Tuesday, 29 November 2016

हाकी में मध्य प्रदेश का करिश्मा


मध्य प्रदेश की तरफ से देश का मान बढ़ाने वाली सातवीं खिलाड़ी
                           जैसा नाम वैसा काम
                            श्रीप्रकाश शुक्ला
मध्य प्रदेश सरकार ने महिला हाकी के उत्थान में वाकई गजब का काम किया है। अब हमारे प्रदेश की बेटियां भी हाकी उठा चुकी हैं। उनकी प्रतिभा भी परवान चढ़ने लगी है। प्रदेश की हाकी बेटियों का कारवां आहिस्ते-आहिस्ते टीम इण्डिया की तरफ बढ़ रहा है। हाल ही ग्वालियर की एक बेटी आस्ट्रेलियाई टीम से दो-दो हाथ कर लौटी है। नाम है करिश्मा यादव। जैसा नाम वैसा काम। जी हां ग्वालियर की करिश्मा यादव अपने नाम को ही मैदानों में अपने लाजवाब प्रदर्शन से चरितार्थ कर रही है। आस्ट्रेलिया से तीन मैचों की हाकी सीरीज खेलकर लौटी ग्वालियर की यह बिटिया मध्य प्रदेश की तरफ से देश का मान बढ़ाने वाली सातवीं खिलाड़ी है। हाकी खिलाड़ी करिश्मा यादव और नेहा सिंह की प्रतिभा का ही कमाल है कि प्रदेश में पहली बार उन्हें एकलव्य अवार्ड हासिल करने का मौका मिला। इससे पहले किसी महिला हाकी खिलाड़ी को एकलव्य अवार्ड नहीं मिला था। नेहा सिंह भी ग्वालियर की ही हाकी बेटी है।
खेलों में महाकौशल के कौशल को कभी नकारा नहीं जा सकता। जब यहां सुविधाएं नहीं थीं तब भी एक से बढ़कर एक बेजोड़ खिलाड़ियों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने शानदार प्रदर्शन से मध्य प्रदेश को गौरवान्वित किया। आज प्रदेश सरकार खिलाड़ियों को सुविधाएं मुहैया करा रही है तो उसके अच्छे परिणाम भी मिलने लगे हैं। 10 साल पहले शून्य से शुरू हुआ महिला हाकी के उत्थान का सफर अब प्रदेश की बेटियों की सफलता का पैगाम साबित हो रहा है। 10 साल पहले देश की 23 प्रतिभाशाली खिलाड़ियों से ग्वालियर में खुली महिला हाकी एकेडमी आज मुल्क की सर्वश्रेष्ठ हाकी पाठशाला बन चुकी है। ग्वालियर में जब यह एकेडमी खुली थी उस समय हमारे प्रदेश में हाकी खिलाड़ियों का अकाल सा था, लेकिन अब ऐसी बात नहीं है। आज ग्वालियर में ही इतनी प्रतिभाएं हैं जिनसे कम से कम एक जूनियर टीम तैयार हो सकती है।
सफलता के कई बाप होते हैं। आज देश में सफल खिलाड़ियों का नाम भुनाने का अजीबोगरीब खेल चल रहा है। जैसे ही खिलाड़ी पर टीम इण्डिया का ठप्पा लगता है, उसके कई बाप हो जाते हैं और उस खिलाड़ी को तराशने वाले असली प्रशिक्षक गुमनामी के अंधेरे में खो जाते हैं। इसके लिए खिलाड़ी भी कसूरवार होते हैं लेकिन उतना नहीं जितना राज्य, रेलवे, एकेडमियां और खिलाड़ी को नौकरी देने वाले अन्य संस्थान। सवाल यह भी उठता है कि एक खिलाड़ी किसको-किसको बाप कहे। मध्य प्रदेश में खुली एकेडमियों में भी ऐसा ही अजीब खेल कोई एक दशक से चल रहा है। उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, मणिपुर, मिजोरम, दिल्ली, झारखण्ड आदि राज्यों के खिलाड़ी जैसे ही मध्य प्रदेश की एकेडमियों से हटते हैं, वे अपने-अपने राज्यों या संस्थानों का मंगल गीत गाने लगते हैं। मध्य प्रदेश की एकेडमियों में कार्यरत प्रशिक्षक भी ऐसा ही कर रहे हैं।
खैर, हम बात करते हैं उस करिश्मा यादव की जिसके माता-पिता नहीं चाहते थे कि वह हाकी खेले। यद्यपि उसके घर के पास ही दर्पण मिनी स्टेडिटम में एक ऐसा शख्स खिलाड़ियों को निखार रहा था जिसके हाकी जुनून को प्रदेश में कभी तवज्जो नहीं मिली। लेकिन अपनी धुन के पक्के एनआईएस अविनाश भटनागर अपने काम को अंजाम देना ही अपना कर्तव्य मानते रहे। करिश्मा यादव को भी हाकी का ककहरा इसी शख्स ने सिखाया। वैसे तो मध्य प्रदेश में दर्जनों संविदा हाकी प्रशिक्षक कार्यरत हैं लेकिन जो काम हाकी की बेहतरी के लिए अविनाश भटनागर ने किया उसका एकांश भी दूसरे प्रशिक्षक नहीं कर सके। मध्य प्रदेश की प्रतिभाओं की खोज-खबर के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की पहल पर दर्जनों फीडर सेण्टर खोले गये लेकिन खेल विभाग की अनिच्छा के चलते इस महत्वाकांक्षी योजना का जो लाभ मिलना चाहिए वह नहीं मिला। ग्वालियर का दर्पण मिनी स्टेडियम इसका अपवाद है। यहां से मध्य प्रदेश की महिला और पुरुष एकेडमियों को दो दर्जन से अधिक खिलाड़ी मिल चुके हैं। यह सब अविनाश भटनागर की अथक मेहनत और लगन का ही कमाल है। करिश्मा यादव को भारतीय टीम का सदस्य बनाने में एकेडमी की सुविधा और तालीम के साथ-साथ अविनाश भटनागर के योगदान को कमतर नहीं माना जा सकता। करिश्मा यादव ने पहली बार जूनियर स्तर पर न्यूजीलैण्ड के खिलाफ भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया तो सीनियर स्तर पर उसे आस्ट्रेलिया के खिलाफ खेलने का मौका मिला।
करिश्मा का भारतीय टीम में प्रवेश कोई तुक्का नहीं है। इस मिडफील्डर ने इसके लिए कड़ी मेहनत की है। करिश्मा की कड़ी मेहनत और निरंतर अभ्यास का ही परिणाम है कि हाकी इण्डिया ने उसकी प्रतिभा को न केवल पहचाना बल्कि पहले जूनियर और फिर सीनियर स्तर पर उसे भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व करने का मौका दिया। करिश्मा को 2014 में जहां भारतीय जूनियर टीम से न्यूजीलैण्ड का दौरा करने का मौका मिला वहीं नवम्बर 2016 में सीनियर टीम से आस्ट्रेलिया के खिलाफ खेलने का मौका मिला। तीन मैचों की यह सीरीज आस्ट्रेलिया ने 2-1 से जीती है। इस दौरे में करिश्मा का खेल लाजवाब रहा। ग्वालियर के भीकम सिंह-सुषमा यादव की इस प्रतिभाशाली बेटी ने लगातार राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर दमदार प्रदर्शन करते हुए अपनी टीम को विजेता और उपविजेता होते देखा। सब-जूनियर, जूनियर और सीनियर चैम्पियनशिप की बात करें तो करिश्मा राष्ट्रीय स्तर पर बीस से अधिक बार खेल चुकी है। करिश्मा जूनियर नेहरू हाकी प्रतियोगिता में लगातार चार साल खेली। 2011 और 2012 में उसकी टीम ने स्वर्णिम सफलता हासिल की तो 2013 में रजत और 2014 में कांस्य पदक जीता। हाकी की यह बिटिया कहती है कि लड़कियों में खेल प्रतिभा की कोई कमी नहीं है, जरूरत है उन्हें सही दिशा एवं अवसर प्रदान करने की। वह कहती है कि ग्वालियर अब हॉकी का हब बन रहा है, जिसमें महिला हॉकी के लिए अपार सम्भावनाएं हैं। इसलिए लड़कियों को हॉकी में बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रयास किये जाने चाहिए।    
हाकी में भारतीय बेटियों की जहां तक बात है वे दो बार ओलम्पिक हाकी में हिस्सा ले चुकी हैं। 1980 मास्को ओलम्पिक के बाद भारतीय बेटियां हाकी में दूसरी बार रियो ओलम्पिक खेलीं। इसे दुर्भाग्य कहें या कुछ और अब तक मध्य प्रदेश की कोई बेटी हाकी में ओलम्पिक नहीं खेली है। महिला हाकी के उत्थान से शिवराज सरकार प्रफुल्लित है, उसे होना भी चाहिए। आखिर इसी साल हुए रियो ओलम्पिक में ग्वालियर में संचालित राज्य महिला हाकी एकेडमी की आधा दर्जन बेटियों की सहभागिता यही सिद्ध करती है कि इस एकेडमी का लाभ मध्य प्रदेश के साथ ही देश की महिला हाकी को मिल रहा है। भारतीय महिला हाकी को छह अंतरराष्ट्रीय महिला खिलाड़ी देने वाले जबलपुर की भी कोई बेटी अभी तक ओलम्पिक नहीं खेली है। जबलपुर की एक दो नहीं आधा दर्जन बेटियों ने भारतीय हाकी टीम का प्रतिनिधित्व किया है। इनमें अविनाश कौर सिद्धू, गीता पण्डित, कमलेश नागरत, आशा परांजपे, मधु यादव, विधु यादव के साथ अब ग्वालियर की करिश्मा यादव का नाम भी जुड़ गया है। मधु यादव हाकी में एकमात्र प्रदेश की महिला अर्जुन अवार्डी हैं। स्वर्गीय एस.आर. यादव की बेटी मधु ने लम्बे समय तक मुल्क की महिला हाकी का गौरव बढ़ाया। वह 1982 एशियन गेम्स की स्वर्ण पदक विजेता टीम का सदस्य भी रहीं लेकिन ओलम्पिक वह भी नहीं खेलीं। मधु यादव के परिवार की जहां तक बात है इस यदुवंशी परिवार की रग-रग में हाकी समाई हुई है। मधु और विधु ने भारत का प्रतिनिधित्व किया तो इसी घर की बेटी वंदना यादव ने भारतीय विश्वविद्यालयीन हाकी में अपना कौशल दिखाया।
छह अंतरराष्ट्रीय महिला हाकी खिलाड़ी देने वाले जबलपुर की गीता पंडित, कमलेश नागरत तथा आशा परांजपे भारत छोड़ विदेश जा बसी हैं लेकिन अविनाश कौर सिद्धू, मधु और विधु यादव आज भी गाहे-बगाहे ही सही हाकी की जरूर चिन्ता करती हैं। महिला हाकी में जबलपुर की एक और प्रतिभा रैना यादव भी मेरे जेहन में है। इस बेटी में भी भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व करने की काबिलियत थी लेकिन बेचारी जबलपुर की ही गंदी राजनीति का शिकार हो गई। इस बेटी की राह में किसी और ने नहीं जबलपुर के ही खेलनहारों ने कांटे बिछा दिए। रैना के खेल को मैंने देखा है। मैदान में हिरण सी कुलांचे भरती इस बेटी पर हम भरोसा करते थे। यह बेटी अपने तमाशाई खेल से जीवाजी विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय स्तर पर खिताबी जश्न मनाने का मौका दे चुकी है। मध्य प्रदेश की यह बिटिया अब रेलवे में है। राजनीति का शिकार न होती तो यह बेटी रियो ओलम्पिक खेलने जरूर जाती।

महिला हाकी का गढ़ बन चुका ग्वालियर अब तक तीन बार राष्ट्रीय जूनियर महिला हाकी प्रतियोगिता की मेजबानी कर चुका है। ग्वालियर में पहली बार 1969-70 में राष्ट्रीय जूनियर महिला हाकी प्रतियोगिता हुई थी। तब खिताबी मुकाबले में पेप्सू ने पंजाब को पराजित किया था। ग्वालियर में 1976-77 में दूसरी बार हुई राष्ट्रीय जूनियर महिला हाकी प्रतियोगिता में केरल ने कर्नाटक को हराकर खिताब जीता था। तीसरी और अंतिम बार यहां 1982-83 में राष्ट्रीय जूनियर महिला हाकी प्रतियोगिता हुई। इस वर्ष खिताबी मुकाबले में पंजाब ने बाम्बे का मानमर्दन किया था। ग्वालियर में हाकी की मेजबानी का पुराना इतिहास है। यहां लम्बे समय से चल रही सिंधिया गोल्ड कप हाकी प्रतियोगिता को भला कौन नहीं जानता। यह बात अलग है कि 1958-59 को छोड़कर ग्वालियर कभी विजेता तो क्या फाइनल तक भी नहीं पहुंच सका। उम्मीद है कि महिला हाकी के गढ़ ग्वालियर की करिश्मा यादव के बाद अब दूसरी बेटियां भी मादरेवतन का मान बढ़ाएंगी। 

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