्रिकेट खेलने का क्या मतलब। भारत-पाकिस्तान क्रिकेट को सत्तापक्ष के कुछ सांसद ही नहीं विपक्षी सांसद भी संदेह की नजर से देख रहे हैं। सच्चाई तो यह है कि क्रिकेट और आतंकवाद के समाधान को एक चश्मे से देखने वाले नेता हर दल में हैं। सांसदों की नाराजगी जायज भी है, आखिर पाकिस्तान में उन लोगों को पनाह क्यों दी गई जिन्होंने भारत में खून की होली खेली है। यह भी सच है कि भारत में हुई आतंकवादी वारदातें पाकिस्तानी राजनीति, सैन्य तानाशाही और कट्टरपंथियों की कुत्सित चालों का नतीजा है, इसके लिए वहां की आम जनता जिम्मेदार नहीं है।
मौजूदा हालातों में यदि पाकिस्तानी आवाम की राय ली जाए तो वह भी आतंकवाद का समूल खात्मा ही चाहेगी। आखिर वह भी तो आतंकवाद से कम पीड़ित नहीं है। पिछले छह माह में पाकिस्तान में आतंकवादियों की करतूतों से तो इसी बात के संकेत मिलते हैं कि वहां की आम जनता भी आतंकवाद का दंश भुगत रही है। भारत की जहां तक बात है उसने पाकिस्तान से पूरी तरह से सम्बन्ध कभी खत्म नहीं किए, चाहे जितनी ही कड़वाहट क्यों न रही हो। कला, संस्कृति, मनोरंजन, खेल, व्यापार और सामाजिक कल्याण के कार्यों से आपसी सम्बन्धों में प्रगाढ़ता आती है। हो सकता है कि भारत-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट से दोनों देशों की आवाम एक-दूसरे के और नजदीक आ जाये पर दोनों मुल्कों के राजनीतिक पूर्वाग्रह टूटेंंगे, इसकी बहुत कम सम्भावना है।
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