Monday 19 February 2018

खेलो इंडियाः आत्मविश्वास जगाती पहल

गुरु-शिष्य परम्परा को बढ़ावा
श्रीप्रकाश शुक्ला
मानव के समग्र विकास में खेलों की अहम भूमिका है। खेल मनोरंजन ही नहीं शारीरिक दक्षता बढ़ाने का एक माध्यम भी हैं। खेलों के क्षेत्र में भारत की स्थिति ताली पीटने वाली बेशक न हो लेकिन मुल्क प्रतिभा शून्य नहीं है। आजादी के 70 साल बाद देश को पहला खिलाड़ी खेल मंत्री के रूप में मिलना इस बात का ही सूचक है कि पूर्ववर्ती हुकूमतें खेल संस्कृति से बेखबर थीं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यदा-कदा मिली उपलब्धियों से न केवल राष्ट्र गौरवान्वित हुआ बल्कि इस बात के संकेत मिले कि खेलों पर ध्यान देकर ही भारत अपनी युवा तरुणाई का भला कर सकता है। बुनियादी स्तर पर खेल सम्बन्धी सुविधाएं उपलब्ध कराना, खेल और शिक्षा का एकीकरण तथा प्रारम्भिक स्तर पर प्रतिभा परख ऐसे पहलू हैं जिन पर ध्यान दिया जाना जरूरी था। भारत में खेलों के सिस्टम, संस्कृति और अधोसंरचना में सुधार की बहुत गुंजाइश है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार ने खेलो इंडिया स्कूल खेलों के माध्यम से आत्मविश्वास जगाती एक सराहनीय पहल तो की है लेकिन सफलता तभी मिलेगी जब हर स्कूल में खेल मैदान और खेल प्रशिक्षक होगा। भारत खेलों के क्षेत्र में लगातार प्रगति कर रहा है लेकिन अभी भी इसमें और बेहतर करने की जरूरत है।
खेलो इंडिया के माध्यम से मोदी सरकार ने न केवल खिलाड़ी और प्रशिक्षक की भूमिका को प्रमुखता दी है बल्कि स्वस्थ भारत की परिकल्पना को साकार रूप देने का भी मन बनाया है। खेलो इंडिया के शुभारम्भ अवसर पर खेल-जगत की जानी-मानी गुरु-शिष्य जोड़ियों की उपस्थिति ने इस बात को सुनिश्चित किया है कि दिग्गज खिलाड़ियों के साथ ही उनके प्रशिक्षकों को भी वाजिब सम्मान मिलना चाहिए। सरकार ही नहीं समाज का भी यह दायित्व बनता है कि वह खेल प्रशिक्षकों का सम्मान करना सीखे। खेलो इंडिया के शुभारम्भ अवसर पर नामचीन खिलाड़ियों के बीच उनके प्रशिक्षकों की उपस्थिति से हर खेलप्रेमी का मन पुलकित होना इस बात का संकेत है कि खेल मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर खेलों, खिलाड़ियों और प्रशिक्षकों को मुकम्मल स्थान देने को फिक्रमंद हैं।
देश की राजधानी दिल्ली में नौ दिन दिन चले खेलो इंडिया स्कूल गेम्स में विभिन्न राज्यों सहित 35 यूनिटों के तीन हजार से अधिक बालक-बालिका खिलाड़ियों ने जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, इंदिरा गांधी स्टेडियम, मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम, कर्णी सिंह शूटिंग रेंज और एसपीएम स्वीमिंग पूल जैसे क्रीड़ांगनों में अपने शानदार खेल का प्रदर्शन कर इस बात के संकेत दिए कि भारत भी खेल महाशक्ति बनने की ताकत रखता है। इन खिलाड़ियों में ऐसी प्रतिभाएं भी शामिल हैं जिनके अभिभावक मेहनत-मजदूरी कर अपने बच्चों को खिलाड़ी बनाने का सपना देखते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने खेलो इंडिया स्कूल गेम्स के आगाज अवसर पर खेल मंत्रालय की पहल को एक मिशन माना है। खेल मंत्रालय की इस शानदार पहल से देश को विभिन्न खेलों की 17 साल से कम उम्र की लगभग एक हजार प्रतिभाएं मिली हैं जिनकी प्रतिभा निखारने को सरकार अगले आठ साल तक प्रशिक्षण सुविधाएं मुहैया कराएगी तथा इस अवधि में इन प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को सालाना पांच लाख रुपए खेलवृत्ति के रूप में दिए जाएंगे। खेलो इंडिया का मकसद युवा खिलाड़ियों को अपनी प्रतिभा दिखाने का मंच प्रदान करने के साथ ही उन्हें इस लायक बनाना है ताकि वे भविष्य के बेजोड़ खिलाड़ी बन सकें।
देखा जाए तो खेलों में भारत के फिसड्डी होने का सबसे प्रमुख कारण स्कूली स्तर पर बच्चों में खेल प्रोत्साहन का अभाव है। भारत में शिक्षा प्रणाली भी ऐसी है जहां स्कूलों में खेल गैर-शैक्षिक गतिविधि माने जाते हैं। मोदी सरकार ने इस परम्परा से तौबा करने के साथ ही खेलों को फर्श से अर्श तक पहुंचाने का जो मंतव्य बनाया है, उसमें सुधार की काफी गुंजाइश है। खेलों में भारत को महाशक्ति बनाने के लिए हमें चीन की खेल संस्कृति को नजीर के रूप में लेना चाहिए। चीन में प्रतिभाओं को बहुत कम उम्र में ही चुन लिया जाता है। वहां अभिभावक की बजाय खेल महकमा यह तय करता है कि किस प्रतिभाशाली खिलाड़ी में किस खेल की काबिलियत है। चीन में इन प्रतिभाओं को ज्यों ही नेशनल सेण्टर में दाखिला मिलता है उनकी जवाबदेही सरकार की हो जाती है और अभिभावक को किसी बात की चिन्ता नहीं करनी रहती, यहां तक कि शिक्षा के बारे में भी नहीं। भारत में जिस उम्र में बच्चे को खेलने की आजादी मिलनी चाहिए हम उस पर शिक्षा का बोझ लाद देते हैं।
अब वक्त की मांग है कि देश में हर तहसील या उपखण्ड स्तर पर खेल स्कूल स्थापित किए जाएं और वहां खेल ही प्रमुख पढ़ाई हो। स्कूलों में ऐसे अत्याधुनिक खेल परिसरों का निर्माण किया जाए जहां खिलाड़ियों को हर सुविधा उपलब्ध हो। इन स्कूलों में उन चुनिंदा प्रतिभाओं को तराशा जाए जिनमें हुनर की कमी न हो। अगर हम 10-12 साल के बच्चों को लेकर इस तरह से तैयारी करेंगे तो बहुत जल्दी ही बेहतरीन परिणाम मिलने लगेंगे। बेहतर होगा जो खिलाड़ी देश का प्रतिनिधित्व करते हैं उन्हें सरकार प्रतिमाह वाजिब भत्ता दे ताकि हमारी युवा तरुणाई खेलों को करियर के रूप में देखे, इससे देश में खेल संस्कृति विकसित होगी और प्रतिभाएं खेलों की ओर उन्मुख होंगी। आज भारत में क्रिकेट, बैडमिंटन, कुश्ती, कबड्डी और हॉकी जैसे खेलों में लीग प्रणाली परवान चढ़ने लगी है ऐसे में जरूरी है कि अन्य खेलों में भी ऐसी ही पहल हो ताकि अन्य खेलों के खिलाड़ियों को भी बेहतर अवसर और आर्थिक स्थिरता मिल सके। मोदी सरकार यदि गुरु-शिष्य परम्परा की वाकई फिक्रमंद है तो उसे सभी खेल संघों में भी सफाई अभियान चलाकर संगठनों का बेहतर प्रबंधन और अच्छे खिलाड़ियों को तैयार करने का जिम्मा पेशेवर तथा सक्षम पूर्व खिलाड़ियों व प्रशिक्षकों को दिया जाना चाहिए। खेलो इंडिया कार्यक्रम जब तक जन आंदोलन नहीं बनेगा तब तक भारत खेलों की महाशक्ति नहीं बन सकता।
खेलों में युवाओं की व्यापक प्रतिभागिता को बढ़ावा देने तथा उत्कृष्टता का विकास करने के लिए ही खेल मंत्रालय ने खेलो इंडिया को मूर्तरूप दिया है। स्कूली खेलों के इस पहले संस्करण में 16 खेल विधाएं परवान चढ़ीं जिनमें तीरंदाजी, एथलेटिक्स, बैडमिंटन, बास्केटबॉल, मुक्केबाजी, फुटबॉल, जिमनास्टिक, हॉकी, जूडो, कबड्डी, खो-खो, निशानेबाजी, तैराकी, वालीबाल, भारोत्तोलन एवं कुश्ती शामिल हैं। खेलो इंडिया स्कूल गेम्स के पहले संस्करण में हरियाणा ने 38 स्वर्ण पदकों के साथ पदक तालिका में पहला स्थान हासिल किया। महाराष्ट्र ने सबसे अधिक 111 पदक हासिल किए लेकिन वह स्वर्ण पदकों की दौड़ में हरियाणा से पिछड़ गया। महाराष्ट्र ने 36 स्वर्ण पदक जीते तो दिल्ली 25 स्वर्ण पदकों के साथ तीसरे और कर्नाटक 16 स्वर्ण पदकों के साथ चौथे स्थान पर रहा। हरियाणा ने 38 स्वर्ण के अलावा 26 रजत और 38 कांस्य पदक जीते। महाराष्ट्र को 36 स्वर्ण के अलावा 32 रजत और 42 कांस्य पदक मिले। इन खेलों में हरियाणा और महाराष्ट्र ही ऐसे दो राज्य रहे जिन्होंने 100 से अधिक पदक जीते। दिल्ली ने 25 स्वर्ण के अलावा 29 रजत और 40 कांस्य पदक जीते। दिल्ली को कुल 94 पदक मिले। कर्नाटक ने 16 स्वर्ण के अलावा 11 रजत और 15 कांस्य पदक जीते जबकि मणिपुर ने 13 स्वर्ण, 13 रजत और आठ कांस्य के साथ कुल 34 पदकों के साथ पांचवां स्थान हासिल किया। इसी तरह उत्तर प्रदेश ने 10 स्वर्ण, 24 रजत और 28 कांस्य के साथ कुल 62 पदकों के साथ छठा और पंजाब ने 10 स्वर्ण, पांच रजत और 20 कांस्य के साथ कुल 35 पदकों के साथ सातवां स्थान हासिल किया। स्कूली खेलों के इस पहले संस्करण में मध्य प्रदेश चार स्वर्ण पदक हासिल कर 12वें स्थान पर रहा। इस खराब प्रदर्शन से शिवराज सरकार के खेलों के क्षेत्र में किये जा रहे प्रयासों को करारा झटका लगा है।
केन्द्रीय खेल मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर ने हरियाणा को श्रेष्ठ राज्य की ट्रॉफी प्रदान करते हुए कहा कि हम चाहते हैं कि खेलो इंडिया से खिलाड़ियों का तो भला हो ही उनके प्रशिक्षकों को भी पर्याप्त प्रोत्साहन मिले। खेल मंत्री की इस मंशा से अब पदक जीतने वाले खिलाड़ी के साथ ही इसका फायदा जमीनी स्तर के प्रशिक्षकों को मिलना तय है। अभी तक जब भी कोई खिलाड़ी राष्ट्रमंडल खेल, एशियाई खेल और ओलम्पिक में पदक जीतता था तो उसके कोच को प्रोत्साहन मिलता था। अब प्रोत्साहन राशि का 20 प्रतिशत हिस्सा उस प्रशिक्षक को भी मिलेगा जिसने जमीनी स्तर यानि शुरुआती दौर में खिलाड़ी को निखारा हो। केन्द्रीय खेल मंत्रालय अब जमीनी प्रशिक्षकों को प्रोत्साहित करने के लिए खिलाड़ियों के प्रशिक्षकों का डेटाबेस तैयार करेगा ताकि आगे जाकर जब ये खिलाड़ी पदक जीतें तो उनके प्राथमिक कोच को भी पहचान मिल सके। खेलो इंडिया के माध्यम से हर साल एक हजार खिलाड़ियों का चयन किया जाएगा जिनमें से प्रत्येक को आठ साल तक पांच-पांच लाख रुपये की छात्रवृति दी जायेगी। आने वाले पांच साल में भारत के पास विभिन्न खेलों के पांच हजार प्रतिभाशाली खिलाड़ी होंगे, इससे सम्भावित खिलाड़ियों और पदक विजेताओं के बीच का अंतर कम होगा। खेलो इंडिया खेल मंत्रालय की एक अच्छी पहल है, पर इसका सुफल मिलने में समय लगेगा।






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