Sunday 26 October 2014

कालाधन: बगलें झांकती भाजपा

हमारे देश में आजादी के बाद से ही लोकतंत्र में शुचिता और ईमानदारी को लेकर बहस होती रही है। हर लोकसभा चुनाव से पूर्व राजनीतिक दल भ्रष्टाचार मुक्त मुल्क की मुखालफत तो चुनाव आयोग अपराधियों को लोकतंत्र की चौखट से दूर रखने के प्रयास करते हैं लेकिन इस दिशा में अब तक कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई है। भारतीय लोकतंत्र में अपराधियों की पैठ बढ़ती ही जा रही है तो कालाधन वापस लाने में किसी राजनीतिक दल की कोई दिलचस्पी नहीं है। सोलहवें लोकसभा चुनावों के वक्त कमल दल ने कालेधन को लेकर बहुत कुछ उम्मीद जगाई थी लेकिन केन्द्र में पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बावजूद आज वह बगलें झांक रही है।
भारत में कालेधन का निराला खेल लम्बे समय से चुनौती बना हुआ है। विदेशों में जमा कालाधन यदि वापस आ जाए तो मुल्क की तकदीर और तस्वीर बदल सकती है। देखें तो पिछले दो लोकसभा चुनाव कालेधन को लेकर ही लड़े गए। आम चुनाव में यही कालाधन बड़ा मुद्दा बन चुका है। वर्ष 2009 के आम चुनाव में कांग्रेस ने सत्ता में आने के लिए आम आवाम से 100 दिनों में ही कालेधन की वापसी के लिए ठोस कदम उठाने का वायदा किया था, लेकिन वह पूरे पांच साल सत्ता में काबिज रहने के बावजूद एक पाई भी कालाधन वापस नहीं ला पाई। इसी साल हुए सोलहवें लोकसभा चुनावों में कमल दल ने भी जनता से कुछ वैसा ही वादा किया था, लेकिन अब सर्वोच्च न्यायालय में उसकी सरकार अपनी पूर्ववर्ती सम्प्रग सरकार की ही तरह दूसरे देशों से संधियों और तकनीकी अड़चनों की आड़ लेती नजर आ रही है। भाजपा की इस कारगुजारी से आम जनमानस सकते में है तो कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दल सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप मढ़ रहे हैं।
विपक्ष की तंज पर केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली का पलटवार किसी के गले नहीं उतर रहा। जेटली का यह कहना कि विदेशों में कालाधन जमा करने वालों के नामों का खुलासा करने से कांग्रेस को ही शर्मिंदगी हो सकती है। यह समझ पाना मुश्किल है कि जेटली कालेधन के मामले में नरेन्द्र मोदी सरकार की प्रतिबद्धता का इजहार कर रहे हैं या फिर कांग्रेस को कालेधन के मुद्दे पर मुंह बंद रखने की नसीहत दे रहे हैं। दरअसल कालेधन के इस निराले खेल में बेशक कांग्रेस के कई मगरमच्छ पल-बढ़ रहे हों पर भाजपाई भी दूध के धुले नहीं हो सकते। कालेधन के मामले में जेटली का मीडिया को निशाना बनाना भी गैरवाजिब है। काली कमाई पर सर्वोच्च न्यायालय में सरकार के बयान के बाद हुई फजीहत का ठीकरा मीडिया पर फोड़ने से पहले जेटली को अपने गिरेबां पर नजर डालनी चाहिए थी।  बकौल जेटली, सरकार ने यह कभी कहा ही नहीं कि वह काली कमाई वाले लोगों के नामों का खुलासा नहीं करेगी, बल्कि यह कहा कि ये नाम अदालत को बताये जा सकते हैं। अरुण जेटली इस मामले में साफ-साफ कहने से क्यों गुरेज कर रहे हैं यह तो वही जानें पर उन्हें इस बात का इल्म होना चाहिए कि वह जो नाम अदालत  को बताएंगे वे नाम मीडिया की पहुंच से दूर कैसे और कब तक रह सकते हैं? कहना नहीं होगा कि जेटली का यह बयान अपने आप में विरोधाभासी है। खुलासा तो सार्वजनिक रूप से होता है। अदालत को तो नाम सीलबंद लिफाफे में सौंपे जाते हैं, जिनको उजागर करना और न करना उसकी मर्जी पर निर्भर करता है। कालेधन के मामले में मोदी सरकार को सांच को आंच नहीं की लीक पर चलना चाहिए वरना आम जनमानस में लम्बे समय तक ऊहापोह की स्थिति भ्रम और दुष्प्रचार को ही जन्म देगी। यह सच है कि विदेशों में जहां भारतीय काली कमाई का साम्राज्य स्थापित है वहीं देश के अंदर भी इसकी जड़ें काफी गहरी पैठ बना चुकी हैं। बेहतर होगा कि कालेधन के मामले में मोदी सरकार अपनी ईमानदार प्रतिबद्धता का परिचय देते हुए सबसे पहले श्वेत-पत्र जारी करे। भारतीय लोकतंत्र में कालेधन की ही तरह अपराधी भी मुंह चिढ़ा रहे हैं। आज देश का कोई भी राजनीतिक दल ऐसा नहीं है जिसके पाले में आपराधिक लोग अंगड़ाई न ले रहे हों। चुनाव आयोग लगातार अपराधों में दोषी पाये जाने वाले जनप्रतिनिधियों को चुनाव प्रक्रिया से दूर रखने का सुझाव सरकार को दे रहा है। आयोग का सुझाव है कि जघन्य अपराधों में पांच साल की सजा तय हो जाने के बाद ऐसे उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित किया जाये। इस मामले में यह ध्यान रखना भी जरूरी होगा कि चुनाव से पूर्व किसी उम्मीदवार के खिलाफ राजनीति से प्रेरित होकर मामला दर्ज न कराया गया हो। इस मामले में चुनाव प्रक्रिया से छह माह पूर्व तय किये गए आरोपों को ही कार्रवाई का आधार बनाया जा सकता है। आयोग की सिफारिशों को विधि मंत्रालय द्वारा विधि आयोग को भेजा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2013 में अपने फैसले में दागी सांसदों व विधायकों को तुरंत अयोग्य ठहराने की व्यवस्था दी थी। चुनाव आयोग की कोशिशें परवान चढ़ें, इसके लिए जरूरी है कि राजनीतिक दल भी ईमानदार कोशिश करें। मोदी सरकार के पास देश के सामने नजीर पेश करने का मौका है। जो काम पिछली यूपीए सरकार अपने अंतर्विरोधों के चलते नहीं कर पाई उसे करने का भाजपा को दुस्साहस दिखाना चाहिए। बेहतर होगा मोदी सरकार साफ-सुथरे लोकतंत्र की खातिर सभी राजनीतिक दलों में सहमति बनाए।
पूर्ण बहुमत की मोदी सरकार यदि अपने कार्यकाल में कालाधन वापस लाने और अपराधियों को संसद से दूर भगाने का काम नहीं कर पाई तो फिर जनता जनार्दन भाजपा को सबक सिखाने से गुरेज नहीं करेगी। हाल ही हरियाणा में हुए विधानसभा चुनाव में जागरूक मतदाताओं ने पूरे देश को एक संदेश दिया है। हरियाणा में 26 दागी उम्मीदवार ताल ठोकने उतरे थे जिनमें 24 को मतदाताओं ने धूल चटा दी। मतदाताओं का दिन-ब-दिन जागरूक होना भारतीय लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत है। राजनीतिक दल अब भी नहीं सुधरे तो जनता कुछ ऐसा करेगी कि एक दिन दागी लोकतांत्रिक प्रकिया के लिए अप्रासंगिक हो जाएंगे। यह सच है कि जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की कुछ धाराएं अपराधी तत्वों पर नकेल तो कसती हैं लेकिन पूर्ण बदलाव के लिए अभी और संशोधन की दरकार है।

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