फ्रांसिस को नाज है अपनी बेटी की उपलब्धियों पर
आठ
बार स्टेट और तीन बार की नेशनल चैम्पियन
24 साल की सोफिया आज उस मुकाम पर है जिसे हासिल करना सक्षम
लोगों के लिए भी मुश्किल कहा जा सकता है। वह आज मुल्क ही नहीं मुल्क से बाहर भी
अपनी प्रतिभा से लोगों को कायल कर रही है। हर मां-बाप की इच्छा होती है कि उसके
बच्चे स्वस्थ रहें और अपनी कामयाबी से परिवार का नाम रोशन करें। मूक-बधिर सोफिया आज
खेलकूद ही नहीं सांस्कृतिक प्रतियोगिताओं में भी अपने फन का जलवा दिखा रही है। मां-बाप
को अपनी बेटी पर गर्व है तो जो समाज कभी उसे तिरस्कृत नजर से देखता था, वह भी उसकी
कामयाबी से आश्चर्यचकित है।
सोफिया जन्म से ही सुन नहीं पाती थी। उसके भाई रिचर्ड का
जन्म भी इसी अक्षमता के साथ हुआ। दोनों बच्चों में ये कमी देख माता-पिता से रहा
नहीं गया। पिता फ्रांसिस कहते हैं कि एक बार हमने यह भी सोचा कि ऐसे जीने से अच्छा
है कि पूरा परिवार सुसाइड कर ले। लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पाए। आखिर यह तय किया कि
जो भी स्थिति है उसका मुकाबला करेंगे। सोफिया जन्मजात मूक-बधिर है। इस बात का पता
उसके मां-बाप को उस समय लगा जब वह 10 माह की थी। दरअसल एक दिन फ्रांसिस के घर के बाहर एक जुलूस
निकल रहा था। लोग पटाखे फोड़ रहे थे लेकिन 10 माह की सोफिया को इससे कोई फर्क
पड़ता न देख फ्रांसिस के पैरों तले से जमीन खिसक गई। तेजी से फूटते पटाखों की आवाज
बड़े-बड़े लोगों के कानों में चुभ रही थी। लोग चौंक रहे थे लेकिन 10 माह की बच्ची को कोई असर नहीं हो रहा था। पहले
तो फ्रांसिस कोई फैसला नहीं ले पाए लेकिन पत्नी के साथ चर्चा करने के बाद उन्होंने
डॉक्टरों से सम्पर्क किया तो उन्हें पता चला कि उनकी बेटी बोल और सुन नहीं सकती। सोफिया
के एक भाई भी है, वह भी मूक-बधिर है।
समय बदला सोफिया बड़ी हुई तो पता चला कि उसके साथी उससे
किनारा करते हैं। साथ रहना नहीं चाहते। ऐसे में हमने उसे खेलों में आगे आने को
प्रोत्साहित किया। उसे ताकतवर होने का अहसास हो, इसके लिए उसे शॉटपुट और डिस्कस
थ्रो में आगे किया। सोफिया की खूबी यह है कि वह प्रैक्टिस को कभी हलके में नहीं
लेती। नतीजा यह हुआ कि उसने आठ बार स्टेट चैम्पियनशिप और तीन नेशनल चैम्पियनशिप
जीती हैं। फ्रांसिस कहते हैं कि सोफिया में आत्मविश्वास लाने के लिए उसे ब्यूटी
काम्पटीशन में जाने को कहा गया और वह इसकी तैयारी में जुट गई। पिछले साल वह मिस मलयाली
वर्ल्ड वाइड स्पर्धा में सेकेण्ड रनर अप रही। कई मॉडलिंग असाइनमेंट के अलावा दो
फिल्मों और कुछ टेलीविजन सीरियल में भी सोफिया अभिनय कर चुकी है। सोफिया पेंटिंग
और ज्वैलरी डिजाइनिंग भी कर लेती है। ड्राइविंग उसका पैशन है। वह भविष्य में बाइक
रेसर बनना चाहती है। सोफिया आज एथलेटिक्स, पेंटिंग, मॉडलिंग और फैशन डिजाइनिंग में
बड़ा नाम बन गई है। कोच्चि की रहने वाली सोफिया चेक रिपब्लिक में हुए मिस वर्ल्ड
डेफ एण्ड डम्ब प्रतियोगिता में भी देश का प्रतिनिधित्व कर चुकी है। यही नहीं वह
मिस डेफ इण्डिया 2014 में भी फर्स्ट
रनरअप रही है। सोफिया को एक्टिंग और मॉडलिंग का भी शौक है। वह बेस्ट विशेज नाम की
फिल्म में काम कर चुकी है। वह एक सुपर मॉडल रियल्टी टीवी शो की विजेता भी है।
बातचीत में फ्रांसिस कहते हैं कि सोफिया के लिए यह सब आसान
नहीं था। उसने यह मुकाम पाने के लिए बहुत संघर्ष किया है। मेरा बेटा रिचर्ड भी सुन
और बोल नहीं सकता। मेरे दोनों बच्चे ऐसे ही जन्मे लेकिन इसमें न उनकी गलती है और न
ही मेरी। जबकि लोग हमें हमेशा ऐसे ताने मारते हैं कि जैसे हमने कोई पाप किया हो और
हमें इसकी सजा मिल रही हो। फ्रांसिस बताते हैं कि सोफिया जब स्कूल जाने लायक हुई
तो एक बार फिर संघर्ष शुरू हुआ। वह बताते हैं कि उस समय मेरी बेटी को कोई भी स्कूल
एडमीशन देने के लिए तैयार नहीं था। हमने कोशिश की कि मद्रास के एक स्पेशल स्कूल
में दाखिला करवा दें लेकिन वहां भी यह कहते हुए मना कर दिया गया कि हम दो वर्ष की
उम्र में ही बच्चों का एडमीशन लेते हैं जबकि सोफिया चार साल की हो गई थी। मेरी
पत्नी गोरेटी को यह बात बहुत बुरी लगी। सोफिया की मां भवन्स स्कूल में टीचर हैं।
बेटी की शिक्षा के लिए उन्होंने लम्बी छुट्टी के लिए आवेदन दिया। वहां के
प्रिंसिपल ने कारण पूछा तो गोरेटी ने उन्हें अपनी बेटी के बारे में बताया। ऐसे में
स्कूल के डायरेक्टर गोविंदन ने उनका साथ दिया और सोफिया को स्कूल में एडमीशन मिल
गया।
गोविंदन मेट्रोमैन श्रीधरन के भाई हैं। सोफिया ने यहां पर
आठवीं कक्षा तक सामान्य बच्चों के साथ पढ़ाई की। इसके बाद सोफिया को सामान्य बच्चों
के सिलेबस को समझने और पढ़ने में परेशानी आना शुरू हो गई। बाद में सोफिया ने आगे की
पढ़ाई नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूल से की। सोफिया अब 24 साल की हो चुकी है और उसका फोकस टीवी मॉडलिंग
और स्पोर्ट्स पर है। वह इस समय एक अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता की तैयारी में लगी
हुई है। सोफिया जब छोटी थी तो स्कूल में पढ़ते समय उनके पिता ने टीचर्स से विशेष
रूप से कहा था कि उन्हें यह ध्यान देना चाहिए कि सोफिया किस क्षेत्र में बेहतर कर
सकती है। फ्रांसिस खुद सोफिया की गतिविधि पर बारीकी से ध्यान रखते थे। उसी समय
उन्होंने गौर से देखा तो पाया कि सोफिया चीजों को काफी दूर तक फेंक लेती है। यहीं
से सोफिया ने शॉटपुट में अपना कॅरियर बनाने की शुरुआत की और बाद में चैम्पियन बनी।
सोफिया चार-पांच वर्ष की आयु से ही साइकिल से स्कूल जाने
लगी थी। स्कूल के दूसरे बच्चों के माता-पिता नहीं चाहते थे कि इतने छोटे बच्चे
साइकिल से स्कूल आएं। इसलिए उन्होंने स्कूल प्रबंधन से इसकी शिकायत भी कर दी। स्कूल
के प्रिंसिपल ने सर्कुलर जारी कर इस पर पाबंदी लगवा दी लेकिन फ्रांसिस को लगा यह
ठीक नहीं है। इसलिए उन्होंने इस निर्णय का कड़ा विरोध किया और प्रबंधन को अपना
सर्कुलर वापस लेना पड़ा। उन्होंने कहा किसी को हो या न हो लेकिन मुझे अपनी बेटी पर
पूरा विश्वास है। फ्रांसिस अपनी बुलेट पर सोफिया को आगे बिठाकर घूमते थे और उसने
धीरे-धीरे मूक-बधिर होते हुए भी बहुत अच्छे से कार और बाइक ड्राइव करना सीख ली।
लोगों ने इसका भी विरोध किया और कहा कि यह ठीक नहीं है। इससे एक्सीडेंट हो सकता है
क्योंकि सोफिया सुन नहीं सकती। उसे ड्राइविंग लाइसेंस भी नहीं मिल रहा था।
फ्रांसिस यहां फिर दिल्ली हाईकोर्ट के एक ऐसे निर्णय के साथ परिवहन विभाग पहुंचे
जिसमें कोर्ट ने आंशिक रूप से मूक-बधिर व्यक्ति को ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने का
आदेश दिया था। इसके बाद उसे मेडिकल सर्टिफिकेट भी चाहिए था जिसके लिए सोफिया को
तकरीबन हर डॉक्टर से मना कर दिया। लम्बे संघर्ष के बाद सोफिया को ड्राइविंग लाइसेंस
के लिए मेडिकल सर्टिफिकेट तिरुवनंतपुरम के मेडिकल कॉलेज ने दिया। इसके बाद सोफिया
लाइसेंस हासिल करने वाली केरल की पहली मूक महिला बनी। इसके बावजूद उसे लोगों ने
खूब परेशान किया। फ्रांसिस बताते हैं कि जब वह बुलेट चलाती थी तो लोग उसके सामने
लाकर गाड़ी रोक देते थे। जानबूझकर उसे परेशान करते थे। जो भी हो आज सोफिया उन लोगों
के लिए नसीहत है जोकि दिव्यांगता को जीवन भर का अभिशाप मान लेते हैं। आज सोफिया
जैसी बेटियों को प्रोत्साहित करने की जरूरत ताकि ये दिव्यांगों का मार्गदर्शन कर
सकें।
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