Wednesday 27 December 2017

बरसते रनों के बीच पदकों का अकाल


खेलों में भारत का बीता साल
श्रीप्रकाश शुक्ला
किसी राष्ट्र की प्रतिष्ठा खेलों में उसकी उत्कृष्टता से बहुत कुछ जुड़ी होती है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलों में अच्छा प्रदर्शन केवल पदक जीतने तक सीमित नहीं होता बल्कि यह किसी राष्ट्र के स्वास्थ्य, मानसिक अवस्था एवं लक्ष्य के प्रति सजगता को भी सूचित करता है। समय गतिमान है, 2017 भी उम्मीदों के बीच काल के गाल में समा गया है। क्रिकेट को छोड़ दें तो बीते साल भी अन्य खेलों में भारत की सफलता अनाकर्षक ही रही। हां पेशेवर मुक्केबाज विजेन्दर सिंह, क्यू खिलाड़ी पंकज आडवाणी, शटलर पी.वी. सिन्धू, शटलर किदाम्बी श्रीकांत, भारोत्तोलक मीराबाई चानू, बाक्सर एम.सी. मैरीकाम आदि ने जरूर अपने पराक्रमी खेल से दुनिया भर में भारत को गौरवान्वित किया। यह प्रदर्शन सवा अरब की आबादी वाले भारत के लिए तालियां पीटने जैसी बात तो नहीं है, फिर भी इनके लिए तालियां पीटनी ही चाहिए क्योंकि इन जांबाजों ने खस्ताहाल सिस्टम के बीच खेलप्रेमियों को खुशी के लम्हे मुहैया कराए हैं। देखा जाए तो भारतीय खिलाड़ियों द्वारा ओलम्पिक में जीते पदकों से अधिक तो अकेले अमेरिकी तैराक माइकल फैल्प्स ने ही जीत दिखाए हैं। प्रत्येक ओलम्पिक और अन्य बड़े खेल आयोजनों के बाद सवाल उठता है कि क्या सवा अरब से अधिक आबादी वाले देश के खिलाड़ियों से अधिक पदकों की उम्मीद नहीं रखी जानी चाहिए। अफसोस बार-बार पूछे जाने वाले इस प्रश्न ने भी अब अपनी महत्ता लगभग खो दी है।
एक अरब तीस करोड़ की आबादी वाले देश में 15 प्रतिशत से भी कम लोगों को खेलने की सुविधा है। भारत में युवा जनसंख्या अपेक्षाकृत अन्य देशों की तुलना में अधिक है। इनमें शक्ति एवं ऊर्जा की भी कोई कमी नहीं है। बिना भेदभाव एवं राजनीति के अगर युवाओं को खेल के अवसर मिलें तो बहुत से युवाओं की ऊर्जा को एक सही राह मिल सकती है। देखा जाए तो दो दशक में भारत ने तेजी से आर्थिक प्रगति की है लेकिन खिलाड़ियों की मदद पर गरीबी का ही रोना रोया गया। खेलों में उत्कृष्टता के लिए राजनीतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक प्रतिबद्धता अनिवार्य है। इसके लिए दूरगामी सोच, सक्रिय योजनाएं एवं उनके क्रियान्वयन की आवश्यकता होती है। हम अपनी तुलना चीन से करने की हिमाकत तो करते हैं लेकिन उसके सिस्टम को अमल में लाने का प्रयास नहीं करते। खेलों में आज तक के भारतीय प्रदर्शन को देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि इस खास विधा के लिए बनाया गया खास खेल मंत्रालय कुछ सार्थक कर पाया हो। आजादी के 70 साल बाद भारत को राज्यवर्धन सिंह राठौर के रूप में एक खिलाड़ी खेल मंत्री मिला है, लेकिन अकेला चना भाड़ फोड़ पाएगा इसमें संदेह है।
खैर, 2017 के खेल पन्ने पलटें तो भारतीय खिलाड़ियों ने खेल की दुनिया में क्रिकेट को छोड़कर यदा-कदा ही वाहवाही लूटी है। विराट कोहली के नेतृत्व में टीम इंडिया जहां क्रिकेट के तीनों प्रारूपों में रनों की बरसात करती रही वहीं अन्य खेलों के खिलाड़ी एक-एक तमगे को तरसते नजर आए। खेल के सबसे अहम प्रारूप एथलेटिक्स को देखें तो भारत के लिए समय मानो थम सा गया है। ओलम्पिक में 100 साल के बाद भी हमारा कोई एथलीट पोडियम तक नहीं पहुंचा अलबत्ता दर्जनों खिलाड़ी डोप के कलंक से जरूर मुल्क को शर्मसार कर चुके हैं। एथलेटिक्स को भारतीय परिप्रेक्ष्य से देखें तो अंजू बाबी जार्ज के 2003 के पेरिस विश्व चैम्पियनशिप की लम्बी कूद में जीते कांस्य पदक के बाद से भारत की झोली खाली है। बीते साल लंदन में हुई विश्व एथलेटिक्स स्पर्धा में भालाफेंक खिलाड़ी नीरज चोपड़ा 25 भारतीयों के दल में सबसे बड़ी पदक की उम्मीद थे लेकिन जूनियर विश्व रिकार्डधारी चोपड़ा फाइनल दौर में भी नहीं पहुंच सके। भारत के गोविंद लक्ष्मणन ने 5000 मीटर रेस में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया लेकिन शॉटपुटर मनप्रीत कौर के डोप टेस्ट में पाजीटिव पाए जाने से मुल्क की प्रतिष्ठा तार-तार हो गई। बीते साल भारतीय एथलीटों ने भुवनेश्वर में हुई एशियन एथलेटिक्स स्पर्धा में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए चीन को तो पछाड़ दिया लेकिन विश्व मंच पर कोई भी खिलाड़ी करिश्मा नहीं दिखा सका।
बीते साल भारत के स्टार मुक्केबाज ओलम्पिक पदकधारी विजेन्दर सिंह ने पेशेवर मुक्केबाजी में अपना दबदबा कायम रखते हुए लगातार दसवीं जीत हासिल कर अपने डब्ल्यूबीओ एशिया पैसेफिक और ओरिएंटल सुपर मिडिलवेट खिताबों का सफलतापूर्वक बचाव किया। विजेन्दर ने बेहतर तकनीक और आक्रामकता का प्रदर्शन करते हुए जयपुर के सवाई मानसिंह स्टेडियम में दर्शकों को झूमने के लिए मजबूर कर दिया। भारतीय मुक्केबाज विजेन्दर सिंह ने अपने पेशेवर मुक्केबाजी करियर में लगातार 10वीं जीत दर्ज करते हुए घाना के अर्नेस्ट अमुजु को हराया। बत्तीस वर्ष के ओलंपिक कांस्य पदकधारी मुक्केबाज विजेन्दर का अभी तक का पेशेवर करियर शानदार है। यह मुक्केबाज 2018 में होने वाले राष्ट्रमण्डल और एशियाई खेलों में भारत को स्वर्णिम सफलता दिलाने की कूबत रखता है। विजेन्दर की ही तरह पांच बार की विश्व चैम्पियन एम.सी. मैरीकाम ने एशियन मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में स्वर्णिम सफलता हासिल कर अपने पुराने चावल होने का भान कराया। रिंग की महारानी तीन बेटों की मां मैरीकाम ने अब तक एक ओलम्पिक पदक, पांच विश्व खिताब, पांच एशियन खिताब अपनी झोली में डाले हैं। 2017 में सबसे बड़ी सफलता की बात करें तो मणिपुर की मीराबाई चानू ने विश्व स्तर पर भारोत्तोलन में 23 साल बाद स्वर्णिम सफलता हासिल कर दुनिया को हैरत में डाला है। चानू की इस सफलता ने भारत के माथे पर लगी डोपिंग की कालिख को भी साफ करने का काम किया है।  
बीते साल बैडमिंटन में शटलर पीवी सिंधू और किदांबी श्रीकांत के करिश्माई प्रदर्शन के चलते दुनिया भर के कई खेल मंचों पर राष्ट्रगान की धुन सुनाई दी। किदांबी श्रीकांत ने साल भर बेहतरीन प्रदर्शन कर न केवल नई इबारत लिखी बल्कि सर्वाधिक टाइटल भी अपने नाम किए। पी.वी. सिंधू और श्रीकांत कई एलीट बैडमिंटन टूर्नामेंटों के फाइनल में पहुंचे। सिंधू ने जहां तीन खिताब और तीन रजत पदक के साथ विश्व की सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों के बीच अपना दावा पुख्ता किया वहीं श्रीकांत ने उम्मीदों से बेहतर प्रदर्शन करते हुए चार खिताब जीते और एक में वह उपविजेता रहे। इन दोनों शटलरों के अलावा बी. साई प्रणीत और एच.एस. प्रणय ने भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेहतर प्रदर्शन किया। साल का आकर्षण पी.वी. सिंधू के कुछ कड़े मैच रहे जिन्हें लम्बे समय तक भूला नहीं जा सकेगा। हैदराबाद की इस खिलाड़ी को विश्व चैम्पियनशिप, हांगकांग ओपन और दुबई सुपर सीरीज फाइनल के खिताबी मुकाबले में हार झेलनी पड़ी लेकिन वह दो सुपर सीरीज इंडिया ओपन तथा कोरिया ओपन और सैयद मोदी ग्रांप्री का खिताब जीतने में सफल रही। शटलर श्रीकांत एक सत्र में चार सुपर सीरीज जीतने वाले पहले भारतीय बने। उनसे पहले महान खिलाड़ी लिन डैन, ली चोंग वेई और चेन लोंग ही यह उपलब्धि हासिल कर पाए हैं।
साइना नेहवाल की जहां तक बात है इस शटलर ने मलेशिया मास्टर्स ग्रांप्री गोल्ड का खिताब जीतने के साथ ही विश्व चैम्पियनशिप में कांस्य पदक से अपना गला सजाया। साइना ने राष्ट्रीय चैम्पियनशिप के फाइनल में सिंधू को पराजित कर इस बात के संकेत दिए कि फिट रहने पर वह अब भी सर्वश्रेष्ठ है। 2017 में सोलह साल के लक्ष्य सेन ने भी इंडिया इंटरनेशनल सीरीज और यूरेशिया बुल्गारिया ओपन का खिताब जीता जबकि टाटा ओपन इंडिया इंटरनेशनल में वह उप विजेता रहे। भारतीय शटलरों के शानदार प्रदर्शन से राष्ट्रीय कोच पुलेला गोपीचंद की प्रतिष्ठा में इजाफा हुआ लेकिन विश्व जूनियर चैम्पियनशिप की टीम में उनकी बेटी गायत्री के चयन को लेकर उन पर भेदभाव के आरोप भी लगे। 16 साल की गायत्री ने अण्डर 19 का राष्ट्रीय खिताब जीतकर इस बात के संकेत दिए कि उनमें भी समय आने पर ओलम्पिक पदक से मुल्क को गौरवान्वित करने की क्षमता है। 
इंडियन क्यू खेलों में साल 2017 भी पिछले कई वर्षों की तरह पंकज आडवाणी के ही नाम रहा। आडवाणी ने अपने अनगिनत विश्व खिताबों की कड़ी में बीते साल दो और खिताब जोड़ लिए। पिछले एक दशक से बिलियडर्स व स्नूकर दोनों में कामयाबी की नई कहानी लिख रहे 32 वर्ष के आडवाणी ने बीते साल भी अपेक्षाओं के अनुरूप खेल दिखाया। पंकज के नाम अब 18 विश्व खिताब हो गए हैं। जुलाई 2017 में आडवाणी की अगुआई में भारत ने पाकिस्तान को हराकर एशियाई टीम स्नूकर चैम्पियनशिप का स्वर्ण पदक भी अपने नाम किया था। आडवाणी बिलियर्ड्स और स्नूकर में राष्ट्रीय खिताब जीतने वाले पहले भारतीय पुरुष खिलाड़ी हैं। पंकज के अलावा 2017 में 40 साल की विद्या पिल्लै ने भी सिंगापुर में विश्व महिला स्नूकर चैम्पियनशिप में रजत पदक जीतकर अपने कौशल का शानदार आगाज किया।
बीता साल भारतीय कुश्ती के लिए उम्मीदों के अनुरूप नहीं रहा। साक्षी मलिक के प्रदर्शन में जहां निरंतरता की कमी रही वहीं लगातार दो बार के ओलम्पिक पदक विजेता सुशील कुमार ने दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में आयोजित राष्ट्रमंडल कुश्ती प्रतियोगिता के 74 किलोग्राम फ्री स्टाइल वर्ग में स्वर्ण पदक जीतकर साबित किया कि उनमें अब भी देश को पदक दिलाने का दम है। तीन साल बाद मैट पर उतरे सुशील ने इंदौर में राष्ट्रीय चैम्पियनशिप का खिताब भी अपने नाम किया था। 2020 के टोक्यो ओलम्पिक खेलों को अपना लक्ष्य मानकर चल रहे सुशील ने राष्ट्रमण्डल कुश्ती चैम्पियनशिप में अपने सभी चारों मुकाबले जीते और स्वर्ण पदक अपने नाम किया।
सुशील कुमार की जोरदार वापसी के बावजूद कुश्ती की प्रगति पर सवालिया निशान लग गया है। देखा जाए तो बीजिंग ओलम्पिक 2008 से भारत को कुश्ती में पदक मिल रहे हैं लेकिन कुल मिलाकर यह खेल उस स्तर को बनाए रखने में नाकाम रहा है जो एक समय बना था और 2017 के दौरान यह जाहिर भी हो गया। अगस्त में हुई विश्व चैम्पियनशिप में साक्षी और एशियाई चैम्पियन बजरंग पूनिया की मौजूदगी के बावजूद कोई भारतीय पहलवान पदक दौर में भी जगह नहीं बना सका। भारत ने इससे पहले मई में अपनी मेजबानी में नई दिल्ली में एशियाई चैम्पियनशिप में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए एक स्वर्ण सहित 10 पदक जीते थे। पोलैंड के बिदगोज में अण्डर 23 विश्व चैम्पियनशिप में बजरंग विनोद, ओमप्रकाश और रितु फोगाट ने रजत पदक तो जीते लेकिन प्रतिस्पर्धा के स्तर को देखते हुए यह विश्व मंच पर उसके रुतबे को स्थापित करने के लिए काफी नहीं है।
भारत के युवा निशानेबाजों ने शूटिंग रेंज पर अपनी प्रतिभा की बेमिसाल बानगी पेश करते हुए भविष्य के लिये उम्मीदें जगाई हैं। 2018 में राष्ट्रमंडल खेल, एशियाई खेल और विश्व चैम्पियनशिप को देखते हुए भारतीय नामी-गिरामी निशानेबाज अपने तमगों की तादाद बढ़ाने और उदीयमान शूटर अपनी छाप छोड़ने के इरादे से उतरेंगे। भारतीय निशानेबाजों में इलावेनिल वालारिवन, मेघना सज्जनार, मेहुली घोष, अनीश भानवाला, शपथ भारद्वाज ने उम्दा प्रदर्शन किया तो सौरभ चौधरी, अखिल शेरोन, यशस्विनी सिंह देसवाल और अंगद वीर सिंह बाजवा के प्रदर्शन ने साबित किया कि भारतीय निशानेबाजी का भविष्य उज्ज्वल है। सीनियर स्तर पर डबल ट्रैप निशानेबाज अंकुर मित्तल ने कामयाबी की नयी दास्तान लिखते हुए आईएसएसएफ विश्व कप में रजत और स्वर्ण पदक जीते।
लान टेनिस में बीते साल युवा खिलाड़ियों ने कुछ शीर्ष एकल प्रतिस्पर्धियों पर जीत दर्ज कर जहां अच्छे संकेत दिए वहीं रोहन बोपन्ना ने पहला ग्रैंडस्लैम अपने नाम किया। सानिया मिर्जा के शीर्ष से नीचे की ओर खिसकने की शुरुआत से महिला टेनिस की चमक कम होती दिखने लगी है। पिछले दो साल में शानदार प्रदर्शन करने वाली सानिया मिर्जा ने शीर्ष रैंकिंग गंवाई और अब वह शीर्ष दस में भी नहीं हैं। कुल मिलाकर भारतीय टेनिस के लिये बीता साल मिला-जुला रहा जिसमें न तो बुलंदियों के शिखर पर पहुंचे और न ही नाकामी की तोहमत लगी। युवाओं के जज्बे ने उम्मीदें कायम रखीं। युकी भांबरी, रामकुमार रामनाथन और सुमित नागल ने कुछ सफलतायें अर्जित कर टेनिस के प्रति भारतीयों के रुझान को जिन्दा रखा। बीते साल भारत में सिर्फ दो चैलेंजर टूर्नामेंट पुणे और बेंगलूरू में खेले गए। युकी ने पुणे चैलेंजर जीता और नागल ने बेंगलूरू में जीत दर्ज की। सवाल यह है कि एआईटीए देश में कम से कम पांच चैलेंजर टूर्नामेंट भी क्यों नहीं करा पा रहा। भारत में पुरुषों के सिर्फ नौ आईटीएफ फ्यूचर्स टूर्नामेंट और महिलाओं के छह आईटीएफ टूर्नामेंट खेले गए। भारतीय युवाओं ने पर्याप्त सहयोग नहीं मिलने के बावजूद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अच्छा प्रदर्शन किया। युकी भांबरी ने अमेरिका में एटीपी सिटी ओपन में दुनिया के 22वें नम्बर के खिलाड़ी गाएल मोंफिल्स को हराया वहीं रामकुमार रामनाथन ने दुनिया के आठवें नम्बर के खिलाड़ी डोमिनिक थियेम को तुर्की में अंताल्या ओपन में मात दी। दिविज शरण ने पूरव राजा से जोड़ी टूटने के बावजूद एटीपी यूरोपीय ओपन और चैलेंजर सर्किट पर दो खिताब जीते। लिएंडर पेस ने 2017 में लगातार दो चैलेंजर खिताब जीते लेकिन डेविस कप टीम से उन्हें बाहर रखा गया।
2016 के आखिर में जूनियर विश्व कप अपनी झोली में डालने वाली भारतीय हॉकी के लिए वर्ष 2017 मिली-जुली सफलता वाला रहा जिसमें दो स्वर्ण और तीन कांस्य पदक भारत के नाम रहे। बड़े टूर्नामेंटों की सफल मेजबानी से अंतरराष्ट्रीय हॉकी में भारत का रूतबा भी बढ़ा। भारतीय सीनियर पुरुष टीम ने 2017 में एशिया कप में पीला तमगा जीता जबकि अजलन शाह कप और भुवनेश्वर में हुए हॉकी विश्व लीग फाइनल में उसे कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा। महिला टीम ने 13 बरस बाद एशिया कप अपने नाम कर इतिहास रचा तो जूनियर टीम के हिस्से जोहोर बाहरू कप का कांस्य पदक आया। रियो ओलम्पिक में खराब प्रदर्शन का गम भुलाते हुए भारतीय टीम ने अप्रैल में अजलन शाह कप में न्यूजीलैंड को प्लेआफ में हराकर कांस्य पदक तो जरूर जीता लेकिन जून में लंदन में हॉकी विश्व लीग सेमीफाइनल में उसका प्रदर्शन निराशाजनक रहा। भारत कनाडा और मलेशिया जैसी कमजोर टीमों से हारकर छठे स्थान पर रहा और उसकी एकमात्र उपलब्धि पाकिस्तान पर मिली जीत रही।
अगस्त में यूरोप दौरे पर नौ जूनियर खिलाड़ियों को मौका दिया गया जो लखनऊ में पिछले साल विश्व कप जीतने वाली टीम का हिस्सा थे। भारत की इस युवा टीम ने नीदरलैंड को दो बार हराया। भारत ने ढाका में हुए एशिया कप में शानदार स्टिक वर्क का प्रदर्शन करते हुए फाइनल में मलेशिया को 2-1 से मात देते हुए एशिया कप अपने नाम किया। भुवनेश्वर में खेले गये हॉकी विश्व लीग फाइनल में भरोसेमंद मिडफील्डर सरदार सिंह को बाहर रखने का फैसला चौंकाने वाला रहा बावजूद इसके भारतीय जांबाज टोली ने इंग्लैंड और जर्मनी से हारने के बाद बेल्जियम जैसी दमदार टीम को क्वार्टर फाइनल में पेनल्टी शूटआउट में पराजित किया। भारतीय टीम सेमीफाइनल में रियो ओलम्पिक चैम्पियन अर्जेंटीना से एक गोल से हार गई लेकिन जर्मनी को प्लेआफ में हराकर कांस्य पदक से अपना गला सजाया। महिला हाकी टीम की जहां तक बात है कोच हरेन्द्र सिंह के टीम से जुड़ने के बाद भारतीय बेटियों ने 13 साल बाद चीन को पराजित कर एशिया कप जीता। 2018 भारतीय हॉकी के लिए दशा और दिशा तय करने वाला होगा जिसमें अप्रैल में ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में राष्ट्रमंडल खेल, अगस्त-सितम्बर में जकार्ता में एशियाई खेल और फिर नवम्बर-दिसम्बर में भुवनेश्वर में सीनियर हॉकी विश्व कप खेला जाना है।
2017 भारतीय क्रिकेट के नाम रहा। विराट सेना ने क्रिकेट के तीनों प्रारूपों में अपनी बादशाहत कायम रखी। बीते साल भारतीय टीम ने तीनों प्रारूपों में कुल 53 मैच खेले जिनमें से 37 में उसने विजय का स्वाद चखा। भारत ने 2017 में 11 टेस्ट मैच खेले जिनमें से उसे सात में जीत और एक में हार मिली जबकि तीन टेस्ट ड्रा रहे। बीते कैलेंडर वर्ष में भारतीय विराट टोली ने जो 29 एकदिवसीय मैच खेले उनमें से 21 में उसे विजयश्री मिली। एकदिवसीय क्रिकेट में भारत को सात मुकाबलों में पराजय से दो-चार होना पड़ा। खेल के सबसे छोटे प्रारूप टी-20 में भारत ने 13 मैच खेले और नौ में जीत दर्ज की। यह जीत के लिहाज से भारत का किसी एक वर्ष में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। इससे पहले उसने 2016 में 46 मैचों में से 31 में जीत दर्ज की थी। किसी एक वर्ष में सर्वाधिक वनडे जीतने का भारतीय रिकार्ड 24 है जो उसने 1998 में बनाया था। अगर एक साल में जीत के भारतीय रिकार्ड को देखा जाए तो उसने 2010 और 2013 में 29-29 मैच जबकि 2007 में 28 मैच जीते थे। किसी एक वर्ष में सर्वाधिक मैच जीतने का विश्व रिकार्ड आस्ट्रेलिया के नाम पर है। उसने 2003 में 47 में से 38 मैचों में जीत हासिल की थी। भारत अब इस रिकार्ड की सूची में दूसरे नम्बर पर है।
बीते साल क्रिकेट में एक टीम के रूप में मिली अपार सफलताओं का श्रेय कप्तान विराट कोहली के नायाब प्रदर्शन को भी जाता है। भारतीय क्रिकेट को नयी ऊंचाइयों पर ले जाने की कवायद से लेकर रिकॉर्डतोड़ बल्लेबाजी, कोच बनाने को लेकर उठे विवाद से लेकर स्टारडम की पराकाष्ठा और स्टाइल आइकान से लेकर बॉलीवुड की सुपर स्टार से शादी तक वर्ष 2017 पूरी तरह से विराट कोहली के नाम रहा। भारतीय कप्तान विराट कोहली साल के हर लम्हे पर छाये रहे। बात चाहे मैदान की हो या मैदान से बाहर की, कोच अनिल कुंबले से विवाद की हो या फिर रवि शास्त्री के कोच बनने की, रिकार्डतोड़ बल्लेबाजी की हो या कप्तानी की, लाखों दिलों को तोड़ने की हो या अनुष्का शर्मा से हाई प्रोफाइल शादी की विराट हर भारतीय के दिलो-दिमाग पर छाये रहे। विराट कोहली अब उसी बादशाहत की तरफ बढ़ चले हैं जहां कभी सुनील गावस्कर, कपिल देव, सचिन तेंदुलकर और महेंद्र सिंह धोनी ने राज किया था। विराट का भारतीय क्रिकेट में एकछत्र साम्राज्य स्थापित हो चुका है और वह अपने नाम को पूरी तरह सार्थक कर रहे हैं। क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट में भारतीय कप्तान की बल्लेबाजी अग्नि परीक्षा में कुंदन की तरह निखर कर सामने आयी है। विराट ने 2017 में जिस तरह रिकार्डतोड़ बल्लेबाजी की है उससे तो अब महान सचिन तेंदुलकर के रिकार्ड तक खतरे में नजर आने लगे हैं। बल्लेबाजी की नई इबारत गढ़ रहे विराट ने अपनी बल्लेबाजी से पूरे साल आंकड़ेबाजों को उलझाए रखा और अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में शतकों का पचासा तक पूरा कर डाला। विराट के टेस्ट में 20 और वनडे में 32 शतक हो चुके हैं। कप्तान के रूप में वह सर्वाधिक दोहरे शतकों का नया रिकार्ड भी बना चुके हैं। विराट कोहली की ही तरह रोहित शर्मा ने विदा लेते साल में अपनी याराना बल्लेबाजी से हर किसी को अपना मुरीद बना लिया है। एकदिवसीय क्रिकेट में तीन दोहरे शतक लगाने वाले इस जांबाज बल्लेबाज ने इंदौर में 35 गेंदों में शानदार सैकड़ा जमाकर दक्षिण अफ्रीकी गेंदबाजों को खतरे का पैगाम दिया है। भारतीय क्रिकेट टीम दक्षिण अफ्रीकी दौरे पर है ऐसे में उसके मुरीदों को विराट सेना से सिर्फ जीत का तोहफा चाहिए। क्रिकेट में यदि भारतीय टोली वाकई ताकतवर है तो उसे दक्षिण अफ्रीका फतह करना ही चाहिए वरना उसे दुनिया घरू शेर ही कहेगी।


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