Sunday 4 January 2015

‘धोनी के नि:स्वार्थ फैसले का सम्मान करें, कोहली को समय दें ’

सिडनी। भारतीय क्रिकेट टीम के निदेशक रवि शास्त्री का मानना है कि नये कप्तान विराट कोहली को अपनी आक्रामकता सही दिशा में लगानी चाहिये। उन्होंने यह भी कहा कि टेस्ट क्रिकेट से सही समय पर संन्यास के महेंद्र सिंह धोनी के निस्वार्थ फैसले का सम्मान किया जाना चाहिये।
शास्त्री ने प्रेस ट्रस्ट को दिये इंटरव्यू में कहा कि कोहली की आक्रामकता में कोई खराब नहीं है लेकिन इसे भविष्य में युवा टीम को एक खतरनाक टीम के रूप में ढालने के लिये इस्तेमाल किया जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि कोहली युवा कप्तान है जो समय के साथ बेहतर क्रिकेटर और कप्तान बनेंगे। उन्होंने इन अटकलों को भी खारिज किया कि कोहली और उनकी बढ़ती नजदीकियों की वजह से धोनी ने टेस्ट क्रिकेट से तुरंत प्रभाव से विदा ली। उन्होंने हालांकि स्वीकार किया कि आस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट शृंखला के बीच में अचानक संन्यास का धोनी का फैसला उनके और टीम के लिये हैरानी भरा था। शास्त्री ने हालांकि कहा कि उनके इस फैसले की टाइमिंग को लेकर सवाल उठाने वालों को इल्म नहीं है कि धोनी ने भारतीय क्रिकेट को क्या दिया है। उन्होंने अगले महीने वनडे विश्व कप में भारतीय टीम के साथ पूर्णकालिक भूमिका निभाने के भी संकेत दिये।
सवाल : विराट कोहली अगले कप्तान हैं। क्या आपको लगता है कि उन्हें अपनी आक्रामकता पर थोड़ा अंकुश लगाना चाहिये?
जवाब : उसकी आक्रामकता में क्या गलत है? यदि वह तीन टेस्ट में सिर्फ पांच रन बनाता तो मैं उससे बात करता। लेकिन वह शृंखला में 500 रन पूरे करने से सिर्फ एक रन पीछे है लिहाजा वह सही रास्ते पर है जो टीम के और उसके लिये उपयोगी साबित हो रहा है। वह आक्रामक क्रिकेटर है और इन तेवरों के साथ सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर रहा है।
मेलबर्न में सर विवियन रिचर्ड्स ने उसके तेवरों की तारीफ की थी। पूरा आस्ट्रेलिया उसका मुरीद हो गया है क्योंकि उन्होंने अर्से से ऐसा कोई क्रिकेटर नहीं देखा जो उनके देश में उनके खिलाफ इतना आक्रामक रहा हो। विराट युवा है और युवा कप्तान है लिहाजा वह समय के साथ सीखेगा। वह बेहतर क्रिकेटर के रूप में परिपक्व होगा।
सवाल : उस पल के बारे में बताइये जब एमएस धोनी ने टीम के सामने अपने संन्यास का ऐलान किया? ड्रेसिंग रूम की प्रतिक्रिया क्या थी?
जवाब : सभी हैरान थे। मैच खत्म हो चुका था और वह मैच के बाद की गतिविधियां पूरी करके आया था। वह ड्रेसिंग रूम में आया और कहा कि टेस्ट क्रिकेट में उसका समय पूरा हो चुका है। हम सभी स्तब्ध रह गए। जिस तरीके से उसने कहा, उससे जाहिर था कि यह सोच समझकर लिया गया फैसला है। उसने अपने परिवार से भी पहले साथी खिलाड़ियों को बताया। वह हमारे साथ ईमानदार रहा और मेरी नजर में उसकी इज्जत कई गुना बढ़ गई।
 हम सभी के लिये यह हैरानी भरी खबर थी। उसे पता था कि क्या कहना है और वह इसके प्रति ईमानदार था । धोनी भारत के महानतम क्रिकेटरों में से हैं। उसने कभी आंकड़ों का पीछा नहीं किया। वह खुद के साथ ईमानदार रहा और टीम इसके लिये उसका सम्मान करती है। उसने इस युवा टीम के सामने मिसाल कायम की है।
सवाल : आपने कमेंट्री बाक्स से धोनी को देखा और फिर टीम निदेशक के तौर पर भी। आप टेस्ट कप्तान के रूप में उसे कैसे देखते हैं , खासकर 2011-12 में 8.0 से मिली हार और विदेश में टेस्ट क्रिकेट में रिकार्ड को ध्यान में रखते हुए?
जवाब : उसके लिये यह कठिन काम था। विदेश में टेस्ट क्रिकेट में 20 विकेट लेना सबसे अहम है। हाल ही में भारत जीत के करीब पहुंचा लेकिन जीत नहीं सका। दक्षिण अफ्रीका और न्यूजीलैंड में भी जीत सकते थे। यहां भी तीनों मैचों में अच्छा ख्ोला और कोई भी जीत सकते थे। यह युवा टीम है जो अभी सीख रही है।
 धोनी को हम जानते हैं और वह जीतना चाहता था लेकिन उसे लगा कि टेस्ट क्रिकेट में उसका समय पूरा हो गया है। उसे लगा कि खेलते रहकर वह टीम के साथ इंसाफ नहीं करेगा। उसने देखा कि कोहली कमान संभालने को तैयार है और रिधिमान साहा विकेट के पीछे उसकी जगह ले सकता है। उसने देखा कि भविष्य सुरक्षित हाथों में है।  धोनी ने अपना सब कुछ भारतीय क्रिकेट को दिया, हर प्रारूप में। मुझे यकीन है कि वह कुछ साल और राजा की तरह वनडे क्रिकेट खेलेगा और विरोधी टीमों को नाकों चने चबवा देगा।
सवाल : दिसंबर 2012 में नागपुर में इंग्लैंड से हारने के बाद धोनी ने 2013 के आखिर में टेस्ट क्रिकेट से संन्यास के संकेत दिये थे लेकिन उन्होंने पूरे एक साल इसका इंतजार किया । आपको इसके पीछे क्या कारण नजर आता है ?
जवाब : मुझे लगता है कि उसने काफी सोच समझकर यह फैसला किया। पिछले एक साल में इस टीम पर काफी मेहनत की गई है और उसे लगा कि यह समय एक युवा कप्तान को कमान सौंपने का है। उसने यह सुनिश्चित किया कि उसके जाने के बाद कप्तानी को लेकर अटकलबाजी ना हो। वह बिना कारण नहीं जा रहा है और ना ही टाइमिंग खराब है। यह धोनी का निस्वार्थ फैसला है।
 देश के लिये 25 साल खेलने के बाद सचिन तेंदुलकर अपवाद थे और सही भी है लेकिन अतीत में कई ऐसे खिलाड़ी हुए हैं जो आंकड़ों के लिये खेले या भव्य विदाई समारोह की ख्वाहिश में खेलते रहे। लेकिन कुछ ऐसे भी थे जिन्हें इसकी चाह नहीं थी और धोनी उन्हीं में से एक है।लोग उसके इरादों को लेकर अटकलें लगा रहे हैं और कह रहे हैं कि उसने डूबते जहाज को छोड़ दिया। खेलने की बात तो छोड़ दीजिये, क्या इन लोगों ने उसका पांच प्रतिशत क्रिकेट देखा भी है जितना धोनी ने खेला है।
सवाल : विश्व कप 2015 के बाद डंकन फ्लेचर का कार्यकाल पूरा हो जायेगा। क्या आप टीम के साथ पूर्णकालिक भूमिका निभाने को तैयार हैं?
जवाब : टीम निदेशक के तौर पर मेरा काम बीसीसीआई के सामने टीम के हित में सुझाव रखना है। विश्व कप के बाद भी मैं बीसीसीआई को यही बताऊंगा कि भारतीय क्रिकेट टीम से सर्वश्रेष्ठ नतीजे लेने के लिये क्या और करना होगा। उसके बाद बोर्ड तय करेगा कि भारतीय टीम के सर्वश्रेष्ठ हित में क्या है और वह मुझे भी स्वीकार्य होगा। अभी उसमें काफी समय है और हमें अगले तीन महीने काफी महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलना है।
सवाल : पिछले छह महीने में भारतीय खिलाड़ियों ने ड्रेसिंग रूम और अभ्यास सत्रों में आपके योगदान की तारीफ की है। आपने उनसे क्या कहा?
जवाब : मेरा काम ड्रेसिंग रूम में उन्हें अनुकूल माहौल देना है। हम सभी इसी कोशिश में लगे हैं, चाहे डंकन फ्लेचर हो, आर श्रीधर, बी अरुण या संजय बांगड। हम उनसे क्रिकेट की भाषा में बात करते हैं। क्रिकेट में अनुभव ना बेचा जा सकता है और ना ही खरीदा जा सकता है। आप खेलकर ही हासिल कर सकते हैं लिहाजा हम चाहते हैं कि सब कुछ भुलाकर वे जीतने के लिये खेलें। जब मैं सबसे पहले टीम से जुड़ा तो मुझे लगा कि वे खेल का मजा नहीं ले रहे हैं तो मेरा निजी लक्ष्य उनके खेल में उसे लौटाना था। 

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