प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अब तक के अपने कार्यकाल में बेशक आवाम को महंगाई से निजात न दिला पाए हों पर उन्होंने अपराध, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, लापरवाही और उपेक्षा जैसे शब्दों को प्रशासनिक तंत्र से बाहर निकालने के प्रभावी प्रयास जरूर किए हैं। शिक्षक दिवस पर मोदी के उद्बोधन ने देश के नौनिहालों में जहां एक नई स्फूर्ति पैदा की थी वहीं अब उन्होंने स्वच्छ भारत अभियान का बिगुल फूंककर अपने सुशासन की शानदार बानगी पेश की है। यह काम मुश्किल जरूर है पर असम्भव कदाचित नहीं। स्वच्छ भारत अभियान का श्रीगणेश दो अक्टूबर गांधी जयंती से होना है लेकिन मोदी मंत्रिमण्डल के सहयोगियों ने इस नेक काम में अभी से अपनी दिलचस्पी दिखाकर सफलता के संकेत जरूर दिए हैं। इस अभियान के एक-दो पखवाड़े चलने मात्र से मुल्क की मटमैली तस्वीर साफ नहीं होने वाली बेहतर होगा मोदी सरकार इस अभियान को जन-जन से जोड़ने की पहल करे। जन जागरूकता से ही स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत का सपना साकार हो सकता है।
दो अक्टूबर को गांधी जयंती पर छुट्टी मनाने की परिपाटी अब समाप्त होने जा रही है। मोदी सरकार ने स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत के संकल्प को मूर्तरूप देने का मन बना लिया है। गांधी जयंती पर पहली बार ऐसा होगा। इस दिन न केवल सरकारी अमला बल्कि गांवों के पंच-सरपंच और शहरी पदाधिकारी भी साफ-सफाई जैसे महत्वपूर्ण अभियान में सक्रिय भागीदारी निभाते दिखेंगे। स्वच्छ भारत अभियान में हर राज्य अपनी-अपनी आहुति देने को तैयार है। इस अभियान की सार्थकता के लिए हर सूबे में विशेष तैयारियां की जा रही हंै। छत्तीसगढ़ में तो इस अभियान के उद्देश्यों से बच्चों को रूबरू कराने के लिए स्कूल परिसरों में ग्रामसभाएं आयोजित करने का भी निर्णय लिया गया है। ग्रामसभा शुरू होने से पहले स्कूल परिसर की स्वच्छता पर पंचायत प्रतिनिधियों का ध्यान जरूर जाएगा और अभियान की शुरुआत यहीं से हो तो यह और भी अच्छी
बात होगी।
यंू तो आजादी के बाद से ही स्वच्छता के महत्व के प्रति जन जागरूकता के लिए कई कार्यक्रम चलाए गए हैं और कमोबेश आम जनजीवन में उसका असर भी दिखाई दिया है, फिर भी इसे स्वच्छ जीवनशैली का हिस्सा बनाने के लिए अभी भी काफी कुछ किया जाना बाकी है। विशेषकर गांवों में ऐसी अधोसंरचनाओं का विकास, जिससे वातावरण को स्वच्छ रखने में मदद मिले। गांवों को निर्मल बनाने के लिए चलाए गए भारत निर्मल अभियान की हकीकत से हर कोई परिचित है। आज भी गांवों की एक बड़ी आबादी खुले में शौच के लिए जाती है। इस आबादी के लिए स्वच्छ शौचालयों के इस्तेमाल की स्थिति तैयार हो जाए और लोगों की आदत में यह शुमार हो जाए तभी स्वच्छ भारत अभियान को सफल माना जाएगा। घर-घर शौचालयों का निर्माण करा देने और कागजों में उस गांव को निर्मल घोषित कर देने से कोई गांव निर्मल नहीं होगा।
संभवत: पहली बार मोदी सरकार एक अच्छा और नेक प्रयास कर रही है। खुशी की बात यह है कि यह अभियान गांधी जयंती से परवान चढ़ेगा, जोकि बच्चों के बीच से ही शुरू किया जा रहा है। महात्मा गांधी जी ने कहा था कि आजादी से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है स्वच्छता। स्वच्छ भारत अभियान को और उद्देश्यपरक बनाने के लिए कुछ ऐसे कार्यक्रम जोड़े जा सकते हैं, जिनसे अधिक से अधिक लोगों तक इस अभियान का संदेश पहुंचाया जा सके। जिस तरह छत्तीसगढ़ सरकार ने घर की महिलाओं के नाम राशन कार्ड जारी कर महिला सशक्तीकरण की दिशा में दूरदर्शी पहल की है उसी तरह स्वच्छ भारत अभियान से भी परिवार की महिलाओं को जोड़ने की कोशिश मील का पत्थर साबित हो सकती है। देखा जाए तो साफ-सफाई का महत्वपूर्ण दायित्व परिवार में महिलाएं ही उठाती आई हंै। घर की स्वच्छता का पहला पाठ भी बच्चे अपनी मां से ही सीखते हैं। ऐेसे में जब हम बच्चों को इस अभियान का हिस्सा मान रहे हैं तो महिलाओं को भला कैसे अलग रखा जा सकता है। देखा गया है कि ग्रामवासियों में कई बार कोरम पूरा होने लायक भी उपस्थिति नहीं होती। महिलाओं की उपस्थिति तो और भी कम होती है। महिला मण्डल जैसी संस्थाएं भी गांवों में न के बराबर हैं। सरकार को स्वच्छ भारत के सपने को यदि वाकई साकार करना है तो उसे महिलाओं को संगठित कर उन्हें जागरूक किया जाए। दरअसल, स्कूल परिसरों में गांधी जयंती पर होने वाले कार्यक्रमों की रूपरेखा कुछ इस तरह बनाई जाए, जिसमें महिलाओं की भी अच्छी सहभागिता हो। महिलाओं को भी अपनी बात रखने के लिए प्रेरित किया जाए। कोशिश हो कि बच्चे भी कार्यक्रमों के माध्यम से स्वच्छता की न केवल अलख जगाएं बल्कि अपने विचार भी रखें। बाल्यावस्था में यदि बालक के अन्दर श्रमदान रूपी संस्कार डाल दें तो बालक बड़ा होकर नि:स्वार्थ समाज सेवा करने से पीछे नहीं हटेगा। विडम्बना यह कि जब भी स्कूलों के अन्दर छात्र में श्रमदान करने के गुण भरने के प्रयास होते हैं, अभिभावक हो-हल्ला मचाना शुरू कर देते हैं। दरअसल, छात्रों से पढ़ाई के अतिरिक्त श्रमदान न लेकर हम अपने बच्चों को अच्छे संस्कारों से दूर करने का ही गुनाह करते हैं। शास्त्रों में भी कहा गया है कि व्यक्ति को समाज व राष्ट्रहित में श्रमदान करना ही चाहिए। स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत का सपना यदि हमें वाकई साकार करना है तो देश के हर आदमी को स्वयं का सफाईकर्मी होना चाहिए। इस अभियान के प्रति सभी में दिलचस्पी है। मोदी के इस प्रयास को हर दल का समर्थन भी मिल रहा है, पर यह अभियान औपचारिकता की भेंट न चढ़े इसके लिए सतत मानीटरिंग भी होनी चाहिए।
दो अक्टूबर को गांधी जयंती पर छुट्टी मनाने की परिपाटी अब समाप्त होने जा रही है। मोदी सरकार ने स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत के संकल्प को मूर्तरूप देने का मन बना लिया है। गांधी जयंती पर पहली बार ऐसा होगा। इस दिन न केवल सरकारी अमला बल्कि गांवों के पंच-सरपंच और शहरी पदाधिकारी भी साफ-सफाई जैसे महत्वपूर्ण अभियान में सक्रिय भागीदारी निभाते दिखेंगे। स्वच्छ भारत अभियान में हर राज्य अपनी-अपनी आहुति देने को तैयार है। इस अभियान की सार्थकता के लिए हर सूबे में विशेष तैयारियां की जा रही हंै। छत्तीसगढ़ में तो इस अभियान के उद्देश्यों से बच्चों को रूबरू कराने के लिए स्कूल परिसरों में ग्रामसभाएं आयोजित करने का भी निर्णय लिया गया है। ग्रामसभा शुरू होने से पहले स्कूल परिसर की स्वच्छता पर पंचायत प्रतिनिधियों का ध्यान जरूर जाएगा और अभियान की शुरुआत यहीं से हो तो यह और भी अच्छी
बात होगी।
यंू तो आजादी के बाद से ही स्वच्छता के महत्व के प्रति जन जागरूकता के लिए कई कार्यक्रम चलाए गए हैं और कमोबेश आम जनजीवन में उसका असर भी दिखाई दिया है, फिर भी इसे स्वच्छ जीवनशैली का हिस्सा बनाने के लिए अभी भी काफी कुछ किया जाना बाकी है। विशेषकर गांवों में ऐसी अधोसंरचनाओं का विकास, जिससे वातावरण को स्वच्छ रखने में मदद मिले। गांवों को निर्मल बनाने के लिए चलाए गए भारत निर्मल अभियान की हकीकत से हर कोई परिचित है। आज भी गांवों की एक बड़ी आबादी खुले में शौच के लिए जाती है। इस आबादी के लिए स्वच्छ शौचालयों के इस्तेमाल की स्थिति तैयार हो जाए और लोगों की आदत में यह शुमार हो जाए तभी स्वच्छ भारत अभियान को सफल माना जाएगा। घर-घर शौचालयों का निर्माण करा देने और कागजों में उस गांव को निर्मल घोषित कर देने से कोई गांव निर्मल नहीं होगा।
संभवत: पहली बार मोदी सरकार एक अच्छा और नेक प्रयास कर रही है। खुशी की बात यह है कि यह अभियान गांधी जयंती से परवान चढ़ेगा, जोकि बच्चों के बीच से ही शुरू किया जा रहा है। महात्मा गांधी जी ने कहा था कि आजादी से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है स्वच्छता। स्वच्छ भारत अभियान को और उद्देश्यपरक बनाने के लिए कुछ ऐसे कार्यक्रम जोड़े जा सकते हैं, जिनसे अधिक से अधिक लोगों तक इस अभियान का संदेश पहुंचाया जा सके। जिस तरह छत्तीसगढ़ सरकार ने घर की महिलाओं के नाम राशन कार्ड जारी कर महिला सशक्तीकरण की दिशा में दूरदर्शी पहल की है उसी तरह स्वच्छ भारत अभियान से भी परिवार की महिलाओं को जोड़ने की कोशिश मील का पत्थर साबित हो सकती है। देखा जाए तो साफ-सफाई का महत्वपूर्ण दायित्व परिवार में महिलाएं ही उठाती आई हंै। घर की स्वच्छता का पहला पाठ भी बच्चे अपनी मां से ही सीखते हैं। ऐेसे में जब हम बच्चों को इस अभियान का हिस्सा मान रहे हैं तो महिलाओं को भला कैसे अलग रखा जा सकता है। देखा गया है कि ग्रामवासियों में कई बार कोरम पूरा होने लायक भी उपस्थिति नहीं होती। महिलाओं की उपस्थिति तो और भी कम होती है। महिला मण्डल जैसी संस्थाएं भी गांवों में न के बराबर हैं। सरकार को स्वच्छ भारत के सपने को यदि वाकई साकार करना है तो उसे महिलाओं को संगठित कर उन्हें जागरूक किया जाए। दरअसल, स्कूल परिसरों में गांधी जयंती पर होने वाले कार्यक्रमों की रूपरेखा कुछ इस तरह बनाई जाए, जिसमें महिलाओं की भी अच्छी सहभागिता हो। महिलाओं को भी अपनी बात रखने के लिए प्रेरित किया जाए। कोशिश हो कि बच्चे भी कार्यक्रमों के माध्यम से स्वच्छता की न केवल अलख जगाएं बल्कि अपने विचार भी रखें। बाल्यावस्था में यदि बालक के अन्दर श्रमदान रूपी संस्कार डाल दें तो बालक बड़ा होकर नि:स्वार्थ समाज सेवा करने से पीछे नहीं हटेगा। विडम्बना यह कि जब भी स्कूलों के अन्दर छात्र में श्रमदान करने के गुण भरने के प्रयास होते हैं, अभिभावक हो-हल्ला मचाना शुरू कर देते हैं। दरअसल, छात्रों से पढ़ाई के अतिरिक्त श्रमदान न लेकर हम अपने बच्चों को अच्छे संस्कारों से दूर करने का ही गुनाह करते हैं। शास्त्रों में भी कहा गया है कि व्यक्ति को समाज व राष्ट्रहित में श्रमदान करना ही चाहिए। स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत का सपना यदि हमें वाकई साकार करना है तो देश के हर आदमी को स्वयं का सफाईकर्मी होना चाहिए। इस अभियान के प्रति सभी में दिलचस्पी है। मोदी के इस प्रयास को हर दल का समर्थन भी मिल रहा है, पर यह अभियान औपचारिकता की भेंट न चढ़े इसके लिए सतत मानीटरिंग भी होनी चाहिए।
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