Monday 18 March 2019

राजनीतिक पगडंडी पर अप्सरा की तेज चाल

ट्रांसजेंडर समुदाय का प्रतिनिधि चेहरा
कहते हैं कि इंसान में यदि कुछ करने का जुनून सवार हो तो उसे सफलता हासिल करने से कोई नहीं रोक सकता। जिस राजनीति को सबसे कठिन चुनौती माना जाता है उसी राजनीति के सहारे ट्रांसजेंडर समुदाय का प्रतिनिधि चेहरा अप्सरा रेड्डी समाज को बदलने का सबसे अचूक हथियार मान चुकी हैं। यह भारतीय राजनीति के इतिहास में पहली बार हुआ है कि कोई ट्रांसजेंडर किसी शीर्ष राजनीतिक पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बना है। गहरे सामाजिक सरोकारों व प्रतिभा के बूते अप्सरा रेड्डी कांग्रेस के महिला मोर्चे की राष्ट्रीय महासचिव बनी हैं।

दक्षिण भारत में दबंग पत्रकार और मुखर सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में पहचान बनाने वाली अप्सरा रेड्डी मूलत: आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले की रहने वाली हैं मगर उनकी स्कूली पढ़ाई चेन्नई में हुई। फिर उन्होंने अपनी प्रतिभा के दम पर स्कूल में टॉप किया और स्कॉलरशिप के बूते आस्ट्रेलिया और  ब्रिटेन में पत्रकारिता की पढ़ाई की। इसके बाद देश-विदेश में महत्वपूर्ण मीडिया संस्थानों में अपनी विशिष्ट छाप छोड़ी। अजय नाम से एक सामान्य लड़के के रूप में जीवन की शुरुआत करने वाली अप्सरा को बाद में महसूस होने लगा कि उसका शरीर तो पुरुष का है मगर मन स्त्री का है। उसने गूगल पर काफी तलाश की और पाया कि दुनिया में तमाम लोग उस जैसे ही हैं। उसे वे तमाम चीजें व पहनावा लुभाता था जो किसी स्त्री का आकर्षण होता है। मगर सख्त व शराब के लती पिता ने उसकी भावनाओं को कभी नहीं समझा। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। एक बार तो फीस न भरने पर स्कूल तक छोड़ना पड़ा। मगर मां एक सम्बल के रूप में उनके साथ रहीं। जब वह स्कॉलरशिप के जरिये पत्रकारिता की पढ़ाई के लिये आस्ट्रेलिया की मोनाश यूनिवर्सिटी गईं तो अपने जैसे लोगों के सम्पर्क में आईं। फिर उन्हें अहसास हुआ है कि उसका व्यवहार प्राकृतिक कारणों से है और विदेशों में इसे गरिमा के साथ स्वीकार किया जाता है। उसकी आस्ट्रेलिया व ब्रिटेन में काउंसलिंग हुई। कालांतर पिता के विरोध के बावजूद मां के सहयोग से थाईलैंड में लिंग परिवर्तन कराया जो उसके जीवन का सुखद अहसास था।

अब अजय अप्सरा बन चुकी थी। सामाजिक अन्याय के विरुद्ध मुखर अभिव्यक्ति लिये उसने पत्रकारिता को करियर के रूप में चुना। विभिन्न मीडिया संस्थानों में काम करने का उसे यह फायदा हुआ कि वह अब अपने विचारों को खुलकर सबसे सामने रखने लगी। बीबीसी लंदन में काम करने के बाद जब अप्सरा भारत आई तो न्यू इंडियन एक्सप्रेस, डेक्कन क्रानिकल व हिन्दू में काम किया। यह बात अलग थी कि शीर्ष सम्पादकों के सहयोग के बावजूद सहयोगी उसे अजीब निगाहों से देखते थे। वह स्वीकारती है कि भले ही सामाजिक रूप से उसे सहज रूप में नहीं लिया जाता था मगर धीरे-धीरे पत्रकारिता के माध्यम से उसे पहचान मिलने लगी।

बाद में अप्सरा रेड्डी को लगा कि वह राजनीतिक मंच से ही समाज के लिये बेहतर ढंग से काम कर सकती है। वर्ष 2016 में उसने भाजपा  अध्यक्ष अमित शाह के सामने पार्टी ज्वाइन की। लेकिन उसे लगा कि उसके खुले विचारों को पार्टी में तरजीह नहीं दी जा रही है, लिहाजा उसने पार्टी छोड़ दी। फिर तमिलनाडु में जयललिता के साथ अन्नाद्रमुक ज्वाइन कर ली। उसे पार्टी का राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया गया। जयललिता के जीवित रहने तक वह पार्टी में रही। मगर जब पार्टी में कलहबाजी शुरू हुई तो उसने कुछ दिन शशिकला के साथ रहने के बाद पार्टी से नाता तोड़ लिया।

अप्सरा रेड्डी मानती हैं कि उसे जीवन में अक्सर कहा जाता रहा कि तुम भारत में अपनी जिन्दगी में कुछ नहीं बन पाओगी, तुम विदेश चली जाओ। ऐसे में भारत की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी ने जिस तरह मुझे महिला कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव बनाया है, वह मेरे लिये भावुक पल था। काफी लम्बे अर्से से राजनीतिक व सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में पहचान बनाने वाली अप्सरा का मानना है कि ट्रांसजेंडर समुदाय को तभी न्याय मिलेगा जब राजनीतिक तौर पर उन्हें आवाज मिलेगी। इस समुदाय को उन क्षेत्रों में अपना भविष्य तलाशना चाहिए, जो अब तक उनसे अछूते रहे हैं। अब जब देश का कानून उनके साथ है तो वर्षों से ओढ़ी दरिद्रता उन्हें फेंकनी होगी।

अप्सरा रेड्डी को इस बात का दुख है कि भारतीय समाज ट्रांसजेंडर समुदाय के दर्द को नहीं समझता। वे आज भी नाच-गाकर अपना जीवनयापन करते हैं। कुछ न मिले तो यौन व्यवहार के जरिये जीविका चलाते हैं। वह अपने साथ हुई कई घटनाओं का जिक्र करती हैं कि सड़क पर  ऑडी कार में सफर करते वक्त स्कूटर पर चलने वाले  एक पुलिस वाले ने उनकी एक रात की कीमत पूछी थी। वहीं चुनाव के दौरान एक राजनेता ने उन्हें उनके निजी फॉर्म हाउस पहुंचने का निमंत्रण दिया था। वह दुख जताती हैं कि भारत में तो ट्रांसजेंडर को एक आदमी के रूप में भी स्वीकार नहीं किया जाता। सरकार तो ट्रांसजेंडर को सही रूप में परिभाषित भी नहीं कर पाई है तो उसके कल्याण के कायदे-कानून कैसे बनेंगे। सरकार उनके साथ होने वाली यौन हिंसा को गंभीरता से नहीं लेती। वह मानती है कि राजनीति में पुरुष के विरुद्ध मुद्दे निशाने पर होते हैं परंतु औरत की अस्मिता निशाने पर होती है। वह राहुल गांधी की बड़ी प्रशंसक हैं और मानती हैं कि उनकी मदद से मैं जेंडर जस्टिस के लिये काम कर पाऊंगी। अप्सरा मानती हैं कि अब उसका दायित्व समाज के हर वर्ग की महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई लड़ना है। वह ट्रांसजेंडर हैं तो इसका मतलब यह कतई नहीं है कि वह सिर्फ उन्हीं के लिये काम करेंगी। यह जरूर है कि मैं उनकी समस्याओं को करीब से महसूस करती हूं तो संवेदनशील ढंग से उन्हें उठाऊंगी।

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