खेल की दुनिया में ग्लैमर का तड़का लगाने के लिए सानिया मिर्जा के नाम के साथ अमूमन सनसनी शब्द जोड़ा जाता रहा है। उनके खेल के अलावा उनके टी शर्ट, नाक की बाली, रैंप पर फैशन परेड, पाकिस्तानी खिलाड़ी शोएब मलिक से विवाह, टीवी के रियलिटी शो में प्रतिभागी बनना, हर बात पर सनसनी खोजी गई। लेकिन अब उन्होंने जो कमाल कर दिखाया है, उसके लिए सनसनी शब्द कमजोर लगता है। विश्व की नंबर एक खिलाड़ी बनने की अद्भुत, असाधारण, अभूतपूर्व उपलब्धि उन्होंने हासिल की है और इस ऊंचाई तक पहुंचने वाली पहली महिला खिलाड़ी बन गई हैं। सानिया मिर्जा की यह कामयाबी अनूठी इसलिए हो जाती है, क्योंकि यह सब उन्होंने भारतीय लड़की होते हुए हासिल किया। भारत में लड़की होते हुए खेल को करियर बनाना और उसमें एक दशक से अधिक समय तक टिके रहना, कितना कठिन है, इसका वर्णन सानिया मिर्जा, साइना नेहवाल, मैरीकाम, सबा अंजुम, मिताली राज, दीपिका कुमारी जैसी लड़कियां ही कर सकती हैं। इनमें से किसी को आर्थिक तंगी से होकर अपनी राह बनानी पड़ी, तो किसी को सामाजिक वर्जनाओं का सामना करना पड़ा, कहींलिंगभेद की दीवार खड़ी हुई तो कहींधर्म के कट्टर फरमान। हर किसी की अपनी संघर्ष गाथा है, इसलिए जब वे राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई भी कामयाबी हासिल करती हैं तो वह चांद को छूने जैसी ही होती है। सानिया मिर्जा ने तो अब चांद के साथ-साथ कई सितारों को भी अपने दामन में समेट लिया है। 2003 में जूनियर विम्बलडन चैंपियन बनने के बाद उनका टेनिस करियर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आगे बढ़ा। किंतु इस दौरान कई उतार-चढ़ाव आए। सिंगल्स में उनकी विश्व रैंकिंग 27 तक पहुंची। लेकिन कलाई की एक चोट के कारण सिंगल्स की जगह डबल्स पर उन्होंने अधिक ध्यान देना शुरू किया। इसमें एक के बाद एक जीत का सिलसिला शुरू हुआ। 2009 में आस्ट्रेलियन ओपन, 2012 में फ्रेंच ओपन, 2014 में यू एस ओपन, राष्ट्रमंडल खेल, एशियाड सभी में उन्होंने उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की। स्विट्जरलैंड की मार्टिना हिंगिस के साथ जोड़ी बनाने के बाद उनके करियर को नई ऊंचाइयां मिली। बीते रविवार मार्टिना हिंगिस के साथ डब्ल्यूटीए फैमिली सर्किल कप का फाइनल जीतने के बाद अब सानिया मिर्जा विश्व की नंबर एक टेनिस खिलाड़ी बन गईं, और उन दोनों की जोड़ी भी नंबर वन जोड़ी बन गई है। सानिया से पहले भारत के सिर्फ लिएंडर पेस और महेश भूपति डबल्स रैंकिंग में शीर्ष पर पहुंचे हैं। अपने खेल के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचने के बाद सानिया ने कहा कि जिस खेल को मैं इतना प्यार करती हूं उसमें नंबर-1 बनना सचमुच मेरे लिए असाधारण बात है। उम्मीद है कि इससे सही संदेश जाएगा। लोगों को समझने की जरुरत है कि लड़कियां जो करना चाहें करने दिया जाए। अगर दूसरे उन पर भरोसा नहीं करें तो माता-पिता को उन पर यकीन करना चाहिए। साथ देना चाहिए।
भारत में महिलाएं खेलों में करियर तलाशने लगी हैं। लेकिन ज्यादातर अब भी ये ही सोचती हैं कि कई चीजें लड़कियों के लिए नहीं हैं। सभ्यता और संस्कृति इसकी अनुमति नहीं देता। मेरी कामयाबी ये ही कहती है कि लड़की जो करना चाहे वो करने दीजिए। मुझे उम्मीद है कि और भी लड़कियां आगे आएंगी। सानिया मिर्जा के इस कथन से असहमत नहींहुआ जा सकता। अभी कुछ दिनों पहले ही बैडमिंटन में साइना नेहवाल ने विश्व का नंबर एक खिलाड़ी होने का ताज पहना था। सानिया और साइना जैसी लड़कियां अन्य भारतीय लड़कियों के लिए प्रेरणा हैं और करारा जवाब हंै उन रूढ़िवादी लोगों के लिए जो लड़की पैदा करने पर मां की कोख पर ही सवाल उठाते हैं।
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