किसान के बेटे अमित सरोहा ने
दिव्यांगता को चुनौती
सोनीपत से सटे गांव बैंयापुर में 12 जनवरी, 1985 को एक किसान के घर जन्मे अमित सरोहा को क्या
पता था कि उनकी हंसती-खेलती जिन्दगी ही उनके लिए चुनौती बन जाएगी। वर्ष 2007
में एक सड़क हादसे में वह
दिव्यांग हो गए, जिसके बाद
उन्होंने अपने जीवन को नए सिरे से शुरू किया और वर्ष 2009 में पैरा एथलीट बने। दिव्यांगत का दंश झेलने के
बाद अमित ने निश्चय किया कि वह खेलों में ही शिखर छुएंगे और वह आज खेलों में न
केवल शिरकत कर रहे हैं बल्कि अपनी कामयाबी से हिन्दुस्तान का नाम रोशन कर रहे हैं।
इंचियोन एशियाड में स्वर्ण व रजत तथा अब फ्रांस ओपन और आईपीसी
इंटरनेशनल एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में नए एशियाई रिकार्ड सहित दो स्वर्ण दिलाने
वाले सोनीपत के गांव बैंयापुर के लाड़ले अमित सरोहा को रियो पैरालम्पिक में बेशक
कोई पदक नहीं मिला लेनिक उनके इरादे बुलंद हैं। अमित को उम्मीद है कि वह अगले
ओलम्पिक में जरूर पदक जीतेंगे। अमित ने खेलों में कामयाबी की जो छाप छोड़ी है वह
अन्य खिलाड़ियों को उनसे प्रेरणा लेने के लिए प्रेरित करती है। विश्व रैंकिंग में
दूसरे स्थान पर काबिज अमित क्लब थ्रो व डिस्कस थ्रो की एफ-51 कैटेगरी में प्राप्त उपलब्धियों की बदौलत अब
तक खेलों में भीम और अर्जुन अवार्ड जीत चुके हैं।
अमित को अब तक जो कामयाबी मिली है उसके लिए वह सुबह-शाम
तीन-तीन घंटे जमकर अभ्यास करते हैं। अमित कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय खेल
प्रतियोगिताओं में भारतीय एथलीटों को चेक रिपब्लिक, सर्बिया, स्लोवाकिया और चीन के खिलाड़ियों से ही कड़ी
टक्कर मिलती है। अमित का कहना है कि भारत में अभी दिव्यांग खिलाड़ियों को वह
सुविधाएं नहीं मिल रहीं यहां कई बार तो प्रशिक्षण शिविर भी समय से नहीं लगते। अमित
का कहना है कि भारतीय खिलाड़ी तिरंगा फहराने को हर समय लालायित रहते हैं। बस
आवश्यकता है उन्हें अधिक से अधिक प्रोत्साहन की। यदि खिलाड़ियों को बेहतर सुविधाएं
मिलें तो वह देश की झोली पदकों से भर सकते हैं। अमित को मलाल है कि यहां पैरा
खिलाड़ियों को उम्मीद के मुताबिक सुविधाएं नहीं मिल पातीं, जिससे वह पिछड़ जाते हैं।
अमित खेलों में अब तक फ्रांस ओपन व आईपीसी इंटरनेशनल
एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में शानदार प्रदर्शन कर चुके हैं। वह एशियाई रिकार्ड बनाने
में भी सफल रहे हैं। अमित का कहना है कि पैरा एथलीट संघ को मान्यता मिलने से खेलों
को काफी बढ़ावा मिलेगा। खासकर अब राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं के आयोजन के
द्वार खुल सकेंगे और इसमें कोई दो राय नहीं कि टोक्यो ओलम्पिक में अधिक से अधिक
पैरा खिलाड़ी तिरंगा फहराने को तैयार हो सकेंगे। अमित सरोहा की उपलब्धियों की जहां
तक बात है उन्होंने पहली बार पंचकूला में हुए नेशनल गेम्स में डिस्कस थ्रो व
शाटपुट में गोल्ड मेडल जीता था, जिसके आधार पर राष्ट्रमंडल खेलों में उनका चयन हुआ। हालांकि वह दिल्ली
राष्ट्रमंडल खेलों में पदक नहीं दिला सके, लेकिन उसके एक माह बाद ही चाइना के ग्वांग्झू में हुए एशियन
खेलों में रजत पदक जीतकर अपनी प्रतिभा दिखाई। उसके बाद उन्होंने वर्ष 2012 में लंदन पैरा ओलम्पिक में भाग लिया। वर्ष 2013 में फ्रांस में विश्व चैम्पियनशिप में भाग
लिया। इतना ही नहीं अमित सरोहा को वर्ष 2013 में अर्जुन अवार्ड व वर्ष 2014 में भीम अवार्ड मिल चुका है। उन्होंने वर्ष 2015 में इंचियोन में हुए पैरा एशियाड में डिस्कस
थ्रो में रजत व क्लब थ्रो में स्वर्ण पदक जीता था।
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