Wednesday 2 September 2015

ओलम्पिक में छाया भिवानी का छोरा-Page 5


स्पेशल ओलम्पिक में शटलर सचिन ने जीते तीन पदक
एक सचिन ने क्रिकेट में भारत को बुलंदियों पर पहुंचाया तो दूसरे सचिन ने बैडमिंटन में देश का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिख दिया। जिस सचिन की हम बात कर रहे हैं वो कोई सामान्य बालक नहीं, बल्कि स्पेशल चाइल्ड है जो बैडमिंटन में चैम्पियन बन गया।
कौन है वो सचिन व क्या है उसके चैम्पियन बनने की कहानी। महज छह साल की उम्र में उस बच्चे की मां भगवान को प्यारी हो गई तो परिवार के सामने दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। बाप अपने बच्चों को संभाले या खुद को संभाले, सवाल कई थे। उससे भी ज्यादा यह कि नन्हें मासूम को भारी सदमा लगा। उसका इलाज भी करवाया गया मगर कोई लाभ न मिला। उसका दिमाग न पढ़ाई में लगता न घर के दूसरे कामों में।
पिता ने घर में रखे पुराने रैकेट से बच्चे का मन बहलाना शुरू किया तो कहानी ही बदल गई। बच्चा खेल में रुचि लेने लगा व आज इस मुकाम तक पहुंच गया कि वर्ल्ड चैम्पियनशिप में एक नहीं तीन पदक जीत दिखाये। ये कहानी है सचिन शर्मा की। 16 साल के सचिन का सफर मुश्किलों भरा तो रहा, मगर उपलब्धियों को इस कदर उसने अपना बनाया कि अब देश का नाम विश्व के मानचित्र पर चमका दिया।
सबसे बड़ा योगदान पिता का
भिवानी जिले के गांव जाटू लुहारी निवासी सतीश शर्मा के छोटे बेटे सचिन शर्मा को इस मुकाम तक पहुंचाने में सबसे बड़ा योगदान उसके पिता का है, जिसने बेटे के खेल के लिए अपनी पूरी जिंदगी दांव पर लगा दी। एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में पूना में काम करने वाले सतीश ने बीवी की मौत के बाद बड़े बेटे को सीए की कोचिंग के लिए दिल्ली में भेज रखा है तो दूसरा बेटा सचिन खेल में नाम कमा रहा है। खेल की तैयारियों के लिए सतीश ने खेती छोड़ दी व पूना में ट्रांसपोर्ट कंपनी ज्वाइन कर ली। महज 10 हजार रुपये में बेटे को सीए की पढ़ाई करवाये, दूसरे बेटे को खिलाड़ी बनाए या परिवार का पेट पाले, लेकिन सतीश ने हिम्मत नहीं छोड़ी व जैसे-तैसे बेटे को प्रैक्टिस करवाई।
ठान लिया था गोल्ड मेडल ही जीतना है
पिछले साल महाराष्ट्र में नेशनल स्पेशल ओलंपिक्स में चैम्पियन बने बेटे ने भी ठान लिया था कि वो विश्व में देश का परचम लहराएगा। इसी साल मार्च माह में रोहतक कैम्प के दौरान अपने गांव जाटू लुहारी आए सचिन शर्मा ने अपनी प्रतिबद्धता दोहराई थी कि उसका मकसद देश के लिए गोल्ड मेडल लाना था। सचिन को इस मुकाम तक पहुंचने में जहां आर्थिक परेशानियों से दो-चार होना पड़ा, वहीं शारीरिक दिक्कतों ने भी उसको खूब परेशान किया।
ट्रायल से एक रात पहले हुआ था हादसा
लास एंजिल्स में 25 जुलाई से 2 अगस्त तक आयोजित स्पेशल ओलंपिक में जाने से 2 माह पूर्व जब चेन्नई में ट्रायल होनी थी तो एक रात अचानक सचिन के पेट में नस फट गई। रातों रात लाखों रुपये खर्च कर इलाज करवाया गया व चिकित्सकों ने सलाह दी कि वह डेढ़-दो माह आराम करे, मगर जिस मिशन के लिए सचिन व उसके पिता ने सपना संजोया था वो टूटते देख सचिन ने अपने जिंदगी की परवाह न करते हुए ट्रायल में हिस्सा लिया क्योंकि अगर ट्रायल में भाग न लेता तो शायद अमेरिका न जा पाता।
पैसे की कमी के कारण पिता साथ नहीं जा पाये
सचिन अकेला अमेरिका गया क्योंकि उसके पिता के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह भी बेटे के साथ जा सकें। अमेरिका जाकर सचिन ने पूरे परिवार के सपनों को साकार कर डाला। उसने सिंगल्स मुकाबले में सोना, डबल्स में चांदी व मिक्स्ड डबल्स में कांस्य जीतकर देश का नाम रोशन किया। सचिन के गांव जाटू लुहारी स्थित आवास पर सभी खुश हैं आखिर खुशी हो भी क्यों न। सचिन ने विषम परिस्थितियों के बावजूद ऐसा काम कर दिखाया है जिसे शायद बड़े-बड़े सुविधाओं के बावजूद न कर पाएं।
परिजनों को गर्व, लेकिन मलाल भी
सचिन के ताऊ सुभाष शर्मा दादी फूलपति, सुरसती, ताई कुसुम, बहन व भाभी केला का कहना है कि उन्हें गर्व है कि सचिन ने उनका सपना साकार किया है, मगर मलाल ये है कि इतनी उपलब्धियों के बावजूद उसे कोई प्रोत्साहन नहीं मिला है। एक खास बात ये भी है कि सचिन को आहार विशेषज्ञों ने जो डाइट देने के लिए कहा था उस पर प्रतिदिन का खर्च 600 रुपये तक आता है, मगर पिता ने खर्च की परवाह न करते हुए उसे वही डाइट उपलब्ध करवाई व बेटा आज इस मुकाम तक पहुंच गया। मगर विडम्बना ये है कि सरकार की तरफ से कोई सहायता नहीं मिली है।
सचिन का रोल मॉडल सचिन
सचिन के पिता सतीश ने बताया कि उनका बेटा सचिन तेंदुलकर को अपना रोल मॉडल मानता है तथा सचिन से मिलने के बाद ही वह कोई जश्न मनाएगा।
सरकार से दरकार
बहरहाल बेटे की उपलब्धि पर सबको नाज है तो सरकार से सुविधाओं एवं सहायता की भी दरकार है। एक तरफ सरकार खेलों को प्रोत्साहन देने के लिए करोड़ों खर्च करने की बात करती है वहीं दूसरी ओर सुविधाओं के अभाव के बावजूद सचिन सरीखे खिलाड़ी प्रदेश एवं देश का नाम रोशन कर रहे हैं तो जब उनको सुविधाएं मिलें तो शायद हालात ही बदल जायें। देखना होगा सरकार इस खिलाड़ी की कितनी सुध ले पाती है।


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