संपादकीय
टीम इंडिया ने टेस्ट सीरीज में श्रीलंका को उसी के घर में हरा दिया है। यह कामयाबी कई मायनों में महत्वपूर्ण है। टीम इंडिया की कमान युवा विराट कोहली के हाथ में थी जिनका टेस्ट क्रिकेट में अनुभव बहुत अधिक नहीं है। लेकिन विराट और उनकी टीम ने 22 साल बाद श्रीलंका को उसकी धरती पर पटखनी देकर साबित कर दिया है कि युवा कप्तान और युवा टीम कामयाबी का डंका बजाने के लिए तत्पर है। अपनी कप्तानी में सीरीज जीतने की यह पहली सफलता यकीनन विराट का मनोबल बढ़ाएगी और उसका लाभ भविष्य में टीम को मिलेगा। सबसे अधिक तारीफ की बात यह है कि टीम इंडिया ने पहला टेस्ट हारने के बाद वापसी की और अगले दो मैच जीतने हुए सीरीज को हथियाने में कामयाबी पाई। यदि किस्मत साथ होती तो टीम तीनों मैच जीत सकती थी क्योंकि पहले मैच में भी खेल पर ज्यादातर समय दबदबा भारत का ही रहा था। लेकिन एक सत्र में खराब प्रदर्शन के कारण लगभग जीता हुआ मैच हाथ से चला गया। बहरहाल, इस कामयाबी ने टीम इंडिया के लिए विदेशी धरती पर हारने के कुछ वर्षों से जारी सिलसिले को तोड़ा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि जीत की इस राह से भारतीय टीम आसानी से नहीं उतरेगी। विश्वास करने की वजह यह भी है कि श्रीलंका के विरुद्ध सीरीज में टीम ने सामूहिक तौर पर प्रदर्शन किया। प्रत्येक मैच में अलग-अलग खिलाड़ी चमके और उन्होंने अपने प्रदर्शन से टीम को जीत के रास्ते पर डाला। एक ओर शिखर धवन, विराट कोहली, अजिंक्य रहाणे आदि ने शतक जमाए, तो दूसरी तरफ आखिरी मैच में मौका पाने वाले चेतेश्वर पुजारा ने अहम मौके पर शतक जड़कर खुद पर जताए गए टीम प्रबंधन के भरोसे को सही साबित किया। गेंदबाजी विभाग में अश्विन ने अगुआई की और अपने प्रर्दशन की बदौलत मैन आॅफ द सीरीज भी बने, लेकिन स्पिन विभाग को पैना करने में अमित मिश्रा ने भी उनका भरपूर साथ दिया। जहां तक पेस अटैक का सवाल है, ईशांत शर्मा श्रीलंकाई बल्लेबाजों पर कहर बरपाते नजर आए। उमेश यादव और स्टुअर्ट बिन्नी ने भी उनका बखूबी साथ दिया। माना जाता है कि उपमहाद्वीप में विकेट निकालने का मुख्य काम स्पिन गेंदबाजों का होता है और तेज गेंदबाज यदि शुरुआती एक-दो विकेट निकाल दें तो उनका काम पूरा मान लिया जाता है। लेकिन आखिरी मैच में, जहां तक गेंदबाजी का सवाल है, ईशांत शर्मा ने जीत की पटकथा लिखी। यह देखना भी सुखद रहा कि निचले क्रम के बल्लेबाजों ने कीमती योगदान करके कई मौकों पर टीम को मुसीबत से निकाला। अमित मिश्रा, अश्विन, साहा और नमन ओझा की पारियों ने अंत में मैच और सीरीज के नतीजे पर निर्णायक प्रभाव डाला। आगे टीम इंडिया को दक्षिण अफ्रीका से भिड़ना है जिसके पास दुनिया के चोटी के गेंदबाज हैं। उम्मीद है कि भारतीय टीम जीत का सिलसिला कायम रखेगी। बहरहाल, श्रीलंका के विरुद्ध सीरीज कुमार संगकारा की विदाई के लिए भी याद रखी जाएगी क्योंकि संगकारा जैसे खिलाड़ी रोज पैदा नहीं होते। क्रिकेट अनिश्चितताओं का खेल है, यही वजह है कि इस खेल में अंतिम गेंद तक भविष्यवाणी करना जोखिमपूर्ण होता है। रविचन्द्रन अश्विन की बलखाती गेंदों की बदौलत श्रीलंकाइयों को 22 साल बाद उनकी ही पट्टियों पर मात देना भारतीय क्रिकेट का विशेष लम्हा है। विराट सेना क्लीन स्वीप भी कर सकती थी लेकिन पहले टेस्ट में तीन दिन तक दबदबा बनाये रखने के बाद भी टीम इण्डिया क्रिकेट की अनिश्चितता का शिकार हो गई। फटाफट क्रिकेट के दौर में टेस्ट मैचों की लोकप्रियता जरूर कम हुई है, लेकिन खिलाड़ियों के कौशल, दमखम, ध्यान और संतुलन की क्षमता का सही आकलन टेस्ट मैचों के दौरान ही हो पाता है। यही वजह है कि इन मैचों के प्रदर्शन लम्बे समय तक याद रखे जाते हैं। भारत-श्रीलंका के बीच तीन टेस्ट मैचों की सीरीज इस लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण थी। दरअसल दोनों ही टीमें फिलवक्त पुनर्निर्माण के दौर से गुजर रही हैं। गाले में भारत जीतते-जीतते हार गया था, लेकिन शेष दो टेस्ट मैचों में भारतीय खिलाड़ी श्रीलंका पर न केवल हावी रहे बल्कि जीत हासिल करने के क्षण तक उन्होंने अपना संतुलन और नियंत्रण बनाये रखने में कोई चूक नहीं की। भारत जिस तरह टेस्ट क्रिकेट में विदेशी पट्टियों पर मात खाता रहा है, उसे देखते हुए श्रीलंका से उसकी ही पट्टियों पर सीरीज फतह करना वाकई बड़ी बात है। इस सीरीज में विराट कोहली ने अपने प्रदर्शन की बजाय शानदार नेतृत्व की जो छाप छोड़ी है, उसे देखते हुए हम कह सकते हैं कि भारत को दूसरा सौरव गांगुली मिल गया है। भारतीय टीम की यह सफलता इस मामले में भी खास है क्योंकि यह विराट कोहली की बतौर कप्तान पहली सीरीज फतह है। विराट सेना ने टेस्ट क्रिकेट में एक साल के इंतजार के बाद भारतीय क्रिकेटप्रेमियों को जीत की जो सौगात भेंट की है, उसे लम्बे समय तक याद रखा जायेगा। यह सीरीज क्रिकेट इतिहास के महानतम बल्लेबाजों में शुमार कुमार संगकारा की विदाई के रूप में भी जानी जाएगी। इस जीत के बाद भारत का आत्मविश्वास सकारात्मक और मनोबल ऊंचा होना चाहिये क्योंकि शिखर से छठे स्थान पर आ जाना उसकी प्रतिष्ठा से मेल नहीं खाता।
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