Tuesday, 6 February 2018

भारतीय महिलाओं की प्रेरणा चंदा कोचर


आईसीआईसीआई बैंक की सीईओ हैं
भारतीय महिलाओं की पहचान हमेशा से ही शांत और विनम्र स्वभाव के रूप में की जाती है। हर महिला में इन गुणों के अलावा उनमें कई और भी गुण होते हैं जिनसे वे यह प्रूफ करती हैं कि वह भी मजबूत और स्वतंत्र हैं। चंदा कोचर भी उन्हीं में से एक हैं। चंदा कोचर भारतीय उद्योग जगत और बैंकिंग के क्षेत्र में जाना पहचाना नाम हैं। चंदा कोचर ने अपनी मेहनत, विश्वास और लगन से पुरुष प्रधान बैंकिंग क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। आईसीआईसीआई बैंक की सीईओ चंदा कोचर का नाम आज शक्तिशाली महिलाओं की सूची में शामिल है। मैनेजमेंट ट्रेनी की छोटी सी पोस्ट से बैंक के उच्च पद तक पहुंचने वाली चंदा की सफलता महिला सशक्तीकरण का एक आदर्श उदाहरण है। आज चंदा कई महिलाओं की प्रेरणा हैं। उनके जज्बे और मेहनत से उन्हें आगे बढ़ने की सीख मिलती है। बचपन में चंदा कोचर सिविल सर्विसेज में जाना चाहती थीं लेकिन जब वह बड़ी हुईं तो उन्होंने फाइनेंस का फील्ड चुना।
फोर्ब्स पत्रिका में दुनिया की सशक्त महिलाओं की सूची में जगह बनाने वाली चंदा कोचर का जन्म 17 नवम्बर, 1961 को जोधपुर (राजस्थान) में हुआ। उनकी स्कूली पढ़ाई जयपुर से हुई। इसके बाद वे मुंबई आ गईं जहां पर जय हिन्द कॉलेज से उन्होंने आर्ट्स में स्नातक की डिग्री हासिल की। 1982 में स्नातक की डिग्री लेने के बाद उन्होंने मुंबई के जमनालाल बजाज इंस्टीट्यूट ऑफ बिजनेस स्टडी से मैनेजमेंट में मास्टर डिग्री हासिल की। चंदा हमेशा ही ब्राइट स्टूडेंट रहीं। मैनेजमेंट स्टडी में अपने शानदार परफॉर्मेन्स के लिए उन्हें वोकहार्ड्ट गोल्ड मेडल और कॉस्ट एकाउंटेंसी में सर्वाधिक अंक के लिए जे.एन. बोस गोल्ड मैडल दिया गया।
1984 में मास्टर डिग्री लेने के बाद चंदा ने आईसीआईसीआई बैंक में मैनेजमेंट ट्रेनी के रूप में प्रवेश किया और अपने काम और अनुभव के साथ-साथ वे लगातार आगे बढ़ती गईं। उन्होंने आईसीआईसीआई बैंक को सफलता के नए आयामों तक पहुंचाया। उनके नेतृत्व में ही बैंक ने अपने रीटेल बिजनेस की शुरुआत की। बैंकिंग के क्षेत्र में अपने योगदान के कारण चंदा को कई अवॉर्डों से नवाजा गया जिसमें भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला तीसरा सबसे बड़ा पुरस्कार पद्म विभूषण शामिल है। इसके साथ ही वे उन दो महिलाओं में एक हैं जो‍कि इंडियन डॉमेस्टिक बैंक की हेड हैं। चंदा ने आईसीआईसीआई बैंक को एक बड़े रीटेल फाइनेंसर के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कई महिलाओं की प्रेरणास्रोत होने के साथ-साथ चंदा आज कई युवाओं की भी आदर्श हैं। जिनकी सफलता की कहानी से आज युवा आगे बढ़ने की सीख लेते हैं।
आईसीआईसीआई बैंक की एमडी और सीईओ चंदा कोचर की नायाब उपलब्धियों और कामकाज के चलते इनका नाम अक्सर अखबारों के बिजनेस पन्ने पर दिखाई देता है। बैंकर चंदा कोचर ने अपनी बेटी को लिखे पत्र में एक बेहद सफल पेशेवर बैंकर के पीछे छुपी एक कामकाजी मां की मनोदशा पर रोशनी डालने के साथ ही अपने संघर्षों की जो बानगी पेश की उसे पढ़कर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि महिलाओं की सफलता के आखिर क्या मायने हैं। अपनी बेटी आरती को लिखे पत्र में चंदा अपनी मां की मिसाल देते हुए बेटी को बताती हैं कि किस तरह मुश्किल दौर में हिम्मत और लगन बनाए रखने से स्थितियां बेहतर हो जाती हैं। चंदा बताती हैं कि मेरी मां ने मेरे करियर के लिए हर मुश्किल हालातों को न केवल जिया बल्कि इस बात का कभी अहसास नहीं होने दिया। जब तक हम आत्मनिर्भर नहीं हो गए वह लगातार मेहनत करती रहीं। मैं भी तुम्हें कामयाब देखना चाहती हूं। चंदा कोचर ने अपने खत में लिखा-
प्यारी आरती,
जिन्दगी के एक रोमांचक सफर की दहलीज पर तुम्हें आत्मविश्वास से भरी एक महिला के रूप में खड़े देखकर मुझे बहुत ही गर्व हो रहा है। मैं तुम्हें आगे के सालों में तरक्की और बुलंदियां छूते हुए देखना चाहती हूं। इस पल को देखकर मुझे मेरा सफर याद आ गया और जिन्दगी के सिखाए पाठ भी। जब मैं उन दिनों को याद करती हूं तो मुझे अहसास होता है कि ज्यादातर बातें मैंने अपने बचपन में ही सीख ली थीं, खासतौर पर अपने माता-पिता के जरिए। बचपन में जो संस्कार उन्होंने मुझे दिए, वही मेरी मौजूदा जिन्दगी को जीने के तरीके में नींव का काम कर रहे हैं। मेरे माता-पिता ने हम दो बहनों और भाई को हमेशा बराबरी से बड़ा किया। मेरे दादा-दादी हम तीनों को एक सीख देते थे। यह ध्यान देना जरूरी है कि हमें किस काम से संतुष्टि मिलती है और उसी को हासिल करने में हमें पूरी लगन से जुट जाना चाहिए। इस सीख ने हमें बहुत जल्द ही अपने फैसले लेने के लिए आत्मनिर्भर बना दिया था।
मैं सिर्फ 13 साल की थी जब अचानक दिल के दौरे से पिता की मृत्यु हो गई। एक ही दिन में सब कुछ बदल गया। तीनों बच्चों को संभालने की जिम्मेदारी मां पर आ गई। तब हमें एहसास हुआ कि वह कितनी मजबूत हैं। उन्होंने टेक्सटाइल डिजाइनिंग का काम सीखा और छोटी सी कम्पनी में नौकरी करने लगीं। परिवार को अकेले चलाना निश्चय ही उनके लिए मुश्किल रहा होगा लेकिन उन्होंने हमें इस बात का कभी अहसास नहीं होने दिया। जब तक हम आत्मनिर्भर नहीं हो गए, वह मेहनत करती रहीं। मैं नहीं जानती थी कि मेरी मां को अपने आप पर इतना भरोसा है।
एक कामकाजी मां के लिए जरूरी है कि वह अपने काम का असर परिवार पर नहीं पड़ने दे। तुम्हें याद है जब मेरे एमडी और सीईओ बनाने की घोषणा हुई, तब तुम अमेरिका में पढ़ रही थी। तुमने मुझे मेल भेजा। लिखा था- तुमने कभी महसूस नहीं होने दिया कि तुम्हारा करियर इतना डिमांडिंग और तनाव से भरा है। घर पर तुम सिर्फ मां होती हो। तुम भी अपनी जिन्दगी इसी तरह जीना। मैंने अपनी मां से सीखा था कि कठिन हालात से निपटना और आगे बढ़ना कितना जरूरी है। चुनौतियों से निपट कर और मजबूत बनो, उन्हें खुद पर हावी मत होने दो। मुझे याद है 2008 में कैसे वैश्विक संकट के बाद आईसीआईसीआई बैंक के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा था। तब मैंने बैंक में पैसे जमा करने वालों, निवेशकों, सरकार और रेगुलेटर्स सबसे बात की थी। उन्हें बताया कि बहुत कम पैसा संकट में फंसा है। स्टाफ से कहा कि अगर कोई डिपॉजिटर पैसे निकालने आए तो उससे नरमी से बात करें, उन्हें बिठाएं, पानी पिलाएं। उन्हें समझाएं कि आप जब चाहें पैसे निकाल सकते हैं, लेकिन बैंक संकट में नहीं है। उन्हीं दिनों तुम्हारे भाई का स्क्वैश टूर्नामेंट था। मैं करीब दो घंटे के लिए वहां थी। बाद में पता चला कि मेरे वहां जाने से बैंक के प्रति ग्राहकों का भरोसा बढ़ा। टूर्नामेंट में आई कई महिलाओं ने मुझसे पूछा कि क्या मैं आईसीआईसीआई बैंक की चंदा कोचर हूं। मैंने कहा- हां। तब उन्हें लगा कि अगर इस संकट की घड़ी में भी मैं टूर्नामेंट के लिए समय निकाल सकती हूं तो इसका मतलब है कि बैंक सुरक्षित हाथों में है।
मैं ऑफिस के साथ मां और सास-ससुर को भी वक्त देती थी। बदले में उन्होंने भी प्यार और समर्थन दिया। याद रखना, सम्बन्ध हमेशा महत्वपूर्ण होते हैं। उनका ख्याल रखना जरूरी है। किसी से वही व्यवहार करो जिसकी तुम उनसे अपेक्षा करती हो। मेरे घर से बाहर रहने पर तुम्हारे पिता ने कभी शिकायत नहीं की वरना मेरा करियर आगे नहीं बढ़ता। हम दोनों अपने करियर में व्यस्त थे, फिर भी हमने अपने सम्बन्धों का पूरा ख्याल रखा। मुझे विश्वास है कि जरूरत पड़ने पर तुम भी अपने जीवन साथी के साथ वैसा ही करोगी।
मुझे याद है जब तुम्हारी बोर्ड परीक्षाएं होने वाली थीं। मैंने छुट्‌टी ली ताकि तुम्हें परीक्षा हॉल तक ले जा सकूं। लेकिन तुमने कहा कि इतने सालों से तुम अकेले परीक्षा देने की आदी हो गई हो। यह सुनकर मुझे ठेस-सी लगी। फिर यह सोचकर सुकून मिला कि मेरे कामकाजी होने से तुम कम उम्र में आत्मनिर्भर हो गई हो। तुमने छोटे भाई की भी देखभाल की, उसे मेरी कमी महसूस नहीं होने दी। मैंने ऑफिस में भी इस बात को लागू किया है। युवाओं को बड़ी जिम्मेदारी देती हूं।
मैं भाग्य में विश्वास करती हूं लेकिन मेहनत भी जरूरी है। हर व्यक्ति अपनी किस्मत खुद लिखता है। अपनी किस्मत अपने हाथों में लो, जो हासिल करना चाहती हो उसका सपना देखो और उसे अपने हिसाब से लिखो। मैं चाहती हूं कि जिंदगी में आगे बढ़ते हुए तुम एक-एक करके सफलता की सीढ़ी पर कदम रखो। आकाश की इच्छा रखो लेकिन उस ओर धीरे-धीरे बढ़ो, अपने सफर के हर एक कदम का आनंद लो। यह छोटे-छोटे कदम ही सफर को पूरा बनाते हैं। याद रखना अच्छे और बुरे पल तुम्हारी जिन्दगी में बराबरी से शामिल होंगे और तुम्हें दोनों का बराबरी से सामना करना आना चाहिए। जिन्दगी में मिले हर एक अवसर का पूरा फायदा उठाओ और हर अवसर, हर चुनौती से कुछ न कुछ सीखो।
-तुम्हारी मां

चंदा कोचर का अपनी बेटी को लिखा यह खत ही उनके जीवन का सार और सफलता का मूलमंत्र है। चंदा कोचर ने अपने कामकाज से भारतीय समाज के सामने जो नजीर पेश की है वही हर शख्स का यथार्थ होना चाहिए। चंदा कोचर ने अपनी दिलेरी और सहनशीलता से यह साबित किया है कि कामयाबी उसी को मिलती है, जिसके इरादे मजबूत होते हैं।

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