Wednesday, 2 September 2015

छत्तीसगढ़ में संतुलित खेल नीति की दरकार


हॉकी खिलाड़ी रेणुका यादव ने बढ़ाया प्रदेश का मान
ग्वालियर। रियो ओलम्पिक में भारतीय महिला हॉकी टीम ने अपना टिकट पक्का कर लिया है। यह उपलब्धि कई मायनों में महत्वपूर्ण है। पहला यह कि 36 साल के लम्बे अंतराल के बाद भारतीय महिला हॉकी टीम इस मुकाम तक पहुंचने में सफल हो सकी। दूसरे इस उपलब्धि को हासिल करने में छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव की रेणुका यादव ने भी अपनी अहम भूमिका निभाई।
रेणुका ने अपने खेल से टीम को एक मजबूत डिफेंस दिया। डिफेंस के कारण ही बेल्जियम के एंटवर्प में हुए हॉकी वर्ल्ड लीग सेमीफाइनल में भारतीय टीम पांचवें स्थान पर रही। रेणुका की इस सफलता के बहाने छत्तीसगढ़ में खेलों की ताजा स्थिति पर चर्चा जरूरी है। दरअसल, खिलाड़ी प्रतिभा और प्रशिक्षण का संयोग होता है। खिलाड़िय़ों की प्रतिभा तभी तराशी जा सकती है जब उन्हें उम्दा सुविधाएं और प्रशिक्षक मिलें और यह काम प्राथमिक शिक्षा के साथ-साथ शुरू हो जाता है। लेकिन प्रदेश के स्कूलों में खेल शिक्षक हैं लेकिन खेल की अन्य सुविधाओं का अभाव है। अधिकांश स्कूल-कॉलेजों में खेल के मैदान और खेल के जरूरी सााजो-सामान नहीं हैं। जाहिर है बिना मूलभूत सुविधाओं के न तो खिलाड़िय़ों की फौज तैयार की जा सकती है और न ही खेल का विकास हो सकता है। खेलों को लेकर प्रदेश दो भागों में विभाजित दिखता है। एक नगर और दूसरा गांव। नगर में खेल सुविधाओं को बढ़ाने में प्रदेश सरकार ध्यान दे रही है। कई स्टेडियम बनाए गए हैं । हाल में एक हॉकी अकादमी की भी शुरुआत की गई है। लेकिन इससे ठीक उलट गांवों की तस्वीर है। यहां खेल के नाम पर कुछ प्रतियोगिताएं भर होती हैं। बच्चों को खेल के लिए प्रोत्साहित करने के वातावरण का यहां अभाव दिखता है। ऐसी परिस्थितियों में खेल प्रतिभाओं को इस तरह तैयार नहीं किया जा सकता जो अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकें। ऐसा नहीं है कि प्रदेश में प्रतिभाओं की कमी है। जरूरत उन्हें तराशने की है। तीरंदाजी, हॉकी, बास्केटबॉल, फुटबॉल जैसे कम खर्चीले खेलों को यदि प्रोत्साहित किया जाए तो प्रदेश देश और दुनिया में अपनी अलग पहचान बना सकता है। अच्छे और प्रतिभावान खिलाड़िय़ों के लिए सरकार को अपनी खेल नीति को व्यापक और संतुलित बनाना होगा तभी रेणुका जैसी खिलाड़िय़ों का जन्म हो सकेगा।

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