Monday, 18 March 2019

हौसला हो तो भारुलता जैसा


भारुलता ने उत्तरी ध्रुव में फहराया तिरंगा

यह दुनिया बहुरंगी है। सबके अपने अलग-अलग शौक और महत्वाकांक्षाएं होती हैं। हर किसी व्यक्ति का सपना होता है कि वह अपने शौक को पूरा करे। मगर यदि उस शौक के जरिये प्रेरणा व बदलाव की मुहिम चलाई जाये तो शौक सार्थक सिद्ध हो जाता है। दुनिया की महिलाओं को यह बताने के लिये कि ब्रेस्ट कैंसर होने से दुनिया खत्म नहीं हो जाती बल्कि दुनिया फतह की जा सकती है, भारतीय मूल की ब्रिटिश नागरिक भारुलता ने कार से उत्तरी ध्रुव तक की दूरी नापकर यह जता दिया कि इंसान में यदि कुछ कर गुजरने का जुनून हो तो कोई काम असम्भव नहीं है। उत्तरी ध्रुव के सफर में भारुलता के साथ उनके दो किशोर बच्चे भी थे। देशभक्ति का जज्बा देखिये कि ब्रिटिश नागरिक होने के बावजूद भारुलता ने उत्तरी ध्रुव पहुंचकर भारतीय तिरंगा फहराया। ऐसा नायाब सफर तय करने वाली भारुलता पहली भारतीय महिला हैं। इस उपलब्धि के लिये ब्रिटिश संसद में भारुलता और उनके दोनों बेटों का सम्मान होना हर भारतीय के लिए गौरव की बात है।

बचपन में पिता के निधन के बाद भारुलता के सामने भविष्य का संकट पैदा हो गया। चाचा ने साथ रखने से न केवल मना किया बल्कि बोले-  लड़कियां तो रास्ते का पत्थर होती हैं, जिन्हें कोई भी ठोकर मार जाता है। चाचा की इस बात ने भारुलता के मर्म पर इतनी गहरी चोट की कि उसने संकल्प लिया कि वह दुनिया को बताएंगी कि बेटियां क्या कुछ नहीं कर सकतीं। भारुलता ननिहाल में पढ़ी-बढ़ीं और उन्होंने दुनिया को चौंकाने का संकल्प लिया। भारुलता ने उत्तरी ध्रुव यानी नार्डकैप की बीस दिन की यात्रा तमाम जोखिम उठाते हुए पूरी की। ब्रिटेन के ल्यूटन से शुरू हुआ दस हजार किलोमीटर का सफर बच्चों के साथ पूरा करना निश्चिय ही दुस्साहस भरा कदम कहा जायेगा।

भारुलता ने अपनी यात्रा इंग्लैंड, फ्रांस, बेल्जियम, डेनमार्क, पोलैण्ड, स्वीडन आदि 14 देशों से गुजरते हुए पूरी की। पूरे सफर में उनके दस व तेरह साल के बेटे आरुष व प्रियम भी साथ थे। एक बार वे स्वीडन में आये तूफान में फंसकर मुश्किल हालातों में जा पहुंचे। उन्हें रेस्क्यू टीम ने चार घंटे की मदद के बाद बचाया। फिर एक घर में चार दिन के लिये पनाह ली। संयोग देखिये कि यह घर केरल मूल के भारतीय का था, जिसने निर्जन इलाके में भारतीय आतिथ्य का एहसास करा दिया। भारुलता जब दुनिया के अंतिम छोर कहे जाने वाले उत्तरी ध्रुव पहुंचीं तो वहां का तापमान माइनस पंद्रह था। इसके बावजूद उन्होंने वहां तिरंगा फहराकर उद्दात राष्ट्रीय भावना का परिचय दिया।

इस अभियान का रोचक पक्ष यह है कि भारुलता की इस यात्रा का मार्गदर्शन घर बैठे उनके पति करते रहे। पेशे से महाराष्ट्र मूल के डॉक्टर सुबोध कांबले घर से ही अभियान को नेविगेट करते रहे। ऐसी स्थिति में जब बेहद विषम परिस्थितियों में यात्रा कर रही भारुलता के पास वैकल्पिक कार और बैकअप क्रू नहीं था तो पति का मार्गदर्शन ही काम आया। उनके पास भारुलता की कार का ट्रैकिंग पासवर्ड था। जिसके जरिये वे रास्ते बताते रहे कि कहां वे अपनी यात्रा में सुरक्षित विश्राम कर सकती हैं और कहां कार में ईंधन डलवा सकती हैं।

दरअसल, विवाह से पहले भारुलता को कार ड्राइविंग का बेहद शौक था, जिसे उन्होंने अपने वकालत के पेशे और पारिवारिक जिम्मेदारियों को पूरा करते हुए परवान चढ़ाया। मगर उनकी कोशिश थी कि उनका शौक दूसरे लोगों के जीवन में बदलाव का वाहक बने। जब उन्हें ब्रेस्ट कैंसर हुआ तो वह गहरे अवसाद में थीं। उन्होंने अपने ऊंचे मनोबल से किसी हद तक इस जानलेवा रोग को टाला भी। इसी बीच दोनों बेटों ने सलाह दी कि क्यों न वह अपने कार ड्राइविंग शौक को पूरा करते हुए कुछ ऐसा करें कि दुनिया के लिये प्रेरणा की मिसाल बन जाएं। बच्चों ने अपनी उम्र के हिसाब से समाधान रखा कि फिर हम सेंटाक्लॉज से कहेंगे कि वह आपका कैंसर ठीक कर दे। भारुलता को यह सुझाव रोचक लगा और फिर वह बच्चों को लेकर निकल पड़ीं दुनिया फतह करने।

इससे पहले भारुलता अपनी ड्राइविंग के जरिये कई रचनात्मक अभियान चला चुकी थीं। मसलन बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, कैंसर मुक्त महिलाएं, प्लास्टिक मुक्त दुनिया के लिये लोगों को प्रेरित करती रही हैं। जिसके लिये उन्हें भारत के राष्ट्रपति ने सम्मानित भी किया। इसकी वजह यह है कि गुजरात मूल की भारुलता परदेस में रहते हुए भी भारतीय सरोकारों से गहरे तक जुड़ी हैं। भारुलता का विश्वास रहा है कि उद्देश्यपूर्ण ढंग से किया गया कोई भी कार्य समाज के लोगों को प्रेरणा देता है। यही वजह है कि मैंने अपने शौक को मकसद देकर सोच बदलने की मुहिम शुरू की है। इसी कड़ी में मैंने अब पचास देशों की यात्रा कार से पूरा करने का मन बनाया है।

ब्रिटिश सरकार की पूर्व नौकरशाह रहीं भारुलता जीवन के रंगमंच में तमाम तरह की भूमिका निभा रही हैं। वह वकील हैं, मां हैं, पत्नी हैं, संगीत-कला में दखल है, डॉक्यूमेंट्री बनाती हैं और हर कसौटी पर खरी उतरती हैं। कार चलाने का जुनून इस हद तक है कि रास्ते में मैकेनिक न मिले तो क्या होगा, यह सोचकर कार की गूढ़ तकनीकी जानकारियां भी हासिल कीं। इतना ही नहीं, भारत में अपने पैतृक गांव से जुड़े सैकड़ों गांवों में वह बदलाव की रचनात्मक मुहिम चलाती रही हैं। भारुलता का ऊंचा मनोबल इस बात का संदेश देता है कि ईश्वर भी बहादुरों का ही साथ देते हैं।

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