Monday 18 March 2019

आत्मविश्वास का दूसरा नाम वेदांगी कुलकर्णी


29 हजार किलोमीटर साइकिल चलाने का कीर्तिमान

खेल कई नियम-कायदों द्वारा संचालित ऐसी गतिविधि है, जो हमारे शरीर को फिट रखने में मदद करती है। आज की भागदौड़ भरी जिन्दगी में अक्सर हम खेल के महत्व को दरकिनार कर देते हैं। आज के समय में जितना पढ़ना-लिखना जरूरी है, उतना ही खेलकूद भी जरूरी है। एक अच्छे जीवन के लिए जितना ज्ञानी होना जरूरी है, उतना ही स्वस्थ होना भी जरूरी है। ज्ञान जहां हमें पढ़ने-लिखने से मिलता है वहीं अच्छे स्वस्थ शरीर के लिए खेलकूद जरूरी है। दुनिया में खिलाड़ियों और खेलप्रेमियों की कमी नहीं है। जरा सी प्रसिद्धि खिलाड़ी को सातवें आसमान पर पहुंचा देती है। देश के लिए खुशी की बात है कि आज बेटियां हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रही हैं। बहादुर बिटिया वेदांगी कुलकर्णी ने अपनी अदम्य इच्छाशक्ति की जो मिसाल कायम की है उससे देश की और बेटियां प्रोत्साहित होंगी।

जिस देश में आमतौर पर बेटी को रात-बेरात अकेले घर से बाहर न निकलने की नसीहत दी जाती हो, उस देश की बिटिया का साइकिल से दुनिया का चक्कर लगाना हैरत भरी बात है। इस जांबाज बेटी की उम्र साइकिल यात्रा के दौरान ही बीस की हुई। साइकिल से किसी मिशन को साकार करने की सोचना आसान नहीं था लेकिन वेदांगी के साहस और जीवट ने असम्भव को भी सम्भव कर दिखाया। धन्य हैं वेदांगी के माता-पिता जिन्होंने बिटिया को न केवल ऐसा करने का मौका दिया बल्कि गर्व के साथ उसका मनोबल भी बढ़ाया। मिशन में निकलने से पहले वेदांगी ने दो साल तक खूब तैयारी की। अभ्यास बतौर उसने मुंबई से दिल्ली तक का चौदह सौ किलोमीटर का सफर तय किया। अधिकारियों से मिली ताकि दुनिया के दूसरे देशों में जाने पर वीजा व अन्य कागजातों की दिक्कत न आये। फिर निकल पड़ी दुनिया की परिक्रमा करने।

देश की इस बहादुर बेटी वेदांगी कुलकर्णी ने कोलकाता से साइकिल चलाकर न केवल यात्रा का 29 हजार किलोमीटर का मानक पूरा किया बल्कि सबसे कम समय में इस यात्रा को पूरी करने वाली एशिया की पहली महिला साइकिलिस्ट भी बन गई। वेदांगी की उपलब्धि पर समूचा देश गौरवान्वित है। एशियाई रिकॉर्ड बनाकर वेदांगी प्रफुल्लित तो है लेकिन वह आगे के अभियानों की तैयारी में भी जुट गई है। पुणे की वेदांगी कुलकर्णी दुनिया के उन चंद लोगों में है, जिन्होंने ऐसी चुनौतीभरी यात्रा को अंजाम देने में सफलता पाई। उसके आगे ब्रिटेन के 38 वर्षीय जेनी ग्राहम हैं, जिन्होंने यह यात्रा वेदांगी से चार हफ्ते से कम समय में पूरी की। ब्रिटेन के ब्रॉवर्नेमाउथ विश्वविद्यालय से खेल प्रबंधन की पढ़ाई कर रही वेदांगी ने सत्रह साल की उम्र में साइकिलिंग शुरू की और उन्नीस साल की उम्र में दुनिया नापने निकल पड़ी। उसके साथ आत्मविश्वास था और एक अदद साइकिल, टूल, कैंपिंग और अन्य जरूरत का सामान। निश्चित रूप से खेलों के जुनून वाले देश ब्रिटेन के वातावरण ने उसे अपने जुनून को पूरा करने के लिये प्रेरित किया होगा। भारत में तमाम प्रतिभाएं ऐसे सपने देखती हैं लेकिन प्रतिकूल वातावरण व प्रोत्साहन न मिलने के चलते उनके सपने बिखर कर रह जाते हैं। इतना तो तय है कि किसी भी खेल में प्रतिभाएं अपने प्रयासों व संसाधनों से कुछ कर गुजरने निकलती हैं। यह बात अलग है कि बाद में सरकारें उनकी उपलब्धियों पर ताल ठोकने और पुरस्कार बांटने की होड़ में शामिल हो जाती हैं।

वेदांगी का यह सफर आसान नहीं था। उसकी हिम्मत तो देखिये कि उसने अस्सी फीसदी सफर खुद तय किया। कहीं चालीस डिग्री का तापमान तो कहीं माइनस बीस डिग्री का रक्त जमाने वाला तापमान। रूस के कई बर्फीले इलाकों में कैंपिंग करके वह अकेले अपने मिशन की तरफ बढ़ चली। कनाडा में जंगली भालू उसके पीछे दौड़ा तो वह किसी तरह जान बचाकर निकली। स्पेन में तो लुटेरों ने उस पर हमला बोलकर लूटपाट की। कई देशों में सीमा पर कागजात संबंधी दिक्कतें वेदांगी के सामने आईं। मगर वह इन मुसीबतों के सामने डिगी नहीं। उसने अपने लक्ष्य को अधिक ऊर्जा और आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ाया और आखिर मंजिल पर पहुंच कर ही दम लिया।

बकौल वेदांगी अब मैं कह सकती हूं कि 29 हजार किलोमीटर की साइकिलिंग करना मेरे बायें हाथ का खेल है। वेदांगी ने 159 दिन में 14 देशों में यह उन्नतीस हजार किलोमीटर का सफर तय किया है।  इस दौरान उसने आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, कनाडा, आइसलैंड, पुर्तगाल, स्पेन, फ्रांस, बेल्जियम, जर्मनी, डेनमार्क, स्वीडन, फिनलैंड और रूस होकर अपना सफर पूरा किया। रूस से वह भारत आई और देश में इसने चार हजार किलोमीटर का सफर तय किया। वेदांगी कुलकर्णी भारत में सबसे कठिन रास्ते मनाली से खरदुंगला तक की साइकिलिंग भी कर चुकी हैं। कुछ अच्छे तो कुछ बुरे अनुभव उसके जहन में हैं मगर सुकून है कि उसने अपना लक्ष्य पूरा कर लिया है। उसने रोजाना तीन सौ किलोमीटर का सफर तय करने का लक्ष्य पूरा किया। अब चाहे झुलसाती गर्मी हो या रूस में बर्फीले तूफान हों।

अब भारत से वेदांगी कुलकर्णी आस्ट्रेलिया के पर्थ शहर जाएंगी। जहां पहुंचकर उसकी आधिकारिक रूप से यात्रा पूरी होगी। दरअसल, यहीं से वेदांगी ने विश्व का चक्कर लगाने वाली यात्रा की शुरुआत की थी। यात्रा के समापन पर वेदांगी के मस्तिष्क में तमाम खट्टी-मीठी यादें ताजा हैं। वेदांगी ने सारी यात्रा को अपने कैमरे में कैद किया। अब वह इस यात्रा पर लिविंग एडवेंचर, शेयरिंग द एडवेंचर शीर्षक से एक डॉक्यूमेंट्री बनाने की तैयारी में हैं। वर्ष 2017 में उसने साइकिल से दुनिया नापने का जो सपना देखा था, वह पूरा हुआ। अब वह और कठिन रास्तों पर आगे बढ़ना चाहती है। निश्चय ही वेदांगी नई पीढ़ी के युवाओं के लिये प्रेरणास्रोत है। आओ ऐसी बेटियों का हौसला बढ़ाएं।

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