Wednesday 29 April 2015

मुसीबतों की मारी, देश की सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी

आगरा। पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे होगे खराब, जैसी कहावतें आज भी बच्चों की खेल प्रतिभा के रास्ते का रोड़ा बनी हुई हैं। लेकिन खेलों में ही यदि कोई अपनी पूरी क्षमता झोंक दे, तो वह ऐसी कहावतों पर विश्वास करने वालों की आंखों का तारा बन जाता है। उड़ीसा के जाजपुर जिले के गोपालपुर गांव की उदीयमान एथलीट दुती चंद भी उन्हीं में से एक है। लाख मुसीबतों के बाद भी इस ट्रैक क्वीन ने अपने प्रदर्शन का लोहा देश-दुनिया में मनवाया है। दुती का अगला लक्ष्य चीन के वुहान में तीन से सात जून तक होने वाली एशियन एथलेटिक्स चैम्पियनशिप है।
लगभग एक साल से जेण्डर परिवर्तन की तोहमत झेल रही चक्रधर-अखूजी चंद की बेटी दुती चंद ने खेल पथ से विशेष बातचीत में बताया कि किसी खिलाड़ी का गरीब के घर जन्म लेना कितना मुश्किल होता है, यह मुझसे बेहतर कोई नहीं जानता। मैं पिछले एक साल से खुद को लड़की साबित करने की जो जंग लड़ रही हूं, उसे शब्दों में बयां नहीं कर सकती। मैं शुक्रगुजार हूं भारत सरकार और भारतीय खेल प्राधिकरण का, जिनके प्रयासों और मदद से मैं स्विट्जरलैण्ड के लुसाने में अपना मेडिकल करा सकी। 19 साल की देश की सर्वश्रेष्ठ फर्राटा धावक दुती को अफसोस है कि वह पुरुष हारमोंस की तोहमत लगने के चलते पिछले साल राष्ट्रमण्डल और एशियाई खेलों में शिरकत नहीं कर सकी। राष्ट्रीय स्तर पर अब तक पदकों का खजाना जमा कर चुकी दुती का कहना है कि वह एथलेटिक्स में वह मुकाम हासिल करना चाहती है, जोकि आज तक कोई भारतीय एथलीट नहीं कर सका है। दुती का कहना है कि चीन में होने वाली एशियन एथलेटिक्स चैम्पियनशिप मेरे लिए खास है। मैं हर हाल में देश के लिए पदक जीतना चाहती हूं। लगातार दो राष्ट्रीय खेलों में 100 मीटर फर्राटा दौड़ का स्वर्ण पदक जीत चुकी उड़ीसा की इस जांबाज एथलीट को भरोसा है कि अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक फेडरेशन से उसे क्लीन चिट जरूर मिलेगी।
पुलेला गोपीचंद मेरे लिए भगवान समान
पुलेला गोपीचंद बैडमिंटन एकेडमी हैदराबाद में 18 अप्रैल से अपना खेल निखार रही दुती चंद का कहना है कि पुलेला गोपीचंद नेक इंसान ही नहीं मेरे लिए तो भगवान समान हैं। जब एक समय सब ने मुझसे मुंह फेर लिया था, मुसीबत के उन क्षणों में पुलेलाजी ने न केवल मेरा हौसला बढ़ाया बल्कि अपनी एकेडमी में मुझे शरण दी। उन्होंने मुझे खाने-रहने सहित हर किस्म की मदद नहीं की होती तो मैं शायद ट्रैक पर दोबारा वापस नहीं लौट पाती। राष्ट्रीय खेलों से पहले भी दुती पुलेला गोपीचंद बैडमिंटन एकेडमी में प्रशिक्षण ले चुकी है। फिलवक्त वह हैदराबाद में प्रशिक्षक एन. रमेश से प्रशिक्षण ले रही है। दुती चंद हैदराबाद में 30 अगस्त तक प्रशिक्षण लेगी।
अब तक जीते दो सौ से अधिक पदक
केरल में हुए राष्ट्रीय खेलों में 100 मीटर दौड़ का स्वर्ण पदक जीतने वाली दुती पांच साल की उम्र से ट्रैक पर जलवा दिखा रही है। गोपालपुर (उड़ीसा) की जांबाज एथलीट दुती चंद नेशनल स्तर पर 100 और 200 मीटर दौड़ के 200 से अधिक तमगे हासिल करने के साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दो स्वर्ण और एक कांस्य पदक जीत चुकी है।
शांति सुंदरराजन और पिंकी प्रमाणिक भी झेल चुकी हैं जेण्डर परिवर्तन का दंश
भारत में जहां तक जेण्डर परिवर्तन की बात है अकेले दुती चंद ही नहीं इसका दंश शांति सुंदरराजन और पिंकी प्रमाणिक भी झेल चुकी हैं। काफी संघर्ष के बाद यह दोनों खिलाड़ी निर्दोष तो साबित हुर्इं पर उनका खेल जीवन तबाह हो गया। दुती को जुलाई 2014 में ग्लासगो कॉमनवेल्थ खेलों के कुछ दिन पहले ही ट्रैक से अयोग्य करार दिया गया था। तब उसके शरीर में टेस्टोस्टेरोन की मात्रा सामान्य से ज्यादा पाई गई थी। टेस्टोस्टेरोन वह हार्मोन है जो पुरुषोचित गुणों को नियंत्रित करता है। 

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