पैरालम्पिक खेलों का जांबाज खिलाड़ी देवेन्द्र झाझरिया
पैरालम्पिक
खेलों में विश्व कीर्तिमान के साथ जीत चुके हैं दो स्वर्ण पदक
रियो पैरालम्पिक में स्वर्णिम छलांग लगाने वाले भाला फेंक
खिलाड़ी देवेन्द्र झाझरिया उस राजस्थान के चुरू जिले से ताल्लुक रखते हैं, जहां
खेल सुविधाएं सिफर हैं। प्रोत्साहन देने वाले भी बहुत ही कम हैं। वह पैरालम्पिक खेलों
में भारत की पहचान हैं। देवेन्द्र झाझरिया पैरालम्पिक खेलों में अब तक दो स्वर्ण
पदक जीत चुके हैं वह भी विश्व कीर्तिमान के साथ। रियो की सफलता का श्रेय खुद लेने
की बजाय वह इस अपनी बेटी को समर्पित करना चाहते हैं। देवेन्द्र कहते हैं कि रियो
पैरालम्पिक से पहले अपनी छह साल की बेटी के साथ हुई डील का ही नतीजा है कि वह पैरालम्पिक
में रिकार्ड दूसरा स्वर्ण पदक जीतने में सपल हुए। सच कहें तो मेरी बेटी ही मेरी
प्रेरणा बनी।
देवेन्द्र झाझरिया का अपनी बेटी जिया से समझौता हुआ था कि
अगर वह अपनी एलकेजी परीक्षा में टॉप करती है तो वह पैरालम्पिक में स्वर्ण पदक
जीतकर लाएंगे। पैरालम्पिक में दो स्वर्ण पदक जीतने वाले एकमात्र भारतीय झाझरिया ने
पुरुष एफ-46 भाला फेंक में स्वर्ण
जीतने के बाद दूरभाष पर हुई चर्चा में कहा कि मैं जब रियो में ही था मेरी बेटी
जिया ने गर्व के साथ फोन करते हुए मुझे बताया कि मैंने टॉप किया है और अब आपकी
बारी है। देवेन्द्र बताते हैं कि ओलम्पिक स्टेडियम में जब मैं मैदान पर उतरा तो बेटी
जिया की बात बार-बार मेरे कानों में गूंज रही थी। आखिरकार उन्होंने निश्चय किया कि
वह अब स्वर्ण पदक जीतकर ही वतन लौटेंगे। भारत के लिए गर्व और गौरव की बात है कि देवेन्द्र
झाझरिया ने एथेंस में बनाया अपना ही रिकॉर्ड तोड़कर स्वर्ण पदक जीता।
देवेन्द्र झाझरिया कहते हैं कि मैं पूरी रात नहीं सोया और
रियो में सुबह पांच बजे तक अपने परिवार के सदस्यों और शुभचिंतकों से बात करते रहे।
देवेन्द्र झाझरिया के पैरालम्पिक खेलों में पदकों की संख्या और भी होती यदि उन्हें
2008 और 2012 के पैरालम्पिक खेलों में शिरकत का मौका मिलता। पिछले दो पैरालम्पिक में वह हिस्सा नहीं ले पाए थे क्योंकि उनकी स्पर्धा को ही
शामिल नहीं किया गया था। इस दौरान खुद को फिट और चोटमुक्त रखने के लिए झाझरिया ने
कड़ी ट्रेनिंग की और बेहद कम बार घर गए। उनका घर राजस्थान के चुरू जिले के एक छोटे
से गांव में है। वहां इतने कम घर रहे हैं कि उनका दो साल का बेटा काव्यान अपने
पिता को पहचानता भी नहीं है। उन्होंने कहा- उसे तो यह भी नहीं पता कि पिता कैसा
होता है। उसकी मां मेरी फोटो दिखाकर कहती है कि यह तुम्हारे पापा हैं। पैरालम्पिक
से पहले झाझारिया ने अप्रैल-जून में फिनलैंड के क्योरटेन में अभ्यास किया जहां
उनकी कीनिया के भाला फेंक खिलाड़ी यूलियस येगो से दोस्ती हुई जिन्हें वह अपना सबसे
बड़ा प्रेरक मानते हैं। देवेन्द्र झाझरिया ने कहा कि उनकी मां जिवानी देवी और
पत्नी राष्ट्रीय स्तर की पूर्व कबड्डी खिलाड़ी मंजू ने उनकी सफलता में अहम भूमिका
निभाई। रेलवे के पूर्व कर्मचारी देवेन्द्र झाझरिया अब भारतीय खेल प्राधिकरण के साथ
काम कर रहे हैं। झाझरिया को द्रोणाचार्य अवार्डी आर.डी. सिंह कोचिंग देते हैं।
देवेन्द्र झाझरिया का जन्म 10 जून, 1981 को राजस्थान के चूरू जिले में हुआ था। मात्र
आठ साल की उम्र में देवेन्द्र के साथ ऐसा भयानक हादसा हुआ जिसने उनकी जिन्दगी ही
बदल दी। वे एक पेड़ पर चढ़ रहे थे तभी उनका हाथ बिजली के तार से जा टकराया। 11000 वोल्ट के करंट के कारण पूरा हाथ झुलस गया।
तमाम कोशिशों के बावजूद देवेन्द्र का बायां हाथ काटना पड़ा और यह उनके और उनके
परिवार के लिए किसी वज्रपात से कम नहीं था। देवेन्द्र का हाथ तो काट दिया गया लेकिन
इसके बाद भी उनके अंदर जीने का जज्बा बना रहा। उनके मनोबल ने उनके घर वालों को
हिम्मत दी और देवेन्द्र ने एथलीट की दुनिया में कॅरियर बनाने का फैसला कर लिया। देवेन्द्र
झाझरिया ने एथलेटिक्स में 2004 में एथेंस पैरालम्पिक में स्वर्ण पदक जीता था। उस समय उन्होंने 62.15 मीटर दूर भाला फेंका था लेकिन रियो पैरालम्पिक खेलों में
देवेन्द्र ने खुद का ही रिकॉर्ड तोड़ दिया। इस बार उन्होंने 63.15 मीटर दूर भाला फेंका। देवेन्द्र झाझरिया को 2004 में अर्जुन पुरस्कार और 2012 में पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। वे पहले ऐसे पैरालम्पियन खिलाड़ी
हैं जिन्हें पद्मश्री का खिताब मिला है। 2012 में देवेन्द्र झाझरिया पद्मश्री से सम्मानित
होने वाले देश के पहले पैरालम्पिक खिलाड़ी बने। देवेन्द्र झाझरिया ने 2013 में फ्रांस के लियोन में आयोजित आईपीसी
एथलेटिक्स विश्व चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीता। 2014 में दक्षिण कोरिया में आयोजित एशियन पैरा गेम्स
और 2015 की वर्ल्ड चैम्पियनशिप
में उन्होंने रजत पदक हासिल किया था। 2014 में देवेन्द्र झाझरिया फिक्की पैरा-स्पोर्ट्स पर्सन ऑफ द
ईयर चुने गए। 2016 में उन्हें सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का पुरस्कार प्रदान किया गया।
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