Sunday, 15 January 2017

रिश्वत दी होती तो गौरव सिंह होते पायलट


अशोक ध्यानचंद के बेटे का अनुकरणीय फैसला
दद्दा के भारत रत्न पर कई बार हुआ सदमे का शिकारः अशोक ध्यानचंद
श्रीप्रकाश शुक्ला
मथुरा। पापा मैं भूखा रह लूंगा लेकिन रिश्वत देकर पायलट बनना मुझे कतई स्वीकार नहीं। पायलट की ट्रेनिंग के लिए अपने पिता अशोक ध्यानचंद की जीवन भर की कमाई को लगा देने के बाद जब गौरव सिंह उड़ान भरने के सपने देख रहा था उसी समय उससे बतौर रिश्वत तीन लाख रुपये मांगे गये। ऐसी स्थिति में कोई और होता तो शायद रिश्वत देकर आज इंडियन एयर लाइंस में उड़ान भर रहा होता लेकिन गौरव सिंह ने रिश्वत न देकर युवाओं के लिए एक अनुकरणीय फैसला लिया। इस वाकये से यह साबित हो गया कि कालजयी दद्दा ध्यानचंद की नसीहत का असर उनके बेटों ही नहीं उनके नातियों में भी बरकरार है।
गुलाम भारत को अपने शानदार खेल-कौशल से दुनिया भर में गौरवान्वित करने वाले हाकी के जादूगर दद्दा ध्यानचंद और उनके अनुज कैप्टन रूप सिंह आज बेशक हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके ऐतिहासिक विश्व विजयी आंकड़े तब तक जीवंत रहेंगे जब तक कि यह हाकी खेली जाती रहेगी। तानाशाह हिटलर की आंखों के नूर ध्यान सिंह और रूप सिंह के परिवार आज किस मुफलिसी में जी रहे हैं इसे देखने वाला कोई नहीं है। बेशक आज हर खेल संगठन में राजनीतिज्ञों की पैठ हो लेकिन उन्हें भी ध्यान सिंह और रूप सिंह के चमत्कारिक खेल-कौशल से कोई लेना-देना नहीं है। खिलाड़ियों को भारत रत्न देने की पहल करने वाली कांग्रेस हो या फिर हिन्दुत्व की अलम्बरदार भारतीय जनता पार्टी दोनों की कार्यशैली में बहुत बड़ा अंतर नहीं दिखता। कांग्रेस ने क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न देकर जहां दद्दा ध्यानचंद के ऐतिहासिक प्रदर्शन की अनदेखी की थी वहीं मोदी सरकार भी इस मामले में किंकर्तव्य-विमूढ़ की स्थिति में है। खेलप्रेमियों को उम्मीद थी कि केन्द्र की मोदी सरकार ध्यान सिंह और मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह सरकार रूप सिंह के ऐतिहासिक प्रदर्शन का सम्मान करते हुए इन विभूतियों को वाजिब सम्मान देंगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

दद्दा ध्यानचंद को भारत रत्न न दिए जाने पर उनके सुपुत्र अशोक ध्यानचंद का यह कहना कि मैं कई बार सदमे का शिकार हो चुका हूं। अब मुझे नहीं लगता कि दद्दा को भारत रत्न मिलेगा वजह हमारी हुकूमतों की राजनीतिक सोच है। खैर, खेल हमारी रग-रग में समाये हुए हैं। जब तक जिएंगे खेलों की बेहतरी के बारे में ही सोचेंगे। भारत में खेलों का माहौल बने इसके लिए ग्रामीण प्रतिभाओं के साथ-साथ प्राथमिक स्कूलों से ही खेलों और खिलाड़ियों को बढ़ावा मिलना चाहिए। खेल संगठनों में पारदर्शिता तभी आएगी जब सही चुनाव होंगे और खिलाड़ियों के हाथ खेलों की कमान होगी। हाकी में इस वैश्य परिवार की जहां तक बात है दद्दा ध्यान सिंह ने 1928, 1932 और 1936 में भारत को ओलम्पिक में स्वर्ण पदक दिलवाए थे तो कैप्टन रूप सिंह 1932 तथा 1936 ओलम्पिक के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी रहे। दद्दा ध्यानचंद भारत रत्न के पहले हकदार थे लेकिन उनकी अनदेखी की गई। इसी तरह वर्ष 2006 में शिवराज सरकार ने ग्वालियर के जिला खेल परिसर का नाम कैप्टन रूप सिंह के नाम करने के साथ ही वर्ष 2009 में इस खिलाड़ी के नाम से ही लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड देने का फैसला लिया था लेकिन इस दिशा में आज तक कुछ भी नहीं हुआ। अशोक ध्यानचंद की जहां तक बात है इस खिलाड़ी के गोल से ही भारत 1975 में विश्व विजेता बना था। अशोक कुमार ने अपने पराक्रमी खेल से एक स्वर्ण, चार रजत तथा तीन कांस्य पदक भारत की झोली में डाले हैं। इस हाकी परिवार को कभी न्याय मिलेगा, इस पर संशय बरकरार है।   

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