क्रिकेट खेल नहीं व्यवसाय है। देशवासी जिसे भारतीय टीम कहते हैं वह बीसीसीआई की रखेल है। यही वजह है कि कोई खिलाड़ी इस बात की जुर्रत नहीं कर पाता कि वह एशियाड में भारत के लिए खेलेगा। कितना शर्मनाक है कि जिस देश की अवाम क्रिकेटरों को अपना भगवान मानती हैं वे निहायत स्वार्थी होते हैं। उन्हें देश की अस्मिता से कहीं अधिक पैसे से वास्ता होता है।
दक्षिण कोरिया के इंचियोन शहर में 16 दिन खेले गये 17वें एशियाड खेलों का चार अक्टूबर को समापन हो गया। इसमें एशिया के 45 देशों के लगभग 14 हजार खिलाड़िय़ों ने 36 खेलों में हिस्सा लिया। पिछले आठ एशियाड खेलों में अपने प्रदर्शन की परम्परा को कायम रखता हुआ 151 स्वर्ण पदक प्राप्त करके चीन पहले स्थान पर रहा, उसे विभिन्न स्पर्धाओं में कुल 342 पदक प्राप्त हुए। मेजबान दक्षिण कोरिया को 79 स्वर्ण पदक सहित 234 पदकों के साथ दूसरे स्थान पर रहा। जापान 47 स्वर्ण पदक सहित कुल 200 पदक जीतकर तीसरे स्थान पर रहा तो भारत 11 स्वर्ण पदक के साथआठवें स्थान पर रहा ।
एशियाड में क्रिकेट का जहां तक सवाल है, क्रिकेट की पहचान टेस्ट मैच खेल के रूप में रही है। जब तक टेस्ट मैच के रूप में यह खेला जाता रहा ओलम्पिक खेलों के समान किसी भी बहुखेलीय स्पर्धा में क्रिकेट की गुंजाइश नहीं थी। 2003 में 20 ओवर वाले टी- 20 क्रिकेट के उदय के साथ ही एशियाड खेलों में इसकी सम्भावनाएं खोजी जाने लगीं। यद्यपि कामनवेल्थ गेम्स में इसको 1998 में शामिल कर लिया गया था। एशिया में क्रिकेट खेल को प्रोत्साहन देने के लिए स्थापित एशियन क्रिकेट कौंसिल के प्रयासों के फलस्वरूप एशियाई ओलम्पिक कौंसिल ओसीए के क्रिकेट प्रेमी अध्यक्ष शेख अहमद अल-अहमद अल-फहद अल-साबाह द्वारा ही 16वें एशियाड से क्रिकेट को भी शामिल करने की सार्वजनिक घोषणा की गई। तभी से चीन, जापान तथा दक्षिण कोरिया ने अन्य खेलों की तरह क्रिकेट में पदक हासिल करने के तैयारी प्रारम्भ कर दी थी।
भारत ने 2010 एशियाड की भांति 2014 में भी क्रिकेट में हिस्सा नहीं लिया। भारतीय महिला और पुरुष टीमें यदि क्रिकेट में हिस्सा लेतीं तो भारत के स्वर्ण पदकों की संख्या ने केवल 13 होती बल्कि वह शीर्ष छह मुल्कों में शुमार हो जाता। एशियाड में हिस्सा लेने वाली 10 क्रिकेट टीमों में से श्रीलंका की टीम ने पुरुषों का स्वर्ण पदक हासिल किया। आतंकवाद के साए में रहने वाले अफगानिस्तान की 10 साल पुरानी क्रिकेट टीम 2010 की भांति 17वें एशियाड में भी रजत पदक प्राप्त करने में सफल रही। बांग्लादेश को कांस्य पदक प्राप्त हुआ। महिला क्रिकेट स्पर्धा में पाकिस्तान को स्वर्ण, बांग्लादेश को रजत तथा श्रीलंका को कांस्य पदक प्राप्त हुआ। कहा जाता है कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को एशियाड के बारे में जानकारी नहीं थी इस कारण उसने राज्य सरकारों से सलाह मशविरा करके 13 सितम्बर से चार अक्टूबर तक चैम्पियंस लीग मैच तय कर दिया। चूंकि इसमें आईपीएल फ्रेंचाइजी की चार टीमें भी हिस्सा ले रही थीं इसलिए उनके फ्रेंचाइजी द्वारा खरीदे गए चोटी के भारतीय खिलाड़ी उपलब्ध नहीं हो सकते थे। इसके अलावा चूंकि खिलाड़िय़ों को अक्टूबर माह में वेस्टइण्डीज के साथ मैच खेलना था इसलिए वे भारत में रहकर अभ्यास करना चाहते थे इसलिए वे स्वयं भी नहीं जाना चाहते थे। जहां तक भारतीय महिला क्रिकेट टीम के एशियाड में न भेजे जाने का सवाल है, बीसीसीआई की नजर में भारत की कमजोर महिला टीम के जीतने के आसार नहीं थे, इसलिए उसको भेजना उचित नहीं समझा गया।
एशियाड में भारत द्वारा क्रिकेट टीम नहीं भेजे जाने की एशियाई ओलम्पिक कौंसिल ओसीए के अध्यक्ष कुवैत के शेख अहमद अल-अहमद अल-फहद अल-साबाह की बड़ी उग्र प्रतिक्रिया रही है। समाचार पत्रों में छपे उनके वक्तव्य अनुसार उनका कहना था कि उनको यह देखकर दु:ख होता है कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड में बैठे जिम्मेदार लोगों ने क्रिकेट को पूरी तरह से व्यवसाय बना दिया है। वे खेल को प्रोत्साहन देने की बजाय इसको धंंधा बनाकर पैसा कमाने में लगे हुए हैं। वे युवा खिलाड़िय़ों को देश के लिए खेलने की बजाय खुद के व्यवसाय को बढ़ाने के लिए प्रलोभन देकर जैसा चाहते हैं वैसा खेला रहे हैं। उनके अनुसार भारतीय क्रिकेट बोर्ड के लोग बाजार पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के लिए क्रिकेट पर नियंत्रण रखे हुए हैं, वे खिलाड़िय़ों पर एकाधिकार चाहते हैं। भारत में क्रिकेट अब खेल नहीं बल्कि उद्योग बन गया है। बीसीसीआई के लोग क्रिकेट खेल की हत्या कर रहे हैं।
मैं एशियाड में क्रिकेट टीम की अनुपस्थिति के लिए भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड से अधिक भारत सरकार को दोषी मानता हूं जिसने भारतीय क्रिकेट बोर्ड के रवैये की 2010 से जानकारी होने के बावजूद इंचियोन एशियाड में भारतीय टीम के हिस्सा लेने की सुनिश्चितता के लिए कोई भी कदम नहीं उठाया। ओलम्पिक खेलों की मूल भावना का सम्मान करना है तो ओलम्पिक व एशियन खेलों में ऐसे खिलाड़िय़ों को भेजा जाना चाहिए जो खेल को शौक से खेलते हैं न कि व्यवसाय समझकर खेलते हैं। इसलिए जो खिलाड़ी फ्रेंचाइजी द्वारा नीलामी में खरीदा गया है या भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड द्वारा लाखों रुपये की फीस पर अनुबंधित हंै ऐसे पराधीन खिलाड़ी को ओलम्पिक, एशियन या कामनवेल्थ सरीखी स्पर्धाओं के लिए भेजी जाने वाला टीम में शामिल ही नहीं किया जाना चाहिए। अब यदि सरकार अगले एशियाड हेतु टीम की भागीदारी एवं जीत सुनिश्चित करना चाहती है तो उसे अलग से एशियाड क्रिकेट संघ गठित करके अभी से ही नवयुवा खिलाड़िय़ों का चयन करके उनके प्रशिक्षण एवं अभ्यास की व्यवस्था प्रारम्भ कर देना चाहिए। इतना ही नहीं क्रिकेटरों को किसी सम्मान से नहीं नवाजा जाना चाहिए।
दक्षिण कोरिया के इंचियोन शहर में 16 दिन खेले गये 17वें एशियाड खेलों का चार अक्टूबर को समापन हो गया। इसमें एशिया के 45 देशों के लगभग 14 हजार खिलाड़िय़ों ने 36 खेलों में हिस्सा लिया। पिछले आठ एशियाड खेलों में अपने प्रदर्शन की परम्परा को कायम रखता हुआ 151 स्वर्ण पदक प्राप्त करके चीन पहले स्थान पर रहा, उसे विभिन्न स्पर्धाओं में कुल 342 पदक प्राप्त हुए। मेजबान दक्षिण कोरिया को 79 स्वर्ण पदक सहित 234 पदकों के साथ दूसरे स्थान पर रहा। जापान 47 स्वर्ण पदक सहित कुल 200 पदक जीतकर तीसरे स्थान पर रहा तो भारत 11 स्वर्ण पदक के साथआठवें स्थान पर रहा ।
एशियाड में क्रिकेट का जहां तक सवाल है, क्रिकेट की पहचान टेस्ट मैच खेल के रूप में रही है। जब तक टेस्ट मैच के रूप में यह खेला जाता रहा ओलम्पिक खेलों के समान किसी भी बहुखेलीय स्पर्धा में क्रिकेट की गुंजाइश नहीं थी। 2003 में 20 ओवर वाले टी- 20 क्रिकेट के उदय के साथ ही एशियाड खेलों में इसकी सम्भावनाएं खोजी जाने लगीं। यद्यपि कामनवेल्थ गेम्स में इसको 1998 में शामिल कर लिया गया था। एशिया में क्रिकेट खेल को प्रोत्साहन देने के लिए स्थापित एशियन क्रिकेट कौंसिल के प्रयासों के फलस्वरूप एशियाई ओलम्पिक कौंसिल ओसीए के क्रिकेट प्रेमी अध्यक्ष शेख अहमद अल-अहमद अल-फहद अल-साबाह द्वारा ही 16वें एशियाड से क्रिकेट को भी शामिल करने की सार्वजनिक घोषणा की गई। तभी से चीन, जापान तथा दक्षिण कोरिया ने अन्य खेलों की तरह क्रिकेट में पदक हासिल करने के तैयारी प्रारम्भ कर दी थी।
भारत ने 2010 एशियाड की भांति 2014 में भी क्रिकेट में हिस्सा नहीं लिया। भारतीय महिला और पुरुष टीमें यदि क्रिकेट में हिस्सा लेतीं तो भारत के स्वर्ण पदकों की संख्या ने केवल 13 होती बल्कि वह शीर्ष छह मुल्कों में शुमार हो जाता। एशियाड में हिस्सा लेने वाली 10 क्रिकेट टीमों में से श्रीलंका की टीम ने पुरुषों का स्वर्ण पदक हासिल किया। आतंकवाद के साए में रहने वाले अफगानिस्तान की 10 साल पुरानी क्रिकेट टीम 2010 की भांति 17वें एशियाड में भी रजत पदक प्राप्त करने में सफल रही। बांग्लादेश को कांस्य पदक प्राप्त हुआ। महिला क्रिकेट स्पर्धा में पाकिस्तान को स्वर्ण, बांग्लादेश को रजत तथा श्रीलंका को कांस्य पदक प्राप्त हुआ। कहा जाता है कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को एशियाड के बारे में जानकारी नहीं थी इस कारण उसने राज्य सरकारों से सलाह मशविरा करके 13 सितम्बर से चार अक्टूबर तक चैम्पियंस लीग मैच तय कर दिया। चूंकि इसमें आईपीएल फ्रेंचाइजी की चार टीमें भी हिस्सा ले रही थीं इसलिए उनके फ्रेंचाइजी द्वारा खरीदे गए चोटी के भारतीय खिलाड़ी उपलब्ध नहीं हो सकते थे। इसके अलावा चूंकि खिलाड़िय़ों को अक्टूबर माह में वेस्टइण्डीज के साथ मैच खेलना था इसलिए वे भारत में रहकर अभ्यास करना चाहते थे इसलिए वे स्वयं भी नहीं जाना चाहते थे। जहां तक भारतीय महिला क्रिकेट टीम के एशियाड में न भेजे जाने का सवाल है, बीसीसीआई की नजर में भारत की कमजोर महिला टीम के जीतने के आसार नहीं थे, इसलिए उसको भेजना उचित नहीं समझा गया।
एशियाड में भारत द्वारा क्रिकेट टीम नहीं भेजे जाने की एशियाई ओलम्पिक कौंसिल ओसीए के अध्यक्ष कुवैत के शेख अहमद अल-अहमद अल-फहद अल-साबाह की बड़ी उग्र प्रतिक्रिया रही है। समाचार पत्रों में छपे उनके वक्तव्य अनुसार उनका कहना था कि उनको यह देखकर दु:ख होता है कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड में बैठे जिम्मेदार लोगों ने क्रिकेट को पूरी तरह से व्यवसाय बना दिया है। वे खेल को प्रोत्साहन देने की बजाय इसको धंंधा बनाकर पैसा कमाने में लगे हुए हैं। वे युवा खिलाड़िय़ों को देश के लिए खेलने की बजाय खुद के व्यवसाय को बढ़ाने के लिए प्रलोभन देकर जैसा चाहते हैं वैसा खेला रहे हैं। उनके अनुसार भारतीय क्रिकेट बोर्ड के लोग बाजार पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के लिए क्रिकेट पर नियंत्रण रखे हुए हैं, वे खिलाड़िय़ों पर एकाधिकार चाहते हैं। भारत में क्रिकेट अब खेल नहीं बल्कि उद्योग बन गया है। बीसीसीआई के लोग क्रिकेट खेल की हत्या कर रहे हैं।
मैं एशियाड में क्रिकेट टीम की अनुपस्थिति के लिए भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड से अधिक भारत सरकार को दोषी मानता हूं जिसने भारतीय क्रिकेट बोर्ड के रवैये की 2010 से जानकारी होने के बावजूद इंचियोन एशियाड में भारतीय टीम के हिस्सा लेने की सुनिश्चितता के लिए कोई भी कदम नहीं उठाया। ओलम्पिक खेलों की मूल भावना का सम्मान करना है तो ओलम्पिक व एशियन खेलों में ऐसे खिलाड़िय़ों को भेजा जाना चाहिए जो खेल को शौक से खेलते हैं न कि व्यवसाय समझकर खेलते हैं। इसलिए जो खिलाड़ी फ्रेंचाइजी द्वारा नीलामी में खरीदा गया है या भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड द्वारा लाखों रुपये की फीस पर अनुबंधित हंै ऐसे पराधीन खिलाड़ी को ओलम्पिक, एशियन या कामनवेल्थ सरीखी स्पर्धाओं के लिए भेजी जाने वाला टीम में शामिल ही नहीं किया जाना चाहिए। अब यदि सरकार अगले एशियाड हेतु टीम की भागीदारी एवं जीत सुनिश्चित करना चाहती है तो उसे अलग से एशियाड क्रिकेट संघ गठित करके अभी से ही नवयुवा खिलाड़िय़ों का चयन करके उनके प्रशिक्षण एवं अभ्यास की व्यवस्था प्रारम्भ कर देना चाहिए। इतना ही नहीं क्रिकेटरों को किसी सम्मान से नहीं नवाजा जाना चाहिए।
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