Monday 6 October 2014

उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे भारतीय पहलवान

ग्लासगो की स्वर्णिम सफलता पर ग्रीको रोमन पहलवानों ने फेरा पानी
योगेश्वर दत्त का सोना, बजरंग की चांदी, नरसिंह का कांसा भी नहीं भर सका जोश
गीतिका जाखड़ और विनेश फोगाट के कांस्य पदकों से महिला पहलवानी में जगी उम्मीद
आगरा। इंचियोन में सम्पन्न सत्रहवें एशियाई खेलों ने भारत के लिए कई सवाल छोड़े हैं लेकिन इनका उत्तर किसी भी खेलनहार के पास नहीं है। दक्षिण कोरिया जाने से पहले हर भारतीय ग्लासगो के चमकदार प्रदर्शन से इन खेलों में पदकों का मूल्यांकन कर रहा था जोकि बेमानी साबित हुआ। एशियाई खेलों में एथलेटिक्स के बाद सर्वाधिक पदक दिलाने वाले भारतीय पहलवान इंचियोन में उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे। फ्रीस्टाइल में योगेश्वर दत्त की स्वर्णिम सफलता भी हमारे पहलवानों में जोश नहीं भर सकी।
2010 में ग्वांगझू में हुए एशियाई खेलों में ग्रीको रोमन पहलवानों ने दो पदक जीते थे लेकिन इंचियोन में खाली हाथ मलते रह गए। भला हो फ्रीस्टाइल पहलवानों का जिन्होंने एक स्वर्ण, एक रजत तथा तीन कांस्य पदक जीतकर मुल्क की नाक कटने से बचा ली। एक माह पहले ग्लासगो में पांच स्वर्ण, छह रजत और दो कांस्य पदक जीतने वाले हमारे फ्रीस्टाइल पहलवानों से इंचियोन में भी बड़ी उम्मीदें थीं लेकिन ग्रीको रोमन पहलवानों ने अपने लचर प्रदर्शन से उसमें तुषारापात कर दिया। संयोग ही सही, आबादी के लिहाज से दुनिया के दो बड़े देश चीन और भारत एशिया में ही हैं, लेकिन खेल के मैदान में इन दोनों के बीच कितना बड़ा फासला है, यह इंचियोन में फिर से साबित हो गया। चीन ही नहीं, दक्षिण कोरिया, जापान के अलावा थाईलैंड, ईरान और कजाकिस्तान सरीखे देशों के मुकाबले भी हम पदक तालिका में जहां खड़े नजर आते हैं, उस पर गर्व तो हरगिज नहीं किया जा सकता। सवा अरब की आबादी वाले भारत के हिस्से में 11 स्वर्ण पदकों समेत महज 57 पदक ही आये, जो ग्वांगझू में हुए पिछले एशियाई खेलों की तुलना में आठ पदक कम हैं।
भारत में खेलों की बागडोर सही हाथों में नहीं है। खिलाड़ियों को तराश कर विजेता बनाना एक दीर्घकालीन और सुनियोजित प्रक्रिया है, जिसके लिए पहली अनिवार्यता खेल प्रबंधन और नीति निर्धारकों में वैसी प्रतिबद्ध सोच है, जो हमारे यहां दूर-दूर तक नजर नहीं आती। खिलाड़ियों को पर्याप्त फूड सप्लीमेंट जहां नहीं मिलता वहीं अनाड़ी मौज-मस्ती का कोई मौका जाया नहीं करते। यश-अपयश का ठीकरा हमेशा खिलाड़ियों पर ही फोड़ा जाता है जबकि खेलनहारों की करतूतें सिरे से खारिज कर दी जाती हैं। खैर, इंचियोन से पहले भारतीय पहलवानों ने आठ स्वर्ण, 13 रजत और 30 कांस्य सहित कुल 51 पदक जीते थे, इस बार इनमें पांच पदकों का और इजाफा हुआ है। पहलवान योगेश्वर दत्त ने 28 साल बाद पीला तमगा तो बजरंग ने चांदी के फलक से अपना गला सजाया। नरसिंह यादव, विनेश फोगाट और गीतिका जाखड़ कांसे के तमगे हासिल कर मादरेवतन की शान बढ़ाने में जहां कामयाब रहे वहीं विश्व चैम्पियनशिप में रजत तथा ग्लासगो में स्वर्णिम सफलता हासिल करने वाले अमित कुमार दहिया अपनी प्रतिभा से न्याय नहीं कर पाये। सुशील कुमार की जगह इंचियोन गये प्रवीण राणा भी खाली हाथ लौटे।
गीतिका जाखड़ गई तो थीं अपने पदक का रंग चोखा करने पर वह कांस्य पदक ही जीत सकीं। इस कांस्य के साथ एशियाई खेलों में दो पदक जीतने वाली गीतिका पहली भारतीय महिला पहलवान बन गई हैं। महिला कुश्ती की जहां तक बात है एशियाई खेलों का पहला पदक उत्तर प्रदेश की अलका तोमर के नाम है। अब तक तीन महिला पहलवान गीतिका जाखड़, अलका तोमर और विनेश फोगाट ने ही एशियन खेलों की महिला कुश्ती में पदक जीते हैं। इंचियोन में बबिता फोगाट और ज्योति से भी पदक की उम्मीद थी पर वे पोडियम तक नहीं पहुंच सकीं। भारतीय ग्रीको रोमन पहलवानों ने इंचियोन में बेशक नाक कटाई हो पर फ्रीस्टाइल पहलवानों ने अपने शानदार प्रदर्शन से पांच पदक जरूर जीत दिखाए। ग्वांगझू में भारत ने ग्रीको रोमन कुश्ती में जहां दो कांस्य पदक जीते थे वहीं फ्रीस्टाइल में एक पदक मिला था। फ्रीस्टाइल कुश्ती में पवन कुमार, अमित दहिया, प्रवीण राणा, सत्यव्रत कादियान, कृष्ण कुमार पुरुष वर्ग में तो बबिता फोगाट और ज्योति महिला वर्ग में खाली हाथ लौटे।
रियो ओलम्पिक में हमारे पहलवान अच्छा प्रदर्शन करेंगे: सतपाल
भारतीय कुश्ती के पितामह गुरु हनुमान के शिष्य सतपाल का कहना है कि इंचियोन के प्रदर्शन से निराश होने की बात नहीं है। मेरे शिष्य सुशील कुमार, योगेश्वर दत्त और अमित कुमार दहिया बेजोड़ हैं। भारतीय पहलवान रियो ओलम्पिक में इतिहास लिखेंगे इसमें संदेह नहीं है।
पहलवानों को निराश नहीं होना चाहिए: राहुल
कभी अमित दहिया के रूम पार्टनर रहे भीलवाड़ा राजस्थान निवाली राहुल गादरी का कहना है कि जीत-हार खेल का हिस्सा है। भारतीय पहलवान प्रतिभाशाली हैं, उनमें जीत का जुनून है। इंचियोन में जो हुआ उससे निराश होने की जरूरत नहीं है। पहलवानों को अपना रियाज जारी रखते हुए अभी से रियो ओलम्पिक की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। राहुल का कहना है कि यदि हमारी सरकारें खेल और खिलाड़ियों को प्रोत्साहन देने के साथ ही उन्हें नौकरी दें तो भारत भी चीन का मुकाबला कर सकता है।

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