Friday, 7 October 2016

इन बेटियों को भी करें सलाम

श्रीप्रकाश शुक्ला
समय बदल रहा है। लोगों की सोच भी बदल रही है। इस बदलाव की वजह देश की वे बेटियां हैं जो पिछले कुछ समय से दुनिया में भारत का नाम रोशन कर रही हैं। ओलम्पिक पदकधारी बेटियों को तो अमूमन सभी खेलप्रेमी जानते हैं लेकिन मुल्क में कई ऐसी भी महिला खिलाड़ी हैं जो लगातार भारत के खाते में पदक और ख्याति दोनों ही जमा कर रही हैं बावजूद उन्हें कम ही लोग जानते हैं। जहां एक तरफ सानिया मिर्जा, साइना नेहवाल, पी.वी. सिन्धु, साक्षी मलिक, कर्णम मल्लेश्वरी, एम.सी. मैरीकाम, दीपा मलिक, अंजुम चोपड़ा, ज्वाला गुट्टा और दीपिका कुमारी जैसी महिला खिलाड़ी अपने-अपने खेलों में पुरुष खिलाड़ियों जितनी ही प्रतिष्ठित हैं वहीं दूसरी ओर विभिन्न खेलों से कई महिला खिलाड़ी बिना शोहरत और चर्चा के मादरेवतन के लिए पदक जीत रही हैं। ये सभी युवा हैं, योग्य हैं और देश की प्रतिष्ठा के लिए अपने कॅरियर को दाँव पर लगाने से भी नहीं कतरातीं। इन खिलाड़ी बेटियों ने अपने-अपने खेलों में शिखर तक का सफर तय करने के लिए न केवल मूलभूत समस्याओं का सामना किया बल्कि सामाजिक रुकावटों को भी पार किया।
अरुणिमा सिन्हा (पर्वतारोही)
अरुणिमा सिन्हा भारत की पहली ऐसी विकलांग महिला खिलाड़ी हैं जिन्होंने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई की। टाटा समूह द्वारा प्रायोजित इको एवरेस्ट एक्सपेडीशन के तहत अरुणिमा ने विश्व की सबसे ऊँची पर्वत श्रृंखला पर चढ़ाई की थी। यह चढ़ाई उन्होंने एक कृत्रिम पैर के साथ की। शिखर तक पहुँचने में उन्हें कुल 52 दिन लगे। उसके बाद उन्होंने दुनिया की अन्य चोटियों को भी अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से बौना कर दिखाया। राष्ट्रीय स्तर की वॉलीबॉल और फ़ुटबॉल खिलाड़ी रही अरुणिमा सिन्हा को सन् 2011 में बदमाशों ने चलती ट्रेन से धक्का दे दिया था। समानान्तर ट्रैक से गुजर रही दूसरी ट्रेन से अरुणिमा का एक पैर घुटनों के नीचे से कुचल गया और परिणामस्वरूप उनका पैर काटना पड़ा। युवराज सिंह के कैंसर से उभरने की कहानी से प्रेरणा लेकर इस खिलाड़ी ने उपचार के दौरान ही एवरेस्ट पर पर्वतारोहण का निश्चय कर लिया। अरुणिमा सिन्हा ने पहली भारतीय महिला पर्वतारोही बछेन्द्री पाल का सान्निध्य लिया। एवरेस्ट पर चढ़ने की तैयारी स्वरूप अरुणिमा ने 2012 में आइलैंड पीक पर चढ़ाई की थी। उन्होंने बार्न अगेन ऑन दि माउंटेंस नाम की पुस्तक भी लिखी है, जिसे दिसम्बर 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा विमोचित किया गया। 2015 में अरुणिमा सिन्हा को पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया।
अरन्तकसा साँचिस (स्नूकर और बिलियर्ड्स)
भारत में क्यू स्पोर्ट्स को अधिकतर लोग सिर्फ पंकज आडवाणी के ही नाम से जोड़कर देखते हैं। बहुत ही कम लोग इस तथ्य से अवगत होंगे कि महिलाएं भी क्यू स्पोर्ट्स के क्षेत्र में अपना योगदान दे रही हैं। अरन्तकसा साँचिस वर्ल्ड स्नूकर चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं। 2013 तक भारतीय महिलाएं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर क्यू स्पोर्ट्स के क्षेत्र में कोई भी बड़ा टाइटल अपने नाम नहीं कर सकी थीं लेकिन उसके बाद से ही इस क्षेत्र में महिला खिलाड़ियों के प्रदर्शन में लगातार सुधार हुआ है। सन् 2015 में ऑस्ट्रेलिया में हुई वर्ल्ड चैम्पियनशिप में अरन्तकसा साँचिस ने इतिहास रचते हुए भारत की ओर से बिलियर्ड्स और स्नूकर के क्षेत्र में एकल खिताब जीतने वाली पहली महिला खिलाड़ी बन गईँ। यह कीर्तिमान पंकज आडवाणी भी अपने नाम कर चुके हैं। साँचिस की कभी हिम्मत न हारने की अभिवृत्ति ही उन्हें धैर्य और दृढ़ता की प्रतिमूर्ति बनाती है। सन् 2013 में उन्हें केरटाकोनस (आँख से सम्बन्धित रोग) हो गया। इस रोग में दृष्टि (आईसाइट) कमज़ोर हो जाती है। इस रोग का उनके खेल पर काफी दुष्प्रभाव पड़ा। इसके बाद भी उन्होंने वर्ल्ड चैम्पियनशिप में खिताब अपने नाम किया।
कोनेरू हम्पी (शतरंज)
सन् 2002 में कोनेरू हम्पी सबसे कम उम्र (15 साल, एक महीना और 27 दिन) में ग्रैंडमास्टर का खिताब जीतने वाली महिला खिलाड़ी बनीं। पिछला रिकार्ड जुडित पोलगर का था जिनकी उम्र खिताब जीतने के वक्त हम्पी से तीन महीने अधिक थी। अक्टूबर, 2007 में वह 2606 की रेटिंग के साथ 2600 की रेटिंग से आगे निकलने वाली पोलगर के बाद दूसरी महिला खिलाड़ी बन गईं। आंध्रप्रदेश की इस महिला खिलाड़ी ने एफआईडीई वूमेन्स ग्रांड प्रिक्स (2009-2010) में हिस्सा लिया और कुल मिलाकर दूसरा स्थान प्राप्त किया। इसके फलस्वरूप वह वूमेन्स वर्ल्ड चेस शतरंज चैम्पियनशिप-2011 के लिए बतौर चैलेंजर क्वालीफाई कर सकीं। एफआईडीई वूमेन्स ग्रांड प्रिक्स (2013-2014) में हम्पी को होउ इफान के हाथों आखिरी दौर में हार का सामना करना पड़ा। वूमेन्स वर्ल्ड चेस शतरंज चैम्पियनशिप 2015 से पहले वह रैंकिंग में पहले स्थान पर थीं लेकिन क्वार्टर फाइनल में उन्हें चैम्पियनशिप की विजेता मारिया मुजाईचुक ने हरा दिया। चेंगडु (चीन) में हुई वूमेन्स वर्ल्ड टीम चेस चैम्पियनशिप-2015 में हम्पी ने एकल कांस्य पदक जीता था। वर्तमान में हम्पी वर्ल्ड चेस रैंकिंग (महिला) में दूसरे स्थान पर हैं।
दीपा करमाकर (जिम्नास्टिक)
दीपा करमाकर ने 2015 की आर्टिस्टिक्स जिम्नास्टिक्स एशियन चैम्पियनशिप जापान में महिला श्रेणी के अंतर्गत कांस्य जीता और बैलेन्स बीम इवेंट में आठवें स्थान पर रहीं। दीपा करमाकर अगरतला (त्रिपुरा) की आर्टिस्टिक जिम्नास्ट हैं। इन्होंने कॉमनवेल्थ गेम्स (2014) में कांस्य पदक जीता था। वह ऐसा करने वाली पहली भारतीय महिला जिमनास्ट हैं। वह प्रोदुनोवा वॉल्ट में प्रवेश करने वाली खिलाड़ी बन चुकी हैं जोकि कुछ ही महिला जिमनास्ट करने में सफल रही हैं। दीपा भारत की ओर से कॉमनवेल्थ गेम्स में पदक जीतने वाली पहली महिला जिम्नास्ट और आशीष कुमार के बाद दूसरी भारतीय जिम्नास्ट बनीं। कॉमनवेल्थ गेम्स से पहले उन्होंने 2014 के एशियन गेम्स के वॉल्ट फाइनल में चौथा स्थान हासिल किया था।  भारत की इस बेटी को रियो ओलम्पिक में बेशक मैडल नहीं मिला लेकिन दुनिया भर में अपनी प्रतिभा का लोहा जरूर मनवा दिया। वह इस विधा के ओलम्पिक फाइनल में पहुंचने वाली पहली महिला खिलाड़ी बनीं। दीपा के करिश्माई प्रगदर्शन को देखते हुए उन्हें खेलरत्न अवार्ड से नवाजा गया।
ललिता बाबर (एथलेटिक्स)

ललिता बाबर लम्बी दूरी की दौड़ में भारत की राष्ट्रीय रिकॉर्ड धारक हैं और 3000 मीटर की स्टीपलचेज में प्रतिभाग करती हैं। रियो ओलम्पिक में उन्होंने फाइनल में प्रवेश कर हर भारतीय का दिल जीत लिया। मुंबई मैराथन लगातार तीन बार जीतने के बाद इस धावक को इसी क्षेत्र में देश के लिए योगदान करने की प्रेरणा मिली। अपने सतत परिश्रम के बल पर ही इस खिलाड़ी ने एशियन गेम्स और कॉमनवेल्थ गेम्स में पदक हासिल किए। मैराथन में जीत के बाद इस खिलाड़ी ने 3000 मीटर की स्टीपलचेज दौड़ में हिस्सा लिया। 2014 के एशियन गेम्स इंचियोन (दक्षिण कोरिया) में इस खिलाड़ी ने 9-35.37 मिनट  की टाइमिंग के साथ कांस्य पदक अपने नाम किया। साथ ही इन्होंने सुधा सिंह का नेशनल रिकॉर्ड भी तोड़ दिया। 2015 की एशियन चैम्पियनशिप वुहान चीन में ललिता ने 9-34.13 मिनट की टाइमिंग के साथ तीन रिकॉर्ड तोड़े खुद का पुराना रिकॉर्ड, भारत का नेशनल रिकॉर्ड और गेम्स रिकॉर्ड। अपने असाधारण प्रदर्शन के बल पर उन्होंने 2016 के समर ओलम्पिक्स के लिए न केवल क्वालीफाई किया बल्कि एथलेटिक्स के फाइनल में पहुंचने वाली दूसरी महिला खिलाड़ी बनीं। इससे पहले पी.टी. ऊषा ही यह करिश्मा कर सकी थीं। महाराष्ट्र की इस युवा महिला खिलाड़ी ने 2015 की वर्ल्ड चैम्पियनशिप (बीजिंग) में 9-27.86 मिनट की टाइमिंग के साथ क्वालीफाई करते हुए नेशनल रिकॉर्ड तोड़ा था।

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