मुसाफिर वह है जिसका हर कदम मंजिल की चाहत हो,
मुसाफिर वह नहीं जो दो कदम चलकर थक जाये।
जी हैं अभावों में तपकर कुंदन बनी मनदीप ने अपनी अदम्य इच्छाशक्ति के बूते साबित किया कि वह न थकने वाली खेल मुसाफिर है। पंजाब के चाकर गांव की उदीयमान मुक्केबाज मनदीप ने अपने खेल-कौशल से वाकई सबका मन मोह लिया है। तमाम अभावों और आर्थिक तंगी के बावजूद मनदीप एआईबीए वर्ल्ड जूनियर बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में गोल्ड मेडल लेकर लौटी है। एक समय उसके पास जूते खरीदने तक के पैसे नहीं थे और एक अकादमी व पंचायत ने उसकी मदद की। मनदीप की सफलता सवाल खड़े करती है कि आखिर देश की खेल नीति में उन प्रतिभाओं के लिए कोई जगह क्यों नहीं है जो आर्थिक तंगी के चलते अपनी क्षमता का प्रदर्शन नहीं कर पाते। ऐसी बहस तभी होती है जब ओलम्पिक या अन्य प्रतिस्पर्धाओं में हमारे पदकों की झोली में गिनती के पदक नजर आते हैं। सवा अरब के देश में यदि पदकों का टोटा है तो कहीं न कहीं हमारी खेल नीति में खोट है। यह कहानी अकेली मनदीप की नहीं है। देश में हजारों खेल प्रतिभाएं खिलने से पहले मुरझा जाती हैं। पिछले दिनों हरियाणा, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश आदि से कई ऐसे मामले प्रकाश में आये कि आर्थिक तंगी के चलते कई राष्ट्रीय पदक विजेता दूसरों के खेतों में फसल काटने के लिए मजदूरी कर रहा है या कोई रिक्शा चलाने को मजबूर है।
दरअसल, राजनीतिक प्रभाव व नौकरशाही के दखल के चलते देश में ऐसी खेल नीति अस्तित्व में नहीं आई जो देश के कच्चे हीरों को तराश कर देश के मुकुट में जड़ सके। हम खेलों में चीन की सफलताओं का तो जिक्र करते हैं मगर उसने यह मुकाम किस मेहनत व सुनियोजित अभियान चलाकर हासिल किया, उसका जिक्र नहीं होता। देश में ऐसी राजनीतिक इच्छा-शक्ति कभी नजर नहीं आई जो देश के खेल तंत्र में आमूलचूल परिवर्तन का वाहक बने। व्यवस्था में क्षरण के स्रोत जब तक बंद नहीं किये जाते, खेल जगत में खिलाड़ियों की सफलता पर सवालिया निशान लगते ही रहेंगे। आज जो खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमक रहे हैं उनकी चमक के पीछे खिलाड़ियों का जज्बा और उनके परिजनों की तपस्या ही रहती है। दरअसल, देश में बेहतर माहौल बनाने और राष्ट्रव्यापी प्रतिभा खोज अभियान में निजी क्षेत्रों की अनिवार्य भूमिका तय होनी चाहिए। सरकार को बस इतना करना चाहिए कि खेल को पूरा जीवन समर्पित करने वाले खिलाड़ियों को नौकरी की गारंटी मिले। फिर ऐसा न होगा कि बॉक्सिंग का नेशनल चैम्पियन रामदास जमशेदपुर में आॅटो रिक्शा चलाए या छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय प्रतिभा सब्जी बेचती नजर आए।
मुक्केबाज मनदीप को एक लाख रुपये के ईनाम की घोषणा
पंजाब सरकार ने विश्व जूनियर चैम्पियन महिला मुक्केबाज मनदीप कौर संधू का जोरदार स्वागत किया और एक लाख रुपये का नकद पुरस्कार देने घोषण की। ताइपे में आयोजित विश्व जूनियर प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतने वाली कौर का चंडीगढ़ हवाई अड्डे पर पहुंचने पर शानदार स्वागत किया गया। पंजाब के शिक्षा मंत्री दलजीत सिंह चीमा ने नकद पुरस्कार देने की घोषणा की।
मुसाफिर वह नहीं जो दो कदम चलकर थक जाये।
जी हैं अभावों में तपकर कुंदन बनी मनदीप ने अपनी अदम्य इच्छाशक्ति के बूते साबित किया कि वह न थकने वाली खेल मुसाफिर है। पंजाब के चाकर गांव की उदीयमान मुक्केबाज मनदीप ने अपने खेल-कौशल से वाकई सबका मन मोह लिया है। तमाम अभावों और आर्थिक तंगी के बावजूद मनदीप एआईबीए वर्ल्ड जूनियर बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में गोल्ड मेडल लेकर लौटी है। एक समय उसके पास जूते खरीदने तक के पैसे नहीं थे और एक अकादमी व पंचायत ने उसकी मदद की। मनदीप की सफलता सवाल खड़े करती है कि आखिर देश की खेल नीति में उन प्रतिभाओं के लिए कोई जगह क्यों नहीं है जो आर्थिक तंगी के चलते अपनी क्षमता का प्रदर्शन नहीं कर पाते। ऐसी बहस तभी होती है जब ओलम्पिक या अन्य प्रतिस्पर्धाओं में हमारे पदकों की झोली में गिनती के पदक नजर आते हैं। सवा अरब के देश में यदि पदकों का टोटा है तो कहीं न कहीं हमारी खेल नीति में खोट है। यह कहानी अकेली मनदीप की नहीं है। देश में हजारों खेल प्रतिभाएं खिलने से पहले मुरझा जाती हैं। पिछले दिनों हरियाणा, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश आदि से कई ऐसे मामले प्रकाश में आये कि आर्थिक तंगी के चलते कई राष्ट्रीय पदक विजेता दूसरों के खेतों में फसल काटने के लिए मजदूरी कर रहा है या कोई रिक्शा चलाने को मजबूर है।
दरअसल, राजनीतिक प्रभाव व नौकरशाही के दखल के चलते देश में ऐसी खेल नीति अस्तित्व में नहीं आई जो देश के कच्चे हीरों को तराश कर देश के मुकुट में जड़ सके। हम खेलों में चीन की सफलताओं का तो जिक्र करते हैं मगर उसने यह मुकाम किस मेहनत व सुनियोजित अभियान चलाकर हासिल किया, उसका जिक्र नहीं होता। देश में ऐसी राजनीतिक इच्छा-शक्ति कभी नजर नहीं आई जो देश के खेल तंत्र में आमूलचूल परिवर्तन का वाहक बने। व्यवस्था में क्षरण के स्रोत जब तक बंद नहीं किये जाते, खेल जगत में खिलाड़ियों की सफलता पर सवालिया निशान लगते ही रहेंगे। आज जो खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमक रहे हैं उनकी चमक के पीछे खिलाड़ियों का जज्बा और उनके परिजनों की तपस्या ही रहती है। दरअसल, देश में बेहतर माहौल बनाने और राष्ट्रव्यापी प्रतिभा खोज अभियान में निजी क्षेत्रों की अनिवार्य भूमिका तय होनी चाहिए। सरकार को बस इतना करना चाहिए कि खेल को पूरा जीवन समर्पित करने वाले खिलाड़ियों को नौकरी की गारंटी मिले। फिर ऐसा न होगा कि बॉक्सिंग का नेशनल चैम्पियन रामदास जमशेदपुर में आॅटो रिक्शा चलाए या छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय प्रतिभा सब्जी बेचती नजर आए।
मुक्केबाज मनदीप को एक लाख रुपये के ईनाम की घोषणा
पंजाब सरकार ने विश्व जूनियर चैम्पियन महिला मुक्केबाज मनदीप कौर संधू का जोरदार स्वागत किया और एक लाख रुपये का नकद पुरस्कार देने घोषण की। ताइपे में आयोजित विश्व जूनियर प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतने वाली कौर का चंडीगढ़ हवाई अड्डे पर पहुंचने पर शानदार स्वागत किया गया। पंजाब के शिक्षा मंत्री दलजीत सिंह चीमा ने नकद पुरस्कार देने की घोषणा की।
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