जिंदगी पैरों से नहीं हौसले से चलती है
हर किसी के जीवन की अलग-अलग सोच होती है। कुछ लोगों का यह
मानना है कि पैरों के बगैर जिंदगी नहीं चल सकती लेकिन हम इसे सही नहीं मानते।
हमारा मानना है कि जिंदगी पैरों से नहीं बल्कि हौसले से चलती है। जिसे हमने साबित
किया है और कर रहे हैं। तभी तो हम डिसेबल होने के बाद भी क्रिकेट खेलते हैं और अपनी
डिसबिलिटी को दूर करते हैं यह कहना है क्रिकेट के इनमोल हीरे अनमोल वशिष्ठ का।
अनमोल को मलाल है कि बीसीसीआई और खेल मंत्रालय का ध्यान निःशक्त क्रिकेटरों की तरफ
उतना नहीं है जितना कि होना चाहिए। अनमोल कहते हैं कि यदि सरकार और भारतीय क्रिकेट
कंट्रोल बोर्ड मदद करे और ह्वीलचेयर क्रिकेट को मान्यता दे तो हम दिव्यांगों के
बीच से भी विराट कोहली, सचिन तेंदुलकर और महेंद्र सिंह धोनी जैसे खिलाड़ी निकल
सकते हैं।
अनमोल का कहना है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल,
श्रीलंका, आस्ट्रेलिया और इंग्लैंड आदि देशों में बड़े पैमाने पर ह्वीलचेयर
क्रिकेट टूर्नामेंट का आयोजन होता है। इसके लिए वहां की सरकारें न सिर्फ सपोर्ट
करती हैं बल्कि प्लेयर्स का हौसला भी बढ़ाती हैं। टीमें विश्व के कोने-कोने में
टूर्नामेंट के लिए भेजी जाती हैं लेकिन भारत में बीसीसीआई को शारीरिक अक्षमता के
बाद भी क्रिकेट खेलने वाले दिव्यांगों की कोई परवाह नहीं है। यही वजह है कि आज तक
इंडिया में व्हीलचेयर क्रिकेट टीम को मान्यता नहीं मिल सकी है। जबकि भारत में एक
से बढ़कर एक बेजोड़ खिलाड़ी हैं। अनमोल का कहना है कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल
बोर्ड सामान्य खिलाड़ियों पर तो पानी की तरह पैसा बहाता है लेकिन दिव्यांग
प्लेयर्स पर उसका उतना ध्यान नहीं है।
पैरों से चल-फिर सकने में असमर्थ होने के बाद भी हम ह्वीलचेयर
पर बैठकर बैटिंग करते हैं, बॉलिंग करते हैं और क्षेत्ररक्षण करते हैं। हमारे अंदर
भी वह हुनर है कि हम नेशनल और इंटरनेशनल मैचों में विश्व की बड़ी-बड़ी टीमों को
हरा सकते हैं। बशर्ते हमें भी खिलाड़ी का दर्जा दिया जाए। सरकार अगर ध्यान नहीं
देगी तब भी हमारा आत्मविश्वास कम नहीं होगा। मेरठ निवासी अनमोल वशिष्ठ कहते हैं कि
मैं बचपन से ही विकलांगता का शिकार हूं। इसके बाद भी मुझे क्रिकेट खेलने का शौक है
और पिछले 11 साल से ह्वीलचेयर पर बैठे-बैठे ही क्रिकेट खेलता आ रहा हूं। मैं देश
के लिए खेलना चाहता हूं।
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