Wednesday, 4 January 2017

दिव्यांगों की हमराही

नीता पांचाल के जज्बे का हर कोई मुरीद
इंसान मन में ठान ले तो कोई काम असम्भव नहीं हो सकता। नीता पांचाल ने न केवल दिव्यांगता पर फतह हासिल की बल्कि आज वह दिव्यांगों का मार्गदर्शन भी कर रही हैं। नीता पांचाल के प्रयासों से गुजरात के दिव्यांग न केवल आत्मनिर्भर बन रहे हैं बल्कि उनमें अपने अधिकारों के प्रति चेतना भी आई है। नीता पांचाल का अब तक का जीवन संघर्षों में ही बीता है। गुजरात की यह बेटी संघर्षों से घबराने की बजाय इसे अपनी ताकत बना लेती है। गुजरात में कच्छ जिले के अंजार तालुके के जुनी हुघई गांव की इस बेटी के जीवन में 26 जनवरी, 2001 को ऐसा भूचाल आया जिसे शब्दों में बयां करना काफी मुश्किल काम है। नीता के जीवन में और भी अनगिनत मुसीबतें आईं जिनका उसने न केवल बहादुरी से सामना किया बल्कि उनको हंसते हुए अपनी ताकत भी बनाया।
26 जनवरी, 2001 को  भूकम्प ने गुजरात के कच्छ में ऐसी तबाही मचाई थी जिसमें सैकड़ों लोग न केवल मौत के आगोश में हमेशा-हमेशा के लिए सो गए बल्कि हजारों लोग निःशक्तता का शिकार हो गए, उन्हीं में से नीता बेन (अब पांचाल) भी एक हैं। जब भूकम्प की तबाही मची थी तब 17 साल की नीता 10वीं कक्षा में पढ़ती थीं और उनकी सगाई भी हो चुकी थी तथा अगले साल उनकी शादी होनी थी। नीता दो दिनों तक मलबे में दबी रहीं। भूकम्प के बाद दो दिन तक कोई सुविधा नहीं मिलने से नीता की हालत न केवल खराब हो गई बल्कि वह पूरी तरह से अशक्त भी हो गईं। बाद में उन्हें मुंबई के हिन्दुजा अस्पताल ले जाया गया और वहाँ एक साल तक उनका इलाज चला।
नीता बताती हैं कि उस विनाशकारी भूकम्प ने मेरे सपनों को ही तार-तार कर दिया। मेरी सगाई टूट गई। एक तो भूकम्प का झटका और दूसरी ओर सगाई टूटने से मेरे सपनों के राजकुमार की छवि जैसे ओझल सी हो गई थी। मैं भगवान को कोसती गई कि तूने मेरे साथ कैसा अन्याय किया। अब ऐसी जिन्दगी का क्या करूं। नीता कहती हैं कि उस दौरान मुझे ऐसा लगा कि जैसे मैं दुनिया में अकेली ही बची हूँ। मुझे जीवन मौत से भी बदतर लगने लगी। भूकम्प के चलते मलबे में दबने से मेरी रीढ़ की हड्डी टूट गई और मैं पैराप्लेजिक (जिनको कमर के नीचे का पूरा हिस्सा बिना संवेदना का हो जाता है) से ग्रस्त हो गई। बैठे और सोये रहने से मुझे बेडसोर होता था। यूरिनीरी इंफेक्शन और ड्रेसिंग की पीड़ा से मुझे हर पल जूझना पड़ता। टॉयलेट पर काबू न पाने के कारण मेरा सामाजिक कार्यक्रमों में जाना भी मुश्किल हो गया था और मुझे अपना जीवन कैद सा लगने लगा। नीता कहती हैं कि हैण्डीकेप इंटरनेशनल जैसी स्वैच्छिक संस्थाओं के फिजियोथेरेपिस्ट मुझे कसरत के साथ जीने के गुर सिखाते थे, जिससे मैं ह्वीलचेयर पर बैठ पाई। कैथेटर का उपयोग करने लगी। समाज में आई और शुरू हुई मेरे जीवन के बेरंगी कैनवास पर नये रंगों के सृजन की प्रक्रिया।
नीता बताती हैं कि अस्पताल में मेरा इलाज तीन साल तक चलने के कारण पिताजी पर कर्ज का भार बढ़ गया। जीवन जीने के लिए पैसा हथियार है, इसके महत्व को समझते हुए मैंने पिताजी का आर्थिक बोझ कम करने के लिए काम करने का मन बनाया और मैंने अपने गाँव में एस.टी.डी.-पी.सी.ओ. शुरू करने के साथ ही कटलरी बेचना शुरू किया। मुझे सजना-संवरना बहुत अच्छा लगता था, पर मैं चलने-फिरने की अक्षमता के कारण श्रृंगार भी नहीं कर सकती थी। जो लोग मेरे पास वस्तुएं खरीदने आते, मेरे साहस की सराहना करते तो मुझे लगता कि मैं भी श्रृंगार कर रही हूँ।
नीता कहती हैं कि मैंने भूकम्प के बाद समाज, सरकार और स्वैच्छिक संस्थाओं के असरकारक पुनर्वास में शामिल होने का प्रयत्न किया। हैण्डीकेप इंटरनेशनल के सहयोग से दिल्ली में एबीलिम्पिक (विकलांग व्यक्तियों के लिए ओलम्पिक जैसी स्पर्धा) में गई, वहाँ मुझे एक अलग दुनिया का अनुभव हुआ। खेल-कूद के कला-कौशल से मानसिक शक्ति के विकास के साथ-साथ नृत्य आदि की क्षमता से मेरा साक्षात्कार हुआ। मैंने अपने जिले में पैराप्लेजिक (पक्षाघात) साथियों का एक मंडल शुरू किया, जिसका नाम नवजीवन मित्रमंडल है। मैं उसकी प्रमुख हूं। मैं दिव्यांग साथियों को सरकारी योजना के तहत उनके हक और लाभ दिलाने में मदद करती हूँ। मैंने 2002 में विश्व सामाजिक सम्मेलन में कच्छ जिले की विकलांग संकलन समिति का भी प्रतिनिधित्व किया। 2004 में बैंगलोर में स्पेशियल स्पोर्ट्स में स्वर्ण पदक पाकर अपने गांव का नाम रोशन किया। इसी तरह छोटी-बड़ी खेल-कूद की स्पर्धाओं में मुझे 20 बार प्रथम और पांच बार द्वितीय पुरस्कार प्राप्त हुए। इसी बीच मेरी रीढ़ की हड्डी में डाली हुई प्लेट टूट गई और मैं इलाज के लिए अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में भर्ती हुई, जहाँ मेरी मुलाकात पराग पांचाल से हुई। वे हैण्डीकेप इंटरनेशनल संस्था की तरफ से मेरी देखभाल करने आते थे। उन मुलाकातों के दौरान हमने महसूस किया कि हमारी सोच और समझ एक समान है, जिससे नजदीकियां बढ़ती गईं और 2006 में हमने शादी कर ली। नीता कहती हैं कि पराग की शादी एक सामान्य लड़की से हो सकती थी क्योंकि उसकी विकलांगता मेरे मुकाबले बहुत कम थी। मैं ह्वीलचेयर के सहारे चलती और वो बैसाखी से चलता था। उसकी नौकरी भी अच्छी थी और वह स्मार्ट भी हैं लेकिन उसे अपने से अधिक विकलांग लड़की से शादी करनी थी। आज भी जब हम बाहर जाते हैं तो लोग हमें देखते रहते हैं क्योंकि मैं ह्वीलचेयर से और पराग बैसाखी से चलते हैं।
नीता कहती हैं कि मैं 2008 में गर्भवती हुई और डॉक्टर से परामर्श करने पर मुझे बताया गया कि डिलीवरी मुश्किल है। मैं और मेरे पति करीबन 15 अस्पतालों में गए लेकिन सभी जगह निराशा हाथ लगी पर हमने हिम्मत नहीं हारी। मेरी एक सहेली किडनी अस्पताल में काम करती है, उसने जिस डॉक्टर से हमारा सम्पर्क कराया, उनसे मिलने पर हममें आशा की किरण जगी। उस डॉक्टर की सलाह से सब ठीक होता गया और अप्रैल 2009 में मैंने बेटे को जन्म दिया। बेटे भव्य के आने से हमारे घर में खुशियाँ छाने लगीं लेकिन कुछ समय बाद ही ऐसा लगा जैसे मुसीबत मेरे पीछे ही पड़ गई है। नीता कहती हैं कि मेरे साथ एक भयंकर हादसा हुआ जिसे मैं जिन्दगी भर कभी नहीं भूल पाऊंगी। 2010 में मैं कच्छ में अपने घर गई। मुझे कच्छ से वापस लौटने के लिए भचाउ से अहमदाबाद की ट्रेन पकड़नी थी। मैं रेलवे स्टेशन पहुँची। भचाउ रेलवे स्टेशन का प्लेटफॉर्म कच्चा है और वहाँ ट्रेन सिर्फ दो मिनट के लिए ही रुकती है। जैसे ही ट्रेन आई हड़बड़ाहट में मेरे सहायकों ने मुझे ट्रेन में चढ़ाने के लिए ह्वीलचेयर से उठाया और सहारे से ट्रेन में चढ़ते वक्त सीढ़ी में मेरा पैर फंस गया, तभी ट्रेन चलने लगी। मेरे सहायकों ने मेरा पैर निकालने की कोशिश की पर पैर नहीं निकला, उन्होंने पैर खींचा तो मेरा पैर घुटने के नीचे से क्रैक हो गया। अहमदाबाद पहुँचने पर अस्पताल गये, वहाँ डॉक्टर ने प्लास्टर लगाया।
नीता कहती हैं कि तब अप्रैल-मई का महीना चल रहा था। झुलसती गर्मी में पूरे दिन प्लास्टर की वजह से और गर्मी के कारण एक तरफ सोए रहने से मेरी पीठ में कमर के नीचे के हिस्से की स्कीन में संसेशन नहीं होने के कारण मुझे बेडसोर हो गया। मैं बुखार से तड़पने लगी। डॉक्टर की दी दवाइयाँ लेने पर भी बुखार कम नहीं हुआ और मैं घर में बेहोश हो गई। तब मेरा बेटा दो साल का था। पराग ऑफिस गए हुए थे। मेरा बेटा जोर-जोर से रोने लगा, तभी पड़ोसी आए और मुझे बेहोशी की हालत में अस्पताल ले गए। मेरे पूरे शरीर में इंफेक्शन फैल गया और हीमोग्लोबिन पांच हो गया। मेरी और पराग की हिम्मत टूट गई। मेरी बचने की उम्मीद न के बराबर थी। मुझे देख पराग नर्वस हो गए लेकिन अपने बच्चे को देखकर जैसे मुझ में कुदरती हिम्मत जाग उठी। पैराप्लेजिया अस्पताल में डॉ. प्रभाकर की निगरानी में छह महीने तक मेरा इलाज चला। मुझे नौ बार खून की बोतलें चढ़ाई गईं और धीरे-धीरे कसरत, खान-पान में मूंग, सलाद, नारियल पानी आदि लेने से मेरी तबियत में सुधार हुआ। इस दौरान अस्पताल में मैंने दूसरे मरीजों को भी मुश्किलों में हिम्मत नहीं हारने को कहा। छह महीने बाद मैं घर लौटी। नीता कहती हैं कि आज तक मेरी छोटी-बड़ी कुल मिलाकर 32 सर्जरी हो चुकी हैं। मैं अपने वैवाहिक जीवन में बहुत खुश हूं। शादी के बाद भी मैं विकलांग महिलाओं के प्रश्नों का प्रतिनिधित्व करती हूं। मैं ह्वीलचेयर पर आश्रित होने के बावजूद अपने पति का पूरा ख्याल रख सकती हूं और सामाजिक प्रसंगों में भी हिस्सा ले सकती हूं।
नीता कहती हैं कि भूकम्प ने मुझे नयी जिन्दगी दी। धीरे-धीरे समय बीतता गया। सब कुछ ठीक से सम्हलने लगा तभी मेरे पति पराग का एक्सीडेंट हो गया। वे दो महीने तक बेडरेस्ट पर रहे, जिस कम्पनी में वे काम कर रहे थे वहाँ प्रोजेक्ट पूरा नहीं होने के कारण उनकी नौकरी छूट गई। ऐसा लगा जैसे भगवान ने सारी मुसीबतें मेरी झोली में ही डाल दी हों। दो महीने तक वे नौकरी के लिए इधर-उधर भटकते रहे। सभी लोग पराग की विकलांगता देखते थे, काबिलियत नहीं। बहुत कोशिश करने पर पराग को अहमदाबाद से 120 किलोमीटर की दूरी पर बरोडा में नौकरी मिली। वे सुबह पांच बजे जाते और रात 10 बजे घर आते। घर और बाहर का सारा काम मेरे जिम्मे आ गया। तब मुझे कभी-कभी अपनी विकलांगता के कारण असहाय होने का अहसास होता लेकिन मैं इस कारण कभी किसी काम से पीछे नहीं रही। मैंने धैर्य रखते हुए हिम्मत से काम लिया। बाद में पराग को आई.पी.आर. गांधीनगर में नौकरी मिली और लगा कि धीरे-धीरे ही सही मानो मेरी जिन्दगी में जैसे सूरज की रोशनी भरने लगी हो।
नीता कहती हैं कि अहमदाबाद में हैण्डीकेप इंटरनेशनल संस्था के सहयोग से हमने पूरे गुजरात के कुल 50 व्यक्तियों से सम्पर्क किया जो अलग-अलग प्रकार की विकलांगता से ग्रस्त थे। इन सभी 50 व्यक्तियों को तालीम देकर इनकी क्षमता का वर्धन किया गया। इसमें विकलांग व्यक्तियों को सरकार के जो भी कायदे-कानून बने हैं जैसे-विकलांगता विधेयक 1995, रीहेबिलिटेशन काउंसिल ऑफ इण्डियन एक्ट, मेंटल हेल्थ एक्ट आदि से परिचित करवाया गया। अपने अधिकारों के प्रति जागृत होने से इनके जीवन में नया जोश आया। फिर उन 50 व्यक्तियों ने और 50 व्यक्तियों को जोड़ा और आगे लोग जुड़ते गये। हम लोग अनौपचारिक रूप से तो मिलते ही थे, धीरे-धीरे हमने सोचा कि यदि हम लोग औपचारिक तौर पर एकजुट रहेंगे तो हमारी आवाज सभी तक पहुँच पाएगी और 2010 में हमने विकलांगता हिमायत यूथ के नाम से विकलांग व्यक्तियों के लिए हिमायत करने वाली संस्था का गठन किया। उसमें अभी तक पूरे गुजरात में अलग-अलग विकलांगता से ग्रस्त 1200 के करीब सदस्य जुड़े हैं। हमने विकलांगता के क्षेत्र में बहुत कम समय में कुछ सफलता प्राप्त की। विकलांग व्यक्तियों की जनगणना का प्रश्न जो 2001 में 15वें नम्बर पर था उसे हमने हिमायत कर 2011 में नौवें स्थान पर रखवाया। इसकी मुख्य वजह थी जनगणना में विकलांग व्यक्तियों की जनगणना ठीक से हो और उनके लिए ठीक से बजट प्रावधान हो।
नीता डिसेबिलिटी एडवोकेसी ग्रुप की सेक्रेटरी भी हैं जिसमें इनके पति पराग पूरा सहयोग करते हैं। नीता कहती हैं कि हम दोनों जहाँ भी जाते हैं वहाँ विकलांग व्यक्तियों के लिए बाधारहित वातावरण की बात करते हैं, जिससे हर प्रकार का विकलांग व्यक्ति हर जगह बिना किसी सहारे से आ-जा सके। नीता कहती हैं कि हमारी शादी को देखकर लोग प्रेरित हुए और आठ दिव्यांग एक-दूजे के बने। नीता दिव्यांगों के उत्थान की खातिर कई जगह प्रेरणात्मक प्रवचन भी देने जाती हैं। नीता ने शादी से पहले गुजराती में दो किताबें भी लिखींइनकी पहली पुस्तक विकलांग महिला की समस्या-गर्भ से कब्र तक तथा दूसरी किताब नियति को चुनौती है। विकलांगता के क्षेत्र में हक और अधिकारों के लिए लोगों का रोल माडल बनीं नीता पांचाल को अब तक दर्जनों पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है।
नीता की उपलब्धियां-
नीता ने 2007 में बैंगलोर में हुई ह्वीलचेयर रेस में स्वर्ण पदक जीता तो 2012 में उन्हें अहमदाबाद में आदर्श नागरिक का पुरस्कार प्रदान किया गया। 2013 में नीता को दिल्ली स्थित नेशनल सेण्टर फार प्रमोशन एण्ड एम्प्लायमेंट (एनसीपीईडीपी) द्वारा आयोजित कुमारी शैलजा के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता सचिव द्वारा हेलेन केलर पुरस्कार प्राप्त हुआ जो गुजरात में पहला पुरस्कार है और वह भी एक महिला को दिया गया है। इसी साल नीता को लायंस क्लब आफ इंटरनेशनल संस्था द्वारा साहसिक महिला का पुरस्कार प्रदान किया गया। 2014 में              नीता ने गुजरात सरकार द्वारा आयोजित खेल महाकुंभ में जिलास्तर और राज्यस्तर पर ह्वीलचेयर हर्डल खेल में स्वर्ण पदक अर्जित किए। 2015 में मुंबई स्थित नीना फाउंडेशन संस्थान द्वारा नीता को पद्मश्री पंडित हरिहरन (प्रसिद्ध गायक) के करकमलों से नारी रत्न पुरस्कार प्रदान किया गया। 2016 में नीता पांचाल को समभाव मीडिया समाचार द्वारा सर्वश्रेष्ठ महिला रोल मॉडल का पुरस्कार तो मुंबई स्थित पैराप्लेजिया फाउंडेशन द्वारा विल स्टार अवार्ड से नवाजा गया। नीता को भुवनेश्वर, उड़ीसा स्थित शांता मेमोरियल रीहेबिलिटेशन सेण्टर द्वारा आयोजित राष्ट्रीय महिला अधिवेशन में अनीता अग्निहोत्री, सचिव, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय नई दिल्ली के करकमलों से विकलांग महिलाओं के हक और अधिकार के सम्बन्ध में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किया गया। 2016 में ही नीता ने गुजरात राज्य सरकार द्वारा आयोजित खेल महाकुंभ में जिलास्तर और राज्यस्तर पर ह्वीलचेयर हर्डल खेल में स्वर्ण पदक अर्जित किया। नीता पांचाल विकलांगता विधेयक 2016 को राज्यसभा और लोकसभा में पारित करवाने के लिए चलाए गये अभियान में सक्रिय भूमिका का निर्वहन करने वाली गुजरात की पहली महिला हैं।
इन उपलब्धियों के अलावा नीता वर्ष 2007 में भोपाल में आयोजित दूसरी नेशनल पीपल्स हेल्थ असेम्बली में अपने उद्गार व्यक्त करने के साथ ही "वैश्वीकरण के युग में विकलांग व्यक्तियों के स्वास्थ्य का बचावका भी कुशलतापूर्वक प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। इन्होंने वर्ष 2005 के दौरान दिल्ली और बैंगलोर में आयोजित राष्ट्रीय कार्यक्रम 'अंतर्राष्ट्रीय महिला स्वास्थ्य' में विकलांग व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व किया और विकलांग महिलाओं के स्वास्थ्य की सुरक्षा लिए एक आवाज उठाई। साल 2006 में 'गुजरात में बाधारहित पयार्वरण' के लिए भव्य रैली का आयोजन किया जिसमें 3000 विकलांगों ने भाग लिया। नीता पांचाल अब तक विभिन्न फोरमों पर विकलांग महिलाओं के मुद्दे का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं जिसमें वर्ल्ड सोशल फोरम में उनका योगदान खास है। नीता गुजरात राज्य में विकलांगता जनसंख्या की गिनती के लिए जनगणना-2011 के दौरान सरकार और अन्य एनजीओ के साथ जुड़कर सहयोग देने में सबसे आगे रहीं। इन्होंने 2011 में आनंदी संस्था के साथ अंत्योदय अन्न योजना और खाद्य सुरक्षा पर भव्य रैलियों के मार्गदर्शन में भी सबसे आगे रहीं। नीता खाद्य सुरक्षा और जनगणना 2011 के अभियान सहित कई एडवोकेसी अभियानों का हिस्सा रह चुकी हैं। इन्होंने विभिन्न विकलांगता की सेवाओं में सुधार लाने के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम को अपना हथियार बनाया तो विभिन्न एजेंसियों में विकलांग व्यक्तियों की नियुक्ति भी करवाई है। वह लगातार विकलांगों को रोजगार प्राप्त करने को प्रेरित और प्रोत्साहित करती रहती हैं। नीता बेन को गुजरात में विकलांग व्यक्तियों के हक और अधिकार दिलाने में अग्रणी माना जाता है। नीता गुजरात स्टेट जेण्डर डिसेबिलिटी रिसोर्स सेंटर (जी.डी.आर.सी.) में स्टेट कोआर्डीनेटर हैं तो डिसेबिलिटी एडवोकेसी ग्रुप (डी.ए.जी.) की सचिव एवं विकलांगों के अधिकारों के लिए राष्ट्रीय समिति की सक्रिय सदस्य हैं।

नीता पांचाल पिछले 13 साल से खाद्य सुरक्षा कानून के तहत अंत्योदय राशन कार्ड दिलवाने के साथ-साथ विकलांग व्यक्तियों को रोजगार एवं स्व-रोजगार के लिए भी काम कर रही हैं। वह अब तक वोडाफिन, होटल लेमन ट्री, रिलायंस फ्रेश, बी-सफल इंफ्रास्ट्रकचर आदि में 60 से अधिक दिव्यांगों को रोजगार दिलाने के साथ ही एन.एच.एफ.डी.सी., दिल्ली और एम.पी.कोन, भोपाल के सहयोग से 120 विकलांग व्यक्तियों को स्व-रोजगार की तालीम भी दिला चुकी हैं। इतना ही नहीं 58 विकलांग महिलाओं को स्व-रोजगार के साधन दिलवाकर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करने के साथ 524 विकलांग महिलाओं को घरेलू हिंसा अधिनियम की तालीम देकर उनमें आत्मविश्वास पैदा कर चुकी हैं। गुजरात में डेढ़ दर्जन से अधिक बाधारहित बांधकाम बनवाने में सहयोग करने वाली नीता पांचाल विकलांगता क्षेत्र में तालीम लेने के लिए दो बार विदेश यात्राएं भी कर चुकी हैं। 

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