खेलों में ढांचागत सुविधाओं का अभाव
श्रीप्रकाश शुक्ला

देश की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए
मूलभूत ढांचागत सुविधाएं बढ़ाना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए थी। यहां तक कि
दिल्ली में भी छत्रसाल स्टेडियम, विनोद नगर, अशोक नगर, बवाना, नजफगढ़, सिंघु बार्डर
और त्यागराज स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स ही ऐसे केंद्र हैं जहां दिल्ली सरकार की खेल
सुविधाएं उपलब्ध हैं। बाकी भारतीय खेल प्राधिकरण की सुविधाएं नेशनल स्टेडियम, आईजी
स्टेडियम, कर्णी सिंह रेंज और तालकटोरा तरणताल तक सीमित हैं जबकि डीडीए
कॉम्प्लेक्स आम आदमी के लिहाज से काफी महंगा है। दिल्ली से इतर अन्य राज्यों की
बानगी लें तो खिलाड़ियों के लिए मुकम्मल मैदान ही नहीं हैं। दिल्ली में स्कूली खिलाड़ियों
का खेलो इंडिया के नाम जो स्वांग हुआ उससे पहले मोदी सरकार को यह जानने की कोशिश
करनी थी कि देश के कितने स्कूलों में क्रीड़ांगन हैं। अफसोस की बात ही मुल्क के 50
फीसदी से अधिक स्कूलों में छात्र-छात्राओं के खेलने की सुविधा ही नहीं है। जहां
सुविधा भी है वहां प्रशिक्षक नहीं हैं।
सरकार ने वाहवाही बटोरने के लिए
राष्ट्रीय स्कूल खेलों में ग्लैमर का तड़का लगाकर खेलो इंडिया योजना शुरू करने के
साथ बजट में इसकी राशि को 350 करोड़ से बढ़ाकर 520.9
करोड़ कर दिया गया। गांव-देहात से लेकर कस्बों और शहरों में इस बात का खूब प्रचार
किया गया कि इस योजना में चुने गए खिलाड़ियों को अगले आठ साल तक पांच लाख रुपए
मिलेंगे जबकि सच यह है कि यह राशि आधुनिकतम सुविधाओं और उनके प्रशिक्षण पर खर्च की
जाएगी। यह ट्रेनिंग कहां दी जाएगी, इसकी भी अभी तक पहचान नहीं की जा सकी है। सच तो
यह है कि खेलो इंडिया योजना न तो पूरी तरह से खिलाड़ियों के साथ जुड़ पाई है और न ही
दर्शकों के साथ। आलम यह है कि जिन खिलाड़ियों के नाम सूची में नहीं थे, उन्हें भी
मैदान में उतार दिया गया।
इस साल अप्रैल में राष्ट्रमंडल खेल हैं
और अगस्त में एशियाई खेल। विश्व कप हॉकी भी इसी साल है। ऐसे में खेल के नीति
निर्धारकों को 2010 के राष्ट्रमंडल खेल से सबक सीखना चाहिए था,
जहां तीन साल के प्रशिक्षण पर ही 650 करोड़ रुपए मुहैया कराए गए थे। इस
प्रशिक्षण ने उन खेलों में भारत के सौ पदक और लंदन ओलम्पिक में अब तक का
सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन (पांच पदक) करने में अहम भूमिका निभाई थी। सरकार को यह बात
अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि बेवजह का बजट बढ़ाने से अच्छे परिणामों की उम्मीद
नहीं की जा सकती। आज दक्षिण अफ्रीका से लेकर स्वीडन, केन्या, क्यूबा और नाइजीरिया
आदि देशों का बजट भारत से कहीं कम है लेकिन ये सभी देश कुछ खेलों में अपना अलग
वजूद रखते हैं। जरूरत है सही दिशा में सही कदम उठाने की। खिलाड़ियों की ट्रेनिंग,
ढांचागत आधारभूत सुविधाएं और डोपिंग जैसे मुद्दों की अनदेखी खेलो इंडिया योजना पर
करोड़ों बहाकर पूरी नहीं की जा सकती। जरूरत है सही समय पर सही कदम उठाने की।
जुमलेबाजी से देश की अवाम को लम्बे समय तक नहीं बरगलाया जा सकता। यह सच है कि
बिगड़ा ढांचा जल्दी नहीं सुधर सकता लेकिन जमीनी प्रयास किए बिना परिणाम भी नहीं
मिल सकते। बेशक हर महीने खेलो इंडिया का स्वांग रचा जाता रहे।
खेल बजट एक नजर
में- कुल बजट 2196.36 करोड़ रुपए (इस
साल 258 करोड़ की वृद्धि), खिलाड़ियों की ट्रेनिंग और सुविधाओं को ठनठन गोपाल,
डोपिंग जैसे संवेदनशील मुद्दे पर नजर ही नहीं, खेलो इंडिया का बजट हुआ 520.9
करोड़ रुपए, भारतीय खेल प्राधिकरण के बजट में कटौती।
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