हाकी
के मीत मीर रंजन नेगी से बातचीत
श्रीप्रकाश
शुक्ला
कहते हैं कि कुछ लोग इस दुनिया में सदियों में एक बार होते
हैं क्योंकि वे आम इंसान से काफी हटकर होते हैं और एक मिसाल बन जाते हैं, एक
प्रेरणा, एक प्रकाश-पुंज बन जाते हैं। वह प्रकाश जो कई सदियों तक लोगों को रास्ता
दिखाता है, मार्गदर्शन करता है। पुश्तैनी खेल हाकी के एक ऐसे ही मार्गदर्शक और
मिसाल हैं मीर रंजन नेगी। बुलन्द हौंसलों और अथक प्रयासों के साथ किस तरह आदमी अपने
जीवन के संघर्षशील दिनों से पार पाकर पुनः अपने को स्थापित कर सकता है, इसका
उदाहरण मीर रंजन नेगी से बेहतर भला कौन हो सकता है। अपनी जीवन गाथा को उन्होंने
पुस्तक स्वरूप सामने रखा है और इसे उचित ही नाम दिया है फ्राम ग्लूम टू ग्लोरी।
हाकी के जादूगर मेजर ध्यान सिंह के मुल्क में वैसे तो कई
नामवर खिलाड़ी हुए हैं लेकिन हाकी के मीतों की बात करें तो मीर रंजन नेगी विशेष
हैं। मीर रंजन नेगी के बचपन का नाम सतेंदर सिंह नेगी था आज भी घर में लोग उन्हें
सत्ती नाम से बुलाते हैं। मीर रंजन नेगी मूलतः अल्मोड़ा जिले के ओटला मजखाली गांव के
निवासी हैं। लगभग पूरी जिन्दगी पहाड़ से बाहर बिताने के बावजूद उनमें एक सच्चे
पहाड़ी की जिजीविषा और संघर्ष करने की क्षमता कूट-कूट कर भरी हुई है। मीर रंजन नेगी
के जीवन में भारी उथल-पुथल तो हुई लेकिन यह खिलाड़ी पहाड़ की मानिंद हर मुसीबत पर
हिला नहीं बल्कि डटा रहा। जीत-हार खेल का हिस्सा है लेकिन वर्ष 1982 में एशिया कप के फाइनल में भारतीय टीम का पाकिस्तान
के हाथों पराजित होना मीर रंजन नेगी के लिए मुसीबत बन गया। नेगी उस पराजित भारतीय
हाकी टीम के गोलकीपर थे। उन पर पाकिस्तान को जिताने के लिये देश से गद्दारी करने
के बेबुनियाद आरोप लगे और एकबारगी फौलाद का बना यह खिलाड़ी भी टूट सा गया। इन
शर्मनाक आरोपों से आजिज राष्ट्रीय खेल की राष्ट्रीय टीम का यह गोलकीपर अचानक
गुमनामी के अंधेरे में खो सा गया। लेकिन एक पराक्रमी योद्धा की मानिंद उसने अपयशों
पर जीत हासिल कर दिखा दिया कि उसके सामने मुल्क से बड़ा कुछ भी नहीं है।
लाख आरोपों के बावजूद मीर रंजन नेगी ने हाकी के प्रति अपने
जुनून को कम नहीं होने दिया और भारतीय महिला हाकी टीम के कोच के रूप में सफलतापूर्वक
अपनी पहचान को न सिर्फ पुनर्स्थापित किया बल्कि भारत में महिला हाकी को एक नये
मुकाम पर पहुंचा कर ही दम लिया। मीर रंजन के भारतीय महिला हॉकी टीम के गोलकीपिंग
कोच नियुक्त होने के बाद 1998 एशियन गेम्स व 2002 में कॉमनवेल्थ गेम्स में महिला हाकी टीम स्वर्ण पदक जीतने में सफल हुई। हाकी
टीम के सहायक कोच के रूप में उनकी टीम 2004 में एशियन हॉकी का स्वर्ण भी जीती थी। मीर रंजन नेगी की
संघर्ष गाथा को बालीवुड के रुपहले पर्दे पर जब शाहरुख खान द्वारा अभिनीत कर चक दे
इण्डिया के रूप में दर्शकों के सामने रखा गया तो यह फिल्म खेलों पर आधारित
सर्वाधिक चर्चित और सफल फिल्म साबित हुई। आज चक दे इण्डिया भारतीय खेलप्रेमियों के
लिये एक नारा ही नहीं मूलमंत्र है। इस फिल्म की सफलता के बाद मीर रंजन नेगी ग्लैमर
की दुनिया से खुद को अलग नहीं रख पाये और टेलीविजन फिल्मों में छा गये। सोनी के
डांस शो झलक दिखला जा में नृत्य के मंच पर भी उन्होंने नया सीखने और कभी हार न
मानने के अपने सकारात्मक गुणों के आधार पर वाहवाही लूटी। इसके बाद वह कुछ फिल्मों
में नजर आये और अपनी जीवनी के माध्यम से अपने जीवन के महत्वपूर्ण घटनाक्रमों को
दुनिया के सामने रखा जोकि पहले अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित हुई थी और बाद में मिशन
चक दे नाम से हिन्दी में प्रकाशित हुई। मीर रंजन नेगी अभी फाउण्डेशन के माध्यम से
सिर्फ हाकी ही नहीं फुटबाल और कबड्डी जैसे परम्परागत खेलों के उत्थान को समर्पित
हैं। चक दे इण्डिया की सफलता से उत्साहित एक और हाकी पर मूवीज बनाने की बातें चल
निकली हैं। इसके लिए फिल्म निर्माता मीर रंजन नेगी से निरंतर सम्पर्क में हैं।
हाकी के महायोद्धा मीर रंजन नेगी हाकी के प्रोत्साहन की दिशा में मध्य प्रदेश
सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों से बेहद खुश हैं। श्री नेगी स्टार स्पोर्ट्स
चैनल के साथ ही नेशनल स्पोर्ट्स टाइम्स, साप्ताहिक खेलपथ जैसी खेल पत्र-पत्रिकाओं
की मुक्तकंठ से तारीफ करते हुए कहते हैं कि मीडिया के सहयोग के बिना खेलों का
विकास असम्भव बात है।
दूरभाष पर हुई बातचीत में मीर रंजन नेगी ने कहा खेलों की
बहुत कहानियां हैं। इनके अच्छे पात्रों यानि खिलाड़ियों की देश में कमी नहीं है।
जरूरत है इन पात्रों को जनमानस के सामने पेश करने का। हाकी की जहां तक बात है हाकी
खिलाड़ियों के साथ सौतेला व्यवहार हमेशा से ही हुआ है चाहे वह कोई भी राज्य हो।
पूरे हिन्दुस्तान में हाकी खिलाड़ियों को कभी भी सरकार ने अपनेपन की दृष्टि से
नहीं देखा। खुशी की बात है कि मध्य प्रदेश सरकार हाकी ही नहीं लगभग सभी खेलों की
दिशा में अच्छे काम कर रही है लेकिन अकेले शिवराज सिंह सरकार के प्रयासों से ही
खेलों का भला नहीं हो सकता। खेलों की बेहतरी के लिए सभी राज्यों को एकजुटता दिखाते
हुए मैदानों से दर्शकों को पुनः जोड़ने के प्रयास करने चाहिए। श्री नेगी कहते हैं
कि चक दे इण्डिया फिल्म बनने के बाद खेलों में क्रांतिकारी बदलाव देखने को तो मिले
लेकिन इस फिल्म की खूबियों से खेल फेडरेशनों ने कोई नसीहत नहीं ली। श्री नेगी कहते
हैं कि खेलों के उत्थान में फिल्में और बालीवुड अहम रोल अदा कर सकते हैं। बालीवुड
के माध्यम से खेलप्रेमियों को मैदानों की तरफ लाया जा सकता है। कितना ही रोमांचक
मुकाबला क्यों न हो यदि दर्शक ही नहीं होंगे तो खिलाड़ियों का हौसला भला कौन बढ़ाएगा।
हाकी की बेहतरी के लिए इस खेल से दर्शकों को जोड़ा जाना निहायत जरूरी है।
श्री नेगी कहते हैं कि मैदानों में दर्शकों की कमी का ही
नतीजा है कि आज सिर्फ धनराज पिल्लै, सरदारा सिंह जैसे कुछ खिलाड़ियों को ही लोग
पहचानते हैं। हमारे देश में अच्छे खिलाड़ियों की कमी नहीं है। बेहतर होगा कि इन
अच्छे खिलाड़ियों को मीडिया में पर्याप्त कवरेज मिले ताकि हमारे युवा खेलों को
अपना करियर बनाने के बारे में सोचें। श्री नेगी का कहना है कि खेलों के विकास में मीडिया
का अहम रोल है। मीडिया स्कूल-कालेज स्तर की खेल प्रतियोगिताओं और खिलाड़ियों को
प्रोत्साहित कर देश में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है। हाकी के मौजूदा हालातों पर
श्री नेगी का कहना है कि टीम सही दिशा की तरफ अग्रसर है। गोलकीपर पी.जी. श्रीजेश
बहुत अच्छा कर रहे हैं। वह नम्बर एक गोलकीपर हैं लेकिन लम्बे अर्से से हमारे पास
दूसरे नम्बर का अच्छा गोलकीपर नहीं है। हाकी इण्डिया को इसके लिए गोलकीपरों की अलग
से ट्रेनिंग की व्यवस्था करनी चाहिए। पहले हमारे देश में गोलकीपरों की अलग से
ट्रेनिंग और कौशल निखारने की व्यवस्था की जाती थी।
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