दैदीप्यमान
बेटियां
भारत रत्न स्वर-कोकिला लता मंगेशकर को भला कौन
जानता। अपनी सुमधुर आवाज के चलते इनकी गिनती दुनिया की अनमोल गायिकाओं में होती है।
लता की सुमधुर आवाज के दीवाने भारत ही नहीं समूची दुनिया में हैं। संगीत की मलिका
कहलाने वाली लता मंगेशकर ने अब तक के अपने जीवन में अनेक झंझावातों का सामना किया
है। अपने भाई और बहनों का जीवन संवारने की खातिर स्वर-कोकिला का आजीवन कुंवारी
रहने का संकल्प अपने आप में एक नजीर है। लता मंगेशकर का नाम सुनते ही हम सभी के
कानों में मीठी-मधुर आवाज शहद-सी घुलने लगती है। आठ दशक से भी अधिक समय से
हिन्दुस्तान की आवाज बनीं लता ने 30 से अधिक भाषाओं में हजारों फिल्मी और गैर-फिल्मी गानों में अपनी आवाज
का जो जादू बिखेरा वह अप्रतिम है। लता मंगेशकर ही एकमात्र ऐसी जीवित शख्सियत हैं
जिनके नाम पर देश में पुरस्कार दिए जाते हैं। लता की कोयल सी मधुर आवाज ने सैकड़ों
फिल्मी गीतों को अमर बनाया है।
भारत रत्न लता मंगेशकर का कार्यकाल उपलब्धियों
से भरा है। स्वर-कोकिला लता जी ने 30
भाषाओं में तीस हजार से अधिक गाने गाये हैं। इनकी आवाज सुनकर कभी
किसी की आँखों में आँसू आए, तो कभी सीमा पर खड़े जवानों को सहारा मिला। लता जी आज
भी अकेली हैं। उन्होंने स्वयं को पूर्णतः संगीत को समर्पित कर रखा है। स्वर-कोकिला
लता की पहचान भारतीय सिनेमा में एक पार्श्वगायक के रूप में सबसे अलग है। अपनी बहन
आशा भोंसले के साथ लता जी का फिल्मी गायन में सबसे बड़ा योगदान है। लता की ही तरह
उनके भाई हृदयनाथ मंगेशकर और बहनें ऊषा मंगेशकर, मीना मंगेशकर तथा आशा भोंसले ने
संगीत को अपना करियर चुना। हम कह सकते हैं कि लताजी और उनके भाई-बहनों को संगीत की
तालीम विरासत में मिली है।
लता मंगेशकर का जन्म 28 सितम्बर, 1929 को एक मध्यमवर्गीय मराठा परिवार में हुआ। मध्य
प्रदेश के इंदौर शहर में जन्मीं लता पंडित दीनानाथ मंगेशकर की बड़ी बेटी हैं। लता
का पहला नाम हेमा था मगर जन्म के पांच साल बाद इनके माता-पिता ने इनका नाम बदलकर लता
रख दिया। लता अपने सभी भाई-बहनों में बड़ी हैं। मीना, आशा, ऊषा तथा हृदयनाथ उनसे
छोटे हैं। लता के पिता रंगमंच के कलाकार और गायक रहे। लता की परवरिश महाराष्ट्र
में हुई। जब लता मंगेशकर सात साल की थीं तब वह इंदौर से महाराष्ट्र आईं। लता ने पांच
साल की उम्र से ही पिता के साथ एक रंगमंच कलाकार के रूप में अभिनय शुरू कर दिया था।
लता मंगेशकर बचपन से ही गायिका बनना चाहती थीं। लता मंगेशकर हमेशा से ही ईश्वर द्वारा
प्रदत्त सुरीली आवाज, जानदार अभिव्यक्ति और हर बात को बहुत जल्द समझ लेने वाली अविश्वसनीय
क्षमता का उदाहरण रही हैं। इन्हीं विशेषताओं के कारण उनकी इस प्रतिभा को बहुत जल्द
ही पहचान मिल गई थी। वर्ष 1942 में इनके पिता की मौत हो गई। इस दौरान
लता सिर्फ 13 वर्ष की थीं। नवयुग चित्रपट फिल्म कम्पनी
के मालिक और इनके पिता के दोस्त मास्टर विनायक ने इनके परिवार को सम्भाला तथा
लता मंगेशकर को एक सिंगर व अभिनेत्री बनाने में मदद की।
सफलता की राह कभी भी आसान नहीं होती। लताजी को
भी अपना स्थान बनाने में बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। कई संगीतकारों ने तो शुरू-शुरू
में पतली आवाज के कारण लताजी को काम देने से ही साफ मना कर दिया था। उस समय की
प्रसिद्ध पार्श्व गायिका नूरजहां के साथ लताजी की तुलना की जाती थी लेकिन धीरे-धीरे
अपनी लगन और प्रतिभा के बल पर आपको काम मिलने लगा। लताजी की अद्भुत कामयाबी ने इन्हें
फिल्म जगत की सबसे मजबूत महिला बना दिया। लताजी को सर्वाधिक गीत रिकार्ड करने का
भी गौरव प्राप्त है। फिल्मी गीतों के अतिरिक्त आपने गैर-फिल्मी गीत भी बखूबी गाए
हैं। देखा जाए तो लताजी की प्रतिभा को असल पहचान सन् 1947 में मिली, जब इन्हें फिल्म आपकी सेवा में एक
गीत गाने का मौका मिला। इस गीत के बाद लताजी को फिल्म जगत में न केवल एक पहचान मिली बल्कि एक के बाद एक कई गीत गाने के
मौके भी मिले। लताजी की जहां तक बात है इन्होंने सभी प्रसिद्ध संगीतकारों के साथ
काम किया यही वजह रही कि अनिल बिस्वास, सलिल चौधरी, शंकर जयकिशन, एस.डी. बर्मन, आर.डी.
बर्मन, नौशाद, मदनमोहन, सी. रामचंद्र इत्यादि संगीतकारों ने आपकी प्रतिभा का लोहा
माना। लताजी ने दो आँखें बारह हाथ, दो बीघा जमीन, मदर इंडिया, मुगल-ए-आजम आदि महान
फिल्मों में गाने गाये हैं, जोकि आज भी लोगों की जुबां से बरबस सुने जाते हैं।
लता के पिता शास्त्रीय संगीत के बहुत बड़े
प्रशंसक थे, इसीलिए शायद वह लता के फिल्मों में गाने के खिलाफ थे। वर्ष 1942 में पिता का देहांत होते ही लता के परिवार की आर्थिक
स्थिति बिगड़ गई और अर्थोपार्जन के लिए उन्हें मराठी और हिन्दी फिल्मों में छोटी-छोटी
भूमिकाएं निभानी पड़ीं। लता मंगेशकर को पहली बार मंच पर गाने के लिए 25 रुपये मिले थे। इसे वह अपनी पहली कमाई मानती
हैं। लता ने पहली बार 1942 में मराठी फिल्म किती हसाल के लिए गाना गाया था। बचपन
की शरारती लता मंगेशकर कुंदनलाल सहगल की फिल्म चंडीदास देखने के बाद कहतीं कि वह बड़ी
होकर सहगल से शादी करेंगी लेकिन उन्होंने अपने भाई और बहनों की खातिर शादी नहीं की।
लता कहती हैं कि घर के हालातों और भाई व बहनों की परवरिश की जिम्मेदारी उन पर थी,
ऐसे में जब शादी का ख्याल आता भी तो उस पर अमल करना सम्भव नहीं था। लता कहती हैं
कि बेहद कम उम्र में ही मैंने काम करना शुरू कर दिया था। सोचती थी कि पहले सभी
छोटे भाई-बहनों को व्यवस्थित कर दूं उसके बाद अपने बारे में सोचूंगी। वक्त निकलता
चला गया। भाई-बहनों में ऐसी रम गई कि अपने बारे में सोचने का वक्त ही नहीं मिला। सच
कहें तो लताजी ने अपने भाई और बहनों के लिए मां और पिता दोनों का रोल निभाया।
स्वर कोकिला लता मंगेशकर बताती हैं कि 1940 के
दशक में जब मैंने फिल्मों में गाना शुरू ही किया था तब मैं अपने घर से लोकल ट्रेन
पकड़कर मलाड जाती थी। मलाड से उतरकर पैदल जाती। रास्ते में
किशोर दा भी मिलते लेकिन मैं उनको और वह मुझे नहीं पहचानते थे। किशोर दा मेरी तरफ
देखते रहते। कभी हंसते, कभी अपने हाथ में पकड़ी छड़ी घुमाते रहते। मुझे उनकी
हरकतें अजीब सी लगतीं। मैं उस वक्त खेमचंद प्रकाश की एक फिल्म में गाना गा रही थी।
एक दिन किशोर दा भी मेरे पीछे-पीछे स्टूडियो पहुंच गए। मैंने खेमचंद जी से शिकायत
की कि चाचा ये लड़का मेरा पीछा करता रहता है, मुझे देखकर हंसता है। तब उन्होंने बताया
कि अरे ये तो अपने अशोक कुमार का छोटा भाई किशोर है। फिर उन्होंने मेरी और किशोर
दा की मुलाकात करवाई और हमने उस फिल्म में पहली बार एक साथ गाना गाया। मोहम्मद रफी
से अपनी अनबन पर लता मंगेशकर कहती हैं कि रफी साहब ने मुझसे कहा मैं तुम्हारे साथ
गाने ही नहीं गाऊंगा। मैंने भी पलट कर कह दिया आप ये तकलीफ मत करिए, मैं ही नहीं
गाऊंगी आपके साथ।
लता मंगेशकर कहती हैं कि 1960 के दशक में मैं
अपनी फिल्मों में गाना गाने के लिए रॉयल्टी लेना शुरू कर चुकी थी लेकिन मुझे लगता
कि सभी गायकों को रॉयल्टी मिले तो अच्छा होगा। इसके लिए मैंने, मुकेश भैया व तलत
महमूद ने एक एसोसिएशन बनाई तथा रिकॉर्डिंग कम्पनी एचएमवी और प्रोड्यूसर्स से मांग
की कि गायकों को गानों के लिए रॉयल्टी मिलनी चाहिए लेकिन हमारी मांग पर कोई सुनवाई
नहीं हुई। यह बात मुझे अच्छी नहीं लगी सो हमने एचएमवी के लिए रिकॉर्ड करना ही बंद
कर दिया। तब कुछ निर्माताओं और रिकॉर्डिंग कम्पनी ने मोहम्मद रफी को समझाया कि ये
गायक क्यों झगड़े पर उतारू हैं। गाने के लिए जब पैसा मिलता है तो रॉयल्टी क्यों
मांगी जा रही है। रफी भैया बड़े भोले थे। उन्होंने कहा कि मुझे रॉयल्टी नहीं चाहिए।
उनके इस कदम से हम सभी गायकों की मुहिम को तगड़ा धक्का पहुंचा। मुकेश भैया ने
मुझसे कहा कि रफी साहब को बुलाकर आज ही सारा मामला सुलझा लिया जाए। हम सबने रफी जी
से मुलाकात की। सबने रफी साहब को समझाया तो वह गुस्से में आ गए। वह मेरी तरफ देखकर
बोले मुझे क्या समझा रहे हो। ये जो महारानी बैठी है, इसी से बात करो। रफी साहब की
बात मुझे बुरी लगी और मैंने भी गुस्से में कह दिया आपने मुझे सही समझा मैं महारानी
ही हूं। इस वाकये के बाद मैंने कई संगीतकारों को फोन करके कह दिया कि मैं आइंदा रफी
साहब के साथ गाने नहीं गाऊंगी। इस तरह से हमारा लगभग चार साल तक झगड़ा चला।
लताजी कहती हैं कि उस दौर की सभी अभिनेत्रियों
से मेरी अच्छी दोस्ती थी। नरगिस दत्त, मीना कुमारी, वहीदा रहमान, साधना, सायरा
बानो सभी से मेरी नजदीकियां थीं। दिलीप साहब मुझे अपनी छोटी बहन मानते थे। लता
कहती हैं कि आज की नई अभिनेत्रियों में मुझे काजोल और रानी मुखर्जी पसंद हैं। लता
दी कहती हैं कि मजरुह सुल्तानपुरी जी की पत्नी से मेरी काफी अच्छी दोस्ती थी। मैं
उनके घर अक्सर जाया करती थी। वह बड़ा अच्छा खाना बनाती थीं। उन्होंने मुझे काफी
चीजें बनाना सिखाईं। मैं उन्हें अपनी गुरू मानती हूं। लता मंगेशकर कहती हैं कि जब
हमने काम शुरू किया तो काफी मुश्किल दौर था। रिकॉर्डिंग के लिए इधर-उधर भागना
पड़ता था लेकिन उस काम में बड़ी संतुष्टि मिलती थी। बहुत मेहनत के साथ जो गाने
गाते थे उन्हें सुनकर बड़ा अच्छा लगता। मुझे मुकेश भैया जैसे बड़े लोग आज भी बहुत याद
आते हैं।
लता बताती हैं कि मैं अपने भाई-बहनों की सख्त
दीदी नहीं थी। मैं उनसे बहुत प्यार करती हूं। मैंने वे दिन भी देखे हैं जब पिताजी
की मृत्यु हुई तो बड़ी मुश्किल से काम शुरू किया। आज तक मैंने उन्हें कभी डांटा
नहीं। हम भाई-बहनों की सबसे खास बात ये थी कि हमारे बीच कभी झगड़ा नहीं हुआ। हम लोग
आज तक नहीं लड़े। हम लोग सांगली में पिताजी के बनवाए एक बड़े घर में रहते थे। मेरे
पिताजी को मां के हाथ की बनाई कुछ चीजें बहुत अच्छी लगती थीं। वैसे तो घर में खाना
बनाने के लिए एक नौकर था लेकिन पिताजी के लिए मां कुछ न कुछ बनाती रहती थीं। मैं
उनके पीछे-पीछे किचन में चली जाती और एक स्टूल पर खड़े होकर मां को गाना सुनाती थी।
मां कहती थीं अरे तू मुझे खाना बनाने दे लेकिन मैं कहती नहीं तुम सुनो ना। मैं
उन्हें बाबा के गाने और सहगल के गाने गाकर सुनाती थी। मां मुझसे नाराज हो जाती थीं
और कहती थीं अरे ये लड़की तो मुझे काम ही नहीं करने देती।
लता बताती हैं कि मैं बहुत शरारती थी। मेरी मां
मुझे पकड़कर मारती भी थीं। मैं गुस्से में अपनी फ्रॉक को गठरी में बांधकर कहती थी
मैं घर छोड़कर जा रही हूं। मैं वाकई सड़क पर निकल जाती थी। मेरे घर के पास एक
तालाब जैसा था और मां सोचतीं कि कहीं मैं वहां गिर ना जाऊं इसलिए मुझे वापस लाने
के लिए नौकरों को भेजती थीं। एक बार मैं घर छोड़कर बाहर निकल गई तो बालकनी में
पिताजी खड़े थे और उन्होंने कहा कि हां-हां लता को जाने दो, इसको बहुत तकलीफ देते
हैं हम लोग। जाओ-जाओ लता। पिताजी ऐसा बोल रहे थे और मैं पीछे
मुड़-मुड़कर देख रही थी कि कोई मुझे रोकने आए लेकिन कोई नहीं आ रहा था। लता पुराने
दिनों को याद कर कहती हैं कि हमारे घर का माहौल संगीत का ही रहता था हालांकि मेरी
मां नहीं गाती थीं लेकिन वे गाना समझती थीं।
पिताजी सुबह साढ़े पांच बजे तानपुरा लेकर शुरू
हो जाते थे। लता बताती हैं कि एक बार मेरे पिताजी अपने शागिर्द को संगीत सिखा रहे
थे। उन्हें शाम को कहीं जाना पड़ा तो उन्होंने शागिर्द से कहा कि तुम अभ्यास करो
मैं आता हूं। मैं बालकनी में बैठे शागिर्द को सुन रही थी। मैं उसके पास गई और कहा
कि ये बंदिश तुम गलत गा रहे हो। इसे ऐसे गाते हैं और मैंने उसको वो बंदिश गाकर
सुनाई। इतनी देर में पिताजी आ गए और मैं वहां से भाग खड़ी हुई। उस वक्त मैं चार-पांच साल की ही थी और पिताजी
को नहीं पता था कि मैं गाती भी हूं। शागिर्द के जाने के बाद पिताजी ने मां से कहा
कि अपने घर में गवैया बैठा है और हम बाहर वालों को सिखा रहे हैं। अगले दिन पिताजी
ने मुझे छह बजे उठाकर तानपुरा थमा दिया। लता बताती हैं कि फिल्मों में गाना गाने
से पहले मैं एक मराठी कम्पनी प्रफुल्ल पिक्चर्स में काम करती थी। मेरे लिए कोई
विशेष रोल नहीं बनते थे। मैं छोटे-छोटे रोल करती थी। कभी हीरो की बहन तो कभी
हीरोइन की बहन का रोल मिलता था, उस वक्त मैं 14 साल की थी। मैं बस कम्पनी में काम करती और घर
आकर रियाज करती थी। जो कुछ भी पिताजी से सीखा था उसका अभ्यास करके ही मैं आगे बढ़ी।
लता कहती हैं कि एक वक्त ऐसा भी था जब मुझे फिल्म समझने की बुद्धि नहीं थी लेकिन
गाने बहुत अच्छे लगते थे। मैं पिताजी से कहती थी कि मुझे सहगल बहुत अच्छे लगते हैं।
दिन-रात सहगल-सहगल चलता था हमारे घर। मैं 1942 में फिल्मों में आई। देखा जाए तो भारतीय फिल्मों के 100 साल के सफर
में 70 साल तो लताजी के ही हैं।
राज का राज किसी को नहीं पता
लता मंगेशकर के लम्बे सफल करियर में कुछ ऐसे
नाम भी जुड़े जिनसे स्वर कोकिला ने भले ही अंतरंगता न स्वीकारी हो लेकिन उसकी चर्चा
जरूर हुई। गाहे-बगाहे इस बात की चर्चा हुई कि डूंगरपुर राजघराने के महाराजा राज
सिंह से लता मंगेशकर बेहद प्यार करती थीं। लता के भाई हृदयनाथ मंगेशकर और राज सिंह
एक-दूसरे के बहुत अच्छे दोस्त हुआ करते थे। यह दोनों एक साथ क्रिकेट खेला करते थे।
उनकी मुलाकात उस समय हुई जब राज सिंह लॉ करने के लिए मुंबई आए। इस दौरान वह लता के
भाई के साथ उनके घर जाया करते थे। यह सिलसिला बढ़ता गया और देखते ही देखते राज और
लता की भी दोस्ती हो गई। धीरे-धीरे दोस्ती प्यार में बदल गई। तब तक लता का नाम भी
चर्चित हस्तियों में गिना जाने लगा था। इसलिए मीडिया में भी लता और राज के रिश्तों
को लेकर बातें उड़ने लगीं। राज तीन भाइयों में सबसे छोटे थे। दोनों एक-दूसरे से
शादी करना चाहते थे लेकिन शादी नहीं हो पाई। कहा जाता है कि राज ने अपने माता-पिता
से वादा किया था कि वह किसी भी आम घर की लड़की को उनके घराने की बहू नहीं बनाएंगे।
राज ने यह वादा मरते दम तक निभाया। आपको जानकर हैरानी होगी कि लता की तरह राज भी
जीवन भर अविवाहित रहे। राज सिंह लता से छह साल बड़े थे। राज सिंह को क्रिकेट का
बहुत शौक था। इसके चलते वह कई साल तक भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड से भी जुड़े
रहे।
लता के क्रिकेट प्रेम के बारे में तो हम सब
जानते हैं। राज और लता को मिलाने में क्रिकेट का भी बड़ा योगदान रहा। एक बार
क्रिकेट खेलने के बाद राज को लता के घर चाय पर बुलाया गया। यहीं पहली बार राज सिंह
ने लता को देखा और उनकी दोस्ती हो गई। राज लता को प्यार से मिट्ठू कहकर पुकारते
थे। उनकी जेब में हमेशा एक टेप रिकॉर्डर रहता था जिसमें लता के चुनिंदा गाने होते
थे। मौका मिलते ही वह लता के गाने सुनने लगते थे। बता दें कि 12 सितम्बर, 2009 को
राजसिंह का देहांत हो गया। साल 2012 में भूपेन हजारिका की पत्नी प्रियंवदा पटेल ने
भी लता पर आरोप लगाया था कि उनका भूपेन के साथ अफेयर था। प्रियंवदा ने कहा था कि
लता जब भी कोलकाता आतीं वे हजारिका के तीन बेडरूम में से एक शेयर करती थीं।
हालांकि इस बारे में लता ने कभी कोई बयान नहीं दिया।
लता मंगेशकर सिर्फ एक दिन गईं स्कूल
लता मंगेशकर की शिक्षा की जहां तक बात है वह
महज एक दिन के लिए स्कूल गई थीं। इसकी वजह यह रही कि जब वह पहले दिन अपनी छोटी बहन
आशा भोंसले को स्कूल लेकर गईं तो अध्यापक ने आशा भोंसले को यह कहकर स्कूल से निकाल
दिया कि उन्हें भी स्कूल की फीस देनी होगी। बाद में लता ने निश्चय किया कि वह कभी
स्कूल नहीं जाएंगी। हालांकि बाद में उन्हें न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी सहित छह
विश्वविद्यालयों में मानद उपाधि से नवाजा गया। लताजी को अपने सिने करियर में
अनगिनत मान-सम्मान मिले। वे फिल्म इंडस्ट्री की पहली महिला हैं जिन्हें भारत रत्न
और दादा साहब फाल्के पुरस्कार प्राप्त हुआ। लता के अलावा सिर्फ सत्यजीत रे को ही
यह गौरव प्राप्त है। वर्ष 1974 में लंदन के सुप्रसिद्ध रॉयल अल्बर्ट
हॉल में उन्हें पहली भारतीय गायिका के रूप में गाने का अवसर प्राप्त हुआ। 1974 में
ही लताजी के नाम दुनिया में सबसे अधिक गीत गाने का गिनीज बुक रिकॉर्ड दर्ज हुआ।
लता जी हमेशा नंगे पाँव गाना गाती हैं। लताजी
की सबसे पसंदीदा फिल्म द किंग एण्ड आई है। हिन्दी फिल्मों में इन्हें त्रिशूल,
शोले, सीता और गीता, दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे तथा मधुमती पसंद हैं। वर्ष 1943 में प्रदर्शित फिल्म किस्मत उन्हें इतनी पसंद
आई कि उन्होंने यह फिल्म तकरीबन पचास बार देखी है। लताजी को संगीत के अलावा खाना
पकाने और फोटो खींचने का भी बहुत शौक है। वर्ष 1962 में लता जब 32 साल की थीं तब उन्हें स्लो प्वॉइजन
दिया गया था। लता की बेहद करीबी पदमा सचदेव ने इसका जिक्र अपनी किताब में किया है हालांकि
उन्हें मारने की कोशिश किसने की, इसका खुलासा आज तक नहीं हो पाया।
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