Wednesday 2 November 2016

निर्मला वैष्णव की अंधत्व को चुनौती


10 साल की उम्र में ही कंठस्थ कर लिए भगवत गीता के 18 अध्याय
45 मिनट में सुना देती हैं सात सौ श्लोक
सोते-जगते सिर्फ ईश आराधना ही है इनकी दिनचर्या
कुदरत की नाइंसाफी से 55 साल की निर्मला वैष्णव दुनिया-जहान को भले ही न देख सकती हों पर उनके हृदय की आंखें खुली हुई हैं। इनका आत्मविश्वास खुद को ही नहीं औरों को भी जीने की प्रेरणा दे रहा है। निर्मला बहन अपने जैसे ही ब्लाइंड बच्चों को शिक्षित कर उन्हें हौसला और नई उम्मीद दे रही हैं। मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। यही मूलमंत्र है तुलसी प्रज्ञाचक्षु एवं बधिर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय चित्रकूट (म.प्र.) की प्राचार्य बहन निर्मला वैष्णव का। जगत गुरु स्वामी भद्राचार्य को देवतुल्य मानने वाली संगीत कोकिला बहन निर्मला को अब अपने अंधत्व पर कोई मलाल नहीं है।
28 मार्च, 1961 को जिला बाड़ोदर, राजकोट (गुजरात) में नाथालाल भाई और रणियात के घर जन्मीं निर्मला वैष्णव की छह माह में ही दोनों आंखों की ज्योति चली गई। मां-बाप ने अपनी बेटी की नेत्र-ज्योति को वापस लाने के अथक प्रयास किए लेकिन भगवान को शायद यह मंजूर नहीं था। बचपन में ही अपनी आंखें खो देने के बावजूद इस बेटी ने हार नहीं मानी। आठ साल बीत जाने के बाद निर्मला बहन के मन में कुछ विशेष करने का विचार आया। बाल मन का यह संकल्प बड़ा था लेकिन इस बेटी के हौसले भी कम बुलंद न थे। वह अपने संकल्प को हकीकत में बदलने के लिए अंध महिला विकास गृह नामक संस्था की शरण में गईं। दो साल की अथक मेहनत के बाद निर्मला ने न केवल संगीत के क्षेत्र में दक्षता हासिल की बल्कि इसी दरमियान उन्होंने भगवत गीता के सम्पूर्ण 18 अध्याय कंठस्थ कर लिए।
भगवत गीता कंठस्थ करने के बाद बहन निर्मला की ज्ञान पिपासा और बढ़ गई। अपनी मेधा को निखारने और ज्ञानचक्षु में इजाफा करने को उन्होंने जगत गुरु स्वामी भद्राचार्य की शरण ली। स्वामी भद्राचार्य की शरण में आने के बाद इस संगीत कोकिला के सपनों को मानों पर लग गये हों। उन्होंने चित्रकूट में आकर न केवल अपनी तालीम पूरी की बल्कि दिव्यांगों की दुनिया को खुशनुमा बनाने का संकल्प भी लिया। लगभग 18 साल में चित्रकूट की पावन धरा पर उन्होंने हनुमान बाहुक, राम रक्षा स्त्रोतः, नारायण कवच, पंचाक्षर स्त्रोत, ज्योतिर्लिंग स्त्रोत, अनसुइया स्तुति, रुद्राष्टक, कृण्णाष्टक, मधुराष्टक, यमुनाष्टक (गुजराती और संस्कृत), गायत्री चालीसा, हनुमान चालीसा, सुन्दरकाण्ड सहित दर्जनों पुस्तकों को अपने अंदर समाहित कर लिया है।
जगत गुरु स्वामी भद्राचार्य को अपना आदर्श मानते हुए बहन निर्मला वैष्णव कहती हैं कि वह साक्षात् देव हैं। स्वामी जी इस धरा पर मनुष्य के रूप में लीला करने आए हैं। वह नारायण के रूप में नर लीला कर रहे हैं। बहन निर्मला कहती हैं कि दिव्यांगों के लिए जो टीस और पीड़ा स्वामी जी के अंतःकरण में है, वैसी शायद ही किसी के जेहन में हो। संगीत कोकिला निर्मला बहन की दिनचर्या की शुरुआत ईश वंदना से ही होती है। वह सुबह 9.30 से अपराह्न चार बजे तक तुलसी प्रज्ञाचक्षु एवं बधिर उच्चतर माध्यमिक विद्यालय चित्रकूट (म.प्र.) में अध्ययनरत सवा दो सौ बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के साथ शेष समय को ईश आराधना को ही समर्पित कर देती हैं।
वह प्रतिदिन एक दर्जन से अधिक धार्मिक पुस्तकों का सस्वर पाठ करती हैं। निर्मला जी संगीत में पारंगत होने के साथ ही जहां 45 मिनट में सात सौ श्लोक सुना देती हैं वहीं सिर्फ 25 मिनट में सुन्दरकाण्ड का पाठ करते उन्हें देखा और सुना जा सकता है। निर्मला बहन 1978 से जगत गुरु स्वामी भद्राचार्य की शरण में रहते हुए अब तक देशभर में सैकड़ों जगह अपनी संगीत की सुरलहरियों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर चुकी हैं। आज निर्मला बहन किसी पर आश्रित नहीं हैं। वह कहती हैं कि चित्रकूट मेरे लिए किसी जन्नत से कम नहीं है। जगत गुरु स्वामी भद्राचार्य ने दिव्यांगों के लिए जो अलख जगाई है वह अतुलनीय है। वह सही मायने में दिव्यांगों के मसीहा हैं। निर्मला बहन कहती हैं कि हम अब चित्रकूट की धरा पर ही जीना और मरना चाहेंगे।  


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