Wednesday, 11 January 2017

कलियुग का वाल्मीकि

अपराध की दुनिया छोड़ पकड़ी समाजसेवा की राह
जीवन में ढेरों मुसीबतें झेलने और गलत रास्ते पर चलना शुरू कर देने के बावजूद मुंबई के इस विकलांग युवक ने दृढ़ इच्छाशक्ति और साहस के बूते न सिर्फ अपनी जिन्दगी का रुख पलट डाला बल्कि अपने जैसे सैकड़ों-हजारों-लाखों लोगों का प्रेरणास्रोत बनकर दिखाया। हम इस शख्स को यदि कलियुग का वाल्मीकि कहें तो गलत न होगा। छह साल की उम्र में पांव गंवाने के बाद माहौल और हालात से दुःखी इस युवक ने 15 साल की उम्र में घर छोड़ दिया, अपराधी बन गया और जब उसकी जिन्दगी इतने 'अंधेरे' दौर में पहुंच गई कि उसके खिलाफ देखते ही गोली मार देने का (शूट एट साइट) आदेश जारी हो गया, तब एक रोशनी की किरण इसकी जिन्दगी में आई और इसकी जिन्दगी बदलकर रख दी। सिर्फ एक शख्स ने जो कारनामा हमारी कहानी के नायक युवक की जिन्दगी में कर दिखाया, वह सचमुच लाखों-करोड़ों के लिए प्रेरणा बन सकता है यह सही ही कहा जाता है कि एक आदमी ही काफी होता है, जिन्दगी बदल डालने के लिए।

कभी अपराध की दुनिया का बेताज बादशाह रहा यह शख्स अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखता है कि मैं स्कूल जा रहा था, जब एक ट्रक मेरे पांव पर से गुजर गया। मुझे तुरंत अस्पताल ले जाया गया लेकिन डॉक्टर ने कहा कि अगर हमारे पास 25,000 रुपये होते, तो मेरी टांग को बचाया जा सकता था। मैं गरीब परिवार से था, सो वह तो मुमकिन ही नहीं था। मेरी टांग काटने के लिए छह ऑपरेशन किए गए और जब मुझे अस्पताल से छुट्टी मिली, मुझे एहसास हुआ कि जिन्दगी में मुश्किलात बनी ही रहेंगी। छह साल की मासूम उम्र में ही मुझे 'लंगड़ा' कहकर पुकारा जाने लगा। अगर मैं दूसरे बच्चों के साथ फुटबॉल खेलने जाता भी था, तो मुझे मैदान में भी घुसने नहीं दिया जाता और सभी कहते थे कि मेरी वजह से मैदान और बॉल को नुकसान पहुंचेगा। मेरे अपने पिता मुझे बोझ समझते थे, क्योंकि सबसे बड़ा बच्चा होने के नाते मुझे घर चलाने के लिए पैसे से मदद करनी चाहिए थी मुझे हर रोज घर में यातना मिलती आखिरकार मैं 15 साल की उम्र में घर से भाग गया, ताकि पैसा कमाकर अपने पैरों पर खड़ा हो सकूं।
फिर क्या था मैंने लोगों को मार-पीटकर पैसा कमाना शुरू कर दिया।
मैंने बचपन से ही गली में घूमते गैंग देखे थे, सो मैंने तय किया कि खुद को बचाए रखने और जल्दी पैसा कमाने के लिए मैं भी किसी गैंग में शामिल हो जाऊंगा। मैंने चाकू रखने के साथ ही लोगों से मार-पीटकर पैसा कमाना शुरू कर दिया। छोटे-मोटे अपराधों के चलते मैं तीन बार जेल भी गया। मेरी जिन्दगी का वह अंधेरा पहलू था, लेकिन मैं कुछ और जानता ही नहीं था। कोई कमाई नहीं थी, सो मेरा लगातार मजाक उड़ाया जाता था। वर्ष 1994 में तो मुझे 'देखते ही गोली मार देने' के आदेश जारी कर दिए गए थे। इससे पहले पुलिस ने मेरे पिता को जेल में डाल दिया था, और मेरी मां को भी पीटा था।
एक रात जब मैं किसी जगह छिपा हुआ था, छह-फुट लम्बे एक आदमी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा। मैं उसे पुलिस वाला समझकर अपना चाकू फेंकने ही वाला था, उसने कहा, 'मेरे बच्चे, जीसस तुमसे प्यार करते हैं, और उन्होंने तुम्हारे लिए कुछ शानदार सोचा है। वह घंटों मेरा हाथ थामे रहा, मुझसे बातें करता रहा और समझाता रहा कि जिन्दगी यहीं खत्म नहीं हुई है। ऐसा कभी मेरे पिता ने भी नहीं किया था। मैंने कहा, अगर भगवान है तो उससे कहो कि वह मुझे इस नर्क से निकाल दे। बस, उसी वक्त से वह मेरे गाइड बन गए। उन्होंने परेशान युवकों के लिए बनाई गई एक जगह पर मेरा दाखिला करवा दिया, मुझे चर्च ले जाने लगे, बाइबिल से उपदेश पढ़कर सुनाने लगे और मुझे सुधारने की कोशिश की। मैं दो साल तक एनजीओ में रहा और उन्हीं के जरिये मुझे जयपुर फुट भी हासिल हुआ। उसी समय मुझमें भरोसा जागा कि मैं अपने सपनों को हासिल कर सकता हूं। उन लोगों ने मेरे लिए पुलिस तक से बात की, उन्हें समझाया कि मैं अभी 18 साल का भी नहीं हूं, लेकिन सुधर चुका हूं। पुलिस ने मुझे अंतिम चेतावनी देकर छोड़ दिया। इसी दौरान, मुझे खबर दी गई कि मेरे पिता का देहांत हो गया है। मैं उस समय तक तय कर चुका था कि मैं अपने भाई-बहनों और मां की जिम्मेदारी उठाना चाहता हूं, सो, मैं हर रोज दिनभर एनजीओ में काम करता था, शाम चार बजे से सात बजे तक स्कूल जाया करता और सात बजे से रात 11 बजे तक मैकडोनाल्ड में काम करता था। शनिवार-रविवार को मोजे (जुराबें) बेचता था और एक-एक पैसा जमा करता था।

दो साल तक ऐसे ही चलता रहा और फिर एक दिन एनजीओ में मेरे बॉस ने मुझे बताया कि वह मुझे तरक्की देना चाहते हैं और मुझे पुर्तगाल में एक लीडरशिप प्रोग्राम में शामिल होना है। मैं खुशी-खुशी मान गया और ज्यादा पैसे कमाने लगा। मुझे एक खूबसूरत लड़की मिली, मैंने उससे शादी की, लेकिन मेरे बेटे को जन्म देने के दौरान ब्रेन हैमरेज की वजह से मैंने उसे खो दिया। बस, तभी से मैं समाजसेवा में पूरी तरह रम गया। अब पिछले 13 साल से मैं मैराथन में भाग ले रहा हूं। कई पहाड़ों पर चढ़ चुका हूं। विकलांगों की टीम में क्रिकेट भी खेल चुका हूं। गली में घूमने वाले बच्चों के लिए कई प्रोजेक्ट शुरू किए हैं। बाढ़ प्रभावित परिवारों की मदद के लिए लद्दाख तक बाइक चलाकर ले गया हूं। सिर्फ उस एक शख्स की वजह से, जिसने मेरी परवाह की, मेरी जिन्दगी को बदलने की कोशिश की। मेरी कहानी का यही संदेश है- एक ही आदमी काफी होता है, जिन्दगी बदल डालने के लिए।

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