एक साथ कई जिम्मेदारियां निभाती
चैम्पियन
श्रीप्रकाश
शुक्ला
भारतीय मुक्केबाज एमसी मैरीकॉम ने इंडियन ओपन
मुक्केबाजी टूर्नामेंट के आखिरी दिन स्वर्ण पदक अपने नाम कर अपने रिकार्डों के
मुकुट पर एक और नगीना जड़ लिया है। खेलप्रेमी जब इन्हें चुका हुआ मान लेते हैं
वैसे समय में ही वह ऐसा कुछ कर दिखाती हैं कि लोग उनकी वाहवाही करने लगते हैं।
बीते साल सुपर बॉक्सर मैरीकॉम ने एशियाई मुक्केबाजी चैम्पियनशिप का स्वर्ण पदक देश
में वापस लाने का अपना सपना पूरा किया था। रिंग की यह महारानी अब तक पांच बार
एशिया तो पांच बार विश्व चैम्पियन होने का गौरव हासिल कर चुकी है। मैरीकॉम अपने
लाजवाब प्रदर्शन से बार-बार यह जता रही हैं कि मन में अगर सही लगन हो तो कुछ भी
हासिल करना मुश्किल नहीं है। हम कह सकते हैं कि तीन बच्चों की मां मैरीकॉम फौलाद
की बनी हैं।
एक समय था जब राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय महिलाएं
गिनी-चुनी ही थीं। सबसे पहली भारतीय महिला जिसने अंतरराष्ट्रीय खेलमंच पर मुल्क का
नाम किया वह थीं पी.टी. ऊषा। भारत की उड़नपरी के नाम से मशहूर हुई पी.टी. ऊषा ने
जब ओलम्पिक के फाइनल में जगह बनाई तो हमारे पुरुष प्रधान देश में कई लोगों के लिए
ये खबर चौंकाने वाली थी। ऊषा भले ही ओलम्पिक में मैडल न जीत पाई हों लेकिन वह 1980
और 1990 के दशक में कई भारतीय महिलाओं के लिए खेल में शामिल होने के लिए
प्रेरणास्रोत बनीं। मैरीकॉम भी उन्हीं में से एक हैं। पी.टी. ऊषा से सानिया मिर्जा
तक, कर्णम मल्लेश्वरी से मैरीकॉम तक भारत ने महिला खेलों की दुनिया में एक लम्बा
सफर तय किया है। भारतीय महिलाएं आजकल बैडमिंटन, मुक्केबाजी, कुश्ती, क्रिकेट जैसे
खेलों में सुर्खियां बटोर रही हैं लेकिन इनमें से मैरीकॉम सबसे अलग हैं।
मैंगते चंग्नेइजैंग मैरीकॉम का नाम सुनकर सबसे
पहले दिल और दिमाग में एक निर्भीक और साहसी महिला की तस्वीर उभर आती है। मैरीकॉम
का जन्म एक मार्च, 1983 को पश्चिमी भारत के मणिपुर के चुराचांदपुर जिले के काड़थेई
गांव में हुआ था। बचपन से ही मैरीकॉम की एथलेटिक्स में दिलचस्पी थी लेकिन सन् 2000 में डिंको सिंह ने उन्हें बॉक्सर बनने के लिए
प्रेरित किया। एक किसान की बेटी के लिए बॉक्सिंग रिंग में अपना करियर बनाना कोई आसान
काम नहीं था। मैरीकॉम ने जब बॉक्सिंग शुरू की थी तो उन्हें अपने घर से कोई समर्थन
नहीं मिला। घर वाले मैरीकॉम के बॉक्सिंग खेल के खिलाफ थे लेकिन उनकी कड़ी मेहनत और
लगन ने उनके घर वालों को झुकने के लिए मजबूर कर दिया।
गांव में ना प्रैक्टिस करने की जगह और ना ही
उतनी सुविधाएं मौजूद थीं। बॉक्सर के लिए जो डाइट चाहिए होती है वह भी उन्हें
मुश्किल से ही मिल पाती थी। मैरीकॉम ने 17 साल की उम्र में अपना बॉक्सिंग करियर
शुरू किया और तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद खुद को न केवल स्थापित किया बल्कि कई मौकों
पर देश को भी गौरवान्वित किया। 2008 में इस महिला मुक्केबाज को मैग्नीफिशेंट मैरीकॉम की उपाधि दी गई।
बॉक्सिंग रिंग में भारत का नाम रोशन करने वाली मैरीकॉम की पूरी कहानी को फिल्मी पर्दे
पर भी चित्रित किया गया है। मैरीकॉम की भूमिका प्रियंका चोपड़ा ने निभाई है। चोट और
कुछ निजी कारणों से मैरीकॉम गाहे-बगाहे रिंग से भी दूर रहीं लेकिन वह जब लौटीं तो
पुरानी लय में ही दिखीं। रियो ओलम्पिक के पूरे एक साल बाद 2017 में रिंग में वापस
लौटीं मैरीकॉम ने एशियाई बाक्सिंग में स्वर्णिम सफलता हासिल कर राष्ट्रमण्डल और
एशियाई खेलों के लिए अपनी उपयोगिता साबित कर दी। मैरीकॉम ने इस जीत के साथ टूर्नामेंट में अपना
शानदार रिकार्ड बरकरार रखा। मैरीकॉम सभी छह बार एशियाई मुक्केबाजी के फाइनल में
पहुंचीं और बस एक बार उन्हें रजत पदक से संतोष करना पड़ा। 2017 से पहले मैरीकॉम ने
2003, 2005, 2010 और 2012 में भी गोल्ड जीते थे।
मैरीकॉम को सुपरमॉम के नाम से भी जाना जाता है।
35 वर्षीय मैरीकॉम के तीन बच्चे हैं
लेकिन इसके बावजूद उन्होंने बॉक्सिंग करना नहीं छोड़ा। मैरीकॉम की फिटनेस देखकर
कोई नहीं कह सकता कि यह तीन बच्चों की मां हैं। 35 साल की उम्र में भी बॉक्सिंग
रिंग के अंदर उनकी फिटनेस और तेजी देखने लायक होती है। विरोधी पर मैरीकॉम पंच की
बरसात करती हैं और बहुत ही तेजी से खुद को उनके प्रहारों से भी बचाती हैं। यही वजह
है कि उनके ज्यादातर मुकाबले एकतरफा होते हैं। पांच बार की वर्ल्ड चैम्पियन, लंदन
ओलम्पिक खेलों की कांस्य पदकधारी और एशियन गेम्स में पहला स्वर्ण जीतने वाली
मैरीकॉम अपनी फिटनेस के लिए कड़ी मेहनत करती हैं।
मैरीकॉम को जब राज्य सभा के लिए मनोनीत किया
गया तो यह वाक्या भी उनके लिए चौंकाने वाली बात थी। इस उपलब्धि पर मैरीकॉम ने कहा
था कि यह उनके लिए बहुत सम्मान की बात है और उन्होंने कभी इसकी कल्पना भी नहीं की
थी। मैरीकॉम पर कभी भी राज्यसभा में अनुपस्थिति को लेकर सवाल नहीं उठे। मैरीकॉम परिवार,
पॉलिटिक्स और बॉक्सिंग रिंग को एक साथ मैनेज करती हैं। मैरी अपनी तुलना फिलीपींस
के मैनी पैक्युओए जो सीनेट मेम्बर भी हैं और एक प्रोफेशनल बॉक्सर भी, से किए जाने
पर खुलकर जवाब देती हैं और बताती हैं कि उनका दायरा और भी बड़ा है क्योंकि वह एक
मां भी हैं और बच्चों के लिए भी काफी वक्त निकालती हैं। मैरीकॉम मजाक में कहती हैं
कि काश एक दिन 48 घण्टे का होता। राज्यसभा सदस्य के तौर
पर मैरीकॉम का फोकस सिर्फ खेल ही नहीं होता बल्कि वह मणिपुर के ज्वलंत मामले सदन
पटल पर रखती हैं। मैरीकॉम को साल 2003 में अर्जुन पुरस्कार, 2006 में पद्मश्री, 2009 में राजीव गाँधी खेल रत्न अवार्ड के साथ ही
2013 में पद्म भूषण से नवाजा जा चुका है। मैरीकॉम पहली भारतीय महिला एथलीट हैं जिन
पर फिल्म बनी है।
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