Wednesday, 27 April 2016

सेहत बिगाड़ती क्रिकेट

इन दिनों भारतीय जनमानस आईपीएल-९ की गिरफ्त में है। वह आधी रात तक चौकों-छक्कों की धुन में थिरक रहा है। विजेता कोई भी हो इससे उसका इत्तफाक नहीं वह तो बस क्रिकेट के लिए जिए जा रहा है। क्रिकेट के आगे उसे न पढ़ाई और कामकाज की चिन्ता है, न ही सेहत की फिक्र। एक माह पहले की बात है। भारत में टी-२० का वर्ल्ड कप हुआ था। उम्मीद थी कि भारत जीतेगा। नहीं जीता। दो-चार दिनों के लिए खिलाड़ियों की आलोचना भी हुई उसके बाद फिर लोग क्रिकेट में मशगूल हो गये। इसे हम मुल्क की खूबी और खराबी दोनों ही कह सकते हैं। टीम अगर जीतती रहे तो खिलाड़ी हीरो लगते हैं वरना उन्हें विलेन की नजर देखा जाने लगता है।
भारत जैसे ही टी-२० विश्व कप हारा एकबारगी लगा कि लोगों का इस खेल से अब नशा काफूर हो जाएगा। लोगों में क्रिकेट का नशा उतरा भी लेकिन कुछ दिनों के लिए। टी-२० विश्व कप खत्म होने के एक सप्ताह बाद आईपीएल-९ का तड़का लग गया। जिस खिलाड़ी का बल्ला टी-२० विश्व में नहीं चला वह आईपीएल में आग उगलने लगा। एक-एक खिलाड़ी चाहे वह खेले या नहीं खेले, करोड़ों रुपये मिलते हैं उसे। सच कहें तो मुल्क में क्रिकेट एक नशा बन गया है। बच्चे, युवा और बुजुर्ग सभी इसके दीवाने हो गये हैं। टेलीविजन पर हर समय आपको कोई न कोई मैच मिल जायेगा। इसका सेहत पर क्या असर पड़ रहा है, यह बात अभी समझ में नहीं आ रही है। इसे समझना होगा। हम यह नहीं कहते कि क्रिकेट मत खेलिए, मत देखिए। लेकिन अपने भविष्य और सेहत को यदि बचाना है, तो इसके लिए एक सीमा तय करनी होगी। क्रिकेट में बाल-गोपालों की दीवानगी से हर घर में माता-पिता तो स्कूल में शिक्षक परेशान हैं।
आईपीएल चल रहा है। बच्चे नहीं मानते। देर रात तक क्रिकेट मैच देख रहे हैं। रात ११ या साढ़े ग्यारह बजे तक अगर कोई बच्चा टेलीविजन पर मैच देखे और दूसरे दिन उसे सुबह पांच-साढ़े पांच बजे स्कूल जाने के लिए उठना पड़े तो उसकी नींद भला कैसे पूरी होगी। नींद पूरी न होने से बच्चे झल्लाते हैं। क्रिकेट ने उन्हें चिड़चिड़ा बना दिया है। वे किसी तरह स्कूल चले भी गये, तो वहां उनकी आंखें नहीं खुलतीं। वह शिक्षकों की डाट-फटकार से दो-चार हो रहा है लेकिन क्रिकेट उसके भेजे से नहीं निकल पा रही है। यह अच्छी बात नहीं है। पालकों को अपने बच्चे की जिद पर काबू पाना होगा वरना वह बीमारी की गिरफ्त में आ जाएगा।
सिर्फ मौजूदा साल की बात करें तो अभी चार महीने ही खत्म हुए हैं, लेकिन इन चार माह में आपका नौनिहाल कितने मैच देख चुका है, शायद आपने इसकी गणना नहीं की होगी। आपका बच्चा आस्ट्रेलिया के खिलाफ पांच वनडे मैच देख चुका तो इसी साल भारत टी-२० के १६ मैच खेल चुका है। भारत में ही हाल में टी-२० का वर्ल्ड कप हुआ था जिसमें कुल ३५ मैच खेले गये थे। ये सभी मैच भी आपके बच्चे ने देखे होंगे। एक-एक टी-२० मैच में न्यूनतम तीन घंटे भी लगते हैं तो अंदाजा लगाइए कि आपका नौनिहाल कितने घंटे मैच देख चुका है। उसकी आंख पर कितना जोर पड़ चुका है। उसकी गर्दन कितनी देर तक सीधी रही है। मैच रोचक हुआ तो कोई हिलना नहीं चाहता। अभी आईपीएल चल रहा है। ६० मैच खेले जायेंगे यानी अगर आपका बच्चा आईपीएल के सभी मैच देखता है तो वह १८० घंटे तक मैच देखेगा। मेडिकल साइंस कहता है कि देर तक बैठकर लगातार टेलीविजन देखने से आंख पर असर पड़ता है, बैकबोन पर असर पड़ता है। आपके नौनिहालों पर भी पड़ रहा है। पढ़ाई के साथ-साथ उसकी सेहत चौपट हो रही है। डॉक्टरों का कहना है कि जो बीमारी पहले ४० साल के बाद होती थी, अब वह १०-१५ साल के बच्चों को होने लगी है। इसका बड़ा कारण उसकी लाइफ स्टाइल है। ऐसी बात नहीं है कि टी-२० विश्व खत्म, आईपीएल खत्म, तो आने वाले दिनों में कोई मैच नहीं होगा। यह तो धंधा है, बिजनेस है। एक टूर्नामेंट खत्म होते ही दूसरे की तैयारी। खिलाड़ियों को हार-जीत से कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्हें पैसा मिलता है। लेकिन, जब अपना मुल्क हारता है, तो बच्चे निराश हो जाते हैं। एक-दो दिन तक उनके मानस में इसका असर दिखता है।
बेहतर होगा कि आप अपने बच्चों पर नियंत्रण रखें उन्हें अति क्रिकेट से दूर रहने को समझायें। हमारे और आपके कहने से क्रिकेट मैचों की संख्या कम होने वाली नहीं है, लेकिन ज्यादा टेलीविजन देखने पर नियंत्रण करना तो अपने हाथ में है ही। जीवन कीमती है। बच्चों को इस बात को समझाना होगा। हर मैच न देखें, कुछ मैच देखें, कुछ देर तक देखें। उतना ही देखें, जितना उनका शरीर आसानी से इजाजत दे।  मैच के आदी न बनें। जितनी जल्दी बच्चे ही नहीं अभिभावक भी यह समझ जायें, उतना अच्छा, वरना बाद में पछताने से कुछ नहीं होगा।

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