इस दुनिया में ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने अपने बूते दुनिया
को बदल कर रख दिया है। ऐसे ही महान लोगों में कितने ऐसे हैं जो विकलांग हैं लेकिन
अपनी शारीरिक संरचना को बहाना न बनाकर उन्होंने अपने नाम को स्वर्णिम अक्षरों में
दुनिया के सामने स्थापित किया है। आंखें न होने के बाद भी भारत की बेटी श्वेता
मण्डल ने अपनी दृढ़-इच्छाशक्ति से दिखाया कि वह किसी से कम नहीं।
श्वेता देख नहीं सकतीं लेकिन उनका जज्बा गजब का है। रांची
विश्वविद्यालय की छात्रा श्वेता ने ह्यूमन राइट्स पोस्ट ग्रेजुएशन डिग्री (2011-13) में टॉप कर दिखा दिया कि वह किसी भी लक्ष्य को
हासिल कर सकती हैं। श्वेता को इस उपलब्धि के लिए विश्वविद्यालय में आयोजित 29वें दीक्षांत समारोह में गोल्ड मैडल से नवाजा
गया। सबसे बड़ी बात यह है कि श्वेता ने यह उपलब्धि ब्रेल की सहायता के बिना हासिल की।
टॉपर बनीं श्वेता दिल्ली के जवाहर लाल विश्वविद्यालय से एमफिल और पीएचडी की पढ़ाई की।
श्वेता को बचपन में ब्रेन ट्यूमर जैसी गंभीर बीमारी हो गई। इस बीमारी के इलाज के
दौरान रेडिएशन का प्रयोग किया गया जिसका साइड इफेक्ट सालों बाद दिखाई दिया और 10वीं में पढ़ने के दौरान उनकी आंखों की रोशनी
पूरी तरह चली गई। लेकिन यह हादसा उनका हौसला नहीं तोड़ पाया। आंखों की रोशनी नहीं
होने के चलते उन्होंने अपनी पढ़ाई रिकॉर्डिंग के जरिए की। जवाब लिखने के लिए परीक्षा
में उन्हें एक हेल्पर भी दिया गया। लोगों को लगा कि इस तरह परीक्षा पास होना
मुश्किल ही है लेकिन 10वीं की परीक्षा में 72 फीसदी नम्बर लाकर श्वेता ने सभी को हैरान कर दिया। बता दें कि 2014 में उन्होंने ह्यूमन राइट्स से नेट भी क्वालीफाई
किया।
अपने बारे में बात करते हुए श्वेता कहती हैं कि उनको जन्म
से यह समस्या नहीं थी इसलिए उन्होंने कभी ब्रेल लिपि सीखने के बारे में नहीं सोचा।
उनके माता-पिता ने हर कदम पर उनका साथ दिया और अपनी सफलता का श्रेय वह उन्हीं को
देती हैं। श्वेता के संघर्ष के बारे में उनकी मां बताती हैं कि वह अपनी किताबें
साथ क्लीनिक में लेकर आती थी। वह चैप्टर्स को पढ़ती थी और उन्हें एक कैसेट में
रिकॉर्ड कर लेती थी। अगले दिन श्वेता इस रिकॉर्डिंग को सुनती थी।
श्वेता बताती हैं कि उन्होंने कभी ब्रेल नहीं सीखी और न ही
उनके पास ब्रेल की कोई किताब रही। जब वह ग्रेजुएशन में पहुंचीं तो उन्होंने बहुत
सी किताबें और जरनल पढ़े। इसके बाद श्वेता ने टेक्नोलॉजी को अपना दोस्त बना लिया
है। वह कहती हैं कि कम्प्यूटर और लैपटॉप के माध्यम से पढ़ाई जारी रखने में उन्हें
बेहतर सहयोग मिला। जॉब एक्स विद स्पीच नामक सॉफ्टवेयर उनके लिए काफी कारगर साबित
हुआ। अपनी इस कामयाबी पर श्वेता का कहना है कि ज्योति यानी रोशनी से ज्यादा जरूरी
है आपके पास दृष्टि यानी विजन का होना। उन्होंने इसी को फॉलो किया और आगे भी इसी
के दम पर आगे बढ़ना चाहती हैं।
No comments:
Post a Comment