Wednesday, 3 January 2018

षड्यंत्रकारी रोशन ने बुझाई दीपक की लौ

मध्यप्रदेश में योग्य प्रशिक्षकों की नाकद्री
श्रीप्रकाश शुक्ला
खेल एवं युवा कल्याण विभाग मध्य प्रदेश द्वारा हाकी प्रशिक्षक अर्जुन अवार्डी अशोक कुमार, जूडो प्रशिक्षक अर्जुन अवार्डी पूनम चोपड़ा को बेजा तरीके से हटाए जाने का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ कि एक और बाक्सिंग प्रशिक्षक हिटलरशाही का शिकार हो गया। सच कहें तो बाक्सिंग प्रशिक्षक दीपक महाजन की लौ षड्यंत्रकारी रोशन लाल के कारनामों से बुझी है। रोशन लाल ने अपनी बहन को नौकरी दिलाने की खातिर ऐसा षड्यंत्र रचा कि खेल मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया और संचालक खेल उपेन्द्र जैन की नजर में दीपक महाजन कसूरवार नजर आने लगे। जबकि बतौर प्रशिक्षक दीपक महाजन की उपलब्धियां किसी भी मायने में कमतर नहीं कही जा सकतीं।
देखा जाए तो पिछले 11 साल में मध्य प्रदेश सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने खेलों की दिशा में एक नजीर स्थापित की है लेकिन तेली का काम तमोली से कराने के फेर में जो परिणाम मिलने चाहिए वे नहीं मिले। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और खेल मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया निरा भोले हैं। इनके भोलेपन का ही रोशन लाल जैसे खोटे सिक्कों ने नाजायज फायदा उठाया है। मुख्यमंत्री श्री चौहान और खेल मंत्री सिंधिया हर मंच पर टोक्यो ओलम्पिक 2020 में मध्य प्रदेश के अधिकाधिक खिलाड़ियों की सहभागिता का बखान करते नहीं थकते। इन्हें कौन समझाए कि जब हमारे खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर ही औंधे मुंह गिर रहे हों तो भला वे ओलम्पिक कैसे खेलेंगे।
दरअसल, भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर और शिवपुरी में संचालित खेल एकेडमियों में प्रशिक्षणरत कोच अपनी लाज बचाने की खातिर खिलाड़ियों को ऐसी प्रतियोगिताओं में खेलाने को ले जाते हैं जिनका कोई अस्तित्व नहीं होता। जाहिर सी बात है मुख्यमंत्री और खेल मंत्री को असली-नकली प्रतियोगिताओं का भान नहीं होता इसी बात का फायदा नाकारा प्रशिक्षक उठा रहे हैं। पिछले साल की ही बात करें तो मध्य प्रदेश की विभिन्न एकेडमियों के खिलाड़ी सैकड़ों राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पदक जीतकर लाए हैं लेकिन इन पदकों के सहारे ओलम्पिक में शिरकत करना कतई सम्भव नहीं होगा। बावजूद इसके यही पदक मुख्यमंत्री और खेल मंत्री की बांछें खिला रहे हैं।
मध्य प्रदेश खेल एवं युवा कल्याण विभाग में प्रशिक्षकों के साथ न्याय नहीं हो रहा है। प्रदेश भर में सैकड़ों प्रशिक्षक पिछले 10 साल से संविदा पर काम कर रहे हैं लेकिन उन्हें नियमित करने की बजाय प्रदेश के पैसे पर शाहखर्ची दिखाई जा रही है। प्रदेश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है लेकिन उन्हें प्रोत्साहित करने की बजाय खेल विभाग उन पर पैसा लुटा रहा है जिन्हें पैसे की जरूरत ही नहीं है। ओलम्पिक, पैरालम्पिक, विश्व कप में अच्छा प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों का सम्मान किया जाना यदि जरूरी है तो फिर प्रदेश के गरीब खिलाड़ी और प्रशिक्षक मदद की गुहार आखिर किससे लगाएं। जिस प्रदेश में गुरु का ही सम्मान नहीं होगा वहां प्रतिभाएं कैसे खिलखिलाएंगी। देखा जाए तो प्रशिक्षकों को गैरवाजिब तरीके से बाहर निकालना खेल विभाग का चलन बनता जा रहा है।   
कुछ माह पहले की ही बात है जब हाकी प्रशिक्षक अशोक ध्यानचंद को खेल एवं युवा कल्याण विभाग से बड़े बेआबरू होकर निकलना पड़ा था। इसी तरह जूडो खेल की देश की पहली अर्जुन अवार्डी महिला प्रशिक्षक पूनम चोपड़ा के साथ दुर्व्यवहार का मामला सामने आया था। पूनम का आरोप था कि संचालक उपेन्द्र जैन ने न केवल उनके साथ अभद्र व्यवहार किया बल्कि उन्हें धक्के मारते हुए अपने कक्ष से बाहर निकलवाया था। इतना ही नहीं संचालक जैन ने यहां तक कहा था कि बाहर निकलो बहुत देखे तुम्हारे जैसे अर्जुन अवार्डी। सोचने की बात है कि जिस आलाधिकारी को बोलने की तमीज न हो वह खिलाड़ियों का क्या लाख भला करेगा। खैर उसी समय इस बात का संज्ञान लिया गया होता तो शायद मध्य प्रदेश की इतनी किरकिरी न होती। देखा जाए तो खेल एवं युवा कल्याण विभाग प्रशिक्षकों के मामलों में खिलाड़ियों को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है। अशोक कुमार और पूनम चोपड़ा के मामले कुछ यही बयां कर रहे हैं।
खेल एवं युवा कल्याण विभाग के हिटलरशाही रवैये के खिलाफ अशोक कुमार तो कुछ नहीं बोले लेकिन पूनम चोपड़ा ने संचालक उपेन्द्र जैन की शिकायत तात्या टोपे नगर थाने में की थी। पूनम ने शिकायत में कहा था कि वे हाईकोर्ट के स्टे आदेश के साथ अपना पक्ष रखने जैन के पास गई थीं। कोर्ट सम्बन्धी बातें सुनते ही संचालक बिफर गए। दरअसल पूनम चोपड़ा को एकेडमी की खिलाड़ी अंतिम यादव की शिकायत पर कोच पद से हटाया गया था, इसके बाद ही उन्होंने हाईकोर्ट का रुख किया।
ताजा मामला बाक्सिंग प्रशिक्षक दीपक महाजन का सामने आया है। दीपक महाजन से प्रशिक्षण हासिल बाक्सरों ने 63वें स्कूल नेशनल खेलों में दो स्वर्ण, चार रजत और पांच कांस्य पदक सहित कुल 11 पदक जीतने के साथ ही नेशनल चैम्पियनशिप में उप-विजेता होने का गौरव हासिल किया था। इस साल रोशन लाल से प्रशिक्षण हासिल एकेडमी के बच्चों ने दो रजत और एक कांस्य पदक ही हासिल किये हैं। पिछले साल स्कूल नेशनल में बालक वर्ग में टीम ने चौथा तथा बालिका वर्ग में तीसरा स्थान हासिल करते हुए खेलों इंडिया के लिए क्वालीफाई किया था और प्रदेश के बाक्सरों ने सात पदक भी जीते थे। इस बार प्रदेश के बाक्सर खेलने की पात्रता ही हासिल नहीं कर पाए। प्रशिक्षक दीपक महाजन के खिलाफ रोशन लाल द्वारा उस समय षड्यंत्र रचा गया जब वह 13 से 20 सितम्बर तक आईबा-1 स्टार कोर्स करने रोहतक गए हुए थे। 22 सितम्बर को जब दीपक महाजन भोपाल के टीटी नगर स्टेडियम लौटे तो उन्हें काम संतोषजनक न होने की तोहमत लगाकर सेवा समाप्ति का परवाना थमा दिया गया। खेल एवं युवा कल्याण विभाग के कई अधिकारी जहां आज भी दीपक के कामकाज की सराहना कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ रोशन लाल अपनी सफलता की ढींगें हांक रहा है।   

इंसाफ के लिए दीपक महाजन खेल मंत्री के साथ संचालक खेल उपेन्द्र जैन से भी मिले लेकिन किसी के कानों में जूं नहीं रेंगी। रोशन लाल के बारे में संचालक का यह कहना कि वह उनके सारे काम करता है, सोचनीय बात है। श्री जैन की बातों से तो यही लगता है कि खेल विभाग को प्रशिक्षक नहीं रोशन लाल जैसे घरेलू चाकर की जरूरत है। बेहतर होता इस साल के खराब प्रदर्शन के लिए रोशन लाल से पूछा जाता लेकिन पूछे भी तो कौन। दीपक महाजन के खिलाफ कान भरने वाले रोशन लाल की फिलवक्त चांदी ही चांदी है। दीपक को निकलवा कर रोशन ने अपनी बहन नेहा का रास्ता बनाया जिसमें उसे कामयाबी भी मिल गई। संचालक के रहमोकरम पर भाई-बहन कितने दिन गुरुता का पाठ पढ़ाते हैं, यह समय बताएगा।      

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