Friday 4 September 2015

क्या शीला दीक्षित और सुरेश कलमाड़ी भी जाएंगे जेल?-page-2


कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले में पांच को सजा
नई दिल्ली। भारत में स्वतंत्रता के बाद से लेकर अब तक कई घोटाले हुए हैं जिनसे राजनीतिक दिशा और दशा दोनों निर्धारित हुई हैं। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी वर्तमान केन्द्र सरकार को भी अगर घोटालों का प्रतिसाद कहा जाए तो गलत नहीं होगा।
पिछली यूपीए सरकार को उखाड़ फेंकने में जिन घोटालों का सबसे बड़ा सहयोग था उनमें कॉमनवेल्थ गेम्स भी एक है। कॉमनवेल्थ घोटाले के बाद कांग्रेस के सांसद व इंडियन ओलम्पिक एसोसिएशन के चेयरमैन सुरेश कलमाड़ी को लगभग नौ महीने की जेल भी काटनी पड़ी थी। कॉमनवेल्थ घोटाले के कारण ही दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार को जनता ने उखाड़ फेंका। अब पांच साल के बाद दिल्ली की एक अदालत ने इस घोटाले से जुड़े पांच अभियुक्तों को दंडित किया है। इस लिहाज से कॉमनवेल्थ घोटाले के इस प्रकरण में आया फैसला स्वागत योग्य है। फिर भी ऐसे कुछ प्रश्न उठते हैं जिन पर विचार करना भी आवश्यक है।
पहला यह कि क्या अभियुक्तों को दिए गए दण्ड से अगली बार इस तरह का अपराध करने वालों में भय उत्पन्न होगा? दूसरा यह कि जो हानि जनता की गाढ़ी कमाई की हुई है उसकी भरपाई क्या जुर्माने की राशि से हो पाएगी? पहले प्रश्न के उत्तर में हम कह सकते हैं कि अगली दफा ऐसा अपराध करने से पहले भय उत्पन्न होगा। लेकिन 1.42 करोड़ की क्षतिपूर्ति अदालत द्वारा लगाए गए जुर्माने से पूरी नहीं होगी। एक अन्य पहलू यह भी है कि प्रकरण में सीबीआई ने जो साक्ष्य अदालत के समक्ष प्रस्तुत किए हैं वे स्पष्ट और अपराधों की पुष्टि करने के लिए पर्याप्त हैं परंतु क्या यही सीबीआई शीला दीक्षित या सुरेश कलमाड़ी के विरुद्ध भी इतने ही स्पष्ट साक्ष्य प्रस्तुत कर सकेगी। इतिहास गवाह है कि ऐसे घोटालों में हमारे यहां न्याय के लिए लम्बा इंतजार करना पड़ता है। चारा घोटाले के आरोपी लालू यादव और पूर्व संचार मंत्री सुखराम हों या फिर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राशिद मसूद, सभी पर आरोप साबित होने में 20 साल से भी अधिक समय लग गया। इनके जैसे कई नेता हैं जिन पर लम्बे समय से प्रकरण लम्बित पड़े हैं। कुछ समय पूर्व ये मांग उठी थी कि राजनेताओं पर चल रहे मामलों का जल्द से जल्द निबटारा होना चाहिए, वर्तमान परिदृश्य में इसे लागू किया जाना अत्यावश्यक है। घोटालों से जुड़े बड़े नामों पर तय समयसीमा में फैसले आएंगे तभी हमारी न्यायप्रणाली और अधिक सुदृढ़ हो पाएगी। क्योंकि समय बीतने के बाद मिला न्याय, अन्याय कहलाता है। साथ ही भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ी राशि भी आरोपियों से उनकी सम्पत्ति राजसात करके की जाना चाहिए। ऊपरी स्तर से व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करके ही छोटे कर्मचारियों को भ्रष्टाचार न करने का संदेश दिया जा सकता है। जो भी हो मोदी सरकार को छोटी मछलियों की बजाय भ्रष्टाचार में लिप्त बड़ी मछलियों को भी सिखाना चाहिए, यही समय की मांग है।

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