बाल विवाह के
खिलाफ जगाई अलख
भारत परम्पराओं का देश है। इन परम्पराओं की आड़
में कुछ कार्य ऐसे भी हुए या होते हैं जिनसे हमारे समाज में असंतुलन की बयार सी
बहने लगती है। हमारे देश आखातीज भी एक ऐसी परम्परा है, जिसमें आमजन को अपने
बेटे-बेटियों की शादी के लिए किसी तरह का शुभ मुहूर्त निकलवाने की जरूरत नहीं
पड़ती। सदियों से ग्रामीण और उपनगरों में इस अवसर का दुरुपयोग बाल विवाह कराने में
किया जाता रहा है। कानून और पुलिस अपना काम करती रह जाती है और जो बाल विवाह अटक
जाते हैं वो बाद में हो जाते हैं। वर्ष 2012 तक किसी स्वैच्छिक संगठन या सरकार ने नहीं सोचा था कि बाल विवाह अगर
हो भी गया है तो उसे कानून के दायरे में निरस्त भी कराया जा सकता है। बाल विवाह कैसे रुकें इस दिशा में जानलेवा हमले व धमकियों से निडर कृति भारती ने जो किया वह भारत ही नहीं आज दुनिया
के लिए एक नजीर है।
हमारे देश में एक कहावत प्रचलित है- वो क्या जाने पीर पराई जाके पैर न फटे बिवाईं। किसी महिला की वेदना को
न केवल कृति ने समझा बल्कि देश को एक ऐसी सशक्त राह दी, जिसको कोई भी चाहे तो अपना सकता है।
हौसलों की उड़नपरी नाम से मशहूर कृति भारती का बचपन संघर्षों से गुजरा मगर उसका
जीवन और कर्म भारत ही नहीं दुनिया में आज एक मिसाल बन गया है। सम्भ्रांत जैन
परिवार से ताल्लुक रखने वाली कृति के दुनिया में आंखें खोलने से पहले ही डॉक्टर
पिता ने मां और बेटी (भ्रूण) का परित्याग कर दिया था। उसकी मां पर
नाते-रिश्तेदारों ने गर्भ गिराने तक की सलाह दी, जिसे नकार दिया गया। अस्वस्थता की वजह से गर्भ के भीतर ही भ्रूण चिपक
गया, जिससे मासूम बच्ची के जन्म से पहले ही
सिर पर गहरे जख्म हो गए। बहुत मुश्किल से बच्ची का सातवें माह में ही जन्म हुआ।
सामाजिक शोषण और दुर्भावना के चलते जब दस साल
की उम्र में जब कृति चौथी कक्षा में अध्ययनरत थी तो किसी रिश्तेदार ने उसे कोई
धीमा जहर खिला दिया। ईश्वर ने फिर चमत्कार दिखाया। धीमे जहर के असर के कारण उसके
अंग लाचार हो गए। उसके सिर और एक हाथ को छोड़कर बाकी शरीर बेजान हो गया। रैकी
चिकित्सा से नन्हीं कृति के अंगों में धीरे-धीरे जान लौटने लगी। 11 साल की उम्र
में दुबारा से काफी असहनीय पीड़ाओं से गुजर कर उसने घुटनों के बल चलना सीखा। बाल
योगिनी की पहचान वाली कृति ने गुरु सरस्वती के सान्निध्य में क्रिस्टल के प्रयोगों
से रैकी चिकित्सा पद्धति प्राप्त कर दुर्बल महिलाओं को सफल रैकी चिकित्सा देनी
शुरू कर दी।
उसने जोधपुर से मनोविज्ञान विषय में
स्नातकोत्तर की परीक्षा में टॉप किया और इसी विषय पर पी.-एचडी. की उपाधि हासिल की।
समाज के निम्न और शोषित तबके के लिए कार्य करने के जज्बे के कारण कृति ने उच्च
वेतन के जॉब को भी ठुकरा दिया। जब वह बाल दुराचार और शोषण को होता देखती तो बहुत
व्याकुल हो जाती। पीड़ित बच्चों और महिलाओं को राहत दिलाने और बेहतर पुनर्वासित
करने को ही जीवन का उद्देश्य बनाकर उसने दृढ़ संकल्प के साथ एक मशाल उठाई।
मंदबुद्धि बच्चों के लिए पुनरुत्थान व पुनर्वास के लिए कार्य किया।
अन्य स्वयंसेवी संगठनों के साथ कार्य करने में
कुछ बाधाएं सामने आती देख उसने वर्ष 2012 में सारथी ट्रस्ट स्थापित किया। बाल विवाह की सामाजिक रूढ़िवादी
परम्परा को मिटाने के लिये सारथी ने एक के बाद एक बाल विवाह पीड़िताओं को सम्बल
प्रदान किया। पश्चिम राजस्थान में लक्ष्मी एक साल की थी जब उसे उसके मां-बाप ने
जोधपुर में दो साल के लड़के के साथ बाल विवाह में बांध दिया। लक्ष्मी जब 2012 में 18
साल की हुई और उसे ससुराल भेजने का समय आया तो उसने इसका डटकर
विरोध किया और कृति से सम्पर्क किया। काफी जद्दोजहद के बाद ‘फेमली कोर्ट’ से लक्ष्मी को बाल विवाह से मुक्त करा दिया गया। 10 साल की पिंकी कंवर हो या 18 साल की पपली जैसी तीन दर्जन बाल विवाहिताएं, उन सभी ने गौने की त्रासदी से बचने के
लिये सारथी का दामन थामा। विवाह निरस्त कराने की कोशिश में इन सभी के परिवारों को
लड़के वालों द्वारा मारने की धमकी दी गयी, पुलिस की ताकत दिखाई, गुंडे दौड़ाये गये। मगर सारे खतरों और कानूनी चुनौतियों से संघर्ष
करते हुए कृति ने युवा अवस्था में वो कर दिखाया जो बड़े-बड़े स्वयंसेवी संगठन विदेशी
फण्ड से भी नहीं कर पाते।
वर्ष 2012 में जब कृति ने फेमिली कोर्ट में प्रोहिबिशन ऑफ चाइल्ड मेरिज एक्ट, 2006 की धारा 3 में पहला बाल विवाह निरस्त कराया तो लिम्का
बुक ऑफ रिकॉर्ड्स और वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ऑफ इंडिया में प्रसिद्धि प्राप्त की। उसके
बाद कृति अब तक तीन
दर्जन से अधिक
बाल विवाह निरस्त कराने का एक विश्व रिकार्ड बना चुकी हैं। साथ ही सीबीएसई के
ग्यारहवीं और बारहवीं स्तर के पाठ्यक्रम में भी कृति के बाल विवाह निरस्त की मुहिम
को शामिल किया गया। वर्ष 2016 में महज तीन दिन में दो जोड़ों के बाल
विवाह को निरस्त करवाने के कारण उसे वर्ल्ड रिकॉर्ड इंडिया, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स व यूनिक
वर्ल्ड रेकार्ड्स में शामिल किया गया। इस पर चीफ जस्टिस ऑफ राजस्थान ने भी कृति को
सम्मानित किया। नेशनल कमीशन फॉर प्रोटक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (एनसीपीसीआर) बाल
विवाह दर कम होने के कितने ही आंकड़े दर्शाये मगर जब परिवार में ‘मौसर’ (मृत्युभोज) होता है तो रुके हुए बाल विवाह
इसलिये हो जाते हैं कि वो पुण्य आत्मा का एक नेक दिन होता है। कृति कहती हैं कि
भले ही गांव निरंतर हाईटेक हो रहे हों मगर जातिगत और संकीर्ण मानसिकता से पुरुष
समाज अभी उबरा नहीं है। जो भी हो कृति के कृतित्व ने समाज को एक नई दिशा जरूर
दिखाई है।
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