63 साल बाद भी नहीं टूटा स्वर्ण पदकों का रिकॉर्ड
भारत युवाओं का देश है। प्रतिभा से सराबोर हिन्दुस्तान ने आजादी के 67 वर्षों में कई नए आयाम और प्रतिमान स्थापित किए हैं। दुनिया हमारे युवाओं की काबिलियत की मुक्तकंठ से सराहना कर रही है पर खेलों में हमारा लचर प्रदर्शन और आंकड़े यही साबित करते हैं कि इस दिशा में किए गए सारे प्रयास अकारथ हैं। आजादी की सांस लेने के बाद दिल्ली में चार से 11 मार्च,1951 को हुए पहले एशियाई खेलों में हमारे जांबाज खिलाड़ियों ने बिना विदेशी प्रशिक्षक जब 15 स्वर्ण, 16 रजत, 20 कांसे के तमगों के साथ 51 फलक अपनी झोली में डाले तब लगा था कि खेलों में भी हमारा भविष्य सुखद है। अपने दर्शकों और अपने मैदानों पर पहले एशियाई खेलों में 11 मुल्कों के 489 खिलाड़ियों के सामने भारतीय खिलाड़ियों ने जिस खेल कौशल का परिचय दिया था उसकी आज एक झलक भी नहीं दिख रही। एशियाई खेलों का आगाज हुए 63 साल हो गये लेकिन 1951 में भारतीय खिलाड़ियों द्वारा स्थापित 15 स्वर्ण पदकों का कीर्तिमान आज भी अटूट है।
एशियाई खेलों के अभ्युदय के 63 साल बाद जहां छोटे-छोटे मुल्क नित नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं वहीं खेलों के नाम पर अरबों रुपये निसार करने वाला भारत श्रेष्ठता की जंग में बार-बार मात खा रहा है। भारत का खेलों में पिद्दी प्रदर्शन इस बात का सूचक है कि इस दिशा में पारदर्शिता बरतने की बजाय खेल बेजा हाथों में सौंप दिए गए। भारत हमेशा अच्छा मेजबान तो साबित हुआ लेकिन हमारे खिलाड़ी कभी भी फौलादी प्रदर्शन नहीं कर सके। हमारे खिलाड़ी जब भी किसी बड़ी खेल प्रतियोगिता में शिरकत करने जाते हैं, देश का हर खेलप्रेमी नाउम्मीदी में जीने लगता है। इसकी वजह खेलों में व्याप्त भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के साथ राजनीतिज्ञों की बेवजह की दखलंदाजी है। दक्षिण कोरिया के इंचियोन शहर में 19 सितम्बर से चार अक्टूबर तक होने जा रहे सत्रहवें एशियाई खेलों से पूर्व खिलाड़ियों और अनाड़ियों को लेकर भारतीय खेल मंत्रालय और भारतीय ओलम्पिक संघ के बीच जिस तरह तलवारें खिंचीं उससे खिलाड़ियों का मनोबल टूटा है। जिस देश में खिलाड़ियों के चयन में पक्षपात, हद दर्जे की लापरवाही के साथ खिलाड़ियों की डाइट पर कमीशनबाजी होती हो वहां अच्छे नतीजे कैसे मिल सकते हैं? खेलों की सूरत और सीरत बदलने के नाम पर आजकल भारत में विदेशी प्रशिक्षकों की आवभगत की एक नई परम्परा शुरू हुई है। भारतीय खेल प्राधिकरण की कृपा से बीते तीन साल में 88 विदेशी प्रशिक्षकों पर भारत सरकार ने 2569.63 करोड़ रुपये खर्च किए हैं, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही निकला। आर्थिक रूप से कमजोर भारत में पैसे की यह फिजूलखर्ची आखिर क्यों? भारत ने जब से विदेशी प्रशिक्षकों की सेवाएं ली हैं तब से प्रदर्शन में तो कोई बड़ा चमत्कार नहीं हुआ अलबत्ता हमारे खिलाड़ी डोपिंग के कुलक्षण का शिकार जरूर हुए हैं। बीते पांच साल में पांच सौ से अधिक खिलाड़ियों का डोपिंग में पकड़ा जाना न केवल शर्मनाक है बल्कि यह विदेशी प्रशिक्षकों का घिनौना षड्यंत्र भी है। हम जिन विदेशी प्रशिक्षकों पर अकूत पैसा जाया कर रहे हैं, उनकी जवाबदेही कभी तय नहीं की जाती। खेलों के हर बड़े आयोजन से पहले दावे-प्रतिदावे परवान चढ़ते हैं लेकिन पराजय के बाद बेशर्मी ओढ़ ली जाती है। भारत में बीमार खेलों की दवा तो हो रही है, पर मर्ज बढ़ता ही जा रहा है। खिलाड़ियों की पराजय दर पराजय के बाद तो यह बीमारी लाइलाज सी हो गई है। हमारे मुल्क में प्रतिभाओं की कमी नहीं है बल्कि यहां सिस्टम खराब है। यहां तेली का काम तमोली से कराना फितरत बन गई है। भारत को यदि खेलों में तरक्की करनी है तो उसे सबसे पहले हर क्षेत्र से प्रतिभाओं की पड़ताल करने के साथ उन्हें प्रैक्टिस के साथ शुद्ध डाइट देनी होगी। देखने में आता है कि जवाबदेह लोग कमीशनखोरी के चक्कर में खिलाड़ियों के खानपान से समझौता करते हैं जोकि अनुचित है।
खिलाड़ियों को मिले शुद्ध डाइट: जया आचार्य
पीएफएस मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड की मैनेजिंग डायरेक्टर जया आचार्य का कहना है कि भारत में एक से बढ़कर एक प्रतिभाएं हैं, पर उचित परवरिश के बिना वे समय से पहले ही दम तोड़ देती हैं। भारत में खेलों की खराब स्थिति के लिए प्र्राय: खिलाड़ियों को कसूरवार ठहराया जाता है, जोकि उचित नहीं है। खिलाड़ियों पर तोहमत लगाने से पहले उनके साथ क्या बर्ताव होता है, उस पर भी नजर डाली जानी चाहिए। खिलाड़ियों को अच्छी प्रैक्टिस के साथ हेल्दी डाइट, एनर्जेटिक फूड और अच्छे फूड सप्लीमेंट्स की भी आवश्यकता होती है, जोकि उन्हें नहीं मिलती। जब खिलाड़ी को शुद्ध डाइट ही नहीं मिलेगी तो भला वह भूखे पेट क्या खाक सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करेगा? हमारा खिलाड़ी प्रशिक्षक को भगवान मानता है, पर यही भगवान हमारे खिलाड़ियों की जिंदगी से खेल रहे हैं। प्रशिक्षक पर विश्वास करना खिलाड़ियों के लिए उसी तरीके से अनिवार्य है जैसे कक्षा में बैठे शिष्यों का अपने गुरु के प्रति। एक होनहार छात्र वही करता है जो उसका गुरु बताए। फूड सप्लीमेंट्स खिलाड़ी अपने कोच से पूछ कर लेते हैं। बहुत से कोच खिलाड़ियों को सही राह दिखाते हैं, पर कुछ उन्हें अपने स्वार्थ के कारण सस्ते से सस्ते प्रोडक्ट्स को इम्पोर्टेड बताकर उन्हें नकली थमा कर असली का पैसा वसूल लेते हैं, जिसके कारण पहले तो खिलाड़ी डोपिंग में फंसकर अपना कैरियर बर्बाद करता है और बाद में अपना शरीर भी होम कर देता है। नकली फूड सप्लीमेंट्स के चलन से ही आज साई सेण्टरों के खिलाड़ी अनगिनत परेशानियों का शिकार हैं। खिलाड़ियों के फेफड़े और किडनी बर्बाद हो रहे हैं। यही वजह कि होनहार खिलाड़ी समय से पहले ही अपनी क्षमता खो देते हैं और उनका भविष्य अंधकारमय हो जाता है।
इंचियोन में 516 भारतीय खिलाड़ी 28 खेलों में दिखाएंगे दमखम
दक्षिण कोरिया के इंचियोन शहर में होने जा रहे सत्रहवें एशियाई खेलों में भारत के 516 खिलाड़ी 28 खेलों में दमखम दिखाएंगे। पिछले एशियन खेलों में 609 खिलाड़ियों ने 35 खेलों में शिरकत करते हुए 65 पदक जीते थे। इस बार न सिर्फ खिलाड़ियों की संख्या में कटौती की गई है बल्कि खेल अधिकारियों की आरामतलबी पर भी मोदी सरकार चाबुक चलाया है। ग्वांगझू में 2010 में हुए एशियाई खेलों में जहां 324 अधिकारियों का दल गया था वहीं इस बार सिर्फ 163 कोचों को स्वीकृति मिली है। इंचियोन में 16 दिन तक चलने वाले एशियन खेलों में भारतीय खिलाड़ी एक्वाटिक्स (तैराकी), तीरंदाजी, एथलेटिक्स, बैडमिंटन, बास्केटबॉल, मुक्केबाजी, कैनोइंग एवं कयाकिंग, साइकिलिंग, घुड़सवारी, फुटबॉल, गोल्फ, जिम्नास्टिक, हैंडबाल, हॉकी, जूडो, कबड्डी, रोइंग, सेपकटकरा, निशानेबाजी, स्क्वैश, ताइक्वांडो, टेबल टेनिस, टेनिस, वालीबॉल, कुश्ती, वुशू, भारोत्तोलन और नौकायन में शिरकत करेंगे।
इन्होंने बढ़ाया भारत का मान
पीटी ऊषा- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 101 पदक जीतने वाली भारत की उड़नपरी पीटी ऊषा ने एशियन खेलों में सर्वाधिक दस पदक जीते हैं जिनमें चार स्वर्ण और छह रजत पदक शामिल हैं। ऊषा ने 1986 के एशियन खेलों में चार स्वर्ण और एक रजत पदक जीतकर सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का तमगा हासिल किया था।
मिल्खा सिंह- उड़न सिख मिल्खा सिंह ने एशियन खेलों में चार स्वर्ण पदक जीते हैं। मिल्खा ने 1958 और 1962 के एशियन खेलों में दो-दो स्वर्ण पदक जीते थे।
जसपाल राणा- भारत के शूटर जसपाल राणा ने एशियन खेलों में चार स्वर्ण, दो रजत तथा दो कांस्य पदक जीते हैं।
सानिया मिर्जा- भारत की टेनिस सनसनी सानिया मिर्जा एशियन खेलों में अब तर एक स्वर्ण, तीन रजत तथा दो कांस्य पदक जीत चुकी हैं।
ज्योतिर्मय सिकदर- ज्योतिर्मय सिकदर ने 1998 के एशियन खेलों में दो स्वर्ण पदक जीते थे।
एमडी बालसम्मा- एमडी बालसम्मा ने एशियन खेलों में दो स्वर्ण और एक रजत पदक जीता है।
अंजू बॉबी जॉर्ज- लांगजम्पर अंजू बॉबी जॉर्ज ने इस विधा में एक स्वर्ण और एक रजत पदक जीता है।
मनजीत कौर- एथलीट मनजीत कौर के नाम दो स्वर्ण और एक रजत पदक है।
अश्वनी अकुंजी- एथलीट अश्वनी अकुंजी ने ग्वांगझू एशियन खेलों में दो स्वर्ण पदक जीते थे। इस बार भी भारत को उनसे अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है।
श्रीराम सिंह- एशियन खेलों में श्रीराम सिंह ने दो स्वर्ण और एक रजत पदक जीता है।
महिलाओं का पहला स्वर्ण कमलजीत के नाम
एशियन खेलों में अब तक 51 भारतीय खिलाड़ी एक या उससे अधिक स्वर्ण पदक जीत चुके हैं। महिलाओं की जहां तक बात है इन खेलों में पहला स्वर्ण पदक जीतने का श्रेय कमलजीत संधू को जाता है। कमलजीत ने 1970 के बैंकाक एशियन खेलों में 400 मीटर दौड़ का पहला स्वर्ण पदक जीता था।
भारत युवाओं का देश है। प्रतिभा से सराबोर हिन्दुस्तान ने आजादी के 67 वर्षों में कई नए आयाम और प्रतिमान स्थापित किए हैं। दुनिया हमारे युवाओं की काबिलियत की मुक्तकंठ से सराहना कर रही है पर खेलों में हमारा लचर प्रदर्शन और आंकड़े यही साबित करते हैं कि इस दिशा में किए गए सारे प्रयास अकारथ हैं। आजादी की सांस लेने के बाद दिल्ली में चार से 11 मार्च,1951 को हुए पहले एशियाई खेलों में हमारे जांबाज खिलाड़ियों ने बिना विदेशी प्रशिक्षक जब 15 स्वर्ण, 16 रजत, 20 कांसे के तमगों के साथ 51 फलक अपनी झोली में डाले तब लगा था कि खेलों में भी हमारा भविष्य सुखद है। अपने दर्शकों और अपने मैदानों पर पहले एशियाई खेलों में 11 मुल्कों के 489 खिलाड़ियों के सामने भारतीय खिलाड़ियों ने जिस खेल कौशल का परिचय दिया था उसकी आज एक झलक भी नहीं दिख रही। एशियाई खेलों का आगाज हुए 63 साल हो गये लेकिन 1951 में भारतीय खिलाड़ियों द्वारा स्थापित 15 स्वर्ण पदकों का कीर्तिमान आज भी अटूट है।
एशियाई खेलों के अभ्युदय के 63 साल बाद जहां छोटे-छोटे मुल्क नित नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं वहीं खेलों के नाम पर अरबों रुपये निसार करने वाला भारत श्रेष्ठता की जंग में बार-बार मात खा रहा है। भारत का खेलों में पिद्दी प्रदर्शन इस बात का सूचक है कि इस दिशा में पारदर्शिता बरतने की बजाय खेल बेजा हाथों में सौंप दिए गए। भारत हमेशा अच्छा मेजबान तो साबित हुआ लेकिन हमारे खिलाड़ी कभी भी फौलादी प्रदर्शन नहीं कर सके। हमारे खिलाड़ी जब भी किसी बड़ी खेल प्रतियोगिता में शिरकत करने जाते हैं, देश का हर खेलप्रेमी नाउम्मीदी में जीने लगता है। इसकी वजह खेलों में व्याप्त भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के साथ राजनीतिज्ञों की बेवजह की दखलंदाजी है। दक्षिण कोरिया के इंचियोन शहर में 19 सितम्बर से चार अक्टूबर तक होने जा रहे सत्रहवें एशियाई खेलों से पूर्व खिलाड़ियों और अनाड़ियों को लेकर भारतीय खेल मंत्रालय और भारतीय ओलम्पिक संघ के बीच जिस तरह तलवारें खिंचीं उससे खिलाड़ियों का मनोबल टूटा है। जिस देश में खिलाड़ियों के चयन में पक्षपात, हद दर्जे की लापरवाही के साथ खिलाड़ियों की डाइट पर कमीशनबाजी होती हो वहां अच्छे नतीजे कैसे मिल सकते हैं? खेलों की सूरत और सीरत बदलने के नाम पर आजकल भारत में विदेशी प्रशिक्षकों की आवभगत की एक नई परम्परा शुरू हुई है। भारतीय खेल प्राधिकरण की कृपा से बीते तीन साल में 88 विदेशी प्रशिक्षकों पर भारत सरकार ने 2569.63 करोड़ रुपये खर्च किए हैं, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही निकला। आर्थिक रूप से कमजोर भारत में पैसे की यह फिजूलखर्ची आखिर क्यों? भारत ने जब से विदेशी प्रशिक्षकों की सेवाएं ली हैं तब से प्रदर्शन में तो कोई बड़ा चमत्कार नहीं हुआ अलबत्ता हमारे खिलाड़ी डोपिंग के कुलक्षण का शिकार जरूर हुए हैं। बीते पांच साल में पांच सौ से अधिक खिलाड़ियों का डोपिंग में पकड़ा जाना न केवल शर्मनाक है बल्कि यह विदेशी प्रशिक्षकों का घिनौना षड्यंत्र भी है। हम जिन विदेशी प्रशिक्षकों पर अकूत पैसा जाया कर रहे हैं, उनकी जवाबदेही कभी तय नहीं की जाती। खेलों के हर बड़े आयोजन से पहले दावे-प्रतिदावे परवान चढ़ते हैं लेकिन पराजय के बाद बेशर्मी ओढ़ ली जाती है। भारत में बीमार खेलों की दवा तो हो रही है, पर मर्ज बढ़ता ही जा रहा है। खिलाड़ियों की पराजय दर पराजय के बाद तो यह बीमारी लाइलाज सी हो गई है। हमारे मुल्क में प्रतिभाओं की कमी नहीं है बल्कि यहां सिस्टम खराब है। यहां तेली का काम तमोली से कराना फितरत बन गई है। भारत को यदि खेलों में तरक्की करनी है तो उसे सबसे पहले हर क्षेत्र से प्रतिभाओं की पड़ताल करने के साथ उन्हें प्रैक्टिस के साथ शुद्ध डाइट देनी होगी। देखने में आता है कि जवाबदेह लोग कमीशनखोरी के चक्कर में खिलाड़ियों के खानपान से समझौता करते हैं जोकि अनुचित है।
खिलाड़ियों को मिले शुद्ध डाइट: जया आचार्य
पीएफएस मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड की मैनेजिंग डायरेक्टर जया आचार्य का कहना है कि भारत में एक से बढ़कर एक प्रतिभाएं हैं, पर उचित परवरिश के बिना वे समय से पहले ही दम तोड़ देती हैं। भारत में खेलों की खराब स्थिति के लिए प्र्राय: खिलाड़ियों को कसूरवार ठहराया जाता है, जोकि उचित नहीं है। खिलाड़ियों पर तोहमत लगाने से पहले उनके साथ क्या बर्ताव होता है, उस पर भी नजर डाली जानी चाहिए। खिलाड़ियों को अच्छी प्रैक्टिस के साथ हेल्दी डाइट, एनर्जेटिक फूड और अच्छे फूड सप्लीमेंट्स की भी आवश्यकता होती है, जोकि उन्हें नहीं मिलती। जब खिलाड़ी को शुद्ध डाइट ही नहीं मिलेगी तो भला वह भूखे पेट क्या खाक सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करेगा? हमारा खिलाड़ी प्रशिक्षक को भगवान मानता है, पर यही भगवान हमारे खिलाड़ियों की जिंदगी से खेल रहे हैं। प्रशिक्षक पर विश्वास करना खिलाड़ियों के लिए उसी तरीके से अनिवार्य है जैसे कक्षा में बैठे शिष्यों का अपने गुरु के प्रति। एक होनहार छात्र वही करता है जो उसका गुरु बताए। फूड सप्लीमेंट्स खिलाड़ी अपने कोच से पूछ कर लेते हैं। बहुत से कोच खिलाड़ियों को सही राह दिखाते हैं, पर कुछ उन्हें अपने स्वार्थ के कारण सस्ते से सस्ते प्रोडक्ट्स को इम्पोर्टेड बताकर उन्हें नकली थमा कर असली का पैसा वसूल लेते हैं, जिसके कारण पहले तो खिलाड़ी डोपिंग में फंसकर अपना कैरियर बर्बाद करता है और बाद में अपना शरीर भी होम कर देता है। नकली फूड सप्लीमेंट्स के चलन से ही आज साई सेण्टरों के खिलाड़ी अनगिनत परेशानियों का शिकार हैं। खिलाड़ियों के फेफड़े और किडनी बर्बाद हो रहे हैं। यही वजह कि होनहार खिलाड़ी समय से पहले ही अपनी क्षमता खो देते हैं और उनका भविष्य अंधकारमय हो जाता है।
इंचियोन में 516 भारतीय खिलाड़ी 28 खेलों में दिखाएंगे दमखम
दक्षिण कोरिया के इंचियोन शहर में होने जा रहे सत्रहवें एशियाई खेलों में भारत के 516 खिलाड़ी 28 खेलों में दमखम दिखाएंगे। पिछले एशियन खेलों में 609 खिलाड़ियों ने 35 खेलों में शिरकत करते हुए 65 पदक जीते थे। इस बार न सिर्फ खिलाड़ियों की संख्या में कटौती की गई है बल्कि खेल अधिकारियों की आरामतलबी पर भी मोदी सरकार चाबुक चलाया है। ग्वांगझू में 2010 में हुए एशियाई खेलों में जहां 324 अधिकारियों का दल गया था वहीं इस बार सिर्फ 163 कोचों को स्वीकृति मिली है। इंचियोन में 16 दिन तक चलने वाले एशियन खेलों में भारतीय खिलाड़ी एक्वाटिक्स (तैराकी), तीरंदाजी, एथलेटिक्स, बैडमिंटन, बास्केटबॉल, मुक्केबाजी, कैनोइंग एवं कयाकिंग, साइकिलिंग, घुड़सवारी, फुटबॉल, गोल्फ, जिम्नास्टिक, हैंडबाल, हॉकी, जूडो, कबड्डी, रोइंग, सेपकटकरा, निशानेबाजी, स्क्वैश, ताइक्वांडो, टेबल टेनिस, टेनिस, वालीबॉल, कुश्ती, वुशू, भारोत्तोलन और नौकायन में शिरकत करेंगे।
इन्होंने बढ़ाया भारत का मान
पीटी ऊषा- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 101 पदक जीतने वाली भारत की उड़नपरी पीटी ऊषा ने एशियन खेलों में सर्वाधिक दस पदक जीते हैं जिनमें चार स्वर्ण और छह रजत पदक शामिल हैं। ऊषा ने 1986 के एशियन खेलों में चार स्वर्ण और एक रजत पदक जीतकर सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का तमगा हासिल किया था।
मिल्खा सिंह- उड़न सिख मिल्खा सिंह ने एशियन खेलों में चार स्वर्ण पदक जीते हैं। मिल्खा ने 1958 और 1962 के एशियन खेलों में दो-दो स्वर्ण पदक जीते थे।
जसपाल राणा- भारत के शूटर जसपाल राणा ने एशियन खेलों में चार स्वर्ण, दो रजत तथा दो कांस्य पदक जीते हैं।
सानिया मिर्जा- भारत की टेनिस सनसनी सानिया मिर्जा एशियन खेलों में अब तर एक स्वर्ण, तीन रजत तथा दो कांस्य पदक जीत चुकी हैं।
ज्योतिर्मय सिकदर- ज्योतिर्मय सिकदर ने 1998 के एशियन खेलों में दो स्वर्ण पदक जीते थे।
एमडी बालसम्मा- एमडी बालसम्मा ने एशियन खेलों में दो स्वर्ण और एक रजत पदक जीता है।
अंजू बॉबी जॉर्ज- लांगजम्पर अंजू बॉबी जॉर्ज ने इस विधा में एक स्वर्ण और एक रजत पदक जीता है।
मनजीत कौर- एथलीट मनजीत कौर के नाम दो स्वर्ण और एक रजत पदक है।
अश्वनी अकुंजी- एथलीट अश्वनी अकुंजी ने ग्वांगझू एशियन खेलों में दो स्वर्ण पदक जीते थे। इस बार भी भारत को उनसे अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है।
श्रीराम सिंह- एशियन खेलों में श्रीराम सिंह ने दो स्वर्ण और एक रजत पदक जीता है।
महिलाओं का पहला स्वर्ण कमलजीत के नाम
एशियन खेलों में अब तक 51 भारतीय खिलाड़ी एक या उससे अधिक स्वर्ण पदक जीत चुके हैं। महिलाओं की जहां तक बात है इन खेलों में पहला स्वर्ण पदक जीतने का श्रेय कमलजीत संधू को जाता है। कमलजीत ने 1970 के बैंकाक एशियन खेलों में 400 मीटर दौड़ का पहला स्वर्ण पदक जीता था।
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