जैसी आशंका थी वही भारत के साथ इंचियोन में हुआ। खिलाड़ियों के लचर प्रदर्शन ने जहां उनके पौरुष की पोल खोली वहीं खेलनहारों की अकर्मण्यता ने मुल्क को लजा दिया। भारत का 516 सदस्यीय खिलाड़ियों का दल सत्रहवें एशियाई खेलों में गया तो था चीन, जापान और दक्षिण कोरिया को चुनौती देने पर अफसोस वह अपने पूर्व प्रदर्शन में भी सुधार नहीं कर सका। एशियाई खेलों के पथ प्रदर्शक भारत से इस बार बड़ी उम्मीद थी कि वह अपने सुधरे पराक्रम से शीर्ष पांच देशों में शुमार होगा, पर ऐसा नहीं हुआ। हम चीन, जापान, दक्षिण कोरिया ही नहीं कजाकिस्तान, ईरान जैसे मुल्कों को भी मात नहीं दे सके। इन खेलों में भारत के लिए यदि सबसे बड़ी खुशी की बात कहें तो वह है पुरुष हॉकी टीम का स्वर्ण पदक। इस स्वर्ण पदक की भारत को लम्बे समय से दरकार थी। सरदार की पलटन ने पाकिस्तान के गुरूर को चूर-चूर कर न सिर्फ स्वर्ण पदक जीता बल्कि रियो ओलम्पिक में शिरकत करने का हक भी हासिल कर लिया।
हार और जीत तो खेल का हिस्सा है, लेकिन जिस तरह इंचियोन में भारत की बेटी लैशराम सरिता देवी के साथ नाइंसाफी हुई, वह खेलों का निहायत शर्मनाक वाक्या है। एशियाई खेलों के इतिहास में यह पहला अवसर है जब एक महिला खिलाड़ी अनिर्णय के चलते दो दिन लगातार रोई लेकिन खेलनहारों ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जिससे लगता कि भारत अपनी सम्प्रभुता पर आंच बर्दाश्त नहीं कर सकता। सरिता के आंसू न केवल अंगारे बने बल्कि उसने कांस्य पदक ठुकरा कर एशियाई खेलों के कर्ताधर्ताओं के सामने जो नजीर पेश की है, उसकी जितनी तारीफ की जाए वह कम है। एशियाई ओलम्पिक परिषद ने लम्बी जद्दोजहद के बाद सरिता देवी का कांस्य पदक बरकरार रखने का फैसला तो कर दिया पर भविष्य में बेईमानी नहीं होगी इस बात की कोई गारंटी नहीं दी।
भारत, इण्डोनेशिया, फिलीपीन्स, सिंगापुर और थाईलैण्ड ही अभी तक सभी एशियाई खेलों में खेले हैं। इंचियोन एशियाई खेलों से पहले भारत ने इन खेलों में 128 स्वर्ण, 168 रजत, 249 कांस्य सहित कुल 545 पदक जीते थे, पर वह दक्षिण कोरिया में ग्वांगझू का प्रदर्शन नहीं दोहरा सका। भारत ने 2010 में हुए सोलहवें एशियाई खेलों में 14 स्वर्ण, 17 रजत, 34 कांस्य के साथ 65 पदक जीते थे पर इंचियोन में पदकों का पचासा लगाने के बाद भी वह सफलता की नई पटकथा नहीं लिख सका। स्वर्ण पदकों के लिहाज से भारत के प्रदर्शन का मूल्यांकन करें तो उसने 1951 में दिल्ली में हुए पहले एशियाई खेलों में 15 स्वर्ण, 16 रजत, 20 कांस्य सहित 51 पदक जीते थे। एशियाई खेलों के 63 साल के लम्बे इतिहास पर नजर डालें तो छोटे-छोटे देशों ने अपने नायाब प्रदर्शन से सफलता की नई दास्तां लिखी है, लेकिन भारत कभी एशियाई खेलों की महाशक्ति नहीं बन सका। इंचियोन में 45 देशों के 9501 खिलाड़ियों (5823 पुरुष और 3678 महिला) ने 32 खेलों में दांव पर लगे 439 स्वर्ण पदकों के लिए एक पखवाड़े तक जहां पसीना बहाया वहीं चीन को हर बार की तरह इस बार भी कोई मुल्क चुनौती नहीं दे सका।
भारत में खेलों का स्याह सच किसी से छिपा नहीं है। हर खेल आयोजन से पूर्व खिलाड़ियों को मिलती कमतर सुविधाएं, खराब खेल अधोसंरचना और खिलाड़ियों के चयन में पक्षपात तथा भाई-भतीजावाद का दुखड़ा तो रोया जाता है, पर खेलों से गंदगी कैसे दूर हो, इसके लिए कभी पहल नहीं होती। वजह सभी खेल संगठनों में राजनीतिज्ञों का काबिज होना है। हमारे देश में किसी आयोजन के बाद थोड़े दिन विधवा विलाप होता है, लेकिन समय बीतने के साथ पुन: बेशर्मी ओढ़ ली जाती है। इंचियोन में कुछ भारतीय खिलाड़ी मेजबान दक्षिण कोरिया के पक्षपातपूर्ण रवैये का जहां शिकार हुए वहीं निशानेबाज जीतू राय, पहलवान योगेश्वर, चक्काफेंक खिलाड़ी सीमा पूनिया, मुक्केबाज मैरीकॉम, टेनिस खिलाड़ी सानिया मिर्जा-साकेत माइनेनी आदि ने अपनी स्वर्णिम चमक से मादरेवतन को हर्षित होने के कुछ क्षण अवश्य मुहैया कराये। योगेश्वर ने जहां 28 साल के सूखे को खत्म कर अपनी विजेता पहलवान की छवि बनाई वहीं सीमा, जीतू राय और सुपर मॉम मैरीकॉम ने विजय नाद कर इस बात का संकेत दिया कि हार से ही जीत है। व्यक्तिगत प्रदर्शन के अलावा पुरुष और महिला कबड्डी टीम ने जहां अपनी अजेय छवि को आंच नहीं आने दी वहीं हॉकी में सरदार ब्रिगेड ने अपने परम्परागत प्रतिद्वन्द्वी पाकिस्तान को पस्त कर न केवल स्वर्ण जीता बल्कि 2016 में होने वाले रियो ओलम्पिक में खेलने की पात्रता भी हासिल कर ली।
भारत ने इस बार एशियाई खेलों की टेनिस स्पर्धा में एक स्वर्ण समेत पांच पदक जीते। 2010 में भी भारत ने पांच पदक जीते थे लेकिन उनमें दो स्वर्ण शामिल थे। लिएंडर पेस, सोमदेव देवबर्मन और रोहन बोपन्ना जैसे शीर्ष खिलाड़ियों के पीछे हटने के बाद भारतीय युवा खिलाड़ियों का यह प्रदर्शन अच्छा ही कहा जायेगा। कुश्ती में भारतीय पहलवानों का प्रदर्शन उसकी ख्याति के अनुरूप नहीं रहा। योगेश्वर ने जहां स्वर्ण पदक से अपना गला सजाया वहीं महिला कुश्ती में विनेश फोगाट और गीतिका जाखड़ ने कांसे के तमगे हासिल कर महिला कुश्ती के उज्ज्वल भविष्य का संकेत जरूर दिया है। गीतिका एशियाई खेलों की कुश्ती स्पर्धा में दो पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बन गई है। महिला मुक्केबाजी में मैरीकॉम के स्वर्ण पदक के साथ एल. सरिता देवी और पूजा रानी ने कांस्य पदक जीतकर आधी आबादी की गरिमा को चार चांद लगाए। मैरीकॉम ने अपने लाजवाब प्रदर्शन से यह सिद्ध कर दिखाया कि सही मायने में वही रिंग की महारानी है। इंचियोन में भारतीय एथलीटों ने उम्मीद से कहीं बेहतर प्रदर्शन किया है। पिछले एशियाई खेलों में एथलीटों ने एक दर्जन पदक जीते थे तो इस बार सीमा पूनिया और प्रियंका पंवार, मनदीप कौर, टिंटू लुका तथा एमआर पूवम्मा की चौकड़ी ने एशियन रिकॉर्ड के साथ चार गुणा 400 मीटर रिले दौड़ में स्वर्णिम चमक बिखेर कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। इंचियोन जाने से पूर्व खेल मंत्रालय ने जब भारतीय दल में कटौती की थी तब भारतीय ओलम्पिक संघ और राष्ट्रीय खेल संगठनों ने खूब टेसू बहाए थे लेकिन अब खराब प्रदर्शन की जवाबदेही कौन लेगा?
हार और जीत तो खेल का हिस्सा है, लेकिन जिस तरह इंचियोन में भारत की बेटी लैशराम सरिता देवी के साथ नाइंसाफी हुई, वह खेलों का निहायत शर्मनाक वाक्या है। एशियाई खेलों के इतिहास में यह पहला अवसर है जब एक महिला खिलाड़ी अनिर्णय के चलते दो दिन लगातार रोई लेकिन खेलनहारों ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जिससे लगता कि भारत अपनी सम्प्रभुता पर आंच बर्दाश्त नहीं कर सकता। सरिता के आंसू न केवल अंगारे बने बल्कि उसने कांस्य पदक ठुकरा कर एशियाई खेलों के कर्ताधर्ताओं के सामने जो नजीर पेश की है, उसकी जितनी तारीफ की जाए वह कम है। एशियाई ओलम्पिक परिषद ने लम्बी जद्दोजहद के बाद सरिता देवी का कांस्य पदक बरकरार रखने का फैसला तो कर दिया पर भविष्य में बेईमानी नहीं होगी इस बात की कोई गारंटी नहीं दी।
भारत, इण्डोनेशिया, फिलीपीन्स, सिंगापुर और थाईलैण्ड ही अभी तक सभी एशियाई खेलों में खेले हैं। इंचियोन एशियाई खेलों से पहले भारत ने इन खेलों में 128 स्वर्ण, 168 रजत, 249 कांस्य सहित कुल 545 पदक जीते थे, पर वह दक्षिण कोरिया में ग्वांगझू का प्रदर्शन नहीं दोहरा सका। भारत ने 2010 में हुए सोलहवें एशियाई खेलों में 14 स्वर्ण, 17 रजत, 34 कांस्य के साथ 65 पदक जीते थे पर इंचियोन में पदकों का पचासा लगाने के बाद भी वह सफलता की नई पटकथा नहीं लिख सका। स्वर्ण पदकों के लिहाज से भारत के प्रदर्शन का मूल्यांकन करें तो उसने 1951 में दिल्ली में हुए पहले एशियाई खेलों में 15 स्वर्ण, 16 रजत, 20 कांस्य सहित 51 पदक जीते थे। एशियाई खेलों के 63 साल के लम्बे इतिहास पर नजर डालें तो छोटे-छोटे देशों ने अपने नायाब प्रदर्शन से सफलता की नई दास्तां लिखी है, लेकिन भारत कभी एशियाई खेलों की महाशक्ति नहीं बन सका। इंचियोन में 45 देशों के 9501 खिलाड़ियों (5823 पुरुष और 3678 महिला) ने 32 खेलों में दांव पर लगे 439 स्वर्ण पदकों के लिए एक पखवाड़े तक जहां पसीना बहाया वहीं चीन को हर बार की तरह इस बार भी कोई मुल्क चुनौती नहीं दे सका।
भारत में खेलों का स्याह सच किसी से छिपा नहीं है। हर खेल आयोजन से पूर्व खिलाड़ियों को मिलती कमतर सुविधाएं, खराब खेल अधोसंरचना और खिलाड़ियों के चयन में पक्षपात तथा भाई-भतीजावाद का दुखड़ा तो रोया जाता है, पर खेलों से गंदगी कैसे दूर हो, इसके लिए कभी पहल नहीं होती। वजह सभी खेल संगठनों में राजनीतिज्ञों का काबिज होना है। हमारे देश में किसी आयोजन के बाद थोड़े दिन विधवा विलाप होता है, लेकिन समय बीतने के साथ पुन: बेशर्मी ओढ़ ली जाती है। इंचियोन में कुछ भारतीय खिलाड़ी मेजबान दक्षिण कोरिया के पक्षपातपूर्ण रवैये का जहां शिकार हुए वहीं निशानेबाज जीतू राय, पहलवान योगेश्वर, चक्काफेंक खिलाड़ी सीमा पूनिया, मुक्केबाज मैरीकॉम, टेनिस खिलाड़ी सानिया मिर्जा-साकेत माइनेनी आदि ने अपनी स्वर्णिम चमक से मादरेवतन को हर्षित होने के कुछ क्षण अवश्य मुहैया कराये। योगेश्वर ने जहां 28 साल के सूखे को खत्म कर अपनी विजेता पहलवान की छवि बनाई वहीं सीमा, जीतू राय और सुपर मॉम मैरीकॉम ने विजय नाद कर इस बात का संकेत दिया कि हार से ही जीत है। व्यक्तिगत प्रदर्शन के अलावा पुरुष और महिला कबड्डी टीम ने जहां अपनी अजेय छवि को आंच नहीं आने दी वहीं हॉकी में सरदार ब्रिगेड ने अपने परम्परागत प्रतिद्वन्द्वी पाकिस्तान को पस्त कर न केवल स्वर्ण जीता बल्कि 2016 में होने वाले रियो ओलम्पिक में खेलने की पात्रता भी हासिल कर ली।
भारत ने इस बार एशियाई खेलों की टेनिस स्पर्धा में एक स्वर्ण समेत पांच पदक जीते। 2010 में भी भारत ने पांच पदक जीते थे लेकिन उनमें दो स्वर्ण शामिल थे। लिएंडर पेस, सोमदेव देवबर्मन और रोहन बोपन्ना जैसे शीर्ष खिलाड़ियों के पीछे हटने के बाद भारतीय युवा खिलाड़ियों का यह प्रदर्शन अच्छा ही कहा जायेगा। कुश्ती में भारतीय पहलवानों का प्रदर्शन उसकी ख्याति के अनुरूप नहीं रहा। योगेश्वर ने जहां स्वर्ण पदक से अपना गला सजाया वहीं महिला कुश्ती में विनेश फोगाट और गीतिका जाखड़ ने कांसे के तमगे हासिल कर महिला कुश्ती के उज्ज्वल भविष्य का संकेत जरूर दिया है। गीतिका एशियाई खेलों की कुश्ती स्पर्धा में दो पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बन गई है। महिला मुक्केबाजी में मैरीकॉम के स्वर्ण पदक के साथ एल. सरिता देवी और पूजा रानी ने कांस्य पदक जीतकर आधी आबादी की गरिमा को चार चांद लगाए। मैरीकॉम ने अपने लाजवाब प्रदर्शन से यह सिद्ध कर दिखाया कि सही मायने में वही रिंग की महारानी है। इंचियोन में भारतीय एथलीटों ने उम्मीद से कहीं बेहतर प्रदर्शन किया है। पिछले एशियाई खेलों में एथलीटों ने एक दर्जन पदक जीते थे तो इस बार सीमा पूनिया और प्रियंका पंवार, मनदीप कौर, टिंटू लुका तथा एमआर पूवम्मा की चौकड़ी ने एशियन रिकॉर्ड के साथ चार गुणा 400 मीटर रिले दौड़ में स्वर्णिम चमक बिखेर कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। इंचियोन जाने से पूर्व खेल मंत्रालय ने जब भारतीय दल में कटौती की थी तब भारतीय ओलम्पिक संघ और राष्ट्रीय खेल संगठनों ने खूब टेसू बहाए थे लेकिन अब खराब प्रदर्शन की जवाबदेही कौन लेगा?
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