Wednesday 20 December 2017

नूतन ने पाई मुश्किलों पर फतह

पहले मां तो अब मिल रहा पति का भरपूर सहारा
कब इनायत होगी उत्तर प्रदेश सरकार की नजर
श्रीप्रकाश शुक्ला
भारत में बेटियों के लिए खेलना और खेल के क्षेत्र में करियर बनाना कभी आसान नहीं रहा। इसकी मुख्य वजह परिवार और समाज की दकियानूसी परम्पराएं तथा देश में खेल संस्कृति का अभाव माना जा सकता है। भारतीय बेटियां भी खेलना चाहती हैं। वह भी अंतरराष्ट्रीय फलक पर मादरेवतन का मान बढ़ाने का सपना देखती हैं लेकिन उनका सफर कभी आसान नहीं होता। खिलाड़ी बेटियों का सफर अगर बीच में ही थम जाए तो फिर वह सपनों में तब्दील हो जाता है। कानपुर की नूतन शुक्ला (अब दुबे) को ही देखें जिन्होंने अपने अधूरे सपनों को न केवल पंख दिये बल्कि अब उड़ान भी भर रही हैं। जिस उम्र में प्रायः एथलीट संन्यास ले लेते हैं उस उम्र में नूतन ने पारिवारिक जवाबदेही के बोझ की परवाह किए बिना उत्तर प्रदेश एथलेटिक्स मास्टर मीट में दो स्वर्ण और एक रजत पदक जीतकर 21 से 25 फरवरी तक बेंगलूर में होने वाली नेशनल मास्टर एथलेटिक्स मीट के लिए क्वालीफाई किया है।
यह कहानी है एक संघर्ष की, एक जिद की जिसने अपनी अधूरी ताबीर को पूरा करने के लिए अपना सब कुछ झोंक दिया। कहने को नूतन दुबे संगीत गायन में प्रभाकर हैं लेकिन उनके मन में दिन के हर पहर सिर्फ और सिर्फ खेलों के समुन्नत विकास की ही धुन सवार रहती है। 28 जुलाई, 1979 को वीरेन्द्र नाथ-शशिकला के घर जन्मी नूतन के मन में खेलों की ललक थी तो उनका तन भी एक नजर में ही उनके नायाब खिलाड़ी बनने का संकेत देता है। हर लड़की की तरह नूतन के लिए भी खेलों का हम-सफर बनना आसान नहीं था। जब नूतन 14 साल की थीं तब विद्यालय की एक शिक्षिका ने उनकी कद-काठी को देखते हुए खेलों में हाथ आजमाने को प्रोत्साहित किया। यहां तक कि नूतन के माता-पिता से भी बेटी को खिलाड़ी बनाने की मोहलत मांगी लेकिन वीरेन्द्र नाथ शुक्ला को यह बात जरा भी नहीं जंची, उन्होंने तपाक से बेटी के नहीं खेलने का फैसला सुना दिया। नूतन खेलना चाहती है, इस बात को मां शशिकला ने न केवल पढ़ा बल्कि बेटी की पीठ ठोकते हुए कहा कि तू जरूर खेलेगी। मैं तेरा साया बनकर साथ दूंगी। मां शशिकला ने जो कहा सो किया भी। मां के प्रोत्साहन से नूतन ने न केवल घर से मैदानों की तरफ रुख किया बल्कि देखते ही देखते सबकी आंखों का नूर बन गईं। फिर क्या पिता वीरेन्द्र नाथ शुक्ला भी बेटी की बेशुमार सफलताओं से उसकी बलैयां लेने लगे और हर किसी से बस एक ही बात कहते कि मेरी बेटी नहीं ये तो मेरा बेटा है। ज्ञातव्य है कि नूतन के एक बड़े भाई भी हैं जोकि खेल की बजाय बतौर शिक्षक संगीत शिक्षा में बच्चों को पारंगत करते हैं।
मां से बढ़कर कभी कोई नहीं हो सकता। मां के प्रोत्साहन और सहयोग का ही कमाल था कि एथलेटिक्स में स्कूल से विश्वविद्यालय स्तर तक नूतन ने अपनी सफलता की शानदार गाथा लिखी। नूतन जिस भी प्रतियोगिता में उतरीं, उसमें मैडल जरूर जीते। नूतन विश्वविद्यालय स्तर पर चैम्पियन आफ द चैम्पियन एथलीट रहीं तो अन्य प्रतियोगिताओं में भी इनके दमखम की तूती बोली। नूतन की पसंदीदा प्रतिस्पर्धाएं तो 400 मीटर दौड़ और 400 मीटर बाधा दौड़ थीं लेकिन इस खिलाड़ी बेटी ने 200 और 800 मीटर दौड़ में भी अनगिनत सफलताएं अर्जित कीं। आल इंडिया यूनिवर्सिटी की बात हो या फिर अन्य राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं- नूतन ने सफलता की नई इबारत लिखी। अफसोस राष्ट्रीय स्तर पर दमदार प्रदर्शन करने वाली नूतन का अंतरराष्ट्रीय खेल मंचों में देश के लिए खेलना सपना ही रह गया। नूतन देश के लिए तो नहीं खेल सकीं लेकिन उन्होंने मिलिट्री साइंस से मास्टर डिग्री हासिल करने के साथ-साथ संगीत गायन में प्रभाकर की उपाधि हासिल की। अपनी मां और अपने अधूरे ख्वाबों को अंजाम तक पहुंचाने की खातिर नूतन ने भोपाल के बरकत उल्ला विश्वविद्यालय से बीपीएड की डिग्री हासिल करने के बाद खिलाड़ी प्रतिभाओं को निखारने का संकल्प लिया।
सच कहें तो खेलों में नूतन का अगर कोई गाड-फादर होता तो वह आज शासकीय सेवा में होतीं। खैर, नूतन अपने साथ हुई नाइंसाफी को किस्मत का खेल मानते हुए एक नामचीन निजी विद्यालय हुददर्द हाईस्कूल कानपुर में बतौर स्पोर्ट्स टीचर सेवाएं दे रही हैं। नूतन कहती हैं कि अंतरराष्ट्रीय एथलीट न बन पाने का मुझे मलाल तो है लेकिन अब मैं अपना यह ख्वाब बेटियों के जरिए पूरा करना चाहती हूं। मैं चाहती हूं कि मुझसे प्रशिक्षण हासिल करने वाली कोई कानपुर की बेटी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एथलेटिक्स में देश का नाम रोशन करे। जीवन में आए उतार-चढ़ावों से नूतन दुबे जरा भी विचलित नहीं हैं। वह इसे समय का फेर मानते हुए कहती हैं कि मुझमें अभी भी खेलने का जुनून है। नूतन के जुनून का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हाल ही उन्होंने उत्तर प्रदेश एथलेटिक्स मास्टर मीट में दो स्वर्ण और एक रजत पदक जीतकर कानपुर सम्भाग को चैम्पियन बनाया है। 38 साल की नूतन दुबे ने शाटपुट और हैमर थ्रो में स्वर्ण तो डिस्कस थ्रो में चांदी का पदक जीता है। नूतन कहती हैं कि शादी से पहले यदि मां ने मेरा हर मुमकिन सहयोग किया तो आज मेरे पति (सुनील दुबे) मेरा हमसाया बनकर हौसला बढ़ा रहे हैं। मैं 21 से 25 फरवरी तक बेंगलूर में होने वाली नेशनल मास्टर एथलेटिक्स मीट में अपने अधूरे सपनों को पूरा करना चाहती हूं। इसे खेलों की विडम्बना ही कहेंगे कि शासकीय सेवा में कार्यरत कर्मचारियों को जहां अच्छे प्रदर्शन पर पैसा, शोहरत और शाबासी मिलती है वहीं अशासकीय सेवकों को पैसा तो पैसा सवैतनिक छुट्टी मिलने में भी तरह-तरह की परेशानियां उठानी पड़ती हैं। काश नूतन बेंगलूर में नया अध्याय लिखें ताकि हमारी हुकूमतों की नजर उन पर पड़े।



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