Monday, 18 March 2019

बैडमिंटन का अनमोल रत्न


साइना नेहवाल और पी.वी. सिंधु

भारतीय बैडमिंटन में साल भर दो बेटियों की ही चर्चा होती है। दुनिया में कोई भी प्रतियोगिता हो ओलम्पिक पदकधारी साइना नेहवाल और पी.वी. सिंधु से हम पदक की जब-जब अपेक्षा करते हैं ये दोनों शटलर अपने मुरीदों को निराश नहीं करतीं। बैडमिंटन के क्षेत्र में देश को शोहरत दिला रही इन बेटियों की अदम्य इच्छाशक्ति और इनके माता-पिता के समर्पण की जितनी तारीफ की जाए कम है। पी.वी. सिंधु और साइना नेहवाल को खेल विरासत में मिले। इन दोनों के माता-पिता खिलाड़ी रहे हैं, तथापि इनकी निगरानी और प्रोत्साहन की बदौलत ही आज देश गौरवान्वित है। साइना नेहवाल और पी.वी. सिंधु की उपलब्धियां भारतीय बैडमिंटन ही नहीं समूचे खेलों के लिए किसी सौगात से कम नहीं हैं। सच्चाई यह है कि आज खेल के क्षेत्र में यह दोनों बेटियां देश का गौरव हैं।

पहली बार साइना का नाम सुर्ख़ियों में वर्ष 2006 में आया था जब उन्होंने फोर स्टार फिलीपिंस ओपन में ख़िताबी जीत हासिल की थी। साइना यह उपलब्धि हासिल करने वाली भारत की पहली महिला खिलाड़ी बनी थीं। साइना ने 2006 में ही विश्व जूनियर बैडमिंटन चैम्पियनशिप जीतकर समूची दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा था। 17 मार्च, 1990 को जन्मी साइना ओलम्पिक का कांस्य पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं। साइना को बैडमिंटन कोर्ट पर उतारने में उनके पिता डॉक्टर हरवीर सिंह और माँ ऊषा नेहवाल की अहम भूमिका है। दोनों बैडमिंटन खिलाड़ी रह चुके हैं।

साइना नेहवाल के पदचिह्नों पर चलने का संकल्प लेकर बैडमिंटन कोर्ट पर कदम रखने वाली पी.वी. सिंधु आज शिखर से कुछ फासले पर हैं। इस शटलर ने अपने हैरतअंगेज प्रदर्शन से उन प्रतिमानों को छुआ है जोकि साइना नेहवाल से छूट गए थे। पी.वी. सिंधु ने अपने नायाब प्रदर्शन से हमेशा चौंकाया है तो साइना नेहवाल समय-समय पर खिताबी जश्न मनाकर हर भारतवासी को पुलकित कर देती हैं। सबसे बड़ी बात यह कि सिंधु दुनिया के चोटी के खिलाड़ियों के लिए खतरा पैदा करती हैं तो साइना नेहवाल समझदारी भरे खेल से प्रतिद्वंद्वी को मात देती हैं। सिंधु हमेशा शीर्ष वरीयता प्राप्त खिलाड़ियों को हराकर चौंकाती हैं लेकिन जब उनका मुकाबला कम रैंकिंग वाली खिलाड़ियों से होता है तो उनका खेल धीमा पड़ जाता है।

किसी टिप्पणी से बचने वाले कोच और अपने समय के मशहूर बैडमिंटन खिलाड़ी पुलेला गोपीचंद कहते हैं कि सिंधु छुपी रुस्तम साबित होती है। ऐसे ही रियो ओलम्पिक में अपने से ऊंची रैंकिंग वाली खिलाड़ियों को हराकर वह फाइनल में पहुंची थी। वह फाइनल भी जीत सकती थी मगर वहां उसका मुकाबला दुनिया में नम्बर वन रैंकिंग वाली खिलाड़ी स्पेन की कैरोलिना मारिन से था। सिंधु ओलम्पिक में रजत पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बैडमिंटन खिलाड़ी बनी थीं। भारत के लिए बैडमिंटन में पहला ओलम्पिक पदक साइना नेहवाल ने 2012 के लंदन ओलम्पिक में जीता था। साइना नेहवाल का यही कांस्य पदक महिला एकल बैडमिंटन में भारत के दमखम का परिचायक बना। उस कांसे के तमगे ने बैडमिंटन प्रेमियों में यह विश्वास जगाया कि हमारे खिलाड़ी भी अब चीन, इंडोनेशिया, जापान जैसी शक्तियों का मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम हैं। 

सिंधु के कामयाब सफर का अंदाजा इस बात से भी मिलता है कि वह महज 23 साल की उम्र में ही राजीव गांधी खेल रत्न और पद्मश्री हासिल कर चुकी हैं। रियो ओलम्पिक में रजत जीतने के बाद तेलंगाना सरकार ने उन्हें पांच करोड़ का  ईनाम और सरकारी नौकरी दी। पांच जुलाई 1995 को तेलंगाना में जन्मी पी.वी. सिंधु की पांच फुट दस इंच की ऊंचाई बैडमिंटन कोर्ट में ताकत बनती है। एक मायने में कह सकते हैं कि खेल के संस्कार उसे विरासत में मिले हैं। पिता पी.वी. रमन्ना और मां पी. विजय वॉलीबाल के राष्ट्रीय खिलाड़ी रहे हैं और पिता अर्जुन पुरस्कार विजेता हैं। घर में खेलों के अनुरूप वातावरण उन्हें बैडमिंटन की दुनिया में ले आया। उनकी प्रतिभा को निखारने का काम ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियन रहे पुलेला गोपीचंद ने पूरा किया। जिनकी बैडमिंटन एकेडमी हैदराबाद में ही स्थित है।

एक के बाद एक सफलता ने सिंधु को सुर्खियों का सरताज बना दिया। उनकी झोली में कई खिताब हैं। जिनमें 2013 में जीता मलेशिया ओपन और मकाऊ ओपन का खिताब, 2017 में कोरिया ओपन सुपर सीरिज का खिताब, वर्ष 2016 में चाइना ओपन का खिताब अपने नाम कर चुकी हैं। सिंधु ने धीरे-धीरे बड़े खिताब जीतने की क्षमताओं को विस्तार दिया है। सिंधु ने एशियन गेम्स-2018 में भारत को रजत पदक दिलाया था। पी.वी. सिंधु के शानदार कौशल से ही भारत को एशियन गेम्स में 36 साल बाद कोई पदक हासिल हुआ। लगातार दुनिया के चोटी के खिलाड़ियों को हराकर खिताब जीतने वाली सिंधु का खेल लगातार निखार पर है। सिंधु की गिनती भारत के सम्पन्न खिलाड़ियों में होती है। वह दुनिया की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली महिला खिलाड़ियों की सूची में शीर्ष 10 में हैं।  सिंधु से भारत को बड़ी उम्मीदें हैं। उसकी उम्र के लिहाज से उसमें बहुत खेल बाकी है। वह पूरे दमखम के साथ दुनिया की चोटी की खिलाड़ियों को चुनौती दे रही हैं। जो भविष्य की सुखद उम्मीद जगाती हैं।

साइना नेहवाल और पी.वी. सिंधु में श्रेष्ठता की जब भी बात होती है, पुलेला गोपीचंद कहते हैं कि दोनों का खेलने का तरीका अलग है। इन दोनों खिलाड़ियों में दुनिया की किसी भी खिलाड़ी को हरा देने की क्षमता है। इन दोनों के बीच जब-जब मुकाबले हुए हैं अधिकतर बार साइना नेहवाल ही जीती हैं। साइना नेहवाल ने 21वें कॉमनवेल्थ गेम्स में बैडमिंटन के महिला एकल फाइनल मुकाबले में स्टार शटलर पीवी सिंधु को बेहद कड़े मुकाबले में 21-18 और 23-21 से पराजित किया था। दोनों ही खिलाड़ियों के बीच एक-एक पॉइंट के लिए जबरदस्त टक्कर देखने को मिली थी। कॉमनवेल्थ गेम्स में साइना नेहवाल दो गोल्ड मेडल जीतने वाली भारत की पहली महिला शटलर हैं। इससे पहले उन्होंने दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स-2010 में भी गोल्ड मेडल जीता था। 21वें कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत को पहली बार महिला एकल का गोल्ड और सिल्वर दोनों मेडल मिले। अगर बात करें साइना बनाम सिंधु की तो नवम्बर 2017 में सीनियर नेशनल चैम्पियनशिप में आमने-सामने थीं, जिसमें भी साइना ने जीत दर्ज की थी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साइना और सिंधु इससे पहले दो बार भिड़ी हैं जिसमें से दोनों ने 1-1 बार जीत दर्ज की है। 2014 में सैयद मोदी ग्रांप्री में साइना ने सिंधु को हराया था तो 2017 में इंडिया ओपन सुपर सीरीज में सिंधु ने साइना को शिकस्त दी थी। जो भी हो यह दोनों बेटियां भारत का अनमोल रत्न हैं।

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