किसान चाची राजकुमारी
भारतीय महिलाएं आज हर क्षेत्र में अपनी सफलता की कहानी लिख रही हैं। एक बंद समाज की दहलीज लांघकर अपना नया मुकाम तय करना किसी भी महिला के लिये आसान नहीं होता। फिर पुरुष के वर्चस्व वाले क्षेत्र में पहचान बनाना और परिवार को आत्मनिर्भर बनाने के साथ हजारों चूल्हों को जलाना आसान नहीं है। बिहार के मुजफ्फरपुर के सरैया प्रखंड के गांव आनंदपुर की किसान चाची राजकुमारी ने जो कुछ किया वह महिलाओं के लिए ही नहीं पुरुष समाज के लिए भी एक सबक है। खेती-किसानी के क्षेत्र में नजीर स्थापित करने वाली राजकुमारी को हाल ही भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया है। किसान चाची का यह सम्मान उनके मार्गदर्शन में चलने वाले चालीस स्वयं सहायता समूहों के लिये किसी उत्सव से कम नहीं है।
आज देश राजकुमारी को किसान चाची के नाम से जानता है। मैट्रिक करके पंद्रह साल में ब्याह दी गई राजकुमारी जब ससुराल पहुंचीं तो घूंघट की बंदिशों के समाज में खुद को पाया। शिक्षक पिता ने उन्हें लाड़-प्यार से पाला था। राजकुमारी ने टीचर की ट्रेनिंग लेकर पढ़ाना चाहा तो परिवार ने मना कर दिया। परिवार में जमीन का बंटवारा हुआ तो बेरोजगार पति के हिस्से में सिर्फ ढाई एकड़ जमीन आई, जिसमें तम्बाकू आदि की खेती होती थी, जिससे घर चलाना मुश्किल था। ऐसे में दृढ़ संकल्प के साथ राजकुमारी घर चलाने को निकल पड़ीं। परिवार-समाज के तानों से बेपरवाह उन्होंने ऐसी राह चुनी जो रूढ़िवादी समाज में सम्भव नहीं थी।
राजकुमारी ने पाया कि खेती में सबसे ज्यादा महिलाएं ही मेहनत करती हैं मगर उनके श्रम को न तो पहचान मिलती है और न ही कुछ नया करने का अवसर। यहीं से राजकुमारी की किसान चाची बनने की कहानी शुरू होती है। उन्होंने सबसे पहले अपने खेतों में फसल चक्र में बदलाव किया। राजकुमारी ने वर्ष 1990 में ओल, हल्दी और पपीते की फसल उगानी शुरू की। नजदीक के कृषि विश्वविद्यालय से सम्पर्क कर मिट्टी परीक्षण व आधुनिक तकनीक से नकदी व जैविक फसलों के उत्पादन का प्रशिक्षण लिया।
किसान चाची ने महसूस किया कि यदि हम उत्पादित अनाज व सब्जी तथा फल बाजार में बेचते हैं तो औने-पौने दाम में खरीद लिया जाता है। यदि खाद्य प्रस्संकरण के जरिये अचार-मुरब्बा आदि बनाकर बेचा जाये तो ज्यादा आमदनी हो सकती है। समस्या यह थी कि अपना उत्पाद गांव से बाहर कैसे बेचा जाये। इसके लिए उन्होंने कमर कसी और खुद ही साइकिल से हाट-बाजारों में अपने उत्पाद बेचने का मन बना लिया। पहले तो पति व परिवार ने विरोध किया मगर बाद में किसान चाची का संकल्प देखकर सबने हामी भर दी। साठ साल की उम्र पार करने पर भी किसान चाची रोज तीस-चालीस किलोमीटर साइकिल चलाकर अपने उत्पाद बेचती हैं। उनके हाथ से बनाए जाने वाले अचार व मुरब्बे आज विश्वसनीय ब्रांड बन गये हैं। राजकुमारी के उत्पादों की महक किसान मेले के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने महसूस की और किसान चाची को पुरस्कार दिया। फिर वर्ष 2007 में किसान चाची को किसान श्री सम्मान से नवाजा गया। वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उनकी कामयाबी से इतने मुग्ध हुए कि महिला उद्यमशीलता को नमस्कार करने किसान चाची के घर जा पहुंचे।
चाची की कामयाबी इस मायने में महत्वपूर्ण है कि उन्होंने हजारों महिलाओं को उन्नत खेती करने के लिये प्रेरित किया। उन्हें बताया कि कैसे खेती को लाभकारी बनाकर ज्यादा मुनाफा कमाकर स्वावलम्बी बना जाये। महिलाओं को राह दिखाती उन पर बनी डॉक्यूमेंट्री खासी चर्चित हुई। कालांतर में वह कई कृषि विश्वविद्यालयों की समितियों तथा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन की सदस्य भी बनीं। किसान चाची ने समाज को यह संदेश दिया कि मजबूत इरादों और प्रगतिशील सोच से मुश्किल लक्ष्य भी हासिल किये जा सकते हैं।
किसान चाची के प्रशंसकों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तथा बिहार के राज्यपाल रहे और वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी हैं। पद्मश्री देते वक्त राष्ट्रपति ने उन्हें नाम से सम्बोधित कर हालचाल पूछा। किसान चाची के अचार और मुरब्बे की महक को सुपर स्टार अमिताभ बच्चन ने भी महसूस किया और केबीसी के सेट पर बुलाया। इसी दौरान उन्हें पांच लाख रुपये और आटे की चक्की स्वरोजगार समूहों की मदद के लिये दी। किसान चाची दिल्ली के प्रगति मैदान से लेकर देश के दूसरे राज्यों में लगने वाले कृषि मेलों में स्वयं सहायता समूहों द्वारा बनाये गये उत्पादों को लेकर पहुंचती हैं। उनके स्टॉल पर लाइन लगकर भरोसे का सामान बिकता है।
नि:संदेह गांव की पगडंडियों पर रोज मीलों साइकिल चलाकर किसानों को आधुनिक तकनीक के प्रति जागरूक करने वाली किसान चाची आज अपने काम को पद्मश्री मिलने से खासी उत्साहित हैं। वह मानती हैं कि खेती में महिलाएं हाड़तोड़ मेहनत करती हैं मगर उनके काम का सही मूल्यांकन कभी नहीं हो पाता। उनके नाम जमीन न होने से उनको सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल पाता। इस दिशा में सरकार रचनात्मक भूमिका निभाये तो महिलाएं भी घर की चौखट से निकलकर कृषि उत्पादों को बाजार तक पहुंचाकर आत्मनिर्भर बन सकती हैं। किसान चाची हमें विश्वास दिलाती हैं कि हमारे आसपास रहने वाले साधारण लोग भी दुनिया बदलने की कूबत रखते हैं।
भारतीय महिलाएं आज हर क्षेत्र में अपनी सफलता की कहानी लिख रही हैं। एक बंद समाज की दहलीज लांघकर अपना नया मुकाम तय करना किसी भी महिला के लिये आसान नहीं होता। फिर पुरुष के वर्चस्व वाले क्षेत्र में पहचान बनाना और परिवार को आत्मनिर्भर बनाने के साथ हजारों चूल्हों को जलाना आसान नहीं है। बिहार के मुजफ्फरपुर के सरैया प्रखंड के गांव आनंदपुर की किसान चाची राजकुमारी ने जो कुछ किया वह महिलाओं के लिए ही नहीं पुरुष समाज के लिए भी एक सबक है। खेती-किसानी के क्षेत्र में नजीर स्थापित करने वाली राजकुमारी को हाल ही भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया है। किसान चाची का यह सम्मान उनके मार्गदर्शन में चलने वाले चालीस स्वयं सहायता समूहों के लिये किसी उत्सव से कम नहीं है।
आज देश राजकुमारी को किसान चाची के नाम से जानता है। मैट्रिक करके पंद्रह साल में ब्याह दी गई राजकुमारी जब ससुराल पहुंचीं तो घूंघट की बंदिशों के समाज में खुद को पाया। शिक्षक पिता ने उन्हें लाड़-प्यार से पाला था। राजकुमारी ने टीचर की ट्रेनिंग लेकर पढ़ाना चाहा तो परिवार ने मना कर दिया। परिवार में जमीन का बंटवारा हुआ तो बेरोजगार पति के हिस्से में सिर्फ ढाई एकड़ जमीन आई, जिसमें तम्बाकू आदि की खेती होती थी, जिससे घर चलाना मुश्किल था। ऐसे में दृढ़ संकल्प के साथ राजकुमारी घर चलाने को निकल पड़ीं। परिवार-समाज के तानों से बेपरवाह उन्होंने ऐसी राह चुनी जो रूढ़िवादी समाज में सम्भव नहीं थी।
राजकुमारी ने पाया कि खेती में सबसे ज्यादा महिलाएं ही मेहनत करती हैं मगर उनके श्रम को न तो पहचान मिलती है और न ही कुछ नया करने का अवसर। यहीं से राजकुमारी की किसान चाची बनने की कहानी शुरू होती है। उन्होंने सबसे पहले अपने खेतों में फसल चक्र में बदलाव किया। राजकुमारी ने वर्ष 1990 में ओल, हल्दी और पपीते की फसल उगानी शुरू की। नजदीक के कृषि विश्वविद्यालय से सम्पर्क कर मिट्टी परीक्षण व आधुनिक तकनीक से नकदी व जैविक फसलों के उत्पादन का प्रशिक्षण लिया।
किसान चाची ने महसूस किया कि यदि हम उत्पादित अनाज व सब्जी तथा फल बाजार में बेचते हैं तो औने-पौने दाम में खरीद लिया जाता है। यदि खाद्य प्रस्संकरण के जरिये अचार-मुरब्बा आदि बनाकर बेचा जाये तो ज्यादा आमदनी हो सकती है। समस्या यह थी कि अपना उत्पाद गांव से बाहर कैसे बेचा जाये। इसके लिए उन्होंने कमर कसी और खुद ही साइकिल से हाट-बाजारों में अपने उत्पाद बेचने का मन बना लिया। पहले तो पति व परिवार ने विरोध किया मगर बाद में किसान चाची का संकल्प देखकर सबने हामी भर दी। साठ साल की उम्र पार करने पर भी किसान चाची रोज तीस-चालीस किलोमीटर साइकिल चलाकर अपने उत्पाद बेचती हैं। उनके हाथ से बनाए जाने वाले अचार व मुरब्बे आज विश्वसनीय ब्रांड बन गये हैं। राजकुमारी के उत्पादों की महक किसान मेले के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने महसूस की और किसान चाची को पुरस्कार दिया। फिर वर्ष 2007 में किसान चाची को किसान श्री सम्मान से नवाजा गया। वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उनकी कामयाबी से इतने मुग्ध हुए कि महिला उद्यमशीलता को नमस्कार करने किसान चाची के घर जा पहुंचे।
चाची की कामयाबी इस मायने में महत्वपूर्ण है कि उन्होंने हजारों महिलाओं को उन्नत खेती करने के लिये प्रेरित किया। उन्हें बताया कि कैसे खेती को लाभकारी बनाकर ज्यादा मुनाफा कमाकर स्वावलम्बी बना जाये। महिलाओं को राह दिखाती उन पर बनी डॉक्यूमेंट्री खासी चर्चित हुई। कालांतर में वह कई कृषि विश्वविद्यालयों की समितियों तथा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन की सदस्य भी बनीं। किसान चाची ने समाज को यह संदेश दिया कि मजबूत इरादों और प्रगतिशील सोच से मुश्किल लक्ष्य भी हासिल किये जा सकते हैं।
किसान चाची के प्रशंसकों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तथा बिहार के राज्यपाल रहे और वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी हैं। पद्मश्री देते वक्त राष्ट्रपति ने उन्हें नाम से सम्बोधित कर हालचाल पूछा। किसान चाची के अचार और मुरब्बे की महक को सुपर स्टार अमिताभ बच्चन ने भी महसूस किया और केबीसी के सेट पर बुलाया। इसी दौरान उन्हें पांच लाख रुपये और आटे की चक्की स्वरोजगार समूहों की मदद के लिये दी। किसान चाची दिल्ली के प्रगति मैदान से लेकर देश के दूसरे राज्यों में लगने वाले कृषि मेलों में स्वयं सहायता समूहों द्वारा बनाये गये उत्पादों को लेकर पहुंचती हैं। उनके स्टॉल पर लाइन लगकर भरोसे का सामान बिकता है।
नि:संदेह गांव की पगडंडियों पर रोज मीलों साइकिल चलाकर किसानों को आधुनिक तकनीक के प्रति जागरूक करने वाली किसान चाची आज अपने काम को पद्मश्री मिलने से खासी उत्साहित हैं। वह मानती हैं कि खेती में महिलाएं हाड़तोड़ मेहनत करती हैं मगर उनके काम का सही मूल्यांकन कभी नहीं हो पाता। उनके नाम जमीन न होने से उनको सरकारी योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल पाता। इस दिशा में सरकार रचनात्मक भूमिका निभाये तो महिलाएं भी घर की चौखट से निकलकर कृषि उत्पादों को बाजार तक पहुंचाकर आत्मनिर्भर बन सकती हैं। किसान चाची हमें विश्वास दिलाती हैं कि हमारे आसपास रहने वाले साधारण लोग भी दुनिया बदलने की कूबत रखते हैं।
No comments:
Post a Comment