मध्य प्रदेश की तरफ से देश का मान बढ़ाने वाली सातवीं खिलाड़ी
जैसा नाम
वैसा काम
श्रीप्रकाश शुक्ला



करिश्मा का भारतीय टीम में प्रवेश कोई तुक्का
नहीं है। इस मिडफील्डर ने इसके लिए कड़ी मेहनत की है। करिश्मा की कड़ी मेहनत और
निरंतर अभ्यास का ही परिणाम है कि हाकी इण्डिया ने उसकी प्रतिभा को न केवल पहचाना
बल्कि पहले जूनियर और फिर सीनियर स्तर पर उसे भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व करने का
मौका दिया। करिश्मा को 2014 में जहां भारतीय जूनियर टीम से न्यूजीलैण्ड का दौरा
करने का मौका मिला वहीं नवम्बर 2016 में सीनियर टीम से आस्ट्रेलिया के खिलाफ खेलने
का मौका मिला। तीन मैचों की यह सीरीज आस्ट्रेलिया ने 2-1 से जीती है। इस दौरे में
करिश्मा का खेल लाजवाब रहा। ग्वालियर के भीकम सिंह-सुषमा यादव की इस प्रतिभाशाली
बेटी ने लगातार राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर दमदार प्रदर्शन करते हुए अपनी टीम को
विजेता और उपविजेता होते देखा। सब-जूनियर, जूनियर और सीनियर चैम्पियनशिप की बात
करें तो करिश्मा राष्ट्रीय स्तर पर बीस से अधिक बार खेल चुकी है। करिश्मा जूनियर
नेहरू हाकी प्रतियोगिता में लगातार चार साल खेली। 2011 और 2012 में उसकी टीम ने
स्वर्णिम सफलता हासिल की तो 2013 में रजत और 2014 में कांस्य पदक जीता। हाकी की यह
बिटिया कहती है कि लड़कियों में खेल प्रतिभा की कोई कमी नहीं है, जरूरत है उन्हें
सही दिशा एवं अवसर प्रदान करने की। वह कहती है कि ग्वालियर अब हॉकी का हब बन रहा
है, जिसमें महिला हॉकी के लिए अपार सम्भावनाएं हैं। इसलिए लड़कियों को हॉकी में
बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रयास किये जाने चाहिए।
हाकी में भारतीय बेटियों की जहां तक बात है वे दो
बार ओलम्पिक हाकी में हिस्सा ले चुकी हैं। 1980 मास्को ओलम्पिक के बाद भारतीय
बेटियां हाकी में दूसरी बार रियो ओलम्पिक खेलीं। इसे दुर्भाग्य कहें या कुछ और अब
तक मध्य प्रदेश की कोई बेटी हाकी में ओलम्पिक नहीं खेली है। महिला हाकी के उत्थान
से शिवराज सरकार प्रफुल्लित है, उसे होना भी चाहिए। आखिर इसी साल हुए रियो ओलम्पिक
में ग्वालियर में संचालित राज्य महिला हाकी एकेडमी की आधा दर्जन बेटियों की
सहभागिता यही सिद्ध करती है कि इस एकेडमी का लाभ मध्य प्रदेश के साथ ही देश की
महिला हाकी को मिल रहा है। भारतीय महिला हाकी को छह अंतरराष्ट्रीय महिला खिलाड़ी
देने वाले जबलपुर की भी कोई बेटी अभी तक ओलम्पिक नहीं खेली है। जबलपुर की एक दो
नहीं आधा दर्जन बेटियों ने भारतीय हाकी टीम का प्रतिनिधित्व किया है। इनमें अविनाश
कौर सिद्धू, गीता पण्डित, कमलेश नागरत, आशा परांजपे, मधु यादव, विधु यादव के साथ
अब ग्वालियर की करिश्मा यादव का नाम भी जुड़ गया है। मधु यादव हाकी में एकमात्र
प्रदेश की महिला अर्जुन अवार्डी हैं। स्वर्गीय एस.आर. यादव की बेटी मधु ने लम्बे
समय तक मुल्क की महिला हाकी का गौरव बढ़ाया। वह 1982 एशियन गेम्स की स्वर्ण पदक
विजेता टीम का सदस्य भी रहीं लेकिन ओलम्पिक वह भी नहीं खेलीं। मधु यादव के परिवार
की जहां तक बात है इस यदुवंशी परिवार की रग-रग में हाकी समाई हुई है। मधु और विधु
ने भारत का प्रतिनिधित्व किया तो इसी घर की बेटी वंदना यादव ने भारतीय
विश्वविद्यालयीन हाकी में अपना कौशल दिखाया।
छह अंतरराष्ट्रीय महिला हाकी खिलाड़ी देने वाले
जबलपुर की गीता पंडित, कमलेश नागरत तथा आशा परांजपे भारत छोड़ विदेश जा बसी हैं
लेकिन अविनाश कौर सिद्धू, मधु और विधु यादव आज भी गाहे-बगाहे ही सही हाकी की जरूर
चिन्ता करती हैं। महिला हाकी में जबलपुर की एक और प्रतिभा रैना यादव भी मेरे जेहन
में है। इस बेटी में भी भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व करने की काबिलियत थी लेकिन
बेचारी जबलपुर की ही गंदी राजनीति का शिकार हो गई। इस बेटी की राह में किसी और ने
नहीं जबलपुर के ही खेलनहारों ने कांटे बिछा दिए। रैना के खेल को मैंने देखा है।
मैदान में हिरण सी कुलांचे भरती इस बेटी पर हम भरोसा करते थे। यह बेटी अपने तमाशाई
खेल से जीवाजी विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय स्तर पर खिताबी जश्न मनाने का मौका दे
चुकी है। मध्य प्रदेश की यह बिटिया अब रेलवे में है। राजनीति का शिकार न होती तो
यह बेटी रियो ओलम्पिक खेलने जरूर जाती।
महिला हाकी का गढ़ बन चुका ग्वालियर अब तक तीन
बार राष्ट्रीय जूनियर महिला हाकी प्रतियोगिता की मेजबानी कर चुका है। ग्वालियर में
पहली बार 1969-70 में राष्ट्रीय जूनियर महिला हाकी प्रतियोगिता हुई थी। तब खिताबी
मुकाबले में पेप्सू ने पंजाब को पराजित किया था। ग्वालियर में 1976-77 में दूसरी
बार हुई राष्ट्रीय जूनियर महिला हाकी प्रतियोगिता में केरल ने कर्नाटक को हराकर
खिताब जीता था। तीसरी और अंतिम बार यहां 1982-83 में राष्ट्रीय जूनियर महिला हाकी
प्रतियोगिता हुई। इस वर्ष खिताबी मुकाबले में पंजाब ने बाम्बे का मानमर्दन किया
था। ग्वालियर में हाकी की मेजबानी का पुराना इतिहास है। यहां लम्बे समय से चल रही
सिंधिया गोल्ड कप हाकी प्रतियोगिता को भला कौन नहीं जानता। यह बात अलग है कि 1958-59
को छोड़कर ग्वालियर कभी विजेता तो क्या फाइनल तक भी नहीं पहुंच सका। उम्मीद है कि
महिला हाकी के गढ़ ग्वालियर की करिश्मा यादव के बाद अब दूसरी बेटियां भी मादरेवतन
का मान बढ़ाएंगी।
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