जैतपुर की जमीन से निकला सितारा
सुमित नागल को टेनिस के क्षेत्र में भारत का भविष्य कहा जाए तो शायद गलत नहीं होगा, क्योंकि कड़ी
मेहनत और लगन के बूते पर उसने जो मुकाम हासिल किया है, वह वाकई प्रेरणादायी है। सुमित की सफलता की बात हो तो यह ऐसे ही उसके हिस्से में नहीं आ गई। बेशक यह एक सच्ची कहानी है, लेकिन पटकथा पूरी फिल्मी जान पड़ती है। टेनिस से जुड़े उसके करिअर में कड़ी दर कड़ी जुड़ते हुए किरदारों ने उसका ऐसा साथ दिया कि लंदन की धरती पर विम्बलडन ग्रैंड स्लैम में सुमित ने भारत का नाम रोशन कर दिखाया।
फ्लैश बैक में जायें तो सुमित के पिता सुरेश कुमार नागल आर्मी से रिटायर होने के बाद दिल्ली में बतौर शिक्षक तैनात होकर 2003 में गांव छोड़कर चले गए थे। उनके मुताबिक प्रारंभ से ही उन्हें टेनिस देखने का शौक था। मूल रूप से ग्रामीण पृष्ठभूमि रखने वाले सुरेश कुमार खुद तो टेनिस नहीं खेल पाए, लेकिन बेटा सुमित जोकि बचपन से ही काफी एक्टिव था, को उन्होंने टेनिस का प्रशिक्षण दिलवाना प्रारंभ कर दिया। पिता की ओर से दिखाए गए विश्वास एवं स्नेह का परिणाम यह रहा कि सुमित ने इस मौके को हाथों-हाथ लिया। बचपन से लेकर अब तक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वह दर्जनों मेडल एवं ट्राफी जीत चुका है, लेकिन ग्रैंड स्लैम में उसकी दमदार मौजूदगी ने उसके करिअर में चार चांद लगाने का काम किया है। आज भी उसके पैतृक गांव में उसकी जीती ट्राफियां सहेज कर रखी हुई हैं।
नामी-गिरामी मुकाबलों में किया बेहतर प्रदर्शन
जिला मुख्यालय से करीब 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जैतपुर गांव में जन्मा 17 वर्षीय सुमित नागल अपने करिअर में कई नामी मुकाबलों में बेहतर प्रदर्शन कर चुका है। वर्ष 2015 के जनवरी माह में आस्ट्रेलिया में हुई प्रतियोगिता के पहले ही राउंड के लिए हुए बड़े मुकाबले में सुमित ने विश्व के सातवें नम्बर के माइकल ममोह को 6-2, 4-6, 6-4 से शिकस्त देते हुए प्रतियोगिता में बड़ा उलटफेर किया था। जबकि दूसरे राउंड में जापान के योसुके वातानुकी को 6-2, 6-3 के सीधे सेटों में मात देते हुए तीसरे राउंड में स्थान सुनिश्चित किया था। बेहतर प्रदर्शन के बलबूते पर ही सुमित नागल ने डबल्स विम्बलडन जीतकर झज्जर जिले का ही नहीं बल्कि पूरे देश का गौरव बढ़ाया है।
महेश भूपति ने दिया सहारा तो चमका सुमित
शिक्षक सुरेश नागल और माता कृष्णा देवी के पुत्र के भाग्य में कुछ बेहतर ही लिखा था। इसलिए ही दिल्ली में ही हुए एक टेस्ट में देश के प्रख्यात खिलाड़ी महेश भूपति की निगाह उस पर पड़ गई। बस उस दिन के बाद युवा खिलाड़ी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा है। वह लगातार पिछले छह साल से सीधे रूप से भूपति की देखरेख में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहा है। खेल को लेकर होने वाला पूरा खर्च भी व्यक्तिगत तौर पर महेश भूपति उठा रहे हैं। आज उनका परिवार भी यह महसूस करता है कि महेश भूपति एवं सुमित नागल का जुड़ाव अवश्य ही भगवान का कोई वरदान उनके लिए साबित हुआ है, जो आज तक लाखों रुपये लगाकर वह उन्हें एक हीरे के रूप में तराशने का काम कर रहे हैं। महंगे खेल के रूप में आमजन के बीच अपनी पहचान रखने वाले सुमित नागल ने टेनिस का प्रशिक्षण महेश भूपति की मार्फत जर्मनी एवं यूरोप में हासिल किया है।
परिजन मोबाइल में रिकार्ड करते हैं मैच
सुमित के चचेरे भाई नरेंद्र नागल का कहना है कि भाई टेनिस का खेल तो इस्सा है कि हारे खूंड भी बिक जाते तो खर्चा पूरा नहीं पाट सकता था, लेकिन किस्मत ने सुमित और परिवार का ऐसा साथ दिया है कि आज माहौल बदला हुआ है। सुमित की भाभी मंजू देवी व ताई सावित्री देवी का कहना है कि वह उसके मैच को वह अपने मोबाइल में रिकॉर्ड कर लेते हैं और बाद में उसे देखते हैं। या जो भी लोग उस दौरान मैच नहीं देख पाए उन्हें बाद में दिखाते हैं। ताऊ सुंदर लाल का कहना है कि बचपन से ही वह काफी मेहनती है था, इस बात का सभी को पता है। चूंकि सुरेश की ओर से परिवार सहित दिल्ली चले जाने का निर्णय उसके करिअर के लिए काफी बढ़िया रहा, यह आज महसूस होता है। उनके मुताबिक दिल्ली राजधानी है और इस खेल से जुड़ी सुविधाएं वहां मुहैया हो सकती हैं। अगर सुमित जैतपुर में ही रह जाता तो शायद माहौल इतना सुखद नहीं रहता।
इच्छाशक्ति ने साधारण युवा को बनाया चैम्पियन
किसी भी खिलाड़ी की योग्यता, कड़ी चुनौतियों से जूझने की उसकी क्षमता के आधार पर आंकी जाती है। कोई भी व्यक्ति कुशल, तेज और दृढ़-प्रतिज्ञ हो सकता है, लेकिन ऊंचे स्तर पर सफलता तब तक मृग मरीचिका ही साबित होती है जब तक उसमें जीत के प्रति जज्बा न हो। ऐसे ही अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और समर्पण से कभी-कभी एक साधारण युवा भी चैम्पियन बन जाता है। भारतीय टेनिस के उभरते हुये खिलाड़ी सुमित नागल भी इसी श्रेणी में आते हैं। अपने अदम्य साहस, दृढ़ इच्छाशक्ति और जुझारूपन से उसने टेनिस के क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन किया है।
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